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वापसी - गृहलक्ष्मी की कहानियां
Stories of Grihalakshmi

 गृहलक्ष्मी की कहानियां – बीस साल पहले जब वह पहली बार स्कूल आया था ,तब से लेकर छै साल पहले जब उसने स्कूल छोड़ा था ,स्कूल में कितने परिवर्तन हुए ।

इधर वह एक एक  क्लास पास करता गया, उधर स्कूल प्राइमरी इंटर और फिर डिग्री और उसी हिसाब से उसकी बिल्डिंग भी बड़ी होती गयी।

उसे कहीं और जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी।  छै साल पहले ,  कितने सपने लेकर वह स्कूल से निकला था और सपने भी कोरे सपने नहीं थे, आखिर एट्टी परसेंट के साथ बी ए की डिग्री कम तो नहीं होती ,लेकिन इन छै सालों में सारे सपने धूल बनकर उड़ गए। किसी ने चालीस क्या दस हजार की नौकरी भी नहीं दी। ऊपर से सौतेली मां के ताने ,घर में कुंवारी बहन ,ऐसे जीने से भी क्या फायदा, इससे अच्छा तो यही है कि वह यह दुनिया ही छोड़ दें ।जब छै साल में कुछ नहीं हुआ, तो आगे भी क्या होगा। कितना संघर्ष करेगा वह।

 पुल पर लगी रोड की लाइट इतनी दूर थी कि रमेश की छाया ही केवल नजर आ रही थी। पिछले बीस सालों में कितनी ही बार वह इस पुल से गुजरा है ।इसके नीचे बहती नदी की लहरों को उसने घंटों देखा है ,लेकिन कभी ऊबन नहीं हुई। आज इन्ही लहरों की गोद  ही…….

 तभी अचानक एक लड़खड़ाती हुई आकृति उसे दूर से आती नजर आई  ।शायद कोई स्त्री थी ।रमेश की नजरें उस आकृति पर गड़ गईं। आकृति एक पांव से लंगड़ा रही थी, फिर भी उसकी चाल बेहद तेज थी। इस अंधेरी रात में ,रात के 10:00 बजे यह कौन होगी।

 पुल के दोनों ओर उंचे  तार लगे हुए थे ,ताकि कोई नदी में गिर ना सके ,लेकिन रमेश को मालूम था ,कि सामने वाले पोल के पास एक अच्छा खासा कट था और वहां की दीवार भी टूटी हुई थी। वह स्त्री उसी ओर तेजी से बढ़ रही थी ।इसका मतलब, इसका मतलब पलभर में ही रमेश की समझ में आ गया।

 इस बीच वह स्त्री उस टूटी दीवार तक पहुंच चुकी थी ।रमेश के दिमाग में बिजली सी कौंधी और इससे पहले कि वह स्त्री दीवार से नदी में छलांग लगाती, रमेश ने उसे पकड़ कर खींच लिया।

वह स्त्री अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी, लेकिन रमेश उसे खींच कर वापस ले ही आया ।”

क्या करने जा रही थीं”

 रमेश ने अब भी  उसकी बांह कस कर पकड़ी हुई थी।

” तुमने मुझे क्यों बचाया “

स्त्री अब शांत हो चुकी थी

” जानती हो आत्महत्या पाप है ,सबसे बड़ा पाप”

 रमेश ने अब भी उसकी बांह नहीं छोड़ी थी

” छै साल हो गए बीसीयों  लड़के आए लेकिन……”

 अब वह स्त्री सिसकियां ले रही थी ।

“क्यों देखने में तो ठीक-ठाक हो बल्कि …….”

रमेश ने अब उसे पहली बार ध्यान से देखते हुए कहा।

” हां, जानती हूं, लेकिन बचपन में ही एक दुर्घटना के कारण पांव में कज और ऊपर से बाप की मामूली नौकरी और अब तो पिछले साल न वो  रहे ना उनकी नौकरी”

 स्त्री की स्वर में हताशा बोल रही थी 

“बड़ी जल्दी हिम्मत हार गईं। अरे लड़ाई लंबी हो सकती है ,लेकिन अगर हार ना मानी जाए, तो जीत होकर रहती है।  फिर सोचो ,अगर तुमने आत्महत्या कर ली, तो तुम्हारी मां का क्या होगा। तुम्हारे पिता के गुजरने के बाद ,तुम ही तो उनका सहारा हो ।फिर क्या वह जी पाएंगी और शादी, शादी भी करना क्या जरूरी है।  पढ़ी लिखी लगती हो, कोई जॉब ढूंढो ।जॉब ना भी मिले तो भी महिलाओं के लिए बहुत से रास्ते हैं “

रमेश के स्वर में अजीब सी दृढ़ता थी।

” शायद तुम ठीक कह रहे हो “कहकर उसने अपनी बांह छुड़ा ली।

” ठीक है ,तो जाओ। तुम्हारी माँ घर पर परेशान हो रही होगी ,”

“जी “

उसके मुख पर कई भाव आकर चले गए ।वो धीरे से मुड़ी और वापस चल पड़ी ।रमेश उसे वापस जाते हुए देखता रहा। धीरे धीरे वह आंखों से ओझल हो गई। तभी स्कूल में लगे घंटाघर की घड़ी ने ग्यारह  बजाये।

 रात के सन्नाटे में वह ग्यारह घंटे साफ सुनाई पड़ रहे थे। रमेश ने एक लंबी सांस ली, एक नजर लहरों पर डाली।

 घर पर पिताजी भी तो परेशान हो रहे होंगे वह बुदबुदाया और वापस सड़क की ओर मुड़ गया ।

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