budha-pita
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Hindi Motivational Story: एक गाँव में बूढ़ा व्यक्ति अपने बेटे और बहु के साथ रहता था। परिवार सुखी था, कोई परेशानी नहीं थी। पर बूढ़ा बाप बुढ़ापे से हार गया था, चलते समय लड़खड़ाता था। लाठी की ज़रुरत पड़ने लगी थी। बस जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहा था। घर में एक चीज़ अच्छी थी कि शाम को खाना खाते समय पूरा परिवार एक साथ टेबल पर बैठ कर खाना खाता था। एक दिन ऐसे ही शाम को जब सारे लोग खाना खाने बैठे। बेटा ऑफिस से आया था। भूख ज्यादा थी सो जल्दी से खाना खाने बैठ गया और साथ में बहू और बेटा भी खाने लगे। बूढ़े हाथ जैसे ही थाली उठाने के हुए थाली हाथ से छिटक गई। थोड़ी दाल टेबल पर गिर गई। बहू-बेटे ने घृणा से पिता की ओर देखा और फिर से खाना खाने में लग गए। बूढ़े पिता ने जैसे ही अपने हिलते हाथों से खाना खाना शुरु किया तो खाना कभी कपड़ों पे गिरता कभी जमीन पर। बहू ने चिढ़ते हुए कहा, हे राम कितनी गंदी तरह से खाते हैं। इनकी थाली किसी अलग कोने में लगवा देते हैं। बेटे ने भी सहमति में सिर हिलाया। छोटा बेटा यह सब मासूमियत से देख रहा था।

अगले दिन पिता की थाली उस टेबल से हटाकर एक कोने में लगवा दी गई। पिता की डबडबाती आँखें सब कुछ देखते हुए भी कुछ बोल नहीं पा रही थी। छोटा बच्चा अपना खाना छोड़कर लगातार अपने दादा की तरफ़ देख रहा था। माँ ने पूछा क्या हुआ बेटा, तुम दादाजी की तरफ़ क्या देख रहे हो। बच्चा बड़ी मासूमियत से बोला, माँ मैं सीख रहा हूँ कि वृद्धों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। जब मैं बड़ा हो जाऊँगा और आप लोग बूढ़े हो जाओगे तो मैं भी आपको इसी तरह कोने में खाना खिलाया करुँगा। बच्चे के मुँह से ऐसा सुनते ही बेटे और बहु काँप उठे। शायद बच्चे की बात उनके मन मे बैठ गई थी। बच्चे ने मासूमियत के साथ एक बहुत बड़ा सबक दोनों को दिया था। बेटे ने जल्दी से आगे बढ़कर पिता को उठाया और वापस टेबल पर खाने के लिए बैठाया और बहू भी भाग कर पानी का गिलास लेकर आई कि पिताजी को कोई तकलीफ ना हो।

तो मित्रों, माँ-बाप इस दुनिया की सबसे बड़ी पूँजी है। आप समाज में कितनी भी इज़्ज़त कमा लें या धन इकट्ठा कर लें लेकिन माँ बाप से बड़ा धन इस दुनिया में कोई नहीं है।

ये कहानी ‘नए दौर की प्रेरक कहानियाँ’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानी पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंNaye Dore ki Prerak Kahaniyan(नए दौर की प्रेरक कहानियाँ)