kya kahun
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

कुछ लिखू? पर क्या? मन की बात सुनेगा कौन, सुनकर करेगा भी क्या? अपनी समस्या का समाधान हम खुद हैं दूसरा कोई नहीं इसे समझती हूँ फिर भी कभी किसी कमजोर पल में मन चाहता है कोई हो जिससे अनर्गल बातें करूँ क्यों? शायद यही है एकाकीपन…जिसका कोई इलाज तो है नहीं।

ऐसे ही किसी कमजोर पल में मोबाईल बजने लगा दूसरी तरफ कोई महिला थी परिचय हुआ हम किसी whatsapp ग्रुप में साथ हैं उनका नाम है अनिता जोशी 7030200090…मुझे समझ में आ गया कि भद्र महिला अहिन्दी भाषी हैं परंतु भाषा में व्याकरण सम्मत कोई त्रुटि नहीं थी। उन्होंने बताया कि मेरी संक्षिप्त पर सार्थक टिप्पणियों से प्रभावित होकर मित्रता करना चाहती हैं, मुझे कुछ अजीब तो लगा पर भद्रता भी तो कोई चीज होती है तो चुप हो गई। हां इतना जरूर हुआ कि हम personal पर चैटिंग करने लगे, सामान्य बातें ही होती रहीं निकटता बढ़ने लगी फिर तो कई बार फोन पर भी बातें होती रहीं। इस तरह हमारी मित्रता जिसे मैं आभासी मित्रता कहती हूँ उसने चार साल पूरे कर लिये। आभासी इसलिये कि हम कभी मिले नहीं, देश के दो अलग-अलग प्रान्तों में हम रहते हैं, अनिता मराठी भाषी महाराष्ट्री मन अवकाश प्राप्त महिला हैं अकेली रहती हैं। लिखने के नाम पर कभी कोई कविता लिख लेती हैं हां लेखन के शुरूआती दौर में तीन किताबें प्रकाशित हुई हैं। मैंने पूछा भी था फिर कोई किताब क्यों नहीं लिखती तो उत्तर मिला “क्या होगा लिखकर, नाम अमर हो जायेगा क्या? मान लो हो भी गया मेरे मरने के बाद मेरी किताब कितनी प्रसिद्ध हुई कितना सम्मान साहित्य जगत में मिला मैं तो देखने आऊँगी नहीं तो पशुश्रम क्यों करूँ?”

निरुत्तर हो गई, उनके विचार एकबारगी खारिज करने लायक भी तो नहीं है, पर पूरे मन से स्वीकार भी नहीं कर पाई …दिन गुजर रहे थे ..जिस दिन चैटिंग न हो उनकी याद आती, अपनी राजी खुशी बताने उनकी जानने की आदत पड़ गई। पिछले रविवार अनिता ने फोन किया, गम्भीर थी बोली “अपनी बात कागज में लिख रखी हूँ तुम पढ़ोगी तो पोस्ट करूँगी, कुछ ज्यादा लम्बा है जिसे चैटिंग के मार्फत नहीं भेज सकती, फोन पर इतना बोलने का समय भी नहीं है तुम ध्यान भी नहीं दे पाओगी।” उत्सुकता तो बढ़ ही गई थी तो हामी भर दी ….। अपना पता बता दी और उसी पल से प्रतीक्षा करने लगी सोचने लगी क्या लिखा होगा? फिर सिर्फ मुझे क्यों बताना चाहती हैं आदि इत्यादि …। तीसरे दिन कोरियर वाले ने मोटा लिफाफा मेरे हाथ में थमा कर पार्वती का हस्ताक्षर लिया, चल दिया। दिन के ग्यारह बजे होंगे, उत्सुकता चैन लेने तो दे नहीं रही थी तो सारे काम-धाम छोड़कर बैठ गई लिफाफा खोलने …ये क्या पूरे छः पन्नों का पुलिंदा है वह भी दोनों तरफ लिखा हुआ ..यह तो मानना पड़ेगा कि साफ सुथरी लिखावट थी जिसे मोती जैसे अक्षर कह सकते हैं।

पढ़ना शुरू की, अनिता ने लिखा है ……

“सरला! तुमसे एक बात छिपाती रही हूं ..कभी जिक्र भी हुआ तो सामान्य बात ही बताई, याद है हमारे दूसरे ग्रुप में नीरज गुप्ता 9815000702 भी हैं साहित्य प्रेमी, अवकाश प्राप्त, सम्पन्न व्यक्ति हैं ग्रुप में सक्रिय रहते हैं सटीक टिप्पणी देते हैं। तुमसे मित्रता की शुरुआत ही हुई थी कि उन्होंने मेरे पर्सनल पर मैसेज दिया कि वे मुझसे मित्रता करना चाहते हैं शुरू में मैंने आनाकानी की, समझाया भी कि मैं उम्र दराज साधारण सी महिला हूं, सामान्य परिवार की हूं, सम्पन्नता कहीं आसपास भी नहीं है ।

उत्तर था “मित्रता के लिए भाषा, उम्र, सुंदरता, सम्पन्नता बाधक तत्व तो नहीं हैं फिर एक उम्र के बाद चेहरे की सुंदरता हृदय में उतर जाती है।” आज तुमसे यह कहने में मुझे कोई झिझक नहीं महसूस हो रही है कि मुझे भी नीरज गुप्ता का साथ अच्छा लगने लगा शायद यह मेरे अकेलेपन की वजह से हुआ या मेरी नियति थी ..नहीं जानती।

अरे! जरूरी बात तो भूल ही गई नीरज आसाम के हैं, छत्तीसगढ़ से जाकर उनके पूर्वज वहां बस गये थे नीरज तीसरी पीढ़ी के हैं पैतृक व्यवसाय तो चाय का ही था पर वे पोस्ट ऑफिस में नौकरी करते थे …।

उन्होंने अपने घर परिवार की तस्वीरें पोस्ट की, चाय के बागानों की भी ..घर में मनाए जाने वाले त्यौहारों की भी ….ऐसा लगने लगा हम कब के परिचित हैं। मैंने भी तस्वीरें भेजी …सोचकर हंसी आती है घर में बनी सब्जी की भी फोटो हमने शेयर की है क्रमशः नीरज अपनी एकल फोटो भी भेजने लगे, ग्रुप की ऊँच, नीच का जिक्र तो होता ही व्यक्तिगत सुख-दु:ख, हारी बीमारी का भी जिक्र करते। समय पर पोस्ट न मिलने पर शिकवा शिकायतें भी होने लगीं, कुछ हास-परिहास भी होता इस तरह नजदीकियां बढ़ने लगी …। मजे की बात कि हम कभी मिले नहीं, कभी एक-दूसरे को फोन नहीं किया हमारी मित्रता जबानी जमा खर्च तक सीमित रही …नहीं …यह भी नहीं कह सकती क्योंकि हमने एक-दूसरे की आवाज तो सुनी ही नहीं ..चैटिंग करते रहे हैं …हैं न अजीब रिश्ता ..?”

मैं सोचने लगी अनिता यही तो आभासी रिश्ता है तुम्हें समझ में क्यों नहीं आया कि ऐसे रिश्तों का वजूद ज्यादा दिन नही टिकता। अरे जिन्हें अपनी आवाज सुनाने या तुम्हारी आवाज सुनने तक की जरूरत नहीं है उनसे तुमने क्या, क्यों और कितनी उम्मीदें लगा ली? अपने अकेलेपन को भरने की सोची भी तो ऐसे व्यक्ति से?

अपनी सोच को थामकर फिर अनिता को पढ़ने लगी। लिखा है …. “तुम विश्वास करोगी न? सच कहती हूं आसमान में छाये बादल उस अनदेखे आभासी मित्र की याद दिलाने लगे, चाय बनाते, पीते हुए आसाम के चाय बागान आँखों के सामने आ जाते ..अरे हाँ ..एक दिन तो महाशय ने चाय बागान देखने का न्यौता ही दे दिया, मेरा मन भी आसाम की वादियों, चाय बागानों को देखने को लालायित हो उठा फिर होश आया मैं अनिता जोशी तो अकेली हूं, चल भी पढूंगी पर वहां उनके घर, परिवार, रिश्तेदार, मित्रगण हैं उन्हें अपना क्या परिचय दूंगी या वे ही मेरे बारे में क्या बतायेंगे …तुम तो लेखिका हो मेरी दुविधा अमूलक नहीं है समझ सकती हो। समाज कभी, किसी काल में स्त्री, पुरुष की मित्रता को मान्यता नहीं देता, निखालिस दोस्ती को तरजीह नहीं दिया जाता, किसी रिश्ते की मुहर जरूरी है वरना अपदस्थ होने की शतप्रतिशत सम्भावना रहती है। यह तो हुई औरों की धारणा ..क्या मैं ही आश्वस्त हूं? धीरे-धीरे मैं नीरज गुप्ता पर आश्रित नहीं होने लगी हूँ? उनकी जरा-सी भी बेरुखी मुझसे बर्दाश्त नहीं होती …उन्हें वद सपदम देखने पर सोचने लगती हूँ किससे चौटिंग कर रहे हैं , ग्रुप की किसी महिला मित्र से तो नहीं? जलन, ईर्ष्या से भरने लगी क्यों? मेरा अपना मन इस रिश्ते को मित्रता से कुछ अलग मानने लगा क्यों? शुरूआती दौर में उनकी ओर से कुछ ऐसा सन्देश मिला भी था जिसे समझने में स्त्री हृदय कभी धोखा नहीं खाता। किसी सन्दर्भ में लिखे थे “मुझे तो हर हाल में हारना ही है बल्कि कहूं हारा हुआ हूँ शर्त यह कि अपने स्वाभिमान को हमेशा बनाये रखना चाहता हूँ।” यह भी अतीत हो गया है पिछले साल भर से अन्यमनस्कता दिखाई देने लगी सन्देश संक्षिप्त होने लगे, अभिवादन जारी रहा पर सम्बंध की ऊष्मा कम होने लगी अब तिलमिलाने की बारी मेरी हो गई ..नाराज हुई, चैटिंग का अंतराल बढ़ने लगा उसी अनुपात में मेरी व्यग्रता बढ़ने लगी …क्या हो गया मुझे? सालों का अकेलापन मुंह चिढ़ाने लगा … खुद पर झल्लाने लगी ..ऊह आभासी रिश्ता है इसे सच समझने की भूल क्यों? सोचती ..कल से बातचीत बन्द ..फिर भी whatsapp देखती रहती शायद कोई सन्देश मिले, इस तरह चार, पांच दिन गुजर जाते फिर किसी कमजोर पल में खुद ही कोई बात कर लेती …सिलसिला चल पड़ता ..झूठ नहीं कहूंगी पहल अधिकतर मैं ही करती …उत्तर दो चार शब्दों का होता या कभी मात्र इमोजी यानि शब्द संकेत मात्र…।

आज जब तुम्हें यह सब लिख रही हूं तो मन कह रहा है मुझसे ही भूल हुई है अपेक्षायें ही नहीं पाली, उपेक्षा भी संजोने लगी …अच्छी खासी अकेली जी रही थी परेशानी मोल ले बैठी। जब तक यह समझ में आया कि भावनाओं का लेन-देन एकतरफा था तो सोचने बैठी ..अपने मन की दुश्मन मैं खुद हूं ..उनका कोई दोष नहीं है वे तो अपने घर, परिवार में संतुष्ट हैं। बड़ी झुंझलाहट हुई, खुद को धमकी दी खबरदार! किसी और बात की और ध्यान देने की भी सोची तो …।”

अनिता की आपबीती पढ़ते-पढ़ते आंखें भर आई…हाय विधाता! किस मिट्टी से स्त्री हृदय को बनाया है तुमने? मन को हल्का करने कॉफी लेकर बैठी पर शक्कर थी भी या नहीं, कॉफी ठंडी हो चली थी यह भी समझ नहीं पाई ….सोचने लगी उम्रदराज महिला जिसने जीवन के सारे उतार-चढ़ाव देख लिये है. दो दशक से अकेली जी रही है. साइबर अपराधों के बारे में पढती. जानती है कैसे मन के आवेग पर नियंत्रण नहीं कर सकी? कहीं पढ़ी थी, देह की उम्र बढ़ती है संवेदना, भावना की नहीं क्या यही सच उसके जीवन में उतर आया? या फिर सालों का अकेलापन, अपनत्व पाने को बुभुक्षु मन कातर हो याचक बन बैठा? क्यों नहीं समझ पाई, अति अपेक्षा ही उपेक्षा को न्यौता देती है फिर वही उपेक्षा मन को लहूलुहान कर देती है। चलूं आगे पढ़ लेती हूँ , वापस पुलिदा हाथ में लेकर पढ़ने लगी …।

अनिता ने लिखा था “जाने कैसे, कब मन ने चुपके से कहा आभासी सम्बन्ध को सच समझने की भूल कर बैठी हो, समय आ गया, समझो यह एकपक्षीय भावना है और अब संभलना उचित है, नीरज भी अपनी व्यस्तता की दुहाई देते रहते है अधिकांश पोस्ट का जवाब भी नहीं देते, भद्रतावश चुप हैं। भगवान शायद मुस्कुरा उठे थे सरला!…पिछले सोमवार को बाएं हाथ में हल्का-सा दर्द था सीने में जलन हो रही थी तो सोची खाने-पीने की अनियमितता से गैस बन रहा होगा शाम तक सांस लेने में तकलीफ होने लगी किसी काम से भतीजा आया मेरी हालत देख अपनी मां को बुला लाया हॉस्पिटल ले गये डॉक्टर ने देखा, गम्भीर हो गये भर्ती कर लिये फिर क्या? शुरू हुआ टेस्ट का सिलसिला ….मुझे तो नहीं भतीजे राजीव को बताये हृदय रोग है, पूरी तरह आराम करना है, दवायें नियमित लेनी होगी, किसी भी तरह की चिन्ता नहीं करनी है उम्र हो गई है तेल घी शक्कर कछ भी नहीं सादा भोजन करना है आदि इत्यादि …तीसरे दिन घर आ गई इस बीमारी ने मुझ पर बड़ा उपकार किया है समझ तो गई चेतावनी मिल गई, ज्यादा समय मेरे पास नहीं है…डर नहीं लगा, तुम भी मत डरना। सच कहूं अच्छा ही लगा यह सोचकर कि जो थोड़े से दिन बचे हैं अकेली ही क्यों न जिऊँ? आभासी मित्र को आभासी ही बना रहने दूं, मेरे जाने की सूचना से किसी को क्षण भर के लिए भी दु:ख क्यों हो? आज दृढ निश्चय करके नीरज गुप्ता को अपने whatsapp में block कर दी, पता नहीं इस तरह खुद को मुक्त की या उन्हें मुक्त कर दी ….दवा का असर है या मन के हल्के होने का …खूब सोई सुबह आठ बजे तक सोती रही। दो दिन लगे यह सब लिखने में, तुमसे भी तो मेरा आभासी रिश्ता ही है …पर तुम हो लेखिका तो सोची हो सकता है तुम्हें लिखने को कथानक मिल जाये …थक गई अब आराम करूंगी।”

तुम्हारी आभासी मित्र

अनिता जोशी

पढ़ना खत्म हुआ तो विचारों की आंधी आ गई …अनिता अकेली तो नहीं आज सोशल मीडिया की सक्रियता में अलग अलग उम्र, परिस्थिति की जाने कितनी अनिता हैं जाने कितने नीरज गुप्ता हैं जो आभासी रिश्ते को यथार्थ समझने की भूल कर बैठते हैं भावनात्मक उतार चढ़ाव से जूझते हैं, ठीक कहा है अनिता ने उसकी आपबीती को शब्द दूंगी, लिखूगी जरूर ..इस तरह यह कहानी आप तक पहुंची है ।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’