aisee kee taisee
aisee kee taisee

Hindi Story: चीकू ने अपने दादा से पूछा कि जब भी मेरे से कोई गलती हो जाती है तो आप झट से कह देते हो कि तेरी ऐसी की तैसी। आखिर यह ऐसी की तैसी होती क्या चीज है? दादा अभी कोई अच्छा-सा जवाब देने की सोच ही रहे थे कि चीकू के भाई ने उसे समझाया कि जब किसी को खुल्ले दस्त लगे हो और पायजामे का नाड़ा न खुल रहा हो तो उस समय आदमी की ऐसी की तैसी होती है।

चीकू ने बात को साफ करते हुए कहा कि न तो मुझे खुले दस्त लगे हैं और न ही मैं कभी पायजामा पहनता हूं तो फिर दादाजी हर समय मेरी ऐसी की तैसी क्यूं करते रहते हैं? दादा ने चीकू को बड़े ही प्यार से समझाया कि ऐसी की तैसी कुछ नहीं केवल एक मुहावरा है, लेकिन यह तुम्हारे जैसे अक्ल के अंधे को समझ नहीं आ सकता। इतना सुनते ही चीकू जोर-जोर से रोते हुए अपनी मां से बोला कि दादाजी मुझे अंधा कह रहे हैं। अपने कलेजे के टुकड़े की आंखों में आंसू देखते ही चीकू की मां का खून खौलने लगा, उसने बात की गहराई को समझे बिना कांव-कांव करते हुए बुजुर्ग दादा के कलेजे में आग लगा दी।

दादा ने एक तीर से दो शिकार करते हुए अपनी बहू को डांटते हुए कहा कि लगता है बच्चों के साथ तुम्हारी अक्ल भी घास चरने गई है। न जाने इस परिवार का क्या होगा जहां हर कोई खुद को नहले पर दहला समझता है। बहू तुम तो अच्छी पढ़ी-लिखी हो, मुझे तुम से यह कदापि उम्मीद नहीं थी कि तुम कान की इतनी कच्ची हो। लगता है कि बच्चों की जरा-सी बात सुनते ही इस तरह अंगारे उगल कर तुम्हारे दिल में जरूर ठंडक पड़ गई होगी। मैं तो तुम्हारे बेटे को सिर्फ मुहावरों के बारे में बताने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मेरी बातें तो आप लोगों के सिर के ऊपर से ही निकल जाती है। इतना कहते-कहते दादा जी की सांस फूलने लगी थी। परंतु उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि मुहावरे किसी भी भाषा की नींव के पत्थर की तरह होते हैं, जो उसे जिंदा रखने में मदद करते हैं। मैं तो हैरान हूं कि सारा गांव मेरी इतनी इज्जत करता है, लेकिन तुम्हारे लिए तो मैं घर की उस मुर्गी की तरह हूं जिसे दाल बराबर समझते हैं। लोग तो अच्छी बात सीखने के लिए गधे को भी बाप बना लेते हैं।

इससे पहले की दादा मुहावरों के बारे में और भाषण देते, चीकू ने कहा कि लोग गधे को ही क्यूं बाप बनाते हैं, हाथी या घोड़े को क्यूं नहीं? दादाजी ने प्यार से चीकू को समझाया कि सभी मुहावरे किसी न किसी व्यक्ति के अनुभव पर आधारित होते हुए हमारी भाषा को गतिशील और रुचिकर बनाने के लिये होते हैं। हां कुछ मुहावरे ऐसे होते हैं, जो किसी एक खास धर्म और जाति के लोगों पर लागू नहीं होते। चीकू ने हैरान होते हुए पूछा कि यह कैसे मुमकिन है? दादाजी ने चीकू को बताया कि अब एक मुहावरा है सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े। अब तो आप मान गये कि यह मुहावरा किसी तरह भी सिख लोगों पर लागू नहीं होता। क्योंकि सिर तो सिर्फ हिंदू लोग ही मुंडवाते हैं। ऐसा ही एक और मुहावरा है कल जब मैं रात को क्लब से रम्मी खेल कर आया तो मेरी हजामत हो गई। इतना तो आप भी मानते होंगे कि सब कुछ मुमकिन हो सकता है, लेकिन किसी सरदार जी की हजामत करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। दादाजी की बात को बीच में ही छोड़ कर चीकू जैसे ही जाने लगा तो दादा ने कहा- ‘अभी ठहर तो सही। अभी एक और बहुत बढ़िया मुहावरा तुझे बताना है वो है हुक्का पानी बंद कर देना। अब सिख लोग ऐसी चीजों का इस्तेमाल करते ही नहीं तो उनका हुक्का पानी कैसे बंद हो सकता है?’ इतना सुनते ही चीकू ने दांतों तले उंगली दबाते हुए दादा से पूछा कि अगर आपको उंगली दबानी पड़े तो कहां दबाओगे क्योंकि आप के दांत तो हैं नहीं?

यही नहीं, ऐसे बहुत से और भी मुहावरे हैं जिन को बनाते समय लगता है, हमारे बुजुर्गों ने बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे, यह तो मैं नहीं जानता, लेकिन आज के वक्त में तो इनके मतलब बिल्कुल बदल चुके हैं। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही मशहूर मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर थोड़ा-सा भी तेल गिर जाये तो राधा बेचारी फिसल कर गिर नहीं जायेगी। वैसे भी आज के इस मंहगाई के दौर में नौ मन तेल लाना किसके बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। बहुत देर से चुप बैठा चीकू अपने दादा से बोला कि लोगों को नाच-गाने के लिए दारू लाते तो मैंने अक्सर देखा है, कभी किसी को तेल लाते तो नहीं देखा।

दादा ने चीकू से एक और मुहावरे की बात करते हुए कहा कि यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। मैं बात कर रहा हूं 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नहीं खाया। अगर उसने कोई चूहा नहीं खाया तो रास्ते में उसने क्या खाया था? वैसे क्या कोई यह बता सकता है कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? कुछ भी हो यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 100 चूहे खाकर हज को चली गई। अब मुहावरों की बात को यहीं खत्म कर देना ही अच्छा है, नहीं तो कुछ लोग घबरा कर ऐसे गायब हो जायेंगे जैसे गधे के सिर से सींग। जी हां, मैं बात कर रहा हूं दौड़ने-भागने की। इससे पहले कि अब आप जौली अंकल के मुहावरों की ऐसी की तैसी करे मैं तो यहां से नौ दो ग्यारह हो जाता हूं।

अगर आप कुछ और नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर ही सकते हो कि अपनी जीभ को कटु वचन बोलने से रोक कर रखो।

ये कहानी ‘कहानियां जो राह दिखाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं

Kahaniyan Jo Raah Dikhaye : (कहानियां जो राह दिखाएं)