Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: उस घटना से अमीर के ख़ज़ाने को बहुत बड़ा घाटा हुआ था । बहाउद्दीन वली के मज़ार पर जितनी दौलत इकट्ठी होती थी, इस बार उसका दसवाँ हिस्सा भी इकट्ठा नहीं हो पाया था। इससे भी बुरी बात यह थी कि लोगों के दिमाग में आज़ाद ख़याली के बीज फिर बो दिए गए थे। मज़ार पर जो घटना हुई थी उसकी ख़बर राज्य के कोने-कोने में पहुँच चुकी थी और उसके परिणाम दिखाई देने लगे थे। तीन गाँव की रियाया ने मस्जिदों के निर्माण में सहायता देने से इन्कार कर दिया था। चौथे गाँव वालों ने मौलवी की बेइज़्ज़ती करके गाँव से निकाल दिया था।
अमीर ने वज़ीरे-आजम बख्तियार को दरबार लगाने का हुक्म दिया। दुनिया के सबसे सुंदर महल के बाग़ में दरबार लगा। लेकिन वज़ीर, रईस और आलिम इस सुंदरता की ओर से आँखें मूँदे रहे, क्योंकि उनके दिमाग अपने निजी लाभ, दुश्मनों के हमले से बचने, उस पर अपने दाँव चलाने में लगे हुए थे; और उनके सूखे और सख़्त दिलों में किसी चीज़ की गुंजाइश ही नहीं थी ।
वे आए तो उनकी आँखें बुझी हुई थीं। होंठ सफ़ेद थे। रेतीले रास्ते पर अपने चमड़े के स्लीपरों को घसीटते हुए चल रहे थे। वे खुशबूदार तुलसी की घनी झाड़ियों के झुरमुट के पीछे ठंडे बँगले में घुस गए। उन्होंने फीरोजे की मूठवाली अपनी छड़ियाँ दीवार से टिका दीं और रेशमी गद्दों पर बैठ गए। भारी भरकम सफ़ेद साफ़ों के बोझ से दबे अपने सिर झुकाये वे अमीर के आने का इंतज़ार करने लगे।

दुःख भरे ख़यालों में डूबे, माथे पर सलवटें डाले, भारी क़दमों से अमीर जब वहाँ पहुँचे तो वे सब उठकर खड़े हो गए। ज़मीन तक झुककर कोर्निश की और तब तक खड़े रहे जब तक अमीर ने हल्का सा इशारा नहीं किया। वे सब बड़े अदब से घुटनों के बल बैठ गए और बदन का बोझ एड़ियों पर डालकर उँगलियों से कालीन छूने लगे । सब कोई यही सोच रहे थे कि अमीर का कहर किस पर टूटेगा और उससे वह क्या लाभ उठा सकता है ?

दरबारी शायर हमेशा की तरह अमीर के पीछे अर्द्धचंद्राकार खड़े हो गए और धीरे-धीरे खाँसकर अपने गले साफ़ करने लगे ।
जिस शायर को शायरे-आजम का खिताब मिला था, वह मन-ही-मन उन शेरों को दोहरा रहा था, जो उसने आज सवेरे ही लिखे थे। उन्हें अमीर को इस अंदाज़ से सुनाना चाहता था, जैसे अचेतन अवस्था में कह डाले हों।

चँवर डुलानेवाला और हुक्केवाला अपनी-अपनी जगह आ खड़े हुए थे।

‘बुखारा पर किसकी हुकूमत है?’ धीमी आवाज़ में अमीर ने बोलना शुरू किया। सुनने वाले काँप उठे।
‘मैं पूछ रहा हूँ, बुखारा में किसकी हुकूमत है ? हमारी या उस कमबख़्त काफ़िर नसरुद्दीन की ?’ कहते-कहते गुस्से से अमीर का गला रुँध गया ।
फिर गुस्से पर काबू पाकर गुर्राकर बोला, ‘हम तुम लोगों का जवाब सुनना चाहते हैं। बताओ।’
दरबारी डर से भयभीत हो उठे थे। वज़ीर चोरी-चोरी एक-दूसरे को कोहनी मार रहे थे।
‘पूरी सल्तनत में उसने कहर मचा रखा है।’ अमीर फिर कहने लगे, ‘राजधानी के अमन में खलल डाल रखा है। हमारा आराम और हमारी नींद हराम कर दी है। हमारे ख़ज़ाने की जायज आमदनी उड़ा दी है। खुलेआम रियाया को बग़ावत और गदर के लिए ललकार रहा । इस बदमाश से कैसे निबटा जाए, मैं जवाब माँगता हूँ।’

तमाम दरबारी एक साथ बोल उठे, ‘ऐ अमन के रखवाले, उसे कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
‘तो फिर वह अभी तक ज़िंदा क्यों है? क्या यह हमारा काम है कि हम बाज़ार में जाकर उसे पकड़ें और तुम लोग अपने-अपने हरम में अपनी हवस की भूख मिटाते रहो और सिर्फ तनख़्वाह मिलने के दिन ही अपना क़र्ज़ याद किया करो? बख़्तियार, क्या जवाब है तुम्हारा?’
बख़्तियार का नाम सुनते ही दूसरों ने आराम की साँस ली। अर्सला बेग के होठों पर ज़हर भरी मुस्कान खेल गई। बख़्तियार से उसका बहुत पुराना झगड़ा चल रहा था।
पेट पर हाथ बाँधे बख़्तियार अमीर के सामने ज़मीन तक झुक गया। फिर कहने लगा, ‘अल्लाह मुसीबतों और परेशानियों से हमारे अमीर को बचाए। इस नाचीज़ गुलाम की वफ़ादारी और खिदमतें अमीर को अच्छी तरह मालूम हैं। मेरे वज़ीरे-आज़म के ओहदे पर मुकर्रर होने से पहले सल्तनत का खज़ाना क़रीब – क़रीब ख़ाली था। लेकिन मैंने कई टैक्स जारी किए। नौकरी पाने पर टैक्स लगाया। हर उस चीज़ पर टैक्स लगाया, जिस पर लगाया जा सकता था और शाही ख़ज़ाने में रकम जमा कराए बिना कोई छींकने तक की हिम्मत नहीं कर सकता। ‘
‘इसके अलावा मैंने सरकार के छोटे नौकरों और सिपाहियों की तनख़्वाहें आधी कर दीं। उन्हें बुखारा के लोगों से खाने-कपड़े का खर्च दिलवाना शुरू किया; और इस तरह शाही ख़ज़ाने की काफ़ी बड़ी रकम बचने लगी। मैंने अभी अपनी तमाम खिदमतें बयान नहीं की हैं। मेरी ही कोशिशों से बहाउद्दीन वली के मज़ार पर करिश्मे होने लगे हैं और हज़ारों लोग मज़ार पर जियारत के लिए आने लगे हैं। इस तरह हर साल शाही ख़ज़ाने में इतना रुपया आ जाता है कि ख़ज़ाना लबालब भर जाता है। शाही आमदनी कई गुना बढ़ गई है। ‘
‘कहाँ है वह आमदनी ?’ अमीर ने टोका, ‘नसरुद्दीन की वजह से वह हमसे छिन गई। हम तुमसे तुम्हारी खिदमतों के बारे में नहीं पूछ रहे हैं। उन्हें तो हम कई बार सुन चुके हैं। तुम यह बताओ कि नसरुद्दीन किस तरह पकड़ा जाए?’
‘मालिक, वज़ीरे-आज़म के कामों में मुजरिमों को पकड़ना शामिल नहीं है। सल्तनत में यह काम अर्सला बेग साहब के सुपुर्द है, जो महल के पहरेदारों और फौज़ के सबसे बड़े हाकिम हैं।’ बख़्तियार ने इतना कहकर कोर्निश की और अर्सला बेग की ओर जीत और दुश्मनी भरी नज़रों से देखने लगा ।
अमीर ने अर्सला बेग को हुक्म दिया, ‘बोलो। ‘बख़्तियार को गुस्से से देखते हुए अर्सला बेग उठकर खड़ा हो गया। उसने लंबी साँस ली। उसकी काली दाढ़ी तोंद पर उठी और फिर गिर गई ।

अल्लाह सूरज जैसे हमारे जहाँपनाह को हर आफत से बचाए । बीमारी और गुम से उनकी हिफ़ाजत करे। मेरी खिदमतें अमीर को अच्छी तरह मालूम हैं। जब खीवा के ख़ान ने बुखारा के खिलाफ जंग छेड़ी, अमीर ने मुझे बुखारा की फौज़ की कमान देने की मेहरबानी फरमाई। मैं दुश्मन को बिना खून-खराबे खदेड़ने में कामयाब हो गया था और पूरा मामला हमारे हक़ और फ़ायदे में रहा था । ‘
‘मैंने खीवा की सरहद से कई दिन के रास्ते तक अपनी सल्तनत के सभी कस्बों और गाँवों को, फ़सलों, बागों, सड़कों और पुलों को बर्बाद करने का हुक्म दे दिया था। जब खीवा की फौजें हमारे इलाके में आईं तो उन्हें रेगिस्तान ही दिखाई दिया। बाग-बगीचे तबाह हो चुके थे। उन्होंने आगे बढ़ने से इन्कार करते हुए कहा, ‘हम बुखारा नहीं जाएँगे। वहाँ न तो कुछ खाने को मिलेगा, न लूटने को । और फौजें लौट गईं। मेरी चाल में फँसकर बेइज़्ज़त होकर लौट गईं। हमारे अमीर ने माना था कि अपनी फौज़ से ही अपना मुल्क़ बर्बाद कराना बहुत ही कारगर और दूरंदेशी का काम था। उन्होंने हुक्म दिया कि जो बर्बाद हो चुका है, उसे दोबारा आबाद न किया जाए। शहर, गाँव, खेत, सड़कें सभी बर्बाद हालत में छोड़ दी जाएँ ताकि आइंदा कोई दुश्मन हमारी सरज़मीन पर क़दम रखने की हिम्मत न कर सके। इसके अलावा मैंने बुखारा में हज़ारों जासूसों को ट्रेनिंग दी। ‘

‘ख़ामोश, जबांदराज!’ अमीर चिल्लाए, ‘तुम्हारे उन जासूसों ने नसरुद्दीन को पकड़ा क्यों नहीं?’
परेशानी और घबराहट की वजह से अर्सला बेग बहुत देर तक ख़ामोश रहा। आखिर उसे कबूल करना पड़ा, ‘मालिक, मैंने हर तरीका आजमा लिया है; लेकिन इस बदमाश काफ़िर के मुकाबले मेरा दिमाग काम नहीं करता । मेरा ख़याल है आलिमों की सलाह लेनी चाहिए । ‘
अमीर गुस्से से भड़क उठे, ‘बुजुर्गों की कसम, तुम लोगों को तो शहरपनाह पर फाँसी दे देनी चाहिए।’ गुस्से और खीझ में उन्होंने हुक्के वाले के ज़ोर का चाँटा मार दिया जिसने ग़लत मौके पर शाही हाथ के क़रीब होने की कम्बख्ती की थी। अमीर ने सबसे बूढ़े आलिम को हुक्म दिया, जो अपनी उस लंबी दाढ़ी की वजह से मशहूर था, जिसे वह दो बार अपनी कमर में लपेट सकता था।
आलिम उठा, दुआ की और फिर बाएँ हाथ की उँगलियों में लेकर दाएँ हाथ से धीरे-धीरे अपनी मशहूर दाढ़ी को खींचते हुए बोला, ‘रियाया की भलाई खुशी के लिए अल्लाह हमारे बादशाह की उम्र लंबी करे। क्योंकि जिस बदक़ार बागी नसरुद्दीन का अभी-अभी जिक्र हुआ है, वह इन्सान ही है। इसलिए यह नतीजा निकाला जा सकता है कि उसका जिस्म भी दूसरे इन्सानों जैसा ही है। यानी उसके जिस्म में भी दो सौ चालीस हड्डियाँ और तीन सौ आठ मांसपेशियाँ हैं, जो फेफड़े, जिगर, दिल और तिल्ली वगैरह पर काबू रखती हैं। जैसा कि आलिम हकीमों ने बताया है दिल की पेशी ही बुनियादी पेशी होती है। सारी पेशियाँ उसी से निकलती हैं। यह सच है। और यह झूठ बोलनेवाले अबू इसहाक की काफ़िर तालीम के ख़िलाफ़ है, जो यह कहने की गुस्ताखी करता है कि इन्सानी ज़िंदगी की बुनियाद फेफड़ों की पेशी है।
हकीमे अल्ला अबू अला, यूनानी हकीम हिगोपरात और कर्तके के कहने के मुताबिक अल्लाह ने इन्सान को पानी, मिट्टी, आग और हवा को मिलाकर बनाया है। मैंने यह नतीजा निकाला है कि अमन में खलल डालनेवाले नापाक नसरुद्दीन के जिस्म से खून निकाल लिया जाए। और अच्छा हो कि यह काम उसके जिस्म से उसके सिर को अलग करके किया जाए, क्योंकि जिस्म से बहने वाले खून के साथ इन्सान की ज़िंदगी भी बह जाती है। वह फिर कभी लौटकर नहीं आती। मेरी यही राय है। ‘
अमीर ने बड़े ध्यान से उसकी बात सुनी और दूसरे आलिम की ओर इशारा किया, जिसकी दाढ़ी पहले आलिम की दाढ़ी के मुकाबले कुछ भी नहीं थी। लेकिन उसका साफ़ा तड़क-भड़क में बहुत बड़ा था। इतना भारी साफ़ा बाँधने की वजह से उसकी गर्दन एक ओर को झुक गई थी।
अमीर को कोर्निश बजाने के बाद उसने कहा, ‘ऐ सूरज की तरह जगमगाते शहंशाहे आजम, नसरुद्दीन को ख़त्म करने के इस तरीके की मैं हिमायत नहीं करता। इन्सान की ज़िंदगी के लिए खून ही नहीं, हवा की भी ज़रूरत होती है। अगर रस्सी से किसी का गला दबाकर हवा को उसके फेफड़ों में जाने से रोक दिए जाए तो वह मर जाएगा। फिर उसे जिंदा नहीं किया जा सकता।

”अच्छा!’ अमीर ने ख़तरे भरी धीमी आवाज़ में कहा, ‘आप ठीक कहते हैं। आपकी राय बहुत ही बेशकीमती है। अगर आपने यह बेशकीमती राय न दी होती तो हम नसरुद्दीन से कैसे पीछा छुड़ा पाते।’

क्रोध और अप्रसन्नता पर काबू पाने में मजबूर अमीर ख़ामोश हो गए। नथुने फूल गए, आँखों से चिंगारियाँ निकलने लगीं। लेकिन दरबारी शायरों और चापलूसों को पीछे खड़े होने की वजह से अपने आका का चेहरा दिखाई नहीं दिया। उन्होंने समझा कि आलिमों ने सचमुच अमीर की रजामंदी और उदारता प्राप्त कर ली है। इसलिए आलिमों की मेहरबानी प्राप्त करनी चाहिए ताकि उससे फ़ायदा उठाया जा सके। उन्होंने फौरन गाना शुरू कर दिया, ‘ऐ आलिमो, हमारे शानदार शहंशाह के ताज की सजावट के मोती, आलिमों के इल्म से रोशन आलिम।’
वे इसी तरह कसीदे कहते रहे और उमंग तथा शेरों की सफाई में एक- दूसरे को मात देते गए। उन्हें यह पता ही नहीं चला कि अमीर घूमकर पीछे की ओर देख रहे हैं और गुस्से से उन्हें घूर रहे हैं। एक ख़ौफ़नाक ख़ामोशी छा गई थी।
‘ऐ इल्म के तारा ! ऐ अक्ल के ख़ज़ानो!’ प्रशंसा करने की उमंग में वे
आँखें मूँदे गाते रहे।
अचानक शायरे-आज़म की नज़र अमीर पर पड़ी। वह चौंक पड़ा। उसकी चापलूसी भरी जबान रुक गई। उसके चुप होते ही अन्य शायर भी चुप हो गए और डर के मारे काँपने लगे।
‘जाहिलो, बदमाशो, क्या तुम यह समझते हो कि हमें यह भी पता नहीं कि किसी आदमी का सिर काट लेने या रस्सी से उसका गला घोंट देने से वह ज़िंदा नहीं बच सकता? लेकिन ऐसा करने के लिए उस आदमी का पकड़ा जाना ज़रूरी है। और तुम जाहिलों, बेवकूफ़ों, बदमाशों और काहिलों ने यह नहीं बताया कि उसे कैसे पकड़ा जाए? यहाँ मौजूद वज़ीरों, अफसरों और शायरों को तब तक तनख़्वाह नहीं मिलेगी, जब तक नसरुद्दीन का पता नहीं लगता। ऐलान करा दिया जाए कि उसे पकड़ने वाले को इनाम में तीन हज़ार तके दिए जाएँगे। हम तुम लोगों को बता देना चाहते हैं कि तुम्हारी बेवकूफी, काहिली और लापरवाही देखकर हमने बगदाद से एक नया आलिम बुलाया है। उसका नाम मौलाना हुसैन है। अभी तक वह बगदाद के ख़लीफ़ा के यहाँ नौकर था। वह बगदाद से चल पड़ा है और जल्द ही यहाँ पहुँचनेवाला है। पड़े-पड़े खाट तोड़नेवाले पेटुओ, अपनी जेबें भरनेवालो, लानत है तुम पर। निकालो इनको यहाँ से।’ अमीर गुस्से से चीख उठे, ‘इन सबको खदेड़कर बाहर निकाल दो। ‘
सिपाही बौखलाए हुए दरबारियों पर टूट पड़े। उनके रुतबे और इज़्ज़त का ख़याल किए बिना उन्हें पकड़कर फाटक तक घसीट लाए और सीढ़ियों से धकेल दिया। सीढ़ियों के नीचे खड़े सिपाहियों ने उन लोगों को मारा-पीटा और लतियाकर खदेड़ दिया। लंबी दाढ़ीवाला आलिम अपनी दाढ़ी में उलझकर गिर पड़ा।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)