Hitopadesh ki Kahani : एक समय की बात है कि वर्षा ऋतु के आ जाने पर भी उस वर्ष वर्षा नहीं हुई । अनावृष्टि और गरमी के कारण छोटे-छोटे सभी सरोवर सूख गए। उनसे अपनी प्यास बुझाने वाले प्राणी पानी के अभाव में बिलखने लगे।
ऐसा ही एक हाथियों का झुण्ड भी था । जिस वन में वह झुंड निवास करता था उसके आस-पास के सभी सरोवर सूख गए थे। यहां तक कि उनका कीचड़ भी सूख गया था ।
इससे दुखी होकर हाथियों ने अपने राजा के पास जाकर प्रार्थना की, “राजन् ! अब हम लोगों के जीवित रहने का क्या उपाय है? हमारी तो बात छोड़िए हमारे जो छोटे- छोटे बच्चे हैं वे भी पानी के अभाव में तड़प रहे हैं. क्या किया जाये और कहां जाया जाये ?”
हाथियों का राजा बोला, “यदि ऐसी ही स्थिति है तो चलो कहीं अन्यत्र चलते हैं । फिर कभी जब वृष्टि हो जायेगी तो अपने स्थान पर लौट आयेंगे।”
यह निश्चय कर हाथियों का वह झुण्ड पानी की खोज में अपने वन से किसी अन्य वन की ओर चल दिया। सौभाग्य से उनको एक स्थान पर एक भरा-पूरा सरोवर मिल भी गया ।
उस दिन उन हाथियों ने जी भर कर तो जल पिया और फिर दिन भर उस जल में विहार भी करते रहे। उनके कुम्हलाये हुए बच्चे आनन्दित हो उठे ।
एक का सुख तो दूसरे का दुख । हाथी तो आनन्दित हुए किन्तु उस सरोवर के तट पर निवास करने वाले खरगोश इससे बड़े दुखी हुए। हाथियों के पैरों के तले कुचल कर कितनों के ही प्राण पखेरू उड़ गए।
यह दुर्दशा देख कर उन लोगों ने परस्पर मन्त्रणा की। वे कहने लगे कि अब तो इन हाथियों ने इस सरोवर को देख लिया है और नित्य ही ये यहां जलविहार करने आयेंगे। यदि यही होता रहा तो दो-चार दिन में ही हमारा वंश समूल नष्ट हो जायेगा ।
तब क्या करना चाहिए? हाथियों को किस प्रकार टाला जा सकता है ? विजय नाम के वृद्ध खरगोश ने इस पर विचार किया और फिर बोला, “तुम लोग इसकी चिन्ता मत करो। मैं इसका प्रतिकार करूंगा।”
विजय शशक ने प्रतिज्ञा की कि वह हाथियों को यहां से भगाकर ही चैन लेगा। ऐसी प्रतिज्ञा करके वह वहां से चल दिया। मार्ग में जाते हुए वह सोच रहा था कि हाथियों के झुंड के पास जाकर मुझको क्या कहना चाहिए? क्योंकि हाथी तो बड़ा ही बलवान् होता है, उसके स्पर्श से ही प्राणी मर जाता है और सांप के सूंघने से ही जीव का प्राणान्त हो जाया करता है, पालन करते-करते ही राजा अप्रसन्न होने पर अपने सेवक के प्राण ले लेता है तथा हंसते-हंसते दुष्ट मार डालता है । था है।
ऐसे लोगों के समीप तो जाना ही नहीं चाहिये। इसलिए यही अच्छा होगा कि मैं पर्वत के शिखर पर चढ़कर दूर से ही उनसे बात करूंगा। यही उचित है।
इस प्रकार शशक जब हाथियों के झुंड के समीप जाने लगा तो उससे पूर्व उसने अपने लिए एक उच्च स्थान देख भी लिया। उस पर खड़ा होकर उसने गजराज को ललकारा।
“गजराज ! तुमने यह कैसी मूर्खता कर डाली है ?”
गजराज बोला, “तुम कौन हो और बताओ कि मैंने क्या मूर्खता कर डाली है?” शशक बोला, “मैं शशक हूं । भगवान् चन्द्र देव का दूत । उन्होंने ही मुझे तुम्हारे पास भेजा है । “
चन्द्रदेव का नाम सुनकर गजराज कुछ ढीला पड़ा। बोला, “हां बोलो, क्या काम हैं मुझसे?”
विजय कहने लगा, “सुनो, सिर पर तलवार लटकी होने पर भी दूत कभी असत्य बात नहीं कहता है। क्योंकि दूत सर्वथा अवध्य होता है इसलिये उसको मृत्यु अथवा किसी अन्य दंड का भय नहीं होता इस कारण वह कभी झूठ भी नहीं बोलता ।
“अब मैं तुमको भगवान चन्द्रदेव की आज्ञा सुनाता हूं।
“सुनो, चन्द्रदेव का कहना है कि तुमने इस चन्द्रसरोवर की रखवाली करने वाले मेरे शशकों को वहां से भगाकर बड़ा अनुचित कार्य किया है। मैंने सदा ही उनकी रक्षा की है इसी से मेरा नाम शशांक पड़ा है।
गजराज ने जब यह सुना तो उसको भय लगने लगा। चन्द्रमा का नाम सुनकर घबरा तो वह पहले ही गया था। गजराज ने विजय से कहा, इस बार हमें क्षमा कर दो, भविष्य. में ऐसा नहीं होगा।” विजय को विश्वास नहीं हुआ कि एक बार आश्वासन देकर हाथियों का झुंड वहां से टल जायेगा। सम्भव है प्यास से तड़पने पर वह पुनः वहां पर पानी पीने चला आए । अतः उसने कहा “यदि ऐसी बात है तो चलो सरोवर पर चल कर कोप से कांपते हुए भगवान चन्द्रदेव को प्रणाम कर उनके सामने प्रतिज्ञा को दोहरा कर यहां से कूच कर जाओ ।” इस प्रकार उस गजराज को लेकर विजय सरोवर के समीप गया। उस सरोवर की हिलती तरंगों में चन्द्र प्रतिविम्बत दिखाई दे रहा था। विजय ने वह हाथी को दिखाया और उसे चन्द्रदेव को प्रणाम करने के लिए कहा ।
हाथी के प्रणाम करने पर विजय भी हाथ जोड़कर बोला, “देव! इनसे यह अपराध अनजाने में हो गया है। इस बार इनको क्षमा कर दीजिए। भविष्य में ये ऐसा नहीं करेंगे। इन्होंने वचन दिया है कि अब ये इस सरोवर पर पुनः नहीं आयेंगे।”
इस प्रकार उसने उस हाथी दल को वहां से विदा किया।
पक्षी कहने लगे, “इसी से हम कहते हैं कि कहीं तो सशक्त स्वामी के नाम से ही कार्य की सिद्धि हो जाया करती है । “
उनकी बात सुनकर मैंने कहा, “हमारे प्रभु राजहंस का बड़ा प्रताप है। उनमें अटूट सामर्थ्य है। वे तो तीनों लोकों का राज्य सम्हाल सकते हैं। इस छोटे से राज्य की तो बात ही क्या है । “
“मेरी बात सुन कर पक्षी और भी रुष्ट हुए। उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि मैं उनकी भूमि पर क्यों चरता हूं। यह आरोप लगा कर वे मुझको अपने राजा चित्रवर्ण के समीप ले गये ।
“राजा के समीप ले जाकर उन्होंने अभियोग लगाते हुए कहा, देव! यह बगुला किसी अन्य देश से यहां आकर विचरण कर रहा है। हमारे देश का खा पी रहा है और फिर भी श्रीमान् की निन्दा करता है । “
“तब राजा ने उनसे पूछा, “यह कौन है और कहां से आया है?”
“राजा के सैनिकों ने कहा, “महाराज ! यह दीर्घमुख नाम का बगुला है। कर्पूरद्वीप निवासी राजा हिरण्यगर्भ राजहंस का सेवक है और वहीं से आया है?’
“उस राजा का प्रधानमंत्री एक गीध है। उसने मुझसे पूछा, तुम्हारे यहां का प्रधानमंत्री कौन है ?”
“मैंने कहा, सब शास्त्रों में पारंगत सर्वज्ञ नाम का चकवा हमारा प्रधानमंत्री है। ‘ “यह सुन कर गीध बोला, “ठीक है, वह अपने ही देश का है। क्योंकि राजा को चाहिये कि वह अपने देश और कुल के अनुरूप आचरण करने वाले, विशुद्ध, पवित्र हृदय, मन्त्रणा
का महत्त्व जानने वाले, व्यसन रहित, अच्छे आचरण वाले व्यभिचार विहीन, व्यवहार की बात जानने वाले, अच्छे कुल वाले, विद्वान और धन कमाने वाले पुरुष को ही अपना मन्त्री बनाये।”
“इस बीच तोता बोल उठा, “श्रीमान् ! कर्पूर द्वीप जैसे छोटे-छोटे द्वीप तो जम्बूद्वीप के अन्तर्गत ही हैं, वहां पर भी श्रीमान की ही प्रभुता है।”
“तब उनके राजा ने कहा, “तुम ठीक कहते हो । “
“राजा, पागल, बच्चा, प्रमादी और धनाभिमानी मनुष्य तो अप्राप्त वस्तु को भी पाना चाहते हैं। फिर जो अनायास मिल सकता है उसके लिये तो कहना ही क्या ?”
“यह सब सुन कर मैंने कहा, “यदि केवल कहने से ही प्रभुता मिलती हो तो इस जम्बूद्वीप पर भी पर स्वामी हिरण्यगर्भ का ही प्रभुत्व है ।”
“तोता बोला, “तब इसका निर्णय किस प्रकार हो ?”
“मैंने कहा, “इसका निर्णय तो युद्ध से ही हो सकता है।”
‘यह सुनकर उनका राजा बोला, “तुम जाकर अपने स्वामी को युद्ध के लिए तैयार करो। “
“मैंने कहा, “आप मेरे साथ अपना दूत भी भेजिये ।”
“राजा ने इधर-उधर देखा, फिर पूछा, “कौन जायेगा इसके साथ दूत बनकर ?” “राजा ने फिर दूत के गुण बताते हुए कहा, “क्योंकि दूत इस प्रकार का होना चाहिए जो भक्त, गुणी, कार्यकुशल, ढीठ, शुद्धहृदय, अव्यसनी, क्षमाशील, ब्रह्मज्ञानी, परममर्मज्ञ और प्रतिभा सम्पन्न हो । “
उसके प्रधानमंत्री गीध ने कहा, “दूत तो कोई भी बन सकता है किन्तु हमें ब्राह्मण को ही दूत बनाना चाहिये ।
ब्राह्मणदूत स्वामी को प्रसन्न करने वाला काम करता है। किन्तु वह धन का लोभी नहीं होता । जिस प्रकार शिवजी का संग हो जाने पर भी विष की कालिमा दूर नहीं हुई उसी प्रकार ब्राह्मण भी अपने स्वभाव से अडिग रहता है।
“राजा ने कहा, “तब तो तोते को ही जाना होगा । तोता ! तुम इसके साथ जाओ और इसके राजा हो हमारा अभिप्राय ठीक-ठीक समझा दो।”
“तोता जाने को तो उद्यत हो गया किन्तु बोला, “महाराज! मैं प्रस्तुत हूं। किन्तु मैं इस बगुले के साथ नहीं जाऊंगा, यह दुष्ट प्रकृति का होता है ।
“कहा भी है कि दुष्ट तो दुष्टता करता है किन्तु उसका फल अच्छे लोगों को भोगना पड़ता है। अब आप ही देखिए, सीता का हरण तो किया रावण ने, किन्तु बांधा गया समुद्र । ” और भी कहा गया है कि दुष्ट के साथ कभी बैठे नहीं, उसके साथ कही जाएं भी नहीं। क्योंकि कौए के साथ रहने से एक हंस और साथ बैठने तथा चलने से एक बटेर
मारा गया था।”
“उसके राजा ने कहा, “यह किस प्रकार ?”
“तोते ने कहा, “सुनाता हूं, सुनिये।”
