कुक्कू की नानी ने उसे बुनकर दी ऊन की चार फुँदनों वाली रंग-बिरंगी टोपी। कुक्कू ने पहनी, तो बोला, ”नानी, टोपी तो बहुत अच्छी है। इसे पहनकर तो मैं बिल्कुल राजकुमार बन गया।” सुनते ही नानी की हँसी छूट गई।
अगले दिन कुक्कू स्कूल गया, तो उसी टोपी को पहनकर चला गया। वह सोच रहा था, क्लास के बच्चे उसे मुबारकबाद देंगे। पर जैसे ही मौका मिला, क्लास के बच्चों ने गुट बनाकर तालियाँ पीटनी शुरू कर दी। वे कह रहे थे, ”देखो-देखो, कुक्कू की अजीब सी टोपी। चार फुँदने वाली टोपी!”
कुक्कू घर आया तो ठिन-ठिन करके नानी से बोला, ”नानी…नानी, क्लास के बच्चे ‘चार फुँदने वाली टोपी’ कहकर मेरा मजाक उड़ा रहे थे। तुम ऐसा करो, एक फुँदना कम कर दो।”
नानी बोली, ”अरे कुक्कू, तू भी बुद्धू है। उड़ाने दो मजाक, अपने आप कल-परसों तक ठीक हो जाएँगे।” पर कुक्कू नहीं माना। ठिनठिनाता रहा, तब नानी ने कैंची लेकर कुक्कू की टोपी का एक फुँदना काट दिया।
पर अगले दिन कुक्कू टोपी पहनकर स्कूल गया तो फिर वही मुसीबत थी। अबके बच्चे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे, ”देखो…देखो, कुक्कू की अजीब सी टोपी, तीन फुँदने वाली टोपी!”
उसी रोज कुक्कू ने नानी से कहकर एक फुँदना और कम करवाया। पर फिर भी बच्चों का चिढ़ाना जारी रहा। यहाँ तक कि टोपी में सिर्फ एक फुँदना बाकी रहा तो भी बच्चे चिढ़ाए बगैर नहीं मान रहे थे। आखिर में कुक्कू ने उदास होकर कहा, ”नानी-नानी, तुम यह फुँदना भी हटा दो।”
अगले दिन कुक्कू बिना फुँदने की टोपी पहनकर गया तो बच्चे तालियाँ पीट-पीटकर चिल्लाने लगे, ”देखो, देखो, कुक्कू की अजीब सी टोपी! बिना फुँदने की टोपी।”
स्कूल से आकर कुक्कू ने रोते-रोते नानी को बताया, ”नानी-नानी, आज भी बच्चों ने मुझे चिढ़ाया। कह रहे थे, देखो-देखो, कुक्कू की अजीब सी टोपी, बिना फुँदने की टोपी!”
नानी हँसते हुए बोली, ”बेटा, मैंने तुझे शुरू में ही समझाया था न! तू चिढ़ता है, इसीलिए सब चिढ़ाते हैं। अब तू चिढऩा छोड़ दे। फिर सब ठीक हो जाएगा।”
बस, कुक्कू ने नानी की यह बात गाँठ में बाँध ली। अब वह किसी बात से परेशान नहीं होता था। कुछ दिन तक तो बच्चों ने ‘बिना फुँदने की टोपी’ कहकर चिढ़ाया, फिर खुद ही शांत हो गए।
कुक्कू अब खुश था। हालाँकि कभी-कभी उसे टोपी के चार फुँदनों की याद आती थी, तो यह सोचकर उदास हो जाता था, ‘कितने अच्छे लगते थे वे फुँदने। बेकार नानी से कहकर कटवाए!’
