Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: अमीर नसरुद्दीन पर भरोसा करने लगे थे। वह हर मामले में उनका विश्वस्त सलाहकार बन गया था। नसरुद्दीन फ़ैसले करता। अमीर उन पर दस्तख़्त करते और वज़ीरे-आज़म बख्तियार उन पर पीतल की शाही मुहर लगाता ।
सड़कों और पुलों पर से गुज़रने के टैक्स को ख़त्म करने और बाज़ार के टैक्स को कम करने का अमीर का हुक्म पढ़ते ही बख्तियार सोच में डूब गया।
‘ऐ अल्लाह, सचमुच हमारी सल्तनत में हद हो रही है। लेकिन अगर सितारों का यही हुक्म है तो हम कर ही क्या सकते हैं। जल्दी ही ख़ज़ाना खाली हो जाएगा। इस नए आलिम ने, खुदा करे इसके पेट में कीड़े पड़ें, कुछ दिनों में ही सब कुछ ख़त्म कर दिया, जो मैंने बरसों में बनाया था । ‘
एक दिन हिम्मत करके उसने अपना यह संदेह अमीर पर प्रकट किया।
अमीर ने उत्तर दिया, ‘ऐ नादान आदमी, तू जानता क्या है? जिन हुक्मों से ख़ज़ाना खाली हो जाएगा, हम उनसे कम दुखी नहीं हैं। लेकिन अगर सितारों का यही हुक्म है तो हम कर ही क्या सकते हैं? थोड़े ही दिनों की बात है बख़्तियार, सब्र से काम लो । सितारों को नेक होने दो। मौलाना हुसैन ज़रा इसे समझाओ । ‘
नसरुद्दीन बख्तियार को एक ओर ले गया। उसे गद्दे पर बैठाकर विस्तार से समझाया कि लुहारों, ताँबागरों आदि कारीगरों पर लगे टैक्स समाप्त करने क्यों ज़रूरी हैं।
सितारा अल उल्का कन्या राशि में है। आल बंद धनु राशि में है। ये दोनों सितारे कुंभराशि में बैठे सितारे सादबुला के ख़िलाफ़ हैं। आप समझ रहे हैं ना वज़ीर साहब? ये सितारे ख़िलाफ़ हैं और केरान (योग) में नहीं हैं।’
‘तो क्या हुआ? अगर ये ख़िलाफ़ हैं तो क्या हुआ ? पहले भी तो ये ख़िलाफ़ थे। लेकिन टैक्स वसूल करने में कोई रुकावट नहीं पड़ी।’ बख्तियार ने कहा ।

नसरुद्दीन ने कहा, ‘लेकिन आप वृष राशि में बैठे सितारे अल दबारां को भूल रहे हैं। ज़रा आसमान की तरफ़ नज़र उठाओ। तुम्हें वह खुद दिखाई दे जाएगा।’

बख्तियार ज़िद भरी आवाज़ में बोलता रहा, ‘मैं आसमान को क्यों देखूँ? मेरा काम तो ख़ज़ाने को देखना है। उसे बढ़ाना और उसकी हिफाजत करना है। मैं देखता हूँ कि जबसे तुम महल में आए हो, आमदनी कम हो गई है। टैक्सों की वसूली घट गई है। कारीगरों से टैक्स वसूल करने का यही वक्त है। बताओ, हम टैक्स क्यों न वसूल करें?’
नसरुद्दीन चिल्ला उठा, ‘क्यों? अरे मैं पिछले घंटे भर से तुम्हें बता क्या रहा हूँ?’ क्या अब भी तुम्हारी समझ में नहीं आ रहा कि चाँद के दो अंदाज़ होते हैं और एक तिहाई । ‘
‘लेकिन मुझे तो टैक्स वसूल करना है।’ बख्तियार ने टोका, ‘क्या तुम समझ नहीं पा रहे हो मौलाना साहब? ‘

‘सब्र से काम लो भाई, सब्र से ।’ नसरुद्दीन ने कहा, ‘मैंने अभी तुम्हें सितारे अब सुरैया और आठ सितारों कुन्यय…।’
नसरुद्दीन ने इतनी पेचीदा और लंबी बात शुरू कर दी कि बख़्तियार के कान बजने लगे। नज़र धुँधली पड़ने लगी। वह उठा और लड़खड़ाते हुए क़दमों से बाहर चला गया।

नसरुद्दीन ने अमीर की ओर मुड़कर कहा, ‘ऐ मेरे आका, उम्र ने भले ही उसके सिर पर चाँदी बिखेर दी हो लेकिन यह सजावट बाहरी है। उसके सिर के अंदर जो कुछ है, उम्र ने उसे नहीं बदला है। यह मेरे इल्म को समझ नहीं पाया है। काश लुकमान को मात करनेवाले अमीर की अक्ल और समझदारी का हज़ारवाँ हिस्सा भी इसे मिला होता । ‘
अमीर संतोष से मुस्करा दिए।
कई दिन से नसरुद्दीन अमीर को समझा रहा था कि उनकी अक्लमंदी की कोई मिसाल नहीं है। वह जो भी बात अमीर को समझाता, वह बड़े ध्यान से सारी बात सुनते और इस डर से बहस न करते कि कहीं उनकी विद्वत्ता की वास्तविक गहराई का पता न लग जाए।
अगले दिन बख्तियार ने कई दरबारियों के सामने अपने दिल का बोझ हल्का किया। उसने कहा, ‘यह नया आलिम तो हम लोगों को बर्बाद कर देगा। जिस दिन टैक्स वसूल किए जाते हैं हम लोगों को शाही ख़ज़ाने में आनेवाली बाढ़ से कुछ फ़ायदा उठाने और दौलत इकट्ठी करने का मौका मिलता है। लेकिन अब जब इस सैलाब से कुछ फ़ायदा उठाने का मौका आया है, मौलाना हुसैन रास्ते में रोड़ा बन गया है। वह फ़ौरन सितारों की कैफियत बताने लगता है। क्या किसी ने कभी यह सुना है कि जो सितारे बड़े आदमियों के लिए बदशगुन के हों, वही कारीगरों के लिए नेक हों?’
दरबारी कुछ नहीं बोले। क्योंकि वे समझ नहीं पा रहे थे कि किसका साथ देने में लाभ है- बख्तियार का
या नए आलिम का?

बख़्तियार कह रहा था, ‘टैक्सों की वसूली दिनों-दिन कम होती जा रही है। अब क्या होगा? मौलाना हुसैन ने अमीर को यह समझाकर गच्चा दिया है कि टैक्स वसूली सिर्फ थोड़े दिनों के लिए टाली गई है। बाद में टैक्स फिर लगाए ही नहीं, बढ़ाए भी जा सकते हैं। हम जानते हैं कि टैक्स रद्द करना तो आसान है लेकिन नया टैक्स लगाना बहुत मुश्किल है। ‘
ख़ज़ाना ख़ाली हो जाएगा और सारे दरबारी बर्बाद हो जाएँगे। ज़री के कपड़े पहनने के बजाए हमें सादे कपड़े पहनने पड़ेंगे। चार बीवियों के बजाय दो से ही गुज़र करनी पड़ेगी । चाँदी के बर्तनों की जगह मिट्टी के बर्तनों में खाना पड़ेगा, जिसमें कुत्ते और कारीगर खाते हैं। नया आलिम यह सब हमारी किस्मत में लिखवाता जा रहा है। जो आदमी इस बात को न देखे, न समझे वह अंधा है। उस पर खुदा की मार । ‘
दरबारियों को नए आलिम के विरुद्ध उभारने के लिए बख्तियार इसी तरह बोलता रहा लेकिन उसे सफलता नहीं मिली और मौलाना हुसैन अपने नए औहदे पर एक के बाद एक सफलता प्राप्त करता चला गया।

एक पुराने रिवाज के अनुसार हर महीने अमीर के सामने एक दिन सभी वज़ीर, ओहदेदार, आलिम और शायर इकट्ठे होते थे और उनकी तारीफ़ करने की होड़ करते थे। इसमें जो सबसे अधिक बढ़-चढ़कर तारीफ़ करता था, उसे इनाम मिलता था। उस दिन नया आलिम विशेष रूप से चमक गया।
उस दिन हर एक ने अपना कसीदा पढ़ा लेकिन अमीर को बिलकुल तसल्ली नहीं हुई। उन्होंने कहा, ‘पिछली बार भी तुम लोगों ने ये बातें ही कही थीं। हम देखते हैं कि तारीफ़ करने में तुम लोग माहिर और मुकम्मल नहीं हो। तुम लोग अपने दिमाग़ों पर ज़ोर डालने के लिए तैयार नहीं हो। लेकिन हम आज तुमसे काम लेकर ही मानेंगे। हम सवाल करेंगे और तुम्हें इस तरह जवाब देना होगा कि जवाब में सफ़ाई भी शामिल रहे और हमारी तारीफ़ भी ।
गौर से सुनो। हमारा पहला सवाल यह है कि तुम लोगों का कहना है कि हम बहुत ताक़तवर हैं। हम पर कोई भी फतह नहीं पा सकता। फिर क्या वजह है कि आस-पास के मुस्लिम मुल्कों के सुल्तानों ने हमें बादशाह मानकर बढ़िया-बढ़िया सौगातें नहीं भेजीं?’

दरबारी परेशानी में डूब गए। सीधा उत्तर न देकर वे भिनभिनाने लगे। केवल नसरुद्दीन बिना घबराए बैठा रहा ।

जब उसकी बारी आई तो उसने कहा, ‘अमीरे-आज़म, मेरे हकीर लफ्जों को सुनने की मेहरबानी फर्माएँ । हमारे शहंशाह के सवाल का जवाब बहुत आसान है। सभी पड़ोसी मुल्कों के सुल्तान हमारे आका की ताक़त से डरकर हमेशा काँपते रहते हैं। वे सोचते हैं – अगर हम बढ़िया सौगात भेजेंगे तो बुखारा के ताक़तवर अमीर समझेंगे कि हमारा मुल्क दौलतमंद है। इससे उनके दिल में यहाँ आने और हमसे युद्ध करने का लालच पैदा हो जाएगा। और अगर मामूली सौगात भेजेंगे तो वह नाराज़ होकर हमारे मुल्क पर चढ़ाई कर देंगे। बुखारा के अमीर ताकतवर हैं, बड़ी शान वाले हैं। इसलिए सलामती इसी में है कि अपनी नाचीज़ हस्ती उन्हें याद ही न दिलाई जाए।’
दूसरे सुलतान भी ऐसा ही सोचते हैं। शानदार सौगात लेकर अपने (राजदूत) बुखारा न भेजने की वजह उन लोगों के डर और अंदेशे में ढूँढ़नी होगी, जो हमारे शहंशाह की ताक़त ने पैदा कर दी है। ‘
नसरुद्दीन ने जो प्रशंसा की, उससे प्रसन्न होकर अमीर खुशी से चिल्ला उठे, ‘वाह, अमीर के सवाल का सही जवाब इसी तरह दिया जाना चाहिए। सुना तुम लोगों ने ? ओ बेवकूफ़ो, ओ कुंदज़हनों, इनसे सीखो। वाकई मौलाना हुसैन इल्म में सबसे दस गुना बड़े हो । माबदौलत तुम्हारा शाही तौर पर शुक्रिया अदा करते हैं।

‘ मीर बकरावल दौड़ता हुआ मुल्ला नसरुद्दीन के पास पहुँचा और उसके मुँह में मिठाइयाँ और हलवा भर दिया। उसके गाल फूल गए। दम घुटने लगा और चाशनी उसकी ठोढ़ी तक बहने लगी।

अमीर ने कई उलझे हुए प्रश्न किए। हरदम नसरुद्दीन का उत्तर ही सबसे बढ़िया रहा।

‘दरबारी का सबसे पहला फ़र्ज़ क्या है?’ अमीर ने पूछा ।

नसरुद्दीन ने उत्तर दिया, ऐ अजीमुश्शान बादशाह, दरबारी का पहला फ़र्ज़ रोज़ाना अपनी रीढ़ की हड्डी को कसरत कराना है, जिससे उसमें ज़रूरी लोच बना रहे। जिसके बिना वह वफ़ादारी और आदाब का इजहार ( प्रदर्शन) कर ही नहीं सकता। दरबारी की रीढ़ को आसानी से हर ओर मुड़ और घूम सकना चाहिए। मामूली इन्सान की अकड़ी हुई रीड़ की तरह नहीं होनी चाहिए, जो ठीक से झुककर सलाम करना भी नहीं जानता । ‘

अमीर बहुत खुश हुए। बोले, ‘बहुत खूब, बिल्कुल सही रीढ़ की हड्डी की रोज़ाना कसरत । वाह वाह ! हम दूसरी बार मौलाना हुसैन के शाही शुक्रिए का ऐलान करते हैं।’

एक बार फिर नसरुद्दीन के मुँह में गर्म मिठाइयाँ और हलवा ठूंस दिया गया। उसी दिन से दरबारियों ने बख़्तियार के स्थान पर नसरुद्दीन की वफ़ादारी शुरू कर दी।

उसी दिन बख़्तियार ने अर्सला बेग को अपने घर पर दावत दी। नया आलिम दोनों के लिए एक जैसा ख़तरनाक था । उसे बर्बाद करने के लिए कुछ दिनों के लिए उन दोनों ने पारस्परिक वैर-विरोध ताक पर रख दिया।

‘उसके पुलाव में कुछ मिला देना ठीक रहेगा।’ अर्सला बेग ने सलाह दी।

‘लेकिन अगर पता चल गया तो अमीर हमारे सिर कलम करवा देंगे । ‘ बख़्तियार ने कहा, ‘नहीं अर्सला बेग, हमें कोई दूसरा तरीका सोचना होगा। हमें हर तरह मौलाना हुसैन के इल्म और अक्ल की तारीफ़ करके उसे आसमान पर चढ़ा देना चाहिए ताकि अमीर के दिल में शक पैदा हो जाए कि कहीं दरबारी मौलाना हुसैन को अमीर से बढ़कर अक्लमंद तो नहीं समझने लगे हैं। हमें लगातार उसकी तारीफ के पुल बाँधने चाहिए। जल्दी ही वह दिन आ जाएगा, जब अमीर को उससे जलन होने लगेगी।’

लेकिन तकदीर नसरुद्दीन के साथ थी । अर्सला बेग और बख़्तियार जब मौलाना हुसैन की तारीफ़ करके अमीर के दिल में ईर्ष्या की आग भड़काने की कोशिश कर रहे थे, नसरुद्दीन एक भारी भूल कर बैठा ।

एक दिन वह बाग़ में अमीर के साथ टहल रहा था। अमीर ख़ामोश थे। इस ख़ामोशी में नसरुद्दीन को दुश्मनी की झलक दिखाई दी। लेकिन वह इसकी वजह नहीं समझ पाया।

अमीर ने पूछा, ‘उस बुड्ढे – तुम्हारे कैदी का क्या हाल है? क्या तुमने उसका असली नाम और बुखारा आने की वजह जान ली?’
नसरुद्दीन इस वक्त गुलजान के ख़्यालों में खोया हुआ था। उसने अनमने ढंग से उत्तर दिया, ‘बादशाह सलामत, इस नाचीज़ की खता माफ़ फर्माएँ। अभी तक मैं उस बुड्ढे से एक लफ्ज भी नहीं कबुलवा पाया हूँ। वह तो एकदम गूँगा है, मछली की तरह । ‘

क्या तुमने उसके साथ सख्ती से काम नहीं लिया?’
‘जी हाँ, परसों मैंने उसकी गाँठों को उमेठा था। कल दिन भर मैं गर्म चिमटे से उसके दाँत हिलाता रहा। ‘

अमीर ने तारीफ़ करते हुए कहा, ‘दाँत ढीले करना तो अच्छी बात है। हैरत है कि वह तब भी ख़ामोश रहा। क्या तुम्हारी मदद के लिए किसी होशियार तजुर्बेकार जल्लाद को भेजा जाए?’
‘नहीं हुजूर। आप अपने आपको ऐसी फ़िक्रों से परेशान न करें। कल मैं उसे एक नए ढंग की सज़ा दूँगा। उसकी जीभ और मसूड़ों में जलता हुआ वरमा घुसेडूंगा।’
‘ठहरो – ठहरो ।’ अमीर चिल्लाए । उनका चेहरा खुशी से चमक उठा, ‘अगर तुम उसकी जुबान जलते हुए वरमे से छेद दोगे तो वह अपना नाम कैसे बताएगा ? तुमने इस बात पर गौर नहीं किया, या किया था? देखो न माबदौलत ने फौरन इस बात पर गौर किया और तुम्हें एक बहुत बड़ी गलती करने से रोक लिया। इससे साबित हो जाता है कि हालांकि तुम लाजवाब आलिम हो फिर भी हमारी अक्ल तुमसे बढ़ चढ़कर है। तुमने अभी-अभी यह बात देखी है ना?’

अमीर ने खुशी से दमकते चेहरे से हुक्म दिया, ‘दरबारी फौरन बुलाए जाएँ।’

दरबार लग गया। अमीर ने दरबार में पहुँचकर ऐलान किया कि आज उन्होंने मौलाना हुसैन से ज़्यादा अक्लमंदी दिखाई है और उसे एक ऐसी गलती करने से रोक लिया है, जो नुकसानदेह साबित होती ।
दरबार के मुहर्रिर ने बड़ी मेहनत से अमीर के बयान का एक-एक लफ्ज लिख लिया ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें भूल न जाएँ ।
उस दिन के बाद से अमीर के दिल में जलन पैदा नहीं हुई। इस प्रकार संयोग से हो जाने वाली गलती से नसरुद्दीन ने दुश्मनों की धूर्ततापूर्ण तिकड़मों को बेकार कर दिया।
बुखारा शहर के आसमान पर पूरा चाँद अपनी छटा बिखेर रहा था। मीनारों पर खपरेलें चमक रहीं थीं। नसरुद्दीन खुली खिड़की में बैठा था। उसे विश्वास था कि गुलजान अभी सोयी नहीं है, जाग रही है और उसी के बारे में सोच रही है। शायद वे दोनों एक ही मीनार की ओर ताक रहे हों लेकिन एक-दूसरे को न देख पा रहे हों। क्योंकि उनके बीच दीवारें, लोहे की सरियों वाली जालियाँ, जनखों, पहरेदारों और बूढ़ी औरतों की रोक थी। नसरुद्दीन को महल में घुसने का मौका तो मिल गया था लेकिन अभी तक हरम में पहुँचने का कोई रास्ता नज़र नहीं आया था। कोई संयोग या घटना ही उसे वहाँ पहुँचा सकती थी। वह गुलजान तक कोई ख़बर भी नहीं भिजवा पाया था।
उसका दिल अब थक चुका था । चापलूसी और तारीफ़ के बदले सीधी-सादी बातचीत और दिल खोलकर ज़ोरदार हँसी के लिए वह सोने के लिबास को छोड़ने के लिए तैयार था।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)