Mulla Nasruddin
Mulla Nasruddin

Mulla Nasruddin ki kahaniya: सारे दिन अमीर क्रोध में भरे बैठे रहे। दूसरे दिन सवेरे भी भयभीत दरबारियों ने उनके चेहरे पर क्रोध की काली छाया देखी।
उनके दिल को बहलाने की सारी कोशिशें बेकार गईं। दरबारी आपस में फुसफुसा रहे थे, ‘ओफ, यह कमबख्त ख्वाजा नसरुद्दीन, यह हरामजादा, हमारे ऊपर उसने कैसी-कैसी आफ़तें ढाई हैं। ‘
अर्सला बेग ने अपने सिपाहियों और जासूसों को अपने कमरे में इकट्ठा किया। उनमें वह जासूस भी था, जिसके चेहरे पर चेचक के दाग थे।
तुम लोगों को मालूम होना चाहिए कि जब तक बदमाश नसरुद्दीन पकड़ा नहीं जाता तब तक तुम लोगों को तनख़्वाहें नहीं मिलेंगी। अगर उसका पता नहीं लगा सके तो सिर्फ तनख़्वाह से ही नहीं, तुम्हें अपने सिरों से भी हाथ धोने पड़ेंगे। मैं किसी को छोडूंगा नहीं। जो भी नसरुद्दीन को पकड़ेगा, उसे तरक्की के साथ तीन हज़ार तके इनाम में मिलेंगे और उसे जासूस ख़ास का ओहदा दिया जाएगा।’
सारे जासूस फ़क़ीर, भिश्ती, व्यापारी और दरवेश बनकर उसी समय वहाँ से चल पड़े। चेचक के दागों वाले चेहरे वाला जासूस सबसे ज़्यादा काइयाँ था। कमली पहनकर तस्बीह हाथ में लेकर कुछ पुरानी किताबें लेकर जौहरियों और अत्तारों के ढोले के नुक्कड़ पर बाज़ार में जा खड़ा हुआ। ज्योतिषी के वेश में उसने औरतों से रहस्य उगलवाने की योजना बनाई थी।
घंटे भर बाद बाज़ार के चौराहों पर सैकड़ों ऐलान करने वाले पहुँच गए और अमीर के हुक्म का ऐलान करने लगे-
‘नसरुद्दीन अमीर का दुश्मन और काफ़िर है। उससे किसी तरह का मेलजोल रखना, उसे पनाह देना जुर्म है। इसकी सजा मौत होगी। उसे पकड़कर जो भी सिपाहियों के सुपुर्द करेगा, उसे बख़्शीश के साथ तीन हज़ार तके इनाम में दिए जाएँगे। ‘
कहवाख़ानों के मालिक, लुहार, भिश्ती, जुलाहे, ऊँट खच्चर वाले आपस में फुसफुसाने लगे-
‘इसके लिए अमीर को मुद्दत तक इंतज़ार करना पड़ेगा । ‘

‘बुखारा वाले पैसे के लालच में उसके साथ दगा नहीं कर सकते।’ और सूदखोर जाफ़र बाज़ार में रोज़ाना की तरह उन लोगों को परेशान करता घूम रहा था।

‘तीन हज़ार तंके।’ बड़े अफ़सोस के साथ वह सोचने लगा। कल यह रकम क़रीब क़रीब मेरी जेब में थी। नसरुद्दीन फिर उस लड़की से मिलने जाएगा। लेकिन मैं अकेला उसे नहीं पकड़ सकता। अगर यह भेद किसी और को बताया तो इनाम मुझसे छिन जाएगा। नहीं, मुझे दूसरे ढंग से काम करना पड़ेगा।’
सोच में डूबा वह महल की ओर चल पड़ा। बहुत देर बाद तक फाटक खटखटाता रहा। फाटक बंद रहे। पहरेदारों ने सुना ही नहीं, क्योंकि वे सब नसरुद्दीन को पकड़ने की तरकीबों पर गर्मागर्म बहस कर रहे थे।
निराश होकर जाफ़र चिल्लाया, ‘ऐ बहादुर सिपाहियो, क्या तुम सो रहे हो ?’

उसने फाटक में लगा लोहे का बेड़ा खटखटाया। काफ़ी देर के बाद किसी के क़दमों की आहट सुनाई दी। फिर साँकल के खटखटाने की आवाज़ के साथ ही लकड़ी का छोटा फाटक खुल गया।
सूदखोर की बात सुनकर अर्सला बेग ने सिर हिलाया, ‘नहीं जाफ़र साहब, आज तुम्हें अमीर से मिलने की राय नहीं दूँगा। वह बहुत ही दुखी हैं, बहुत ही गुस्से में हैं।’

‘मेरे पास उनके गुम को दूर करने का इलाज मौजूद है।’ सूदखोर ने जल्दी से ‘अर्सला बेग साहब, मेरे काम में देर नहीं की जा सकती। जाकर अमीर से फरमाइए कि मैं उनका ग़म दूर करने आया हूँ।’

अमीर ने उसे बुलाया। लेकिन नाराज़गी के साथ कहा, जाफ़र, ‘अगर तुम्हारी ख़बर से मेरे
दिल को खुशी नहीं हुई तो तुम्हें दो सौ बेतों की सज़ा मिलेगी । ”शहंशाहे आलम, आपके इस नाचीज़ गुलाम को मालूम है कि हमारे शहर में एक ऐसी लड़की है, जिसकी खूबसूरती की मिसाल इस शहर क्या पूरी सल्तनत
में नहीं मिलेगी।’

अमीर उठकर बैठ गए और सिर उठाकर उसकी ओर देखने लगे।
हिम्मत पाकर सूदखोर बोला, ‘मेरे आका, उसकी खूबसूरती का बयान करने के काबिल मेरे पास लफ्ज़ नहीं हैं। लंबा कद है, नाजुक है, सुगढ़ बदन है। उसका माथा चमकदार है, गाल दमिश्की हैं। आँखें हिरनी जैसी हैं। भौंहें दूज के चाँद जैसी हैं। उसका मुँह हजरत सुलेमान की अँगूठी जैसा है। होठ याकूत जैसे हैं। दाँत मोतियों जैसे हैं। उसका सीना ? आय हाय! जैसे संगमरमर तराश कर उस पर दो लाल चेरी नक्श कर दी गई हों। उसके कंधे-‘

अमीर ने उसे रोककर कहा, ‘अगर वह ऐसी ही है जैसी तुम बता रहे हो तो वह हमारे हरम के काबिल है। कौन है वह ?’
‘मेरे आका, वह नीच ख़ानदान की है। एक कुम्हार की बेटी है। डर से मैं उस कुम्हार का नाम लेने की भी हिम्मत नहीं कर सकता कि कहीं मेरे शहंशाह के कानों की बेइज़्ज़ती न हो जाए। मैं उसका घर बता सकता हूँ। लेकिन इस वफ़ादार गुलाम को क्या कोई इनाम मिलेगा?’
अमीर ने बख़्तियार को इशारा किया। एक थैली सूदखोर के पैरों के पास आ गिरी, जिसे उसने लालच भरी फुर्ती से लपक लिया।

अगर वह ठीक ऐसी ही हुई तो तुम्हें इतनी ही रकम और मिलेगी । ‘ अमीर ने कहा।

‘लेकिन हुज़ूर ज़रा जल्दी कीजिए। मुझे मालूम है कि उस नाजुक हिरनी का पीछा किया जा रहा है। ‘
अमीर की भौहें मिल गईं। नाक पर सलवटें पड़ गईं।

‘कौन कर रहा है उसका पीछा ?’

‘नसरुद्दीन।’
‘फिर नसरुद्दीन ? इसमें भी नसरुद्दीन ? हर जगह नसरुद्दीन ?’ अमीर ने कहा और फिर वज़ीरों की ओर मुड़कर कहने लगे, ‘तुम लोग माबदौलत की बेइज़्ज़ती के सिवा कुछ नहीं कर सकते । अर्सला बेग, तुम खुद जाओ। वह लड़की फौरन हमारे हरम में आ जानी चाहिए। अगर तुम नाकाम लौटे तो तुम्हें जल्लाद के हवाले कर दिया जाएगा।’
थोड़ी देर बाद ही सिपाहियों की एक बड़ी टुकड़ी महल के फाटक से निकली। उनके हथियार खड़क रहे थे। ढालें सूरज की रोशनी में चमक रही थीं। आगे-आगे अर्सला बेग चल रहा था और सिपाहियों के साथ बहुत ही बेढंगेपन से लँगड़ाता – घिसटता सूदखोर चला जा रहा था।

ये कहानी ‘मुल्ला नसरुद्दीन’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Mullah Nasruddin(मुल्ला नसरुद्दीन)