प्रॉमिस-21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियां बिहार
Promise-Balman ki kahaniyan

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

आज कॉलेज का वार्षिकोत्सव था। कॉलेज दुल्हन की तरह सजाया हुआ था। कॉलेज के सभी छात्र-छात्राएं, अपने-अपने पैरेंटस के साथ वहां उपस्थित थे।

सभी प्रोफेसरों और छात्र-छात्राओं को एक और खुशी थी। इसी कॉलेज में पढ़ने वाला एक छात्र मुरारी आज इसी कॉलेज में अंग्रेजी का प्रोफेसर बनकर आने वाला था। सबसे ज्यादा खुश प्रिंसिपल डॉ. ओम थे। रह-रहकर मुरारी का भोला चेहरा उन्हें याद आ रहा था। जब कोई शिष्य अपने गुरु के समकक्ष पहुंच जाता है, तो गुरु का सिर गर्व से ऊँचा हो जाता है। यही हाल डॉ. ओम का था।

कॉलेज के बड़े हॉल में डॉ. मुरारी का स्वागत करने के लिए सभी खड़े थे।

डॉक्टर मुरारी जैसे ही कालेज में आए, पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

डॉ. ओम उसे फूलों की माला पहनाते, इससे पहले उसने झुककर उनके पैर छ लिए। खशी से गदगद डॉ ओम ने मरारी को गले से लगा लिया। दोनों की आंखों से आंसू झर-झर बहने लगे।

गुरु शिष्य का एक-दूसरे के लिए ऐसा प्रेम देखकर एक बार फिर सभी ने तालियां बजाई।

“मुरारी, आज मैं बहुत खुश हूँ। तुम ने अपना प्रॉमिस पूरा किया।”

डॉ. ओम ने कहा।

“सर, यह तो आप के दिए गए मंत्र और आशीर्वाद के कारण संभव हुआ है, जो आज मैं अपने इस जीवन पथ पर खड़ा हूं। आपके इन पैरों से ही मुझे प्रेरणा मिली थी, नहीं तो अपने शरारती सहपाठियों के कारण उस दिन मैं कालेज छोड़ ही देता।” कहते हुए मुरारी ने हाथ जोड़ लिए…उसे अपना अतीत याद आने लगा था…।

वह कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र लिखकर उसे देने प्रिंसिपल डॉ. ओम के केबिन में गया था।

“सर, यह मेरा कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र है। मैं कालेज छोड़ रहा हूं।” उसने कहा।

“तुम कालेज क्यों छोड़ रहे हो?” प्रिंसिपल सर ने पूछा।

“लड़के मेरा मजाक उड़ाते हैं।”

“अच्छा, इसे कल दे देना। अभी कालेज की मीटिंग होने वाली है।” प्रिंसिपल सर फाइल समेटते हुए बोले।

“जी सर।” कह कर मुरारी बाहर चला गया।

बाहर निकलते ही उसकी कक्षा के तीन-चार शरारती लड़कों ने उसे घेर लिया। सबने हंसते हुए पूछा- “क्यों बे, उल्टे हाथ सर को अपने कालेज छोड़ने का आवेदन पत्र दे दिया?”

मुरारी खून का चूंट पीकर रह गया। वह आंखों में आंसू लिए वहां से भागा।

मुरारी अपने गांव से अपनी मौसी के पास शहर में पढ़ने आया था।

मौसी ने दो-तीन माह पहले ही शहर के जाने-माने जैन कालेज में उस का इंटर में दाखिला करवाया था।

गांव का सीधा-सादा मुरारी पहले दिन ही रैगिंग के नाम पर कालेज के बदमाश लड़कों के हत्थे चढ़ गया था। कक्षा में जब वह अपना सिर नीचे झुका कर बाएँ हाथ से कलम गड़ागड़ाकर धीरे-धीरे लिखता, तो सारे लड़के उस पर ठठा कर हंसते थे।

उस का दायां हाथ पोलियो ग्रस्त था। बायां हाथ भी कुछ टेढ़ा था। वह परी बांह की शर्ट पहन कर कालेज आता तो वे लडके उसकी कलाई के पास वाले बटन खोल आस्तीन ऊपर सरका देते और उसकी पेड़ की डाल जैसी सूखी बांह को पकड़ कर खूब हिला-हिलाकर कहते- “हाथ जोड़ सबको सलाम कर प्यारे…।”

दिन-ब-दिन शरारती लड़कों की शरारतें मुरारी पर भारी पड़ती जा रही थीं। उसमें हीन भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी, जिससे वह मन ही मन रोता रहता। उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह उन लड़कों से भिड़े।

अगले दिन मुरारी प्रिंसिपल सर को स्कूल छोड़ने का आवेदन पत्र देने उन के केबिन में गया। अभी वह दरवाजे पर ही था कि उन को व्हील चेयर पर बैठे हुए देखा। उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई।

“अरे मुरारी, बाहर क्यों खड़े हो? आओ अंदर आओ। तुम अपनी लीविंग एप्लिकेशन देने आए हो ना?” प्रिंसिपल सर की नजर उस पर पड़ी।

“सर, आप और व्हील चेयर पर?” मुरारी ने पास जाकर पूछा।

“अरे, मेरी छोड़ो। अपनी लीविंग एप्लिकेशन दो।” उन्होंने हाथ आगे बढ़ाकर उससे एप्लिकेशन मांगी।

“नहीं सर, पहले मैं आप के बारे में जानना चाहता हूं। आप को व्हील चेयर पर देखकर मुझे बहुत दुख हो रहा है।”

कहते हुए मुरारी के आंसू छलक पड़े।

“तुम एक हाथ से विकलांग हो और मैं अपने दोनों पैरों से।”

“क्या… दोनों पैरों से? यह कैसे हुआ, सर?” मुरारी चौंका।

“बचपन में ही यह हादसा हो गया था। अच्छा, मेरी बात छोड़ो। तुम अपनी लीविंग एप्लिकेशन दो। मैं उसे फाइल में लगा दूं।” प्रिंसिपल ने कहा।

“मुझे माफ कर दीजिए सर, आप दोनों पैर खोकर भी आज इतने बड़े बन गए हैं और मैंने एक हाथ से विकलांग होने पर लड़कों द्वारा मजाक उड़ाए जाने के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ने का निर्णय ले लिया था। मुझे माफ कर दीजिए सर।” कहते-कहते मुरारी ने अपना आवेदन पत्र फाड़कर फेंक दिया और सर के पैरों पर गिरकर फूट-फूटकर रोने लगा।

“मुरारी, जीवन संघर्ष का नाम है। जब तक जीना है, तब तक संघर्ष करना ही है। जीवन में या अपने शरीर में कुछ कमी हो, तो उससे निराश होने की बजाए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ कुछ काम करना बहुत बड़ी बात होती है। तुम्हारा एक हाथ विकलांग है, तुम्हारा मन तो विकलांग नहीं है? तुम पढ़-लिखकर इतने बड़े बन जाओ कि लोग तुम्हारा मजाक उड़ाना छोड़ दें। हर कोई तुम पर गर्व करे।” प्रिंसिपल सर उसका सिर सहलाते हुए कह रह थे।

मुरारी को लगा जैसे सर की सारी बातें मंत्र के समान हैं, जिससे उसके अंदर भरी हुई सारी हीन भावना जलकर राख हो रही हैं और मन में एक अद्भुत आत्मविश्वास का संचार हो रहा है।

वह अपने आंसू पोंछकर बोला- “सर, अब मैं कभी अपने इस बीमार हाथ के कारण दु:खी नहीं होऊंगा। आज मैं आपसे प्रॉमिस करता हूं कि मैं पढ़-लिखकर आपकी तरह ही बनूंगा।”

प्रिंसिपल सर ने खुशी से उसकी पीठ थपथपाई।

सर के पैर छूकर मुरारी कक्षा में चला गया। उसकी आंखों में एक नई चमक थी।

कक्षा में शरारती लड़कों ने उसे छेड़ा- “क्यों बे उल्टे हाथ, तू क्लास में आ गया। तू कॉलेज छोड़ने वाला था न?”

“आप से किसने कह दिया कि मैं कालेज छोड़ कर जा रहा हूं।” मुरारी अपने लिए उल्टे हाथ का संबोधन सुन कर भी मुस्कुरा कर बोला- “मैं इसी कालेज में रहकर अपने आप को सब की नजरों मे ऊँचा उठाऊंगा।”

उसकी आत्मविश्वास से भरी बात सुनकर वे लड़के खुद एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे।

शरारती लड़के अपनी उल्टी-सीधी शरारतों से हमेशा मुरारी को नुकसान पहुंचाते। कालेज छोड़ने के लिए डराते-धमकाते। उल्टे हाथ, लुल्हा, बायाँ हाथ वगैरह-वगैरह नामों से सब उसे चिढ़ाते, पर वह सब कुछ बरदाश्त कर सिर्फ अपनी पढ़ाई पर ही डटा रहा।

उन लडकों को उस दिन धक्का लगा, जब मुरारी सबको पछाड़ कर इंटर में टॉप कर गया और वे धूल चाटते रह गए। फिर तो मुरारी ने दोगुने उत्साह के साथ पढ़ाई की और स्नातक और स्नात्तकोत्तर में भी टॉप किया।

प्रिंसिपल सर के साथ कालेज के सभी प्रोफेसर भी उसकी इस कामयाबी पर बहुत खुश हुए।

मुरारी अंग्रेजी से पी. एच-डी. करने दूसरे शहर चला गया। वहां से वह हर सप्ताह फोन पर प्रिंसिपल सर को अपनी उपलब्धियां बताता और वह खुशी से फूले न समाते।

“डॉ. मुरारी, स्टेज पर चलिए।” एक प्रोफेसर डॉक्टर ओम की व्हील चेयर का हैंडिल पकड़े बोला, तो मुरारी की तंद्रा टूटी।

डॉ. मुरारी प्रिंसिपल सर का हाथ थामे स्टेज की तरफ चल पड़े।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’

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