Hindi Story: मिश्रा जी के परिवार में कोई भी खुशी का मौका हो वो अपने प्रिय मित्र मुसद्दी लाल को न्योता देना कभी नहीं भूलते। कुछ रोज पहले जब मुसद्दी लाल जी मिश्रा जी के घर अपने बेटे की शादी का न्योता देने आये तो मिश्रा जी ने उनका खुशी से स्वागत करने की बजाए शिकायत करते हुए कहा कि भाई हम से ऐसी क्या गुस्ताखी हो गई कि तुम हमारी बेटी की शादी में नहीं आये।
मुसद्दी लाल जी ने हैरान-परेशान होते हुए कहा कि जब आपने शादी का न्योता ही नहीं भेजा तो हम कैसे आते? मिश्रा जी ने सफाई देते हुए कहा कि मैंने तो खुद अपने हाथों से तुम्हें निमंत्रण पत्र भेजा था और मुझे तो इतना भी अच्छे से याद है कि मैंने उसमें लिखा था कि आपको यह न्योता मिले या न मिले आपको शादी में जरूर आना है। मुसद्दी लाल जी ने कहा- ‘जहां इतना सब कुछ किया था वहीं यदि एक फोन करके इतनी-सी बात कह दी होती तो मैं अपने सारे परिवार के साथ बिटिया की शादी में पहुंच जाता। मिश्रा जी ने बात साफ करते हुए कहा कि जिन लोगों को फोन किया था वो इसलिये नहीं आये कि उन्हें शादी का न्योता नहीं भेजा। उन लोगों का यह कहना था कि फोन से न्योता देना आदरपूर्वक आमंत्रण का प्रतीक नहीं है।
बात को खत्म करते हुए मुसद्दी लाल जी ने कहा कि डाक-विभाग के बारे में तो मशहूर है कि यह लोग शादी का न्योता कई बार बच्चा पैदा होने के बाद ही पहुंचाते हैं। इसलिये मैं अपने बेटे की शादी का न्योता देने के लिये खुद आया हूं ताकि किसी को शिकायत का कोई मौका ही न मिले। मिश्रा जी ने हंसते हुए कहा कि आजकल शादी के लिये दुल्हा-दुल्हन ढूंढना तो आसान है, लेकिन महानगरों की भीड़भाड़ में एक-एक रिश्तेदार के घर जाकर शादी का न्योता देना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने से कम नहीं है। कुछ देर हंसी-मजाक और गपशप करने के बाद मुसद्दी लाल जी शादी का निमंत्रण, मिठाई और घरवालों के सभी सदस्यों को कुछ न कुछ उपहार देकर दूसरे रिश्तेदारों को न्योता देने के लिये निकल गये।
मुसद्दी लाल जी के जाते ही मिश्रा जी के घर में निमंत्रण पत्र को लेकर हर छोटा-बड़ा सदस्य कमेन्टस देने लगा। छोटी बहू ने कहा कि यह शादी का कार्ड कम और तोहफे का डिब्बा अधिक लग रहा है। बड़े बेटे ने कहा कि शादी का कार्ड तो अच्छा है लेकिन भारी बहुत है, लगता है मुसद्दी अंकल के बेटे को दो नंबर की काफी मोटी कमाई हो रही है। इतने में मिश्रा जी के पोते ने कार्ड को खोल कर देखा तो सभी सदस्य हैरान हो रहे थे कि मुसद्दी लाल जी ने बेटे की शादी के पांच-पांच समारोह रखे हैं। पहले दिन भजन संध्या, फिर षगुन, अगले दिन मेंहदी की रात के साथ कॉकटेल, फिर शादी और अंत में रिशेप्शन का कार्यक्रम है। घर के सभी सदस्यों की बातचीत सुनने के बाद मिश्रा जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा- ‘मुसद्दी लाल, शादी तो तुम अपने घर में कर रहे हो, परंतु मेरे जैसे कई लोगों के मुंडन साथ में मुफ्त में ही हो जायेंगे।’ एक ओर जहां घर के बच्चे तोहफों के पैकेट खोलने में मस्त थे, वही घर की बहुएं हर कार्यक्रम के लिये अलग-अलग किस्म के कपड़े एवं गहने पहनने की योजना को अंतिम रूप देने में व्यस्त हो गई।
शादी से 2-3 दिन पहले अचानक मिश्रा जी को सीने में दर्द की शिकायत हो गई। डॉक्टर ने अच्छे से देखरेख के लिये मिश्रा जी को कुछ दिन अस्पताल में रहने का सुझाव दिया। ऐसे में मिश्रा जी ने अपनी पत्नी से कहा कि मैं तो अब शादी में नहीं जा पाऊंगा, तुम बच्चों को कहना कि ठीक से मुसद्दी लाल जी के सभी कार्यक्रमों में चले जायेंगे। शादी वाले दिन मिश्रा जी के बहू-बेटे अपने-अपने बच्चों के साथ मुसद्दी लाल जी के घर जाने को तैयार हो गये। जब घर से निकलने लगे तो बीच वाले बेटे ने मां से पूछा कि शादी में शगुन कितना और किस ने देना है? मेरे कामकाज के बारे में तो आप जानते ही हो कि काफी मंदा चल रहा है, इसलिये मैं तो यह जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पाऊंगा। इससे पहले कि छोटे वाला बेटा कुछ बोलता, उसकी पत्नी ने कोहनी मार कर फुसफुसाते हुए कहा कि जब बड़े भाई साहब सामने खड़े हैं तो तुम्हारा बात करना तो बनता ही नहीं। छोटे भाईयों का यह रवैया देख कर सबसे बड़े भाई के चेहरे का रंग पीला पड़ना शुरू हो गया। बड़े बेटे को मन ही मन यह डर सताने लगा कि अब शगुन का सारा बोझ उसे अकेले ही उठाना पड़ेगा। मामले को बिगड़ता देख छोटी बहू ने कहा कि निमंत्रण पत्र पर न तो हमारा नाम ही लिखा है और न ही सपरिवार, इसलिये हम तो सिर्फ पिताजी की इज्जत रखने के लिये शामिल हो रहे थे। शगुन देने के डर से कुछ ही क्षणों में सभी बहू-बेटों ने कोई न कोई बहाना बना कर शादी में जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया।
मुसद्दी लाल जी के साथ बरसों पुराने पारिवारिक रिश्तों को ताक पर रखते हुए मिश्रा जी के बेटों ने एक बार भी नहीं सोचा कि भगवान परेशानी के इस दौर में बड़ी मुश्किल से कभी-कभार तो किसी को खुशी देता है। उन्होंने इस बात की भी परवाह नहीं की कि उनके इस शादी में शामिल न होने से उनके पिता के दिल को कितनी ठेस लगेगी। मिश्रा जी को जब अस्पताल में इस सारे किस्से की जानकारी मिली तो उनके मन से यही टीस उठी कि जिंदगी में दुश्मनों की क्या जरूरत है जबकि रुलाने के लिये अपने ही बहुत है। मिश्रा जी को यही अफसोस हो रहा था कि अच्छे संस्कार देने में उनसे कहां कमी रह गई कि मेरे बेटे यह भी भूल गये कि जिन घरों में बड़े बुजुर्गों का अपमान होता है उस परिवार से अच्छे संस्कारों की बहने वाली गंगा सदा के लिये सूख जाती हैं। क्या यह सभी लोग इतना भी नहीं जानते कि जो लोग दूसरों की खुशी में शामिल होते हैं भगवान उन लोगों को दोगुनी खुशी देता है।
जौली अंकल आज की पीढ़ी को यही सन्देश देना चाहते हैं कि बदलती हुई जीवन शैली में आज जब सारी दुनिया मोबाइल फोन और इंटरनेट के माध्यम से हर प्रकार की जानकारी का आदान-प्रदान कर रही है तो ऐसे में एक-एक रिश्तेदार को घर जाकर शादी का न्योता देने की प्रथा को खत्म करके फोन और ई-मेल के माध्यम को अपनाने से किसी का सम्मान कम नहीं होता। शादी का न्योता आप चाहे किसी तरह से भी भेजे, परंतु सदैव नम्रता के आधार पर परस्पर मेलजोल बनाये रखे क्योंकि प्यार और सच्चे रिश्तों में समान से अधिक सम्मान का महत्त्व होता है। अगर आपका व्यवहार मैत्रीपूर्ण है तो सब आपके मित्र ही बनेंगे, शत्रु नहीं।
ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–
