panchtantra ki kahani आखिर चोर ने किया उपकार
panchtantra ki kahani आखिर चोर ने किया उपकार

किसी नगर में एक विद्वान ब्राह्मण रहता था । उसमें बहुत से गुण थे, पर किसी कारण उसमें चोरी करने की बुरी आदत पैदा हो गई । यह आदत बढ़ते-बढ़ते इतनी बढ़ी कि उस विद्वान ब्राह्मण के बाकी सारे गुण पीछे छिप गए । अब वह हमेशा इसी जुगाड़ में रहता था कि किसी तरह चोरी-चकारी करके ढेर सारा धन कमा लिया जाए और आराम से जिंदगी बसर की जाए ।

एक बार की बात, किसी जगह चार ब्राह्मण यात्रा पर निकले । उनके पास कुछ बेशकीमती रत्न भी थे । वापस घर लौटने में उन्हें बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ता था, क्योंकि रास्ते में जंगल पड़ता था । वहाँ कोई रात में लूट न ले, हर वक्त इसके लिए सतर्क रहना पड़ता था ।

आखिर उन चारों ब्राह्मणों ने धन छिपाने का एक अजीब सा तरीका खोज निकाला । उन्होंने अपने शरीर को चीरकर उसमें रत्न रख लिए और फिर इस तरह उन अंगों को सी लिया कि पता ही नहीं चलता था कि उनके पास रत्न कहाँ हैं? उनके शरीर में छिपे रत्नों को ढूँढ पाना मुश्किल था । इसलिए वे निश्चिंत होकर अपनी राह पर जा रहे थे ।

रास्ते में उन चार ब्राह्मणों को वह चोर ब्राह्मण भी मिला । जब पता चला कि उन्हें एक ही रास्ते पर जाना है तो वे साथ-साथ चलने लगे । आखिर उस चोर ब्राह्मण को चारों ब्राह्मणों ने अपना यह रहस्य बता ही दिया कि शल्यक्रिया से उन्होंने अपने शरीर के भीतर रत्न छिपा लिए हैं ।

सुनकर चोर ब्राह्मण ने मन ही मन निश्चय किया कि मौका आने पर मैं इन्हें मारकर या बेहोश करके सभी रत्न ले लूँगा । और वह चुपचाप योजना बनाता हुआ उनके साथ-साथ चलने लगा ।

रास्ते में एक भयानक जंगल पड़ा । वहाँ किरातों की बस्ती थी । किरातों ने वहाँ रहने वाले कौओं को भी सधा रखा था, जिससे वे उन्हें सारी खबर दे देते थे । और उन्हें घर बैठे हर बात की खबर हो जाती थी ।

जैसे ही वे पाँचों ब्राह्मण किरातों की बस्ती के नजदीक आए कौओं ने चीख-चीखकर किरातों को यह बता दिया कि “अभी- अभी पाँच ब्राह्मण आ रहे हैं जिनके पास ढेर सारा धन है । उन्हें जाने मत देना । सारा धन लूट लेना ।”

सुनकर ब्राह्मण डर गए । सोचने लगे, अब तो यहाँ से बचकर निकल पाना मुश्किल है ।

थोड़ी देर में सचमुच किरातों की टोली ने आकर उन्हें घेर लिया । उन्होंने पाँचों ब्राह्मणों की अच्छी तरह तलाशी ली, पर उन्हें कहीं धन नहीं दिखाई पड़ा । वे हैरान थे कि अगर इनके पास धन नहीं है तो कौए चीख-चीखकर यह संदेश क्यों दे रहे थे । वे भला झूठ क्यों कहेंगे?

आखिर किरातों की टोली ने गरजकर कहा, ‘’ तुमने अपने शरीर में जहाँ भी धन छिपाया हो, चुपचाप निकालकर हमारे सामने रख दो । नहीं तो तुम्हारी बोटी-बोटी काटकर हम देख लेंगे कि तुमने कहाँ धन छिपाया है ।”

सुनकर सब ब्राह्मणों के मुँह उतर गए । चोर ब्राह्मण ने सोचा, ‘अब तो मरना तय है । मेरे साथ के चारों ब्राह्मणों के पास तो धन है, लेकिन मेरे पास तो धन नहीं है । लेकिन जब ये किरात हम पाँचों ब्राह्मणों का अंग-अंग काटकर तलाशी लेंगे, तो ये चारों ब्राह्मण तो मरेंगे ही, साथ ही मेरा मरना भी तय है । इसलिए यदि मैं ही अपने आपको पहले तलाशी के लिए प्रस्तुत कर दूँ तो बाकी चारों ब्राह्मणों की जान बच सकती है । मेरी जान तो जानी ही है । वह चली जाए और बाकी चारों सहयात्रियों की जान बच जाए यह तो पुण्य का काम है । मुझे ऐसा ही करना चाहिए ।’

यह सोचकर उस चोर ब्राह्मण ने आगे आकर किरातों से कहा, “भई अगर तुम्हें तलाशी लेनी ही है तो तुम सबको क्यों मारते हो? सबसे पहले तुम मुझे मारकर अच्छी तरह तलाशी ले लो । अगर मेरे पास तुम्हें कुछ न मिले तो मेरे बाकी भले साथियों को छोड़ देना । “

किरातों के दल को यह बात जँच गई । उन्होंने उस चोर ब्राह्मण के शरीर को काटकर उसके अंग-अंग की तलाशी ली, पर वहाँ कोई छिपा हुआ धन था ही नहीं । तो उन्हें मिलता कैसे? आखिर उन किरातों ने बाकी ब्राह्मणों को छोड़ दिया । वे चारों ब्राह्मण अपने साथी ब्राह्मण के बलिदान को याद करते हुए और मन ही मन उसकी प्रशंसा करते हुए आगे चल दिए ।

यह बात भला उन्हें कैसे पता चलती कि उनका साथी ब्राह्मण तो असल में चोर था, जो मौका देखकर उन्हें लूटने की योजना बना रहा था । पर उसने जब देखा कि मुझे तो मरना ही है, तो क्यों न खुद मरकर इन चारों सहयात्रियों की जान बचा लूँ? तब उसके भीतर छिपे हुए पुण्य और विद्वत्ता के भाव जाग गए और उसने सचमुच अपना बलिदान देकर एक बड़ा काम किया ।

आखिर चारों ब्राह्मण अपने साथी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए आगे की यात्रा पर चल पड़े ।