मिस्टर सोराबजी- मैंने सुना है, आप्टे बिलकुल गँवार-सा आदमी है।’
मिस्टर भरूचा- ‘किसी में यूनिवर्सिटी में शिक्षा ही नहीं पाई, सभ्यता कहीं से आती।’
मिसेज भरूचा- ‘आज उसे खूब बनाना चाहिए।’
महन्त वीरभद्र दाढ़ी के भीतर से बोले- ‘मैंने सुना है, नास्तिक है। वर्णाश्रम- धर्म का पालन नहीं करता।’
मिस जोशी- ‘नास्तिक तो मैं भी हूँ। ईश्वर पर मेरा भी विश्वास नहीं है।’
महन्त- ‘आप नास्तिक हों, पर आप कितने ही नास्तिकों को आस्तिक बना देती हैं।’
मिस्टर जौहरी- ‘आपने लाख पते की बात कही महन्त जी।’
मिसेज भरूचा- ‘क्यों महन्त जी, आपको मिस जोशी ही ने आस्तिक बनाया है क्या?’
सहसा आप्टे लोहार के बालक की उँगली पकड़े हुए भवन में दाखिल हुए। यह पूरे फैशनेबुल रईस बने हुए थे। बालक भी किसी रईस का लड़का मालूम होता था। आज आप्टे को देखकर लोगों को विदित हुआ कि यह कितना सुंदर, सजीला आदमी है। मुख से शौर्य टपक रहा था, पोर-पोर से शिष्टता झलकती थी। मालूम होता था, यह इसी समाज में पला है। लोग देख रहे थे कि वह कहीं चूके और तालियाँ बजाएं, कहीं फिसले और कहकहे लगाएँ पर आप्टे मंजे हुए खिलाड़ी की भांति, जो कदम उठाता था, वह सधा हुआ, जो हाथ दिखलाता था, वह जमा हुआ। लोग उसे पहले तुच्छ समझते थे, अब उससे ईर्ष्या करने लगे, उस पर फबतियां उड़ानी शुरू कीं। लेकिन आप्टे इस कला में भी एक ही निकला। बात मुँह से निकली और उसने जवाब दिया, पर उसके जवाब में मालिन्य या कटुता का लेश भी न होता था। उसका एक-एक शब्द सरल, स्वच्छ, चित्त को प्रसन्न करने वाले भावों में डूबा होता था। मिस जोशी उसकी वाक्-चातुरी पर फूल उठती थी।
सोराबजी- ‘आपने किस यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाई थी?’
आप्टे-‘यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाई होती, तो आज मैं भी शिक्षा विभाग का अध्यक्ष न होता।’
मिसेज भरूचा- ‘मैं तो आपको भयंकर जन्तु समझती थी।’
आप्टे ने मुस्कुराकर कहा- ‘आपने मुझे महिलाओं के सामने न देखा होगा। सहसा मिस जोशी अपने सोने के कमरे में गई और अपने सारे वस्त्राभूषण उतार फेंके। उसके मुख से शुभ्र संकल्प का तेज निकल रहा था। नेत्रों से दबी ज्योति प्रस्फुटित हो रही थीं, मानो किसी देवता ने उसे वरदान दिया हो। उसने सजे हुए कमरे को घृणा के नेत्रों से देखा, अपने आभूषणों को पैरों से ठुकरा दिया और एक मोटी साफ साड़ी पहनकर बाहर निकली। आज प्रातःकाल ही उसने एक साड़ी मँगा ली थी।
उसे इस नये वेश में देखकर सब लोग चकित हो गए। यह कायापलट कैसी? सहसा किसी की आँखों को विश्वास न आया, किन्तु मिस्टर जौहरी बगलें बजाने लगे। मिस जोशी ने इसे फंसाने के लिए यह कोई नया स्वाँग रचा है।
‘मित्रों! आपको याद है, परसों महाशय आप्टे ने मुझे कितनी गालियाँ दी थीं। यह महाशय खड़े हैं। आज मैं इन्हें उस दुर्व्यवहार का दंड देना चाहती हूँ। मैं कल इनके मकान पर जाकर उनके जीवन के सारे गुप्त रहस्यों को जान-आई। यह जो जनता की भीड़ में गरजते फिरते हैं, मेरे एक ही निशाने में गिर पड़े। मैं उन रहस्यों को खोलने में अब विलम्ब न करूँगी, आप लोग अधीर हो रहे होंगे। मैंने जो कुछ देखा, वह इतना भयंकर है कि उसका वृत्तान्त सुनकर शायद आप लोगों को मूर्च्छा आ जाएगी। अब मुझे लेश मात्र भी सन्देह नहीं है कि यह महाशय पक्के विद्रोही हैं।’
मिस्टर जौहरी ने ताली बजायी और तालियों से हाल गूंज उठा।
मिस जोशी- ‘लेकिन राज के द्रोही नहीं, अन्याय के द्रोही, दमन के द्रोही, अभिमान के द्रोही…
चारों ओर सन्नाटा छा गया। लोग विस्मित होकर एक दूसरे की ओर ताकने लगे। मिस जोशी- ‘महाशय आप्टे ने गुप्त रूप से शस्त्र जमा किए हैं और गुप्त रूप से हत्याएँ की हैं..
मिस्टर जौहरी ने तालियां बजायी और तालियों से दौंगड़ा फिर बरस गया। मिस जोशी- ‘लेकिन किसकी हत्या? दुःख की, दरिद्रता की, प्रजा के कष्टों की, हठधर्मी की और अपने स्वार्थ की।’
चारों ओर फिर सन्नाटा छा गया और लोग चकित हो-होकर एक-दूसरे की ओर ताकने लगे, मानों उन्हें अपने कानों पर विश्वास नहीं है।
मिस जोशी- ‘महाराज आप्टे ने गुप्त रूप से डकैतियाँ की हैं और कर रहे हैं।’
अबकी किसी ने ताली न बजायी, लोग सुनना चाहते थे कि देखें आगे क्या कहती है।
उन्होंने मुझ पर भी हाथ साफ किया है, मेरा सब कुछ अपहरण कर लिया है, यहाँ तक कि अब मैं निराधार हूँ और उनके चरणों के सिवाय मेरे लिए और कोई आश्रय नहीं है। प्राणाधार! इस अबला को अपने चरणों में स्थान दो, उसे डूबने से बचाओ। मैं जानती हूँ तुम मुझे निराश न करोगे।’
यह कहते-कहते वह जाकर आप्टे के चरणों पर गिर पड़ी। सारी मंडली स्तंभित रह गई।
एक सप्ताह गुजर चुका था। आप्टे पुलिस की हिरासत में थे। उन पर अभियोग चलाने की तैयारियां हो रही थीं। सारे प्रांत में हलचल मची हुई थी। नगर में रोज सभाएँ होती थीं, पुलिस रोज दस-पाँच आदमियों को पकड़ती थी। समाचार पत्रों में जोरों के साथ वाद-विवाद हो रहा था।
रात के नौ बज गए थे। मिस्टर जौहरी राज-भवन में मेज़ पर बैठे हुए सोच रहे थे कि मिस जोशी को क्यों कर वापस लाएं? उसी दिन से उनकी छाती पर साँप लोट रहा था। उसकी सूरत एक क्षण के लिए आँखों से न उतरती थी।
वह सोच रहे थे, इसने मेरे साथ ऐसी दगा की? मैंने इसके लिए क्या कुछ न किया? इसकी कौन-सी इच्छा थी, जो मैंने पूरी नहीं की और इसी ने मुझसे बेवफाई की। नहीं, कभी नहीं, मैं इसके बगैर जिंदा नहीं रह सकता। दुनिया चाहे मुझे बदनाम करे, हत्यारा कहे, चाहे मुझे पद से हाथ धोना पड़े, लेकिन आप्टे को न छोड़ूंगा। इस रोड़े को रास्ते से हटा दूँगा, इस कांटे को पहलू से निकाल बाहर करूंगा।
सहसा कमरे का द्वार खुला और मिस जोशी ने प्रवेश किया। मिस्टर जौहरी हकबकाकर कुरसी पर से उठ खड़े और यह सोचकर कि शायद मिस जोशी उधर से निराश होकर मेरे पास आई हैं। कुछ रूखे, लेकिन नम्र भाव से बोले- ‘आओ बाला, तुम्हारी याद में बैठा था। तुम कितनी ही बेवफाई करो, पर तुम्हारी याद मेरे दिल से नहीं निकल सकती।’
मिस जोशी- ‘आप केवल जबान से कहते हैं।’
मिस्टर जौहरी- ‘क्या दिल चीरकर दिखा दूँ?’
मिस जोशी- ‘प्रेम प्रतिकार नहीं करता, प्रेम से दुराग्रह नहीं होता। आप मेरे खून के प्यासे हो रहे हैं, उस पर भी आप कहते हैं, मैं तुम्हारी याद करता हूँ। आपने मेरे स्वामी को हिरासत में डाल रखा है, यह प्रेम है! आखिर आप मुझसे क्या चाहते हैं? अगर आप समझ रहे हों कि इन सख्तियों से डरकर मैं आपकी शरण आ जाऊंगी, तो आपका श्रम है। आपको अख्तियार है कि आप्टे को काले पानी भेज दें, फांसी पर चढ़ा दें, लेकिन इसका मुझ पर कोई असर न होगा। वह मेरे स्वामी हैं, मैं उनको अपना स्वामी समझती हूँ। उन्होंने अपनी विशाल उदारता से मेरा उद्धार किया। आप मुझे विषय के फंदे में फंसाते थे, मेरी आत्मा को कलुषित करते थे। कभी आपको यह खयाल आया कि इसकी आत्मा पर क्या बीत रही होगी? आप मुझे आत्मा शून्य समझते थे। इस देव पुरुष ने अपनी निर्मल स्वच्छ आत्मा के आकर्षण से मुझे पहली ही मुलाकात में खींच लिया। मैं उसकी हो गई और मरते दम तक उसी की रहूँगी। उस मार्ग से अब आप मुझे नहीं हटा सकते। मुझे एक सच्ची आत्मा की जरूरत थी, वह मुझे मिल आई। उसे पाकर अब तीनों लोक की सम्पदा मेरी आँखों में तुच्छ है। मैं उनके वियोग मैं चाहे प्राण दे दूँ पर आपके काम नहीं आ सकती।’
मिस्टर जौहरी- ‘मिस जोशी! प्रेम उदार नहीं होता, क्षमाशील नहीं होता। मेरे लिए तुम सर्वस्व हो, जब तक मैं समझता हूँ कि तुम मेरी हो। अगर तुम मेरी नहीं हो सकती, तो मुझे इसकी क्या चिन्ता हो सकती है कि तुम किस दशा में हो?’
मिस जोशी- ‘यह आपका अन्तिम निश्चय है?’
मिस्टर जौहरी- ‘अगर मैं कह दूँ कि हां, तो?’
मिस जोशी ने सीने से पिस्तौल निकालकर कहा- ‘तो पहले आपकी लाश जमीन पर फड़कती होगी और आपके बाद मेरी। बोलिए, यह आपका अन्तिम निश्चय है?’
यह कहकर मिस जोशी ने जौहरी की तरफ पिस्तौल सीधा किया। जौहरी कुर्सी से उठ खड़े हुए और मुस्कराकर बोले- ‘क्या तुम मेरे लिए कभी इतना साहस कर सकती थीं? कदापि नहीं। अब मुझे विश्वास हो गया कि मैं तुम्हें नहीं पा सकता। जाओ, तुम्हारा आप्टे तुम्हें मुबारक हो। उस पर से अभियोग उठा लिया जाएगा। पवित्र प्रेम ही में यह साहस है। अब मुझे विश्वास हो गया कि तुम्हारा प्रेम पवित्र है। अगर कोई पुराना पापी भविष्यवाणी कर सकता है तो मैं कहता हूँ वह दिन दूर नहीं है, जब तुम इस भवन की स्वामिनी होगी। आप्टे ने प्रेम के क्षेत्र में नहीं, राजनीति के क्षेत्र में भी परास्त कर दिया। सच्चा एक आदमी एक मुलाकात में ही जीवन को बदल सकता है, आत्मा को जगा सकता है और अज्ञान को मिटाकर प्रकाश की ज्योति फैला सकता है, यह आज सिद्ध हो गया।
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