भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
सुनीता चल आज तुझे अपनी मालकिन के घर ले चलती हूँ। इतना कहकर सुनीता की माँ लक्ष्मी कपड़े सुखाने के लिए घर से बाहर आई। सात साल की सुनीता अपनी माँ लक्ष्मी के साथ एक छोटे से शहर कनकपुर में रहती थी। उसके पिता सुखीलाल रिक्शा चलाते थे। एक रोज तपती धूल में रिक्शा चलाते हुए उन्हें लू लग गई और अस्पताल ले जाते-जाते रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई। घर में कमाने वाला कोई नहीं था। मजबूरी में सुनीता की माँ लक्ष्मी दूसरों के घरों में काम करके अपना और सुनीता का भरण-पोषण कर रही थी।
‘अरे लक्ष्मी! यह बच्ची कौन है तुम्हारे साथ?’ घर की मालकिन कलावती ने पूछा। लक्ष्मी के साथ उसकी बेटी सुनीता को पहली बार अपने घर देखकर कलावती कुछ हैरान हुई।
‘यह मेरी बेटी सुनीता है, मालकिन। अकेले कहाँ छोडूं इसलिए इसे अपने साथ ले आई हूँ, लक्ष्मी ने जबाव दिया।
“सुनीता इधर आ”, कलावती ने हँसकर बुलाया और सुनीता को अपने पास बैठाया, उससे बातें करने लगी। कलावती के घर लक्ष्मी पिछले तीन सालों से काम कर रही थी। कलावती बहुत ही नेक और दयालु थी। जब कभी भी लक्ष्मी को पैसे या छुट्टी की आवश्यकता पड़ती थी, कलावती उसे बिना किसी झिझक के दे दिया करती थी। कलावती की एक ही बेटी थी, जिसका नाम रुपा था। वह लगभग सुनीता की उम्र की थी। इकलौती संतान होने के कारण वह अपने माँ-पिताजी की बहुत लाड़ली थी और उसकी हर इच्छा कहते ही पूरी हो जाती थी। वह अन्य बच्चों की ही तरह स्कूल जाती थी। उसके पास ढेरों महँगे खिलौने थे परंतु वह उन्हें किसी के साथ मिलकर नहीं खेलती थी। उसकी इस आदत से माँ थोड़ी परेशान भी होती थी।
सुनीता को देखकर कलावती ने सोचा कि सुनीता और रूपा हम उम्र हैं इसलिए शायद रूपा की सुनीता से दोस्ती हो जाए तो रूपा के व्यवहार में भी परिवर्तन हो जाए परन्तु सुनीता से मिलने पर वह खुश नहीं हुई। यहाँ तक की सुनीता को देखते ही रूपा ने अपनी किताबें और खिलौनें ऐसे छिपा लिए मानो उन्हें देखते ही सुनीता कहीं माँ से माँग न ले। कलावती के बार-बार बुलाने पर भी वह अपने कमरे से बाहर नहीं आई। सुनीता को यह बात थोड़ी अजीब लगी। वह अपनी माँ के काम में हाथ बँटाने के लिए रसोईघर में चली गई।
उस दिन कलावती के घर से निकलने के बाद सुनीता ने अपनी माँ से पूछा- माँ क्या हमारे पास कभी भी अच्छा खाने या पहनने को नही होगा? क्या मेरे पास भी पढ़ने को किताबें और खेलने को खिलौनें नहीं होंगे? यह सुनते ही कलावती की आँखें भर आई। उसने सुनीता से कहा, “होगा बेटी, एक बार मेरे सिर से कर्ज का बोझ उतर जाए। मैं भी तेरा दाखिला किसी अच्छे स्कूल में करवाऊँगी।” “सच माँ! मैं पढ़-लिखकर जब कुछ बड़ा बन जाऊँगी, तब हमारी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। सुनीता का उदास चेहरा मुस्कराने लगा। रास्ते में लक्ष्मी ने सुनीता को मूंगफलियाँ दिलाई और दोनों खुशी-खुशी घर को लौट गई।
एक रोज सुनीता अपने पड़ोस की कुछ लड़कियों के साथ बाजार जा रही थी। रास्ते में उसे एक बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी। पास जाकर देखा तो रूपा रो रही थी। वह दर्द से कराह रही थी और उसके पैरों से खून बह रहा था। सुनीता ने पूछा- अरे! रूपा तुम? तुम्हें चोट कैसे लगी? रूपा ने बताया कि वह घर जा रही थी और रास्ते मे गिरने की वजह से उसे चोट आ गई। रूपा ने बताया कि शहर में किसी वारदात के कारण अचानक ही स्कूल में छुट्टी घोषित कर दी गई। अभिभावकों को भी सूचना दी गई परंतु जो विद्यार्थी स्कूल के आस-पास रहते थे, घंटी बजते ही वे अपना बस्ता लेकर जाने लगे। सारे बच्चों को निकलते देख रूपा भी स्कूल से घर की ओर चल पड़ी। जैसे ही बाहर निकली, उसे लगा कि शायद उससे भूल हो गई और उसे अकेले नहीं आना चाहिए था। घबराहट में रास्ते में पड़े एक पत्थर से टकराकर गिर पड़ी। यह सब सुनकर सुनीता रूपा को अपने घर ले गई। उसने रुपा की मरहम पट्टी की और उसे कुछ खाने को दिया। थोड़ी देर बाद लक्ष्मी दोनों बच्चियों को लेकर रुपा के घर गई और रूपा को सही सलामत घर पहुंचा दिया।
सुनीता के इस व्यवहार से कलावती बहुत प्रसन्न हुई। उसने लक्ष्मी का आभार व्यक्त करते हुए कहा, “अगर सुनीता ना होती तो न जाने आज रूपा का क्या होता?” कलावती ने लक्ष्मी से कहा कि आज से सुनीता की पढ़ाई की जिम्मेदारी उसकी और रूपा के पिताजी की है। इस घटना के बाद रूपा को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने सुनीता से माफी मांगी। उसने सुनीता को गले से लगा लिया और कहा- आज से हम दोनों दोस्त हैं। आओ, दोनों खिलौनों से थोड़ी देर खेलते हैं। अपनी लाड़ली के इस बदलाव को देखकर कलावती की आँखें भर आई।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
