Summary: रिश्तों का नया घर: अकेलेपन से अपनेपन तक की कहानी
पति को खोने के बाद नमिता की जिंदगी खाली हो गई थी, लेकिन एक बुज़ुर्ग दंपति से मुलाकात ने उसकी दुनिया बदल दी। तीन अकेले दिल, एक-दूसरे का सहारा बनकर फिर से खुशियों की राह पर चल पड़े।
Short Story in Hindi: नमिता और अक्षय की शादी को बस सात महीने ही हुए थे कि एक सड़क हादसे ने नमिता की सारी खुशियाँ छीन लीं। पति की मौत की खबर सुनकर जैसे उसका दिल धड़कना ही भूल गया था । शादी के बाद जो सपनों का घर उसने अपने मन में सजाया था, उसे बिखरने में एक पल भी नहीं लगा।
अक्षय के तकिये को निहारते हुए उसकी पूरी रात बड़ी मुश्किलों से कटती थी। घरवालों ने कई बार समझाया नम्मो बेटा , ज़िंदगी बहुत लंबी है, दूसरी शादी कर ले। नमिता हर बार यही कहती, अब मेरे दिल में किसी के लिए जगह नहीं है।
वह एक सरकारी बैंक में नौकरी करती थी। दफ्तर में वह मुश्किल से मुस्कुराने की कोशिश करती, ताकि कोई उसके पास आकर हमदर्दी ना जताए। घर लौटते ही उसे लगता जैसे दीवारें उसे घूर रहीं हैं। अक्षय के जाने के बाद उसके लिए दिन और रात में कोई फर्क नहीं रह गया था।
एक रविवार की सुबह, वह बाज़ार सब्ज़ी लेने गई। तभी उसने देखा, एक बुज़ुर्ग दंपति फल खरीद रहे थे। अंकल की चाल काफी धीमी थी, और आंटी बार-बार उनका हाथ पकड़ रही थीं। अचानक आंटी का थैला ज़मीन पर गिरा, और नमिता झट से उठाने दौड़ी।
धन्यवाद, बेटा, आंटी ने मुस्कुराते हुए कहा।
कोई बात नहीं, आंटी,
नमिता ने पूछा आप दोनों यहीं पास में रहते हैं?

अंकल बोले, हाँ, बेटा, बस यहीं दो गली छोड़कर।
आंटी ने जाते-जाते कहा, “कभी आना बेटा, हम तो अकेले ही रहते हैं।
जाते-जाते नमिता का मन नहीं माना और उसने अंकल-आंटी को अपनी गाड़ी से उनके घर तक छोड़ दिया। दोनों ने उसे खूब आशीर्वाद दिया।
उस दिन के बाद से नमिता अक्सर उनसे मिलने लगी। उनके घर की पुरानी लकड़ी की अलमारी, दीवारों पर पुराने फोटो फ्रेम, और रसोई से आती गरम चाय की खुशबू सब उसे अपनापन देते। धीरे-धीरे उसने जाना कि राजीव अंकल और सुनीता आंटी के दो बेटे थे, जो चार साल पहले कार एक्सीडेंट में चल बसे थे।
एक शाम, चाय पीते-पीते आंटी ने कहा, जानती हो, बेटा… बेटों के जाने के बाद ये घर सुनसान हो गया था। अब तू आती है तो लगता है, फिर से घर में आवाज़ गूंजने लगी है। ऐसा कहते हुए उनकी आँखों में नमी उतर आयी थी।
नमिता चुप रही, लेकिन उसका दिल भी अंदर से इस दर्द को महसूस कर पा रहा था। उसे महसूस हुआ, की हम तीनों एक दूसरे के जीवन की कमी को पूरा कर सकते हैं।
एक रविवार, उसने हिम्मत जुटाई और धीरे-धीरे पूछा , अंकल, आंटी… अगर आप दोनों को मंज़ूर हो, तो मैं आपके साथ रह सकती हूँ। हम एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं।
अंकल कुछ पल खामोश रहे, फिर धीरे से बोले, “बेटा, हमें लगा था, अब हमारे लिए कोई अपना नहीं रहा लेकिन देख आज तू खुद कह रही है कि तू हमारे साथ रहना चाहती है। आंटी ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया, तू हमारे लिए भगवान का भेजा फरिश्ता है नम्मो। नमिता को याद आया उसके माता-पिता भी तो उसे प्यार से नम्मो ही बुलाते हैं।
उस दिन के बाद से नमिता का जीवन बदल गया। सुबह चाय पर तीन कप सजते, रात को खाने की मेज़ पर हँसी गूंजती। आंटी उसे तरह-तरह का खाना बनाना सिखाती, अंकल पुराने किस्सों से उसे हँसा-हँसाकर लोटपोट कर देते। त्योहारों पर घर रंग-बिरंगी लाइटों से उनका घर जगमगाता रहता।
नमिता ने सीखा कि रिश्ते सिर्फ़ खून के नहीं होते, बल्कि दिल से भी बनते हैं। अब वह अकेली नहीं थी, और न ही अंकल-आंटी। तीन टूटे दिल, एक-दूसरे का सहारा बनकर, फिर से ज़िंदगी की राह पर चल पड़े थे।
और इस तरह नमिता की दुनिया में एक नई सुबह लौट आई, जिसमें था अपनापन, उम्मीद और बिना शर्त का प्यार।
