Hindi Motivational Story: ” पहाड़ों की सुंदरता और वादियों की खूबसूरती प्रत्येक मन को आकर्षित करती है इतनी ख़ामोशी और स्वयं के साथ मिलना सचमुच एक सुखद अनुभव है कहते हैं कि अगर किसी व्यक्ति को अपने अंदर की कला को बाहर लाना है तो उसे पहाड़ों और वादियों में आना चाहिए यहां आकर प्रत्येक व्यक्ति कलाकार बन जाता है और अपनी भावनाओं को शब्दों में ढा़लकर कागज़ पर कलम के द्वारा उतारकर अपनी कला को आजाद करता है और कभी संगीत के सुरों को एक क्रम में लाकर नई धुनों को इन वादियों और पहाड़ों को सुनाता है। एक पंछी को खुला आसमान प्यारा लगता है पिंजरे में बंद सलाखें नहीं काश ! हर व्यक्ति यह समझ पाता कि मानव का मानव हो जाना कितना महत्वपूर्ण होता है “। अपनी डायरी में यह सब लिखते हुए सौम्या अचानक अपनी मित्र अंजलि की आवाज से रुक जाती है। अंजली मुस्कुराते हुए कहती है – ” अरे सौम्या यहां आओ एक कप चाय का स्वाद हमारे साथ भी ग्रहण करो अब कुछ दिनों के बाद तो सुबह और शाम की चाय अपने साजन के साथ ही पीना है “। सौम्या कहती है – ” विवाह हमारे नए ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” होती है उन सीढ़ियों पर हम अपने ” जीवनसाथी ” के साथ नए शिखर पर चढ़ते हैं। अंजली कहती है -” सौम्या लगता है तुम्हारी पूरी तैयारी है हमें अवश्य निमंत्रण देना अपने विवाह में शामिल होने के लिए “। सौम्या कहती है – ” अवश्य मेरे मित्र मैं तुम्हें अवश्य आमंत्रित करूंगी “। सभी मुस्कुराने लगते हैं और चाय का स्वाद लेकर बातें करने लगते हैं। 

अगले दिन की सुबह सौम्या होटल में अपने कमरे में खिड़की से इन पहाड़ों और वादियों को देखते हुए कुछ पंक्तियां लिखती है ” कितने खुशनुमा होते हैं वो दिल , जो इन वादियों को चादर ओढ़कर पहाड़ों में अपना बिस्तर लगाकर खुले आसमान के नीचे सोते हैं “। कुछ पलों के बाद दरवाजे पर दस्तक होती है। सौम्या पूछती है – ” कौन है दरवाजे पर ? अंजली कमरे में अंदर आते हुए कहती है – ” सौम्या मैं हूं अंजलि तुम तैयार हो हमें आज वापिस अपने घर निकलना है और यह डायरी में क्या लिख रही हो ” अपने ” जीवनसाथी ” को प्रेम पत्र तो नहीं लिख रही हो ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” साथ में चढ़ने के लिए। सौम्या सामान उठाते हुए कहती है – ” जी अब समय हो गया है चलते हैं “। कुछ घंटों के बाद सौम्या अपने घर पहुंच जाती है पहाड़ों से घर तक का सफर बहुत सारे यादों को समेटे हुए था सौम्या रिश्तों के बंधन में बंधने वाली है यह अभी तक एक मजाक था मगर घर पहुंचकर माता – पिता ने यह बात सौम्या के सामने रखते हुए उसे कल एक लड़के से मिलने के लिए कह दिया। सौम्या अपने कमरे में जाकर उस लड़के की फोटो देखती है और स्वयं से पूछती है – ” क्या यह है मेरा ” जीवनसाथी ” इसके साथ में मुझे ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” पर जाना है या फिर कोई और है ?

 सौम्या उस लड़के से मिलने के लिए कॉफी पीने चली जाती है दोनों कॉफी पीते हैं और बातें करते हैं दोनों एक – दूसरे को अपना संक्षिप्त परिचय बताते हैं बातों में वह लड़का सौम्या से कहता है – ” यह हमारी आखिरी मुलाक़ात है “। सौम्या पूछती है – ” क्या हुआ कोई गलती हुई है “। लड़का कहता है – ” नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं आपको सच बताना चाहता हूं मैं किसी और लड़की से प्यार करता हूं और उसे ही अपने इस जीवन का ” जीवनसाथी ” बनाना चाहता हूं और उसके साथ में ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” चढ़ना चाहता हूं आप मुझे एक अच्छे व्यक्ति लगे इसलिए आपको मैं यह सब बताना चाहता हूं आप इस रिश्ते के लिए मना कर दीजिए “। सौम्या कहती है – ” जी ज़रूर आप निश्चिंत रहें “। दोनों माहौल खुशनुमा करते हैं और अन्य विषयों पर चर्चा करना शुरू कर देते हैं। थोड़ी देर बाद वह लड़का चला जाता है और सौम्या वहीं बैठी रहती है और अपने बैग में रखी हुई डायरी में लिखना शुरू कर देती है वह लिखती है कुछ परिचित होता है हमारे जीवन में कुछ अज्ञात होता है हमारे जीवन में मगर हो सकता है वो नई कहानी हो और हो सकता है वो कहीं का अंत हो “। कुछ समय बाद एक व्यक्ति उसके सामने आकर बैठ जाता है सौम्या पूछती है – ” जी आप ? व्यक्ति कहता है – ” जी मुझे किसी से मिलना था और अभी तक वह नहीं आए हैं और मेरी टेबल एक परिवार को देकर मुझे यहां बैठने के लिए बोला गया है अगर आपको अच्छा नहीं लगा तो मैं चला जाता हूं “। सौम्या कहती है – ” कोई व्यक्ति विशेष “। व्यक्ति कहता है – ” जी शायद ऐसा होता मगर वो किसी और ..”। 

अनजान व्यक्तियों के बीच में बहुत देर तक कविताओं की महफिल चलती रहती है। इस महफिल ने अल्पविराम के लिए सौम्या के फोन की घंटी बजती है और फिर सौम्या फोन उठाकर बात करती है। फोन पर उसकी मां उससे घर वापिस आने के बारे में पूछती है। सौम्या अपनी मां से कहती है – ” जी मां कुछ देर में अपने घर पहुंचती हूं “। सौम्या उस व्यक्ति से उसका नाम पूछती है। वह व्यक्ति अपना नाम निखिल बताता है और सौम्या से उसका नाम पूछता है। सौम्या कहती – ” जी जिसका व्यवहार सौम्य है उस व्यक्ति का नाम सौम्या है “। दोनों हल्की – सी मुस्कान को लेकर इस मुलाक़ात से अल्पविराम लेते हैं और एक – दूसरे से धन्यवाद बोलते हैं। सौम्या और निखिल अपने घर की ओर चलने लगते हैं। कुछ देर बाद सौम्या घर पहुंच जाती है। सौम्या के माता – पिता उससे पूछते हैं कि जिस व्यक्ति से उसकी मुलाक़ात हुई है क्या वह उसे अपना ” जीवनसाथी ” बनाएगी क्या वह उसके साथ में ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” पर जाना चाहेगी। माता – पिता का चेहरा देखकर सौम्या कुछ समय के लिए खामोश हो जाती है और पूरे कमरे में सिर्फ घड़ी की टिक – टिक – टिक की आवाज के अलावा कुछ भी सुनाई नहीं देता है पूरे कमरे में खामोशी अपना आशियाना बनाने लगती है। इस खामोशी को सौम्या की मां तोड़कर कहती है – “सौम्या बेटा जो भी बात है आप बता सकते हो कुछ समय चाहिए आपको बेटा “। 

सौम्या उनसे कुछ दिनों के बाद इस विषय पर बात करने के लिए कहती है। सौम्या कुछ दिनों तक स्वयं से ही सवाल पूछती है और स्वयं को ही उत्तर भी देती है और फिर सवालों के जवाबों को ढूंढने लग जाती है। फिर एक दिन मन में चल रहे इन सवालों के जवाबों को ढूंढने का यह सिलसिला सौम्या अचानक रोक देती है और फिर सौम्या एक गहरी लंबी सांस लेने के बाद अपने माता – पिता के पास जाकर कहती है – ” हमारा यह जीवन ईश्वर का तोहफा है इसे हमें सुरक्षित रखना चाहिए और जीवन के अंत में ईश्वर को वापिस सौंपकर नए जीवन में चले जाना चाहिए। मां जीवन में एक निर्णय लेने के पीछे सवालों का सिलसिला चलता रहता है। मैं जिस व्यक्ति से मिलने गई थी वह किसी अन्य के साथ विवाह करना चाहता है। इसलिए मैंने उसे जाने दिया है। कुछ देर बाद वहां पर एक अनजाना व्यक्ति आता है जो मेरी ही तरह की नाव में बैठा हुआ था और मैंने उसे अपने ” जीवनसाथी ” के रूप में चुनने का फैसला किया है। और उसके साथ में ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” पर जाकर जीवन का आनंद लेना चाहती हूं। आगे फैसला आप दोनों के हाथों में सुरक्षित है “। 

सौम्या अपने माता – पिता से इतना बोलकर अपने कमरे में चली जाती है और अपने माता – पिता को उनका फैसला लेने के लिए समय देती है। सौम्या के माता – पिता बहुत नाराज़ होते हैं मगर अपनी बेटी की सादगी और निर्णय लेने की क्षमता को देखकर वह दोनों सोचने लगते हैं एक अनजान व्यक्ति को अपनी बेटी की जिंदगी को सौंपकर क्या वह सही निर्णय लेते हैं या फिर अपनी बेटी को ग़मों की सौगात देते हैं। कुछ दिनों के बाद सौम्या के माता – पिता अपनी बेटी सौम्या के कमरे में दस्तक देते हैं और कहते हैं – ” बेटी सौम्या तुम्हारा निर्णय बहुत गलत है हमें ऐसा लगा मगर तुम्हारी निर्णय लेने की क्षमता और जिंदगी को विचारों से समझाने की कौशिश ने हमें विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। बेटी आप अपना ” जीवनसाथी ” उस व्यक्ति को बना सकती है जिनको आपने स्वीकार किया है। आप उसके साथ ” रिश्तों की पहली सीढ़ी ” पर जाना चाहते हो आप ऐसा कर सकते हो यह जीवन आपका है और निर्णय लेने का अधिकार भी आपका ही होना चाहिए “। निखिल और सौम्या का विवाह हो जाता है और फिर उनके जीवन में कविताओं की महफिल शुरू हो जाती है बहुत सारी बातें और चाय के स्वाद के साथ में।