Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: सवेरे तड़के अजान देने वालों ने मीनारों से फिर अजान दी। फाटक खुल गए और कारवाँ धीरे-धीरे शहर में दाखिल होने लगा। ऊँटों के गले में बँधी घंटियाँ धीरे-धीरे बजने लगीं।

लेकिन फाटक में घुसते ही कारवाँ रुक गया। सामने की सड़क पहरेदारों से घिरी हुई थी। उनकी संख्या बहुत अधिक थी। कुछ पहरेदार ढंग और सलीके से वर्दी पहने हुए थे। लेकिन जिन्हें अमीर की नौकरी में अभी तक पैसा जुटाने का पूरा-पूरा मौका नहीं मिला था, उनके बदन अधनंगे थे। पाँव नंगे थे। वे चीख़-चिल्ला रहे थे और उस लूट के लिए, जो उन्हें अभी-अभी मिलने वाली थी, एक-दूसरे को ठेल रहे थे, आपस में झगड़ रहे थे।

कुछ देर बाद एक कहवाख़ाने से नींद भरी आँखोंवाला एक मोटा-ताज़ा टैक्स अफसर निकला। उसकी रेशमी खलअत की आस्तीनों में तेल लगा था। पैरों में जूतियाँ थीं। उसके मोटे थुल- थुले चेहरे पर अय्याशी के चिह्न साफ़-साफ़ दिखाई दे रहे थे।
उसने व्यापारियों पर ललचायी हुई नज़र डाली। फिर कहने लगा- ‘स्वागत है व्यापारियो! अल्लाह तुम्हें अपने काम में सफलता दे।

तुम्हें यह मालूम होना चाहिए कि अमीर का हुक्म है कि जो भी व्यापारी अपने माल का छोटे-से-छोटा हिस्सा भी छिपाने की कोशिश करेगा, उसे बेंत मार-मारकर मार डाला जाएगा। ‘

परेशान व्यापारी अपनी रँगी हुई दाढ़ियों को ख़ामोश सहलाते रहे। बेताबी से चहलकदमी करते हुए पहरेदारों की ओर मुड़कर टैक्स अफसर ने अपनी मोटी उगलियाँ नचाईं। इशारा पाते ही वे चीखते-चिल्लाते हुए ऊँटों पर टूट पड़े। उन्होंने उतावली में एक-दूसरे पर गिरते पड़ते अपनी तलवारों से रस्से काट डाले और सामान की गाँठें खोल दीं। रेशम और मखमल के थान, काली मिर्च, कपूर और गुलाब की क़ीमती इत्र की शीशियाँ, कहवा और तिब्बती दवाओं के डिब्बे सड़क पर बिखर गए ।

भय तथा परेशानी ने व्यापारियों की जुबान पर जैसे ताले लगा दिए। जाँच दो मिनट में पूरी हो गई। सिपाही अपने अफसर के पीछे क़तार बाँधकर खड़े हो गए। उनके कोटों की जेबें लूट के माल से फटी जा रही थीं।

इसके बाद शहर में आने और माल के टैक्स की वसूली आरंभ हो गई। मुल्ला नसरुद्दीन के पास व्यापार के लिए कोई सामान नहीं था। उसे केवल शहर में घुसने का टैक्स देना था।

अफसर ने पूछा, ‘तुम कहाँ से आ रहे हो? और तुम्हारे आने की वजह क्या है?’

मुहर्रिर ने सींग में भरी स्याही में बाँस की कलम डुबाई और मोटे रजिस्टर में मुल्ला नसरुद्दीन का बयान लिखने के लिए तैयार हो गया ।

‘हुजूर आला, मैं ईरान से आ रहा हूँ। यहाँ बुखारा में मेरे कुछ रिश्तेदार रहते हैं। ‘

‘अच्छा।’ अफसर ने कहा, ‘तो तुम अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हो? इस हालत में तुम्हें मिलनेवालों का टैक्स अदा करना होगा।’

‘लेकिन मैं उनसे मिलूँगा नहीं। मैं तो एक ज़रूरी काम से आया हूँ।’ मुल्ला नसरुद्दीन ने उत्तर दिया।

‘काम से आए हो?’ अफसर चिलाया। उसकी आँखें चमकने लगीं, ‘तो तुम रिश्तेदारों से भी मिलने आए हो और काम पर लगने वाला टैक्स भी दो । और खुदा की शान में बनी मस्जिदों की सजावट के लिए ख़ैरात दो, जिन्होंने रास्ते में डाकुओं से तुम्हारी हिफाजत की। ‘

मुल्ला नसरुद्दीन ने सोचा, मैं तो चाहता था कि खुदा उस समय मेरी हिफाज़त करता। डाकुओं से बचने का इंतज़ाम तो मैं खुद ही कर लेता। लेकिन वह चुप रहा। उसने हिसाब लगा लिया था कि अगर वह बोला तो हर शब्द की क़ीमत उसे दस तंके चुकानी पड़ेगी। उसने अपना बटुवा खोला और पहरेदारों की ललचायी, घूरने वाली नज़रों के सामने शहर में दाखिल होने का टैक्स, मेहमान टैक्स, व्यापार टैक्स, मस्जिदों की सजावट के लिए ख़ैरात दी। अफसर ने सिपाहियों की ओर घूरा तो वे पीछे हट गए। मुहर्रिर रजिस्टर में नाक गड़ाये बाँस की क़लम घसीटता रहा। टैक्स अदा करने के बाद मुल्ला नसरुद्दीन रवाना होने ही वाला था कि टैक्स अफसर ने देखा, उसके पटके में अब भी कुछ सिक्के बाक़ी हैं।
‘ठहरो, ‘ वह चिल्लाया, ‘तुम्हारे इस गधे का टैक्स कौन अदा करेगा? अगर तुम अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हो तो तुम्हारा गधा भी अपने रिश्तेदारों से मिलेगा। ‘

अपना पटका एकबार फिर खोलते हुए मुल्ला नसरुद्दीन ने बड़ी नर्मी से उत्तर दिया, ‘मेरे अकलमंद आका, आप सच फरमाते हैं, सचमुच मेरे गधे के रिश्तेदारों की तादाद बुखारा में बहुत बड़ी है। नहीं तो जिस ढंग से यहाँ काम चल रहा है, आपके अमीर बहुत पहले ही तख्त से धकेल दिए गए होते, और मेरे बहुत ही काबिल हुजूर आप अपने लालच के लिए न जाने कब सूली पर चढ़ा दिए गए होते । ‘
इससे पहले कि अफसर अपने होशहवास ठीक कर पाता, मुल्ला नसरुद्दीन कूदकर अपने गधे पर सवार हो गया और उसे सरपट भगा दिया। पलक झपकते ही वह सबसे पास की गली में पहुँचकर आँखों से ओझल हो गया।
वह बराबर कहता जा रहा था – ‘ और तेज़, और जल्दी मेरे वफ़ादार गधे, जल्दी भाग। नहीं तो तेरे मालिक को एक और टैक्स अपना सिर देकर चुकाना पड़ेगा।’

मुल्ला नसरुद्दीन का गधा बहुत ही होशियार था। हर बात को अच्छी तरह समझता था। उसके कानों में शहर के फाटक से आती हुई पहरेदारों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें पड़ चुकी थीं। वह सड़क की परवाह किए बिना सरपट भागा चला जा रहा था, इतनी तेज़ रफ्तार से कि उसके मालिक को अपने पैर ऊँचे उठाने पड़ रहे थे। उसके हाथ गधे की गर्दन से लिपटे हुए थे। वह जीन से चिपका हुआ था।

भारी आवाज़ में भौंकते हुए कुत्ते उसके पीछे दौड़ रहे थे। मुर्गियों के चूजे भयभीत होकर तितर-बितर होकर इधर-उधर भागने लगे थे और सड़क पर चलने वाले दीवारों से चिपटे अपने सिर हिलाते हुए उसे देख रहे थे।

शहर के फाटकों पर पहरेदार इस साहसी स्वतंत्र विचार वाले व्यक्ति की तलाश में भीड़ छान रहे थे । व्यापारी मुस्कुराते हुए एक-दूसरे से कानाफूसी कर रहे थे। ‘यह उत्तर तो केवल मुल्ला नसरुद्दीन ही दे सकता था । ‘

दोपहर होते-होते यह समाचार पूरे शहर में फैल चुका था। व्यापारी बाज़ार में यह घटना अपने ग्राहकों को सुना रहे थे और वे दूसरों को । सुनकर हर व्यक्ति हँसकर कहने लगता, ‘ये शब्द तो मुल्ला नसरुद्दीन ही कह सकता था । ‘

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)