एक था राजा चित्ररथ । वह बड़ा उदार प्रतापी और समृद्धिशाली राजा था । उसके राजमहल में एक विशाल सरोवर था, जिसे सब कमल सरोवर कहते थे । उस सरोवर में सुंदर कमल के फूल उगे थे जिनकी सुंदरता दूर से मुग्ध करती थी । उस सुंदर कमल सरोवर में सुनहले रंग के हंस तैरते रहते थे ।
वे हंस केवल सुनहले रंग के ही नहीं थे बल्कि उनमें एक अनोखा गुण भी था । वे थोड़े-थोड़े समय बाद अपना एक पंख गिराते थे और वह पंख सोने का होता था ।
राजा चित्ररथ इस बात से बहुत खुश था ।उन सोने के पंखों के कारण राज्य की समृद्धि भी बहुत बढ़ गई थी । इसलिए राजा उन सुनहले हंसों का खास खयाल रखता था । उस सरोवर में उन हंसों के सिवा किसी और को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी ।
एक दिन एक विशाल पक्षी हेमवर्ण वहाँ आया । वह भी सुनहले रंग का तथा बड़ा सुंदर था । साथ ही वह गर्वीला भी बहुत था । उसने आते ही कहा, “अहा, कितना अच्छा है यह सरोवर । मैं भी यहीं तुम लोगों के साथ रहूँगा । “
इस पर सुनहले हंसों ने ऐतराज किया । उन्होंने कहा, “इस सरोवर में रहना चाहते हो तो पहले राजा से इजाजत ले आओ । राजा ने यह सरोवर विशेष रूप से हमें रहने के लिए दिया है । यहाँ कोई और नहीं रह सकता ।”
“क्यों भई ऐसी क्या बात है?” हेमवर्ण ने अकड़ते हुए कहा ।
“हम यहाँ रहने के बदले राजा को थोड़े-थोड़े समय के बाद सोने के पंख देते हैं, इसलिए राजा ने यह सरोवर हमें दे दिया है । अब यहाँ कोई और आकर नहीं रह सकता ।” हंसों ने कहा ।
सुनकर हेमवर्ण को लग गई आग । वह उसी समय राजा के पास गया । गुस्से में तमतमाकर बोला, “महाराज, आपके कमल सरोवर में रहने वाले हंस तो बड़े ही घमंडी हैं । कह रहे थे कि हम तो राजा की भी परवाह नहीं करते, क्योंकि हम इस सरोवर में रहने के बदले राजा को शुल्क देते हैं । अब राजा भला हमारा क्या कर लेगा? हम तो राजा का भी कहना नहीं मानते ।”
सुनकर राजा चित्ररथ को बड़ा क्रोध आया । उसने अपने सैनिकों से कहा, “जाओ और उन घमंडी हंसों को मार दो । एक भी सुनहला हंस अब जीवित नहीं रहना चाहिए ।” उधर हेमवर्ण के जाने के बाद हंसों के मुखिया ने कहा, “यह हेमवर्ण पक्षी स्वभाव से ही बड़ा दुष्ट लग रहा है । लगता है, यह राजा के पास जाकर कुछ उलटी-सीधी बात कहेगा । राजा चित्ररथ में बहुत अच्छाईयां हैं, पर उसमें एक ही बुराई है कि वह कान का कच्चा है । वह जरूर हमें मरवाने की कोशिश करेगा । पर हमें इससे पहले ही यहाँ से चल देना चाहिए ।”
मुखिया की बात सुनते ही सभी हंस उस सरोवर को छोड़कर उड़ गए ।
जो राज कर्मचारी सुनहले हंसों को मारने आए थे, उन्होंने देखा कि सरोवर में एक भी हंस नहीं है, तो उन्हें बड़ा अचंभा हुआ । उन्होंने जाकर राजा चित्ररथ से यह बात कही । राजा ने हेमवर्ण को अब उस सरोवर में आराम और निश्चिंतता से रहने की इजाजत दे दी । अब अकेला हेमवर्ण पक्षी उस सरोवर में रहता था । अकेला रहते-रहते वह भी ऊबने लगा । फिर वह तो था सुनहले रंग का । पर सुनहले हंसों की तरह वह सोने का पंख नहीं गिराता था ।
इससे राजा को बड़ा दुख हुआ । और एक दिन वह हेमवर्ण पक्षी भी वहाँ से उड़ गया । वह सरोवर अब एकदम वीरान हो गया था ।
अब राजा चित्ररथ को बार-बार उन सुनहले हंसों की याद आती थी, जो बड़े सीधे-सादे और भोले थे तथा जिनके कारण उसका कमल सरोवर हमेशा गुंजायमान रहता था । वह मन ही मन अपने किए पर पछताता था । बार-बार बुदबुदाकर कह उठता, “आह, उन हंसों ने मेरा क्या बिगाड़ा था? मैंने बेकार ही उन पर क्रोध किया, जबकि उनका कोई अपराध नहीं था ।”
अंत में दुखी होकर राजा ने अपने सलाहकारों से कहा, “मैंने जो कुछ किया, उससे पहले सोचा नहीं था । अगर मैं सोचकर काम करता तो आज इस कदर दुखी न होता । सचमुच जो पहले सोचते हैं और फिर काम करते हैं, उन्हें कभी पछतावा नहीं होता । लेकिन जो पहले काम करते हैं, और बाद में सोचते हैं, उनके जीवन में तो दुख ही दुख भरा होता है, जैसे कि मेरे जीवन में ।”
कहते हैं, उस दिन के बाद राजा चित्ररथ कभी एक दिन भी सुख की नींद नहीं ले पाया ।