भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
जतिन सात साल का है। वह कॉर्मेल कान्वेंट स्कूल में दूसरी कक्षा में पढ़ता है। प्रतिदिन वैन से स्कूल जाता है। वह अपनी शिक्षिकाओं का प्रिय है। मां ने बड़े नाजों से उसका पालन-पोषण किया है। उनकी आंखों में एक ही सपना है जतिन बड़ा होकर आईएएस अधिकारी बने।
मां की अपेक्षाओं पर खरा जतिन भी मन से पढ़ रहा था। प्रतिवर्ष सुलेख, निबंध, भाषण व वाद-विवाद आदि प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर वह अपनी मां का नाम रोशन कर रहा था। पुरस्कार समारोह के अवसर पर जतिन के विद्यालय में मां जातीं तो उन्हें भी मंच पर बुलाया जाता था। तब उन्हें गर्व की अनुभूति होती थी।
जतिन के पिताजी सेना में सूबेदार थे। कारगिल के युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए। तब से मां ने मां-बाप दोनों का प्यार देकर जतिन को संभाला है। वही उनके जीने का एक सहारा है ।
पिछले कुछ दिनों से जतिन न तो ठीक से खाना खा रहा है और न ही खेल रहा है। पढ़ने में भी पहले जैसी तल्लीनता नहीं है। मां उसका यह व्यवहार देखकर परेशान है।
उसका दिल बहलाने के लिए मां ने कहा- “परेशान क्यों हो बेटा? तुम्हें तो खुश होना चाहिए। कल फिर तुम्हें पुरस्कार मिलेगा। इस बार फिर प्रथम स्थान प्राप्त कर तुमने मेरा नाम रोशन किया है। कल जब मैं स्कूल आऊंगी तो फिर मुझे मंच पर बुलाया जाएगा। एक बार फिर मेरा सिर गर्व से ऊंचा हो जाएगा।”
यह सुनकर जतिन ने मां की ओर देखा और तेजी से बोला- “नहीं… तुम मत आना मेरे स्कूल । जानती हो… मेरी परेशानी का कारण कोई और नहीं …तुम हो। जानती हो! जब तुम स्कूल जाती हो, स्कूल के बच्चे मुझे चिढ़ाते हैं। मेरे दोस्त की मां कितनी सुंदर है। और तुम…. कितनी कुरूप हो!”
इतना सुनते ही मां रो पड़ीं। उनका धैर्य जवाब दे गया। मां को रोता देखकर जतिन व्याकुल हो उठा। बोला- “मां! क्यों रो रही हो तुम? बताओ ना मां!”
मां कुछ न बोलीं। जतिन ने फिर कहा- “बताओ मां! तुम्हें मेरी कसम!”
कसम सुनकर मां को बताना पड़ा। वह बोलीं- “बेटा!..बात तब की है …जब तेरे पिताजी सीमा पर तैनात थे। दिवाली का दिन था…फुलझड़ी पटाखे..चारों ओर चल रहे थे।
अचानक…. कोई पटाखा आकर हमारे घर में गिरा… और… हमारे घर में आग लग गई बेटा!
आग इतनी भयंकर थी कि… कोई भी पास आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था। तुम घर के अंदर थे… मेरे लाल । तुम्हें बचाने वाला… कोई नहीं था मेरे जतिन! इसलिए…. मैं तुम्हें बचाने को आग में कूद गई और मेरा शरीर… जल गया ।
इसलिए “मैं कुरूप हो गई मेरे बेटे!..”
मां एक बार फिर फूट-फूट कर रो पड़ीं। जतिन की आंखें भी नम हो गईं। उसने मां के आंसू पोंछे और बोला- “मां। तुम दुनिया की सबसे अच्छी मां हो। तुम तो सबसे सुंदर हो मां। तुमसे सुंदर तो किसी की मां नहीं है। मैंने पढ़ा था, भगवान के बाद मां ही सबसे बड़ी होती है…पर… नहीं… मेरी मां! तुम तो भगवान से भी बड़ी हो। मुझे माफ कर दो मां! आज से तुम्हारा बेटा भगवान से पहले तुम्हारी आरती उतारेगा।’
इतना कहकर जतिन रोने लगा। मां ने उसे सीने से लगा लिया और दोनों एक-दूसरे के आंसू पोंछने लगे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
