Ruru
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Hindi Katha: एक बार स्वर्ग की परम सुंदरी अप्सरा मेनका ने ऋषि विश्रवावसु के साथ कुछ समय बिताया। इसके परिणामस्वरूप वह गर्भवती हो गई। कुछ समय के पश्चात् मेनका ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। इस कन्या को वह स्थूलकेश ऋषि के आश्रम के पास छोड़ आई। स्थूलकेश ऋषि बड़े धर्मात्मा, सत्यवादी और परम तपस्वी थे। उन्होंने उस कन्या का नाम प्रमद्वरा रखा और पिता के समान उसका लालन-पालन करने लगे। प्रमद्वरा के युवा होने पर ऋषि स्थूलकेश ने उसका विवाह मुनि प्रमति के पुत्र ऋषि रुरु के साथ निश्चित कर दिया।

प्रमद्वरा को देखते ही ऋषि रुरु उस पर मोहित हो गए। किंतु विवाह से कुछ दिन पूर्व ही प्रमद्वरा को एक सर्प ने डस लिया । प्रमद्वरा की उसी समय मृत्यु हो गई। प्रमद्वरा की मृत्यु से ऋषि रुरु अत्यंत दु:खी हुए और उन्होंने अपने प्राणों का त्याग करने का निश्चय कर लिया।

जब ऋषि रुरु अपने जीवन का त्याग करने लगे तभी धर्मराज वहाँ प्रकट हुए और ऋषि रुरु को समझाते हुए बोले – ” हे ऋषिवर ! आपको एक साधारण मनुष्य की भाँति दुःख नहीं करना चाहिए । जीवन का यह चक्र सदा से चलता आ रहा है। जो जन्म लेता है वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है। विधि के इस विधान को कोई भी नहीं मिटा सकता। अत: हे मुनि ! इस प्रकार शोक न करें । ” धर्मराज ने ऋषि रुरु को अनेक प्रकार से समझाया, किंतु वे उनकी बात समझने को तैयार नहीं हुए। अंत में धर्मराज ने कहा – “यदि आप अपनी आधी आयु दे दें तो मैं प्रमद्वरा को जीवित कर सकता हूँ ।” ऋषि रुरु अपनी आधी आयु देने को तैयार हो गए। धर्मराज ने प्रमद्वरा को जीवित कर दिया। तत्पश्चात् शुभ मुहूर्त आने पर प्रमद्वरा का विवाह ऋषि रुरु के साथ सम्पन्न हो गया। इस प्रकार उपाय करने से प्रमद्वरा पुनः जीवित हो गई और ऋषि – दम्पति सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।