laanchhan by munshi premchand
laanchhan by munshi premchand

अगर संसार में ऐसा प्राणी होता, जिसकी आंखें लोगों के हृदयों के भीतर घुस सकती, तो ऐसे बहुत कम स्त्री या पुरुष होंगे, जो उसके सामने सीधी आंखें करके ताक सकते। महिला आश्रम की जुगनूबाई के विषय में लोगों की धारणा कुछ- ऐसी ही हो गयी थी। यह बेपढ़ी-लिखी, गरीब, बूढ़ी औरत थीं; देखने में बड़ी सरल, बड़ी हँसमुख लेकिन जैसे किसी चतुर प्रूफलीडर की निगाह गलतियों ही पर जा पड़ती है उसी तरह उसकी आंखें भी बुराइयों ही पर पहुँच जाती थीं। शहर में ऐसी कोई महिला न थी, जिसके विषय में दो-चार लुकी-छिपी बातें उसे न मालूम हों। उसका ठिगना, स्थूल शरीर, सिर के खिचड़ी बाल, गोल मुँह, फूले-फूले गाल, छोटी-छोटी आंखें, उसके स्वभाव की प्रखरता और तेजी पर परदा-सा डाले रहती थीं, लेकिन जब वह किसी की कुत्सा करने लगती, तो उसकी आकृति कठोर हो जाती, आंखें फैल जातीं और कंठ-स्वर कर्कश हो जाता। उसकी चाल में बिल्लियों का-सा संयम था, दबे पाँव धीरे-धीरे चलती, पर शिकार की आहट पाते ही, झपटा मारने को तैयार हो जाती थी। उसका काम था, महिला-आश्रम में महिलाओं की सेवा-टहल करना, पर महिलाएँ उसकी सूरत से काँपती थीं। उसका ऐसा आतंक था कि ज्यों ही वह कमरे में कदम रखती, ओठों पर खेलती हुई हंसी जैसे रो पड़ती थी. चहकने वाली आवाजें जैसे बुझ जाती थीं, मानो उनके मुख पर लोगों को अपने पिछले रहस्य अंकित नजर आते हों। पिछले रहस्य! कौन हैं, जो अपने अतीत को किसी भयंकर जन्तु के समान कठघरों में बंद करके न रखना चाहता हो? धनियों को चोरों के भय से निद्रा नहीं आती। मानियों को उसी भांति मान की रक्षा करनी पड़ती है। वह जन्तु, जो पहले कीट के समान अल्पाकार रहा होगा, दिनों के साथ दीर्घ और सबल होता जाता है., यहां तक कि हम उसकी याद ही से काँप उठते हैं। और, अपने ही कारनामों की बात होती, तो अधिकाँश देवियाँ जुगनू को दुत्कारती। पर यहाँ तो मैके, ससुराल, ननिहाल, ददियाल, फुफियाल और मौसियाल, चारों ओर की रक्षा करनी थी और जिस किले में इतने द्वार हों, उसकी रक्षा कौन कर सकता है? वहाँ तो हमला करने वाले के सामने मस्तक झुकाने में ही कुशल है। जुगनू के दिल में हजारों मुर्दे गड़े पड़े थे और वह जरूरत पड़ने पर उन्हें उखाड़ दिया करती थी। जहाँ किसी महिला ने दून की ली या शान दिखायी, वहाँ जुगनू की त्यौरियां बदलीं। उसकी एक कड़ी निगाह अच्छे-अच्छों को दहला देती थी, मगर यह बात न थी कि स्त्रियों उससे घृणा करती हों। नहीं, सभी बड़े चाव से उससे मिलतीं और उसका आदर-सत्कार करतीं। अपने पड़ोसियों की निंदा सनातन से मनुष्य के लिए मनोरंजन का विषय रही है और जुगनू के पास इसका काफी सामान था।

नगर में इंदुमती-महिला-पाठशाला नाम का एक लड़कियों का हाईस्कूल था। हाल में मिस खुर्शीद उसकी हैड मिस्ट्रेस होकर आयी थीं। शहर में महिलाओं का दूसरा क्लब न था। मिस खुर्शीद एक दिन आश्रम में आयी। ऐसी ऊँचे दर्जे की शिक्षा पायी हुई आश्रम में कोई देवी न थी। उनकी बड़ी आवभगत हुई। पहले ही दिन मालूम हो गया, मिस खुर्शीद के आने से आश्रम में एक नये जीवन का संचार होगा। वह इस तरह दिल खोलकर हरेक से मिलीं, कुछ ऐसी दिलचस्प बातें कीं कि सभी देवियाँ मुग्ध हो गयीं। गाने में भी चतुर थीं। व्याख्यान भी खूब देती थीं और अभिनय-कला में तो उन्होंने लंदन में नाम कमा लिया था। ऐसी सर्वगुण- सम्पन्न देवी का आना आश्रम का सौभाग्य था। गुलाबी-गोरा रंग, कोमल गाल, गदभरी आँखें, नये फैशन के कटे हुए केश, एक-एक अंग साँचे में ढला हुआ, मादकता की इससे अच्छी प्रतिमा न बन सकती थी।

चलते समय मिस खुर्शीद ने मिसेज टण्डन को, जो आश्रम की प्रधान थीं, एकान्त में बुलाकर पूछा- ‘वह बुढ़िया कौन है?’

जुगनू कई बार कमरे में आकर मिस खुर्शीद को अन्वेषण की आँखों से देख चुकी थी, मानो कोई शहसवार किसी नयी घोड़ी को देख रहा हो।

मिसेज टण्डन ने मुस्कराकर कहा- ‘यहाँ ऊपर का काम करने के लिए नौकर है। कोई काम हो, तो बुलाऊँ? मिस खुर्शीद ने धन्यवाद देकर कहा- ‘जी नहीं, कोई विशेष काम नहीं है। मुझे चालबाज मालूम होती है। यह भी देख रही हूँ कि यहाँ की यह सेविका नहीं, स्वामिनी है।’ मिसेज टण्डन तो जुगनू से जली बैठी थीं। इनके वैधव्य को लांछित करने के लिए, वह उन्हें सदा-सुहागिन कहा करती थी। मिस खुर्शीद से उसकी जितनी बुराई हो सकी, वह की, और उससे सचेत रहने का आदेश दिया।

मिस खुर्शीद ने गंभीर होकर कहा- ‘तब तो भयंकर स्त्री है। तभी सब देवियाँ इससे काँपती हैं। आप इसे निकाल क्यों नहीं देतीं? ऐसी चुड़ैल को एक दिन भी न रखना चाहिए।’

मिसेज टण्डन ने अपनी मजबूरी बतायी- ‘निकाल कैसे दूँ, जिंदा रहना मुश्किल हो जाय। हमारा भाग्य उसकी मुट्ठी में है। आपको दो-चार दिन में उसके जौहर दिखेंगे। मैं तो डरती हूँ कहीं आप भी उसके पंजे में न आ जायें। उसके सामने भूलकर भी किसी पुरुष से बातें न कीजिएगा। इसके गोयंदे न जाने कहां-कहाँ लगे हुए हैं। नौकरों से मिलकर भेद यह ले, डाकियों से मिलकर चिट्ठियाँ यह देखे, लड़कों को फुसलाकर घर का हाल यह पूछे । इस राँड़ को खुफिया पुलिस में जाना चाहिए था। यहाँ न जाने क्यों आ मरी।’

मिस खुर्शीद चिंतित हो गयीं। मानो इस समस्या को हल करने की फिक्र में हों। एक क्षण बाद बोलीं- ‘अच्छा, मैं इसे ठीक करूंगी, अगर निकाल न दूँ तो कहना।’

मिसेज टण्डन- ‘निकाल देने ही से क्या होगा! उसकी जुबान तो बंद न होगी। तब तो वह और निडर होकर कीचड़ फेंकेगी।’

मिस खुर्शीद ने निश्चिंत स्वर में कहा- ‘मैं उसकी जुबान भी बंद कर दूँगी बहन! आप देख लीजिएगा। टके की औरत, यहाँ बादशाहत कट रही है। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकती।’

वह चली गयी, तो मिसेज टण्डन ने जुगनू को बुलाकर कहा- ‘इन नयी मिस साहब को देखा, यहाँ प्रिंसिपल हैं।’

जुगनू ने द्वेष से भरे हुए स्वर में कहा- ‘आप देखें। मैं ऐसी सैकड़ों छोकरियां देख चुकी हूँ। आंखों का पानी जैसे मर गया हो।’

मिसेज टण्डन धीरे से बोलीं- ‘तुम्हें कच्चा ही खा जायेंगी। उनसे डरती रहना। कह गयी हैं, मैं इसे ठीक करके छोडूंगी। मैंने सोचा, तुम्हें चेता दूँ। ऐसा न हो, उनके सामने कुछ ऐसी-वैसी बातें कह बैठो।’

जुगनू ने मानो तलवार खींचकर कहा- ‘मुझे चेताने का काम नहीं, उन्हें चेता दीजिएगा। यहाँ का आना न बंद कर दें, तो अपने बाप की नहीं। वह घूमकर दुनिया देख आयी हैं, तो यहाँ घर बैठे दुनिया देख चुकी हूँ।’

मिसेज टण्डन ने पीठ ठोंकी- ‘मैंने समझा दिया भाई, आगे तुम जानो, तुम्हारा काम जाने।’

जुगनू- ‘आप चुपचाप देखती जाइए, कैसा तिगनी का नाच नचाती हूँ। इसने अब तक ब्याह क्यों नहीं किया? उमर तो तीस के लगभग होगी?’

मिसेज टण्डन ने रद्दा जमाया- ‘कहती है, मैं शादी करना ही नहीं चाहती। किसी पुरुष के हाथ क्यों अपनी आजादी बेचूं।’

जुगनू ने आंखें नचा कर कहा- ‘कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत-सी क्यारियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाकर, बिल्ली चली हज को।’

और कई लेडियाँ आ गयीं और बात का सिलसिला बंद हो गया।