बलख के एक बादशाह थे- “इब्राहिम अदहम बलखी”, उन्होंने मानव जाति की सेवा करने की खातिर बादशाही त्याग कर फकीरी ले ली थी। बहुत से लोग हैरान थे कि इब्राहिम ने ऐसा क्यों किया? फकीर बन जाने पर उन्हें लोग आदर से “हजरत” कहने लगे थे।
एक दिन की बात है। हजरत इब्राहिम एक नदी के किनारे बैठे गुदड़ी सी रहे थे। तभी कुछ लोग वहाँ पहुँचे, उनमें से एक ने उनसे पूछा, हजरत, आपने अच्छी भली बादशाही छोड़कर यह फकीरी क्यों अपना ली? आखिर इस फकीरी में क्या मजा है?
यह सुनकर हजरत इब्राहिम मुस्वफ़ुराये, फिर उन्होंने वह सुई पानी में फेक दी, जिससे गुदड़ी सी रहे थे, अब पानी की ओर मुँह करके बोले, “प्यारी प्यारी मछलियों, देखों मेरी सुई पानी में गिर पड़ी है, ला दो जरा।”
कुछ ही क्षणों में बेशुमार मछलियों के सिर पानी के ऊपर उभर आये। सब के मुँह में एक सुई थी। यह देखकर सब लोग हैरान। उन रंग-बिरंगी, प्यारी प्यारी मछलियों से हजरत ने कहा, इतनी सुइयाँ क्या करूंगा मैं? मुझे तो बस मेरी ही सुई ला दो। इतना सुनकर एक बेहद सुंदर मछली ने पानी में डुबकी मारी और कुछ ही मिनटों में वह असल सुई ले आयी और हजरत के चरणों में उगल दी। इससे लोग और भी ज्यादा हैरान।
अब हजरत ने प्रश्नकर्ता से ही प्रश्न किया, “अब तुम्ही बताओ वह बादशाही भली या यह फकीरी? यही मजा है इस फकीरी में। “भला मछलियों का मुझसे क्या स्वार्थ? लेकिन फिर भी कैसी सुंदर दोस्ती है! बादशाही में केवल वे ही लोग दोस्ती का दम भरते थे जिनका स्वार्थ मुझसे जुड़ा था। इस फकीरी में वे सब प्राणी मेरे दोस्त हैं, जिनका मुझसे कोई स्वार्थ नहीं।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
