panchtantra ki kahani वह तो बेचारा ऊँट है!
panchtantra ki kahani

किसी वन में एक शेर रहता था । उसका नाम था मदोत्कट । वह बड़ा शक्तिशाली था । बाघ, सियार, कौआ, भेड़िया उसके सेवक थे । सभी उसका आदर करते थे और मदोत्कट शेर भी अपने सेवकों का खासा खयाल रखता था ।

एक दिन की बात मदोत्कट शेर ने एक ऊँट को आते हुए देखा । देखकर उसे बड़ा अजीब लगा । वह मन ही मन सोचने लगा, ‘यह तो बड़ा विचित्र जानवर है । मैंने तो ऐसा जानवर कभी देखा ही नहीं ।’

उसी समय उसने अपने सेवक उल्लू से कहा, “तुम खासे बुद्धिमान हो, जाओ भाई, देखकर आओ यह अजीब सा प्राणी कौन है?”

उल्लू गया और उसने ऊंट को पास से देख लिया । फिर लौटकर शेर से कहा, “सुनिए महाराज, वह तो बेचारा ऊंट है । वह भला आपका क्या बिगाड़ सकता है? आपका तो वह भोजन है । आप चाहें तो बेफिक्र हो, उसे मारकर अपनी भूख मिटाएँ ।”

शेर बोला, “नहीं भाई, वह ऊँट हमारा अतिथि है । क्या अतिथि को मारना उचित होगा? अतिथि का तो विशेष सम्मान किया जाता है । वह भटककर जंगल में आया तो हमारा मेहमान बनकर रहेगा ।”

शेर की आज्ञा पाकर कौआ दौड़ा-दौड़ा गया और ऊँट को शेर के पास ले आया । शेर के पूछने पर ऊंट ने कहा, “महाराज, मेरा नाम कथनक है । मैं अपने साथियों से बिछुड़ गया हूँ । आप इजाजत दें तो मैं इसी जंगल में रहना चाहूंगा ।”

शेर ने कहा, “सुखपूर्वक रहो । तुम्हारा यहाँ कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।”

इस तरह वह ऊँट आराम से जंगल में विचरण करने लगा । शेर का प्रिय जीव समझकर कभी किसी ने उसे मारने की कोशिश भी नहीं की ।

ऐसे ही काफी समय बीत गया । एक बार की बात, मदोत्कट शेर की हाथी से भिड़ंत हो गई । दोनों में बड़ा भीषण युद्ध हुआ जिसमें मदोत्कट शेर बुरी तरह घायल हो गया ।

शेर अपने घावों के कारण दुखी तो था ही । कुछ समय बाद उसे भूख लगी तो वह और भी परेशान हो गया । उसने अपने सेवकों से कहा, “तुम लोग किसी ऐसे जानवर को ले आओ, जिसे आसानी से मारा जा सके । ताकि मैं अपनी भूख मिटा लूँ ।”

सियार ने कहा, “महाराज, आप कहें तो कथनक ऊंट को ले आते हैं । आप उसे मारकर अपनी भूख मिटा लें ।”

सुनकर शेर को गुस्सा आ गया । बोला, “तुम लोग कैसी ओछी बात करते हो? मैंने उसे अभयदान दिया है । ऐसी हालत में उसे मारूं।, यह तो बहुत बड़ा पाप होगा ।”

इस पर सियार ने कहा, “क्षमा करें महाराज, सेवक का काम तो अपनी जान देकर भी मालिक की सेवा करना होता है । अगर वह ऊँट खुद कहे कि आप मुझे खा लें, तब तो आपको कोई परेशानी नहीं होगी न!”

इस पर मदोत्कट शेर ने कहा, “ठीक है, अगर ऐसा है तो उसे बुला लो ।” उसी समय सियार और दूसरों सेवकों ने कथनक ऊंट के पास जाकर कहा, “सुनो कथनक हमारे स्वामी शेर भूख से परेशान है । उनकी भूख मिटाने के लिए हम सेवकों को कुछ न कुछ करना चाहिए । भले ही हमें अपनी जान क्यों न देनी पड़े ।”

कथनक ऊँट ने कहा, “हाँ बात तो ठीक है ।”

आखिर सब मिलकर मदोत्कट शेर के पास पहुँचे । कौए ने सिर झुकाकर कहा, “महाराज, मैं आपका सेवक हूँ । आप मुझे मारकर अपनी भूख मिटा लें, मुझे खुशी होगी ।”

उल्लू बोला, “नहीं महाराज, आप मुझे मारकर अपनी भूख मिटाएँ ।”

भेड़िया बोला, “महाराज, आप मुझे खा लें । यह ज्यादा अच्छा है ।”

बाघ बोला, “नहीं महाराज, आप इनकी बजाय मुझे खाएं ।”

कथनक ऊँट ने देखा कि सभी सेवक राजा से प्रार्थना कर रहे हैं कि वह उन्हें मारकर खा ले । लेकिन अभी तक तो उसने किसी सेवक को मारा नहीं । तो फिर मैं भी क्यों न कहकर देख लूँ? वैसे भी अगर मैं नहीं कहता, तो लोग सोचेंगे कि मैं मदोत्कट शेर का सच्चा और स्वामिभक्त सेवक नहीं हूँ ।

यह सोचकर कथनक ऊँट ने कहा, “महाराज, आप इन सबको रहने दें । मुझे मारकर खा लें, तो मुझे सच्ची खुशी होगी ।”

सुनकर शेर ने झट अपने सेवकों को अनुमति दे दी । सुनकर शेर ने झट अपने सेवकों को अनुमति दे दी । उसी समय सबने उस ऊँट पर आक्रमण किया और उसे मार डाला । शेर और उसके सेवकों ने उसे खाकर अपनी भूख मिटाई ।

बेचारा कथनक ऊँट शेर के दूसरे सेवकों की चाल नहीं समझ पाया । भीतर और बाहर के भेद वाले उन दुष्ट और वाचाल लोगों की नकल करने के कारण, उसे बिना बात जान से हाथ धोना पड़ा ।