संन्यासी ने एक सोटा हाथ में लिया और कहा – कदाचित् इससे भी अच्छे शिकार हाथ आवें। मैं जब अकेला जाता हूं कभी खाली नहीं लौटता। आज तो हम दो हैं।
दोनों शिकारी नदी के तट के पर नालों और रेतों के टीलों को पार करते और झाड़ियों से अटकते चुपचाप चले जा रहे थे। एक ओर श्यामवर्ण नदी थी जिसमें नक्षत्रों का प्रतिबिंब नाचता दिखाई देता था और लहरें गान कर रही थी। दूसरी ओर घनघोर अंधकार, जिसमें कभी-कभी केवल खद्योतों के चमकने से एक क्षण स्थायी प्रकाश फैल जाता था। मालूम होता था कि वे भी अंधेरे में निकलने से डरते हैं।
ऐसी अवस्था में कोई एक घंटा चलने के बाद वह ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां एक ऊंचे टीले पर घने वृक्षों के नीचे आग जलती दिखाई पड़ी। उस समय इन लोगों को मालूम हुआ कि संसार में इनके अतिरिक्त और भी कई वस्तुएं हैं।
संन्यासी ने ठहरने का संकेत किया। दोनों एक पेड़ की ओट में खड़े होकर ध्यानपूर्वक देखने लगे। राजकुमार ने बन्दूक भर ली। टीले पर एक बड़ा छायादार वट-वृक्ष था। उसी के नीचे अंधकार में दस-बारह मनुष्य अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित मिर्जई पहने चरस का दम लगा रहे थे। इनमें से सभी प्रायः लंबे थे। सभी के सीने चौड़े और सभी हृष्ट-पुष्ट। मालूम होता था कि सैनिकों का एक दल विश्राम कर रहा है।
राजकुमार ने पूछ – यह लोग शिकारी है? संन्यासी ने धीरे से कहा – बड़े शिकारी हैं। ये राह चलते यात्रियों का शिकार करते है। ये बड़े भयानक हिंसक पशु हैं। इनके अत्याचार से गांव के गांव बर्बाद हो गए और जितनों को इन्होंने मारा है, उनका हिसाब परमात्मा ही जानता है। यदि आपको शिकार करना हो तो इनका शिकार कीजिए। ऐसा शिकार आप बहुत प्रयत्न करने पर भी नहीं पा सकते। यही पशु हैं, जिन पर आपका शस्त्रों का प्रहार करना उचित है। राजाओं और अधिकारियों के शिकार यही हैं। इससे आपका नाम और यश फैलेगा। राजकुमार के जी में आया कि दो-एक को मार डालें, किन्तु संन्यासी ने रोका और कहा इन्हें छेड़ना ठीक नहीं। अगर यह कुछ उपद्रव न करें, तो भी बचकर निकल जाएंगे। आगे चलो, सम्भव है कि इससे भी अच्छे शिकार हाथ आवें।
तिथि सप्तमी थी। चंद्रमा भी उदय हो आया। इन लोगों ने नदी का किनारा छोड़ दिया था। जंगल भी पीछे रह गया था। सामने एक कच्ची सड़क दिखाई पड़ी और थोड़ी देर में कुछ बस्ती भी दिख पड़ने लगी। संन्यासी एक विशाल प्रसाद के सामने आकर रुक गए और राजकुमार से बोले – आओ, इस मौलश्री के वृक्ष पर बैठें। परन्तु देखो, बोलना मत। नहीं तो दोनों की जान के लाले पड़ जाएंगे। इसमें एक बड़ा भयानक हिंसक जीव बहता है, जिसने अनगिनत जीवधारियों का वध किया है। कदाचित् हम लोग आज इसको संसार से मुक्त कर दें।
राजकुमार बहुत प्रसन्न हुआ। सोचने लगा, चलो, रात भर की दौड़ तो सफल हुई। दोनों मौलश्री पर चढ़कर बैठ गए। राजकुमार ने अपनी बंदूक संभाल ली और शिकार की, जिसे वह तेंदुआ समझे हुए था, बाट देखने लगा।
रात आधी से अधिक व्यतीत हो चुकी थी। यकायक महल के समीप कुछ हलचल मालूम हुई और बैठक के द्वार खुल गए। मोमबत्ती के जलाने से सारा हाता प्रकाशमय हो गया। कमरे के हर कोने में सुख की सामग्री दिखाई दे रही थी। बीच में एक हृष्ट-पुष्ट मनुष्य गले में एक रेशमी चादर डाले, माथे पर केसर का अर्थ लम्बाकार तिलक लगाये, मसनद के सहारे बैठा सुनहरी मुंहनाल से लच्छेदार धुंआ फेंक रहा था। इतने ही में उन्होंने देखा के नर्तकियों के दल-के-दल चले आ रहे हैं। उनके हाव-भाव व कटाक्ष के शर चलने लगे। समाजियों ने सुर मिलाया। गाना आरम्भ हुआ और साथ-ही-साथ मद्यपान भी चलने लगा।
राजकुमार ने अचंभित होकर पूछा – यह तो कोई बड़ा रईस जान पड़ता है।
संन्यासी ने उत्तर दिया – नहीं, यह रईस नहीं है, एक बड़े मंदिर के महंत है, साधु है। संसार का त्याग कर चुके हैं। सांसारिक वस्तुओं की ओर आंख नहीं उठाते, पूर्ण ब्रह्मज्ञान की बातें करते हैं। यह सब सामान इनकी आत्मा की प्रसन्नता के लिए है। इन्द्रियों को वश में किये हुए इन्हें बहुत दिन हुए। सहस्रों सीधे-सादे मनुष्य इन पर विश्वास करते हैं। इनके अपना देवता समझते हैं। यदि आप शिकार करना चाहते हैं तो इनका कीजिए। यही राजाओं और अधिकारियों के शिकार हैं। ऐसे रंगे हुए सियारों से संसार को मुक्त करना आपका परम धर्म है। इससे आपकी प्रजा का हित होगा तथा आपका नाम और यश फैलेगा।
दोनों शिकारी नीचे उतरे। संन्यासी ने कहा – अब रात अधिक बीत चुकी है। तुम बहुत थक गए होगे। किन्तु राजकुमारों के साथ आखेट करने का अवसर मुझे बहुत कम प्राप्त होता है। अतएव एक शिकार का पता और लगाकर तब लौटेंगे।
राजकुमार को इन शिकारों में सच्चे उपदेश का सुख प्राप्त हो रहा था। बोला स्वामीजी, थकने का नाम न लीजिए। यदि मैं वर्षों आपकी सेवा में रहता तो और न जाने कितने ऐसे आखेट करना सीख जाता।
दोनों फिर आगे बढ़े। अब रास्ता स्वच्छ और चौड़ा था। हां, सड़क कदाचित कच्ची ही थी। सड़क के दोनों और वृक्षों की पंक्तियां थी। किसी-किसी आम के वृक्ष के नीचे रखवाले सो रहे थे। घंटे भर बाद दोनों शिकारियों ने एक ऐसी बस्ती में प्रवेश किया, जहां की सड़कों, लालटेनों और अट्टालिकाओं से मालूम होता था कि कोई बड़ा नगर है। संन्यासी जी एक विशाल भवन के सामने एक वृक्ष के नीचे ठहर गए और राजकुमार से बोले – यह सरकारी कचहरी है। यहां राज्य का एक बड़ा कर्मचारी रहता है। उसे सूबेदार कहते हैं। इसकी कचहरी दिन को भी लगती है और रात को भी। यहां न्याय सुवर्ण और रत्नादिकों के मोल बिकता है। यहां की न्यायप्रियता द्रव्य पर निर्भर है। धनवान दरिद्रों को पैरों तले कुचलते हैं और उनकी गुहार कोई भी नहीं सुनता।
यही बातें हो रही थी कि यकायक कोठे पर दो आदमी दिखलाई पड़े। दोनों शिकारी वृक्ष की ओट में छिप गए। संन्यासी ने कहा – शायद सूबेदार साहब कोई मामला तय कर रहे हैं।
ऊपर से आवाज आई, तुमने एक विधवा स्त्री की जायदाद ले ली है, मैं इसे भली-भांति जानता हूं। यह कोई छोटा मामला नहीं है। इसमें एक सहस्र से कम पर मैं बातचीत करना नहीं चाहता।
राजकुमार में इससे अधिक सुनने की शक्ति न रही। क्रोध के मारे नेत्र लाल हो गए। यही जी चाहता था कि इस निर्दयी का अभी वध कर दूं किंतु संन्यासी ने रोका। बोले – आज इस शिकार का समय नहीं है। यदि आप ढूंढ़े तो ऐसे शिकार बहुत मिलेंगे! मैंने इनके कुछ ठिकाने बतला दिए हैं। अब प्रातःकाल होने में अधिक विलम्ब नहीं है। कुटी अभी यहां से दस मील होगी। आइए, शीघ्र चलें।
दोनों शिकारी तीन बजते-बजते फिर कुटी में लौट आए। उस समय बड़ी सुहावनी रात थी। शीतल समीर ने हिला-हिलाकर वृक्षों और पत्तों की निद्रा भंग करना आरम्भ कर दिया था। आधा घंटे में राजकुमार तैयार हो गए। संन्यासी को अपना विश्वास और कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनके चरणों पर अपना मस्तक नवाया और घोड़े पर सवार हो गए।
संन्यासी ने उनकी पीठ पर कृपा-पूर्वक हाथ फेरा। आशीर्वाद देकर बोले – राजकुमार, तुमसे भेंट होने से मेरा चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। परमात्मा ने तुम्हें अपनी सृष्टि पर राज करने हेतु जन्म दिया है। तुम्हारा धर्म है कि सदा प्रजा-पालक बनो। तुम्हें पशुओं का वध करना उचित नहीं। इन दीन पशुओं के वध करने में कोई बहादुरी नहीं, कोई साहस नहीं। सच्चा साहस और सच्ची बहादुरी दीनों की रक्षा और उनकी सहायता करने में है। विश्वास मानो, जो मनुष्य केवल चित्त-विनोदार्थ जीव-हिंसा करता है, वह निर्दयी घातक से भी कठोर-हृदय है। वह घातक के लिए जीविका है, किन्तु शिकारी के लिए केवल दिल बहलाने का एक सामान। तुम्हारे लिए ऐसे शिकारों की आवश्यकता है, जिससे तुम्हारी प्रजा को सुख पहुंचे निःशब्द पशुओं का वध न करके तुमको उन हिंसकों के पीछे दौड़ना चाहिए, जो धोखा-धड़ी से दूसरों का वध कर रहे हैं। ऐसे आखेट करो जिससे तुम्हारी आत्मा को शान्ति मिले। तुम्हारी कीर्ति संसार में फैले। तुम्हारा काम वध करना नहीं, जीवित रखना है। यदि वध करो तो केवल जीवित रखने के लिए। यही तुम्हारा धर्म है। जाओ, परमात्मा तुम्हारा कल्याण करें।
