चलिए शुरुआत आपकी शुरुआती जि़ंदगी से ही करते हैं।
Celebrity Interview: मैं एक ऐसी स्टूडेंट थी, जो हर बात मानने वाली और पढ़ाई में बेहद अच्छी थी। उसे हमेशा लाइब्रेरी में या किताबों में डूबा हुआ पाया जा सकता था। पढ़ाई के अलावा दूसरी एक्टिविटीज़ में भी मैं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती थी। दसवीं क्लास में 91 पर्सेट स्कोरिंग के बाद मैंने तय किया था कि मैं एक डॉक्टर बनूंगी। लोगों की सेवा मुझे अपने भगवान के और नज़दीक पहुंचा सकती है, लेकिन हुआ कुछ और ही। आगे चलकर जो डिग्री मेरे हाथ में आई, वह थी आईपी कॉलेज, डीयू की मास कम्यूनिकेशंस की और उसके बाद कार्डिफ यूनिवर्सिटी, यूके की। जि़ंदगी हमारे लिए जो मंजि़ल तय करती है, उसके रास्ते कई बार उसके उलट होते हैं, जिन्हें हम अपने रोड-मैप में ढूंढ़ते हैं।
घर-परिवार के बारे में कुछ बताइए।
मेरे पेरेंट्स (विनोद सूदन और संगीता सूदन) हमेशा मेरी ताकत की नींव रहे हैं। मामला चाहे पढ़ाई का रहा हो या करियर का, वे हमेशा मेरे $फैसलों के साथ खड़े हुए हैं। मुझ पर उनका अटूट विश्वास रहा है। आज भी जब वे मेरे बारे में कहीं भी सुनते-पढ़ते हैं तो मुझ पर गर्व करते हैं। मेरे पेरेंट्स के अलावा मेरे परिवार में मुझ से सात साल छोटा एक भाई भी है। मेरी परवरिश एक ज्वॉइंट फैमिली में हुई थी। हम एक ऐसे घर में पले-बढ़े, जो एक पारसी फैमिली द्वारा बनवाया गया बहुत ही बड़ा और शानदार घर था। उस शांत-शानदार घर से निकलकर बाद में हम एक बेहद भागदौड़ भरे शहर में भी चले गए, लेकिन उस घर की यादें आज तक मेरे दिलो-दिमा$ग में ताज़ा हैं। उस घर की ऊंची-ऊंची छतें, सूरज की रोशनी की गर्माहट से भरे $खूब बड़े-बड़े बरामदे, बड़ी सी छत के किनारे-किनारे धूप में सूखने के लिए रखे मर्तबानों में से आती मेरी दादी मां के हाथों के बने ताज़ा अचारों की $खूशबू। पुरानी $खूबसूरती को समेटे क्या-क्या $खास था उस घर में, वह सब कुछ शब्दों में बता पाना मेरे लिए आज मुमकिन ही नहीं है।
अपने करियर को लेकर क्या सपना था आपका?
जैसा कि मैंने पहले बताया था कि मैं एक डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन वह सपना तो पूरा हुआ नहीं। अपनी एमए की डिग्री के बाद मैं केंट, यूके चली गई थी, जहां मैं एक नॉन-प्रॉफेट ऑर्गेनाइज़ेशन (वीएलवी) के साथ जुड़ी हुई थी, जो कि ब्रिटिश टीवी और रेडियो कंटेंट की क्वॉलिटी और विविधता के लिए काम करती थी। वहां से वापस आने के बाद मैं एक एडवर्टाइजि़ंग फर्म में पीआर से जुड़ गई। मैं इतनी $खुशकिस्मत थी कि मुझे इतनी आइडियल टीम के साथ काम करने का मौका मिला, जो वहां से आने के इतने सालों बाद भी संपर्क में है। इस सब को 12 साल हो गए, लेकिन लगता है, जैसे कल ही की बात हो।
अब आते हैं आपके ब्लॉग ‘द चंपा ट्री की कहानी पर।

बहुत ही दिलचस्प रहा ये स$फर। साल 2006, जब मैं बतौर पीआर एक बेहद बिज़ी और भागदौड़ से भरे करियर में डूबी हुई थी, उसका हर पल मैं बेहद इंज्वॉय करती थी। एक से बढ़कर एक लग्ज़रियस ब्रांड्स के साथ एक्टिविटिज़ में मैं जुड़ी रहती थी। मेरे करियर के ठीक 7 साल और मेरी शादी के 3 साल बाद मेरी जि़ंदगी से मदरहुड जुड़ा और उसके बाद वह भागदौड़ भरी जि़ंदगी धीमी होती चली गई। मेरी प्रेग्नेंसी बहुत ही ट$फ थी, इसलिए मैंने फुल टाइम जॉब छोड़ने का $फैसला कर लिया। यहां से मेरे रास्ते बड़े सुखद रूप से लेखन की तर$फ मुड़ गए। अपने बेटे हर्षल के जन्म के कुछ महीनों बाद ही मैंने एक लीडिंग ब्यूटी ब्लॉग के लिए कंटेंट मैनेजर के तौर पर काम करना शुरू कर दिया, लेकिन मुझे महसूस होने लगा कि मेरे पास कहने के लिए अपना बहुत-कुछ है। मेरे मातृत्व से जुड़ी कितनी ही बातें, कितने ही अनुभव ऐसे थे, जो ऐसी हज़ारों-लाखों ऐसी मांओं के काम आ सकते थे, जो बिना किसी फिजिकली और इमोशनली सपोर्ट के अकेले इस कंडीशन की जटिलताओं से जुझती हैं। और इस तरह शुरुआत हुई मेरे ब्लॉग प्लेटफॉर्म ‘द चंपा ट्रीÓ की, जिसके पास आज लाखों पेरेंट्स के हर छोटे-बड़े सवाल का जवाब है।
आपको नाकामयाबी का डर नहीं था?
इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी को अपने पर कितना भरोसा है या वह कितना कॉन्फिडेंट है। अक्सर उसकी एक नाकामयाबी ही उसकी सारी काबिलियत पर सवालिया निशान खड़े कर देती है। जो बात मायने रखती है, वह सिर्फ़ ये है कि वह व्यक्ति $खुद कितनी जल्दी अपनी नाकामयाबी को स्वीकार करके उससे उबरने के रास्ते तलाश कर लेता है। एक स्त्री के हर कदम पर सबकी नज़र होती है। यही अपने-आप में कम बड़ा चैलेंज नहीं होता है। उसे सबसे ज्यादा अपने ही दिलो-दिमाग की जद्दोजेहद से उबरने की ज़रूरत होती है। मैं समझती हूं कि हमेशा अपनी अंतरात्मा की आवाज़ ही सुननी चाहिए, क्योंकि नाकामयाबी से कामयाबी के रास्ते का पता वहीं से मिलता है।
मदरहुड को लेकर लोगों का क्या नज़रिया आपने महसूस किया?
चीज़ें का$फी बदल रही हैं, लेकिन अभी भी इसमें बहुत समय लगेगा। सबसे ज़रूरी बात जो मैं समझती हूं, किसी भी महिला के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि वह किसी भी हाल में अपनी एजुकेशन, अपनी डिग्री को बेकार न जाने दे। इस डिग्री की बदौलत होने वाली शुरुआत आपको कामयाबी के एक लंबे रास्ते पर ले जा सकती है। जब कोई महिला आर्थिक रूप से मज़बूत होती है तो उसकी मज़बूती जि़ंदगी के हर रूप में झलकती है। यहां तक कि वह अपने बच्चों की कामयाबी के रास्ते की बुनियाद भी तय कर देती है, उन्हें कड़ी मेहनत और आर्थिक मज़बूती का पाठ पढ़ाकर।
आपके पति का इन सब में कितना सहयोग रहा?
मैंने बहुत ही कम लोगों को अपने पति अखिल जितना सपोॢटव देखा है, जो हर कदम पर मेरी प्रेरणा का काम करते हैं। वे स्ट्रेंथ पिलर की तरह हैं। मेरे सास-ससुर भी मुझे हमेशा प्रेरित करते रहे, मेरा साथ देते रहे। यहां तक कि वे खुद भी मेरे ब्लॉग्स अपने फ्रेंड्स के साथ शेयर करते हैं। (खिलखिलाकर हंस पड़ती हैं।)
ये बड़ी आम धारणा है कि एक गर्भवती का बढ़ा हुआ पेट उसके करियर के आकार को घटा देता है। यहां तक कि कई महिलाएं भी मां बनने को अपने करियर का अंत मान लेती हैं, लेकिन ऐसी सोच वालों के लिए एक मिसाल हैं वैशाली सूदन शर्मा। वैशाली ने एक साथ दो चीज़ों को जन्म दिया। एक अपने बच्चे को और दूसरा अपने ब्लॉग ‘द चंपा ट्री को, जोकि आज एक बेहद कामयाब पेरेंटिंग ब्लॉग है। पेश है, उनसे हुई एक बातचीत के कुछ अंश-
