भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
कितने समय बाद अकस्मात नजर आयी मल्लिका। प्यासी धरती पर पानी की फुहार की तरह। वही मल्लिका, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसके सामने सिनेमा की खूबसूरत से खूबसूरत हीरोइनें भी बेपानी हो जाएं। इसलिए उसे पीना और पाना सबका दबा-छुपा सपना है। उसने न जाने कितनों का कत्ल किया लेकिन मरने वालों के मुंह से ‘हे राम’ तो क्या, ‘उफ’ तक निकालने का वक्त नहीं दिया। उसकी ठसक ऐसी है कि उसने अपने इस अपराध के लिए कभी किसी से क्षमा भी नहीं मांगी। वह अपने बुने तिलस्म में जीती रही जबकि उसके आस-पास फैले लोग उसकी जिंदगी में घुसने की कोशिश करते रहे। मल्लिका अपनी फ्रेंड्स की हिदायतों के बाद भी कभी यह मानने को तैयार नहीं हुई कि उसे जमाने से बचकर चलना चाहिए क्योंकि खूबसूरत लड़की को देखकर पुरुषों के अंग-प्रत्यंग से लार टपकने लगता है।
हर पल तीर-कमानों के बीच घिरी रहने के बावजूद मल्लिका ने खुद को ‘अनटच्ड’ रखा। वह हर किसी की आंखों में फ्रेम की हुई तस्वीर की तरह टंगी रही। उसका स्पर्श पाने के लिए लोग हर तरह का स्वांग रचाते। अपनी आंखों में ज्वार-भाटा तक लेकर उसके सामने से गुजरते ताकि वह उसमें बहने के लिए राजी हो जाए। मल्लिका बहती तो थी, लेकिन अपनी आग के साथ। लोग जल न जाएं इसलिए हाथ मिलाने की जगह वह मुस्कान फेंककर काम चलाती। दिल फेंकुओं के पास मन को सुख देने के लिए एक ही विकल्प होता कि उसकी छाया के पीछे-पीछे चलते हुए साथ होने की खुशफहमी पाले रहें। लेकिन पराजित नैतिकतावादी बड़बड़ाने से बाज नहीं आते कि एक लड़की ने कैसे सबकी सांसों को कोकशास्त्र में बदल दिया है।
मल्लिका एक दिन अचानक गायब क्या हुई, पूरे कॉलेज-कैंपस से मानो ग्लैमर और गॉसिप की विदाई हो गयी। मनहूसियत का कंटीला झाड़ उग आया। तब उसके बारे में तरह-तरह के किस्से चले और चटखारे लेकर सस्वर पाठ भी होते रहे। हर किसी ने युवा प्रोफेसर हरेन को निशाना बनाया कि उसी ने अपनी आदत के अनुसार कुछ ‘खुराफात’ की होगी। मल्लिका के हरेन के साथ कैसे रिश्ते थे, यह हरेन भी नहीं जान पाया लेकिन बाहर जो हवा बहती, उसमें गरम मसाले की खुशबू मौजूद रहती थी। हरेन का भी यह हाल था कि उसकी अनुपस्थिति न उसे जीने दे रही थी और न मरने। अब जब मल्लिका सामने है तो हरेन खुद को दहकते जंगल में खड़ा महसूस कर रहा है।
मल्लिका के आने पर समय भले न ठहरा हो, आस-पास के चलते हुए पांव जरुर थम गए। किसी की आंखें फैल गयीं, किसी का मुंह खुला का खुला रह गया और किसी-किसी की दोनों टांगों के बीच कलेजे जैसी धड़कन आ गयी। सभी हैरान कि मल्लिका के चेहरे पर पुरानी रौनक क्यों नहीं है? चाल-ढाल में भी हिरणीपन नहीं है। उसकी आंखों से वह खुराफात गायब है, जिसकी एक झलक पाने के लिए लोग अपनी पलकों पर कालीन बिछाए हिंदी विभाग के ईर्द-गिर्द जमा हो जाते थे। इतने महीनों बाद मल्लिका को देखना, वह भी बुझे हुए रूप में, हरेन के लिए कलेजा मुंह को आने जैसा था।
‘तुम मेरी मल्लिका हो या खुदाई से निकली यक्षिणी की कोई खंडित मूर्ति? तुम्हें अगर अपनी कुछ फिक्र नहीं है तो मेरे बारे में तो सोचा होता।’ हरेन इस तरह नाराजगी के साथ बुदबुदाया कि मल्लिका के अलावा कोई और नहीं सुन सके।
मल्लिका कदम बढ़ाती हुई हरेन के एकदम करीब आ गई। न मुस्कुराई, न अपने होठों को पहले की तरह शरारत से दबाया। हाय-हलो तक नहीं किया। हरेन भांप गया कि मल्लिका उसके अंदर उम्मीद का जो शिलान्यास करके गायब हुई, लौटने के बाद उस पर एक ईंट डालने की भी कोशिश नहीं कर रही है। हां, उसका आना जरुर हरेन को इनवेलर की तरह लगा। एक बार ऊपर देखा, आसमान में सूरज डीठ जैसा तना हुआ था। हरेन पसीने से तरबतर हो रहा था जबकि बाकी लोगों को मल्लिका उमस में ठंडी हवा के झोंके की तरह लग रही थी। यह अंतर हरेन को परेशान करने लगा। उसे नजर आया कि मल्लिका के हाव-भाव में अपनेपन का विलोम पालथी मारकर बैठ गया है। उसके कदमों की थाप से संगीत भी नदारद है। उससे पूछने की बजाए हरेन ने खुद से पूछा, ‘ऐसा क्यों है?’
…तो उसके तीन जवाब आए। या तो वह गर्भपात कराकर आयी है या किसी अपराध-बोध के तले दबी हुई है या फिर किसी संकट की मार सहकर मदद मांगने आई है। लेकिन अगले ही पल हरेन को अपनी मन:स्थिति पर शर्म महसूस हुई। वह एकटक मल्लिका को देखने लगा। आसपास का माहौल थ्रिलर फिल्म की तरह सनसनीखेज हो गया।
हरेन पिछले चार महीने से मल्लिका को मिस कर रहा था। वह इस बात से परेशान रहा कि न तो वह फोन उठाती है और न किसी मैसेज का जवाब देती है। सोशल मीडिया को अपनी ऊंगलियों पर नचाने वाली अचानक वहां से भी गायब हो गयी है। जब भी कोई सहयोगी सवाल करता कि इंतजार की यह बेताबी क्यों, तो हरेन हिकारत से देखने लगता। सच तो यह है कि यह बेताबी अकेले उसके अंदर ही नहीं थी। मल्लिका से अपनी नजदीकी जताने वालों की गिनती करना आसान नहीं था।
इसके लिए हरेन ने घर-बाहर की सारी सीमाओं का अतिक्रमण किया। विश्वविद्यालय में पढ़ाते हुए उसने शब्दों और भावों के इतने दीये जलाए कि मल्लिका के तन-मन में उजास फैल गया। उनींदापन मल्लिका की आंखों में आया और सपने हरेन देखने लगा। पंख उसने फैलाए और उड़ने लगा हरेन। लगा कि आसमान से धरती तक उसका साम्राज्य कायम हो गया और मल्लिका साम्राज्ञी बनकर उसके जीवन में प्रवेश कर गयी। जिस सुख की हरेन ने कभी कल्पना की थी, वह उसकी हथेलियों पर भाग्य-रेखा की तरह बैठ गया। उसने मान लिया कि मल्लिका उसके जीवन का हिस्सा बन गयी।
मल्लिका एक अच्छी कथाकार भी है। स्त्रीवादी लेखन करती है। लेकिन उसकी कहानियों की कोई स्त्री न तो ऊब पैदा करती है और न किसी के खिलाफ कोई व्यूह रचती है। हर कोई अपनी-अपनी खोज में लगी रहती है। उसकी कहानी पाठ के लिए कई बार हरेन ने विभाग में गोष्ठियों का आयोजन कराया। दूसरों के लिए भी कराते रहे लेकिन मल्लिका के आयोजन में वह अपना सब कुछ निकाल कर रख देता। हरेन उसकी कहानी की तारीफ कुछ ज्यादा इसलिए करता ताकि वह आत्ममुग्ध तो रहे ही, हरेन के अंदर भी अपने लिए कुछ तलाशने की कोशिश करे। उसकी तीन-चार कहानियां ही पत्रिकाओं में छपी लेकिन हरेन ने साहित्य में उसकी बड़ी पहचान बनाने की मुहिम छेड़ दी। उसे कभी चित्रा मुद्गल तो कभी ममता कालिया तक कह दिया। एक बार तो अमृता प्रीतम के साथ भी तुलना कर दी। लोग मजाक से हरेन को साहिर कहने लगे। हरेन ने उसकी छपास की भूख को जगाए रखा ताकि वह उसके इर्द-गिर्द ही भटकती रहे। तब हरेन उसे यह समझाने में कामयाब रहा कि ‘एम.ए. के बाद जल्दी से पीएचडी कर लो ताकि कॉलेज में लेक्चरर बन सको।’
हालांकि पीएचडी कराने का हरेन का एक ही मकसद था कि वह उसकी छतरी के नीचे हमेशा खड़ी रहे और लोगों को राजकपूर-नरगिस का वहम होता रहे। हरेन ने एक बार बेधड़क होकर स्टाफ रूम में कह भी दिया, ‘इसमें छिपाने जैसी कोई बात नहीं कि मल्लिका ने मेरे सपनों पर भी कब्जा कर लिया है। मैं सोता भी हूं तो उसी को याद कर और जागता भी हूं उसी का नाम लेकर। इस सोने और जागने के बीच में भी कोई और नहीं है।
पढ़ाई में भी मल्लिका पीछे नहीं थी। पढ़ाने वाले उसे क्लास में हमेशा आगे बैठे देखना चाहते थे। ऐसा भी नहीं कि मल्लिका को इसका पता नहीं था। वह खूबसूरती की ताकत को जानती थी। वह कनखियों से ही देख ले, इसकी तमन्ना हर किसी को होती। लड़के जितना उससे दोस्ती के लिए परेशान रहते, लड़कियां उतना ही उससे ईर्ष्या करती। लड़कियों की यह अघोषित शिकायत होती कि लड़के मल्लिका के अलावा किसी पर भी नजर नहीं डालते हैं।
हरेन उसे देखकर परेशानी में पड़ गया। इसलिए कि उसके जिस्म से कमीनापन गायब हो गया है और खूबसूरती में भी पहले जैसी आक्रामकता नहीं है। अपने समय की ब्यूटी क्वीन रही प्रो. राप्ती बोस मल्लिका के बारे में कहती रहती थी कि उसकी मादकता मर्यों में शैतानी प्यास जगाने वाली है। हरेन हर बार उसे हंस कर कहता कि उसका शैतान मल्लिका से प्यार करने लगा है। प्यार तो कभी हरेन ने राप्ती से भी किया था लेकिन राप्ती को प्यार से ज्यादा मिथुनरत होने में विश्वास था। फिलॉस्फी पढ़ाती थी इसलिए वह अकेले में हरेन को अकसर जीवन का अर्थ समझाने लगती। एक दिन हारी हुई मुद्रा में वह चिल्ला उठी थी, ‘न तो तुम किसी को प्यार कर सकते हो और न किसी जिस्म को काबू में कर सकते हो। सहलाने के अलावा कुछ आता ही नहीं है। नामर्द हो तुम। ‘उसकी यह टिप्पणी आज तक हरेन का गला दबा रही है।
लेकिन आज हरेन को मल्लिका बंधी हुई तालाब-सी लग रही है। उसने शांत सतह पर लहर पैदा करने की कोशिश में उसकी ठुड्डी को पकड़कर सामने देखने का इशारा किया। यह क्या, उसकी सूखी आंखों में पानी छलक गया। आसपास अपनी-अपनी जगह पर फ्रिज हुए लोग असमंजस भाव के साथ देखे जा रहे थे। मल्लिका को जैसे ही लगा कि कुछ सीन क्रियेट हो रहा है, वह चुपचाप हरेन के चेम्बर की तरफ चली गयी। हरेन तो क्या सबको संकेत मिलने लगा कि कोई नया ट्विस्ट आने वाला है।
हरेन की हैरानी का तो एक ठोस कारण था। एक दिन उसने अपने अंदाज में मल्लिका के होठों पर बूंदा-बांदी करता हुआ प्रेम का इजहार कर दिया। मल्लिका बेमौसम हुई इस बरसात से ठिठक गयी थी। वह कुछ देर तक हरेन को देखती-समझती और गुनती रही। हरेन मान बैठा कि मल्लिका ने आमंत्रण पर अपनी मुहर लगा दी। लेकिन अगले ही पल आंखों में जाने कहां से शरारत भर कर ले आयी और मोहक अदा के साथ वाक्य को लंबा करती हुई बोली, ‘क्या…सर…! लगता है आप अपनी उम्र को भूल गए। ज्यादा नहीं, कुछ तो फासला है ही हमारे और आपके बीच। वैसे भी मैं आपको लव-गुरु के रूप में नहीं, गुरुजी के रूप में देखती हूं।’
हरेन ने उसका कोई जवाब नहीं दिया लेकिन एहसास हुआ कि मल्लिका उपेक्षा-भाव के साथ पेश आ रही है। हरेन सोचने लगा कि उसे उम्र तो दिखाई दे गयी मगर प्रेम की आग दिखाई नहीं पड़ी। उम्र में भी कितना, ज्यादा से ज्यादा सात-आठ साल का फासला होगा। उस दिन हरेन सॉरी कहकर उसके सामने से हट गया लेकिन घर पहुंचकर आइने के सामने खड़ा होकर खुद को देर तक निहारता रहा कि उसमें कोई कमी तो नहीं आ गयी है। अपने गांव-गली और खेत-खलिहानों में ही नहीं, पढ़ाई के दौरान स्कूल-कॉलेज में भी हरेन के स्मार्टनेस का जादू चलता था। उसके साथी उसे दिलफेंक कहते थे। गांव में एक बार इसके छिछोरेपन के कारण बवाल भी हो गया था। हरेन को शक हुआ कि कहीं मल्लिका भी तो इसी रूप में नहीं देखने लगी है?
दूसरे दिन मल्लिका खिली-चमकीली मुस्कान को अपने साथ लिए कॉलेज आयी तो हरेन को उसके चेहरे पर समझौते का भाव चिपका हुआ-सा लगा। उसे तब खुद पर घमंड हो गया कि उसकी जवानी में घुन नहीं लगा है। मल्लिका के मन को परख लेने का उसका दावा मजबूत हो गया। हरेन मान बैठा कि मल्लिका अपना सब कुछ सौंपने आयी है। वह इस ख्याल में डूब गया कि उसने रात भर जागकर जरुर हम दोनों के बारे में सोचा होगा। आकाशवाणी सुनाई दी होगी कि प्रेम का प्रतिकार मत कर। एक बार वह हाथ से फिसल गया तो कुत्तों की तरह हाँफने के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा।
लेकिन हरेन…? हरेन ने भी तो रात भर जागकर मल्लिका के बारे में सोचा। उसे गलत नहीं पाया। ‘वह जब अपनी उम्र के साथ चलना चाहती है तो वह उसमें दखल डालने वाला कौन? हर किसी की अपनी इच्छा और पसंद होती है। जब इच्छा ही आपस में नहीं मिलेगी तो जीवन आगे कैसे बढ़ेगा?’ तभी हरेन की नजर पत्नी राधिका पर गयी जो उसे एकटक देखे जा रही थी। हरेन ने फैसला कर लिया कि मल्लिका से मोह का धागा तोड़ लेगा और माफी मांग कर अपनी याचना वापस मांग लेगा। राधिका ने हरेन की आंखों में नींद को न देखकर समझा कि शायद तबीयत खराब हो गयी है। उसने बहुत प्यार से सिर से पांव तक मालिश किया और अपनी सांसों से हरेन के ठंडे पड़े शरीर में गर्मी फूंकने की कोशिश की। तब हरेन उसे यह समझा पाने की स्थिति में नहीं था कि कल क्या होगा, कुछ पता नहीं लेकिन आज की रात उसे मल्लिका के साथ ही गुजारने दो। इस समय तन और मन में मल्लिका के अलावा कोई और नहीं है। पत्नी बिस्तर में साथ रही लेकिन हरेन खुद मल्लिका में डूबा रहा। उसी को दुलराता-सहलाता रहा। सुबह पत्नी के चेहरे पर जो संतोष का मुग्ध-भाव था, उसने क्या, हरेन ने भी शायद काफी समय बाद महसूस किया था। इसलिए वह देर से उठी और बिस्तर में पड़ी-पड़ी बार-बार अंगड़ाई लेती रही। तब हरेन के अंदर का भोलापन इस तरह जागा कि मल्लिका विषकन्या में बदलती हुई नजर आने लगी।
चेंबर में आते ही मल्लिका ने लचक के साथ कहा था, ‘सर, कल मुझसे कुछ गलती हो गयी।’ और फिर वह एकटक हरेन को देखने लगी। हरेन कहीं खो गया। उसके लिए तो यह खो जाना ही प्रेममय हो जाने जैसा था। उसकी ताजा मुस्कान ने हरेन को फिर पुरानी हवेली में लाकर पटक दिया। लगा आज वह अपनी भूल को सुधारती हुई कोई फैसला सुनाएगी। हो सकता है कि उसके हाथों पर अपने हाथ रखकर साथ जीने-मरने की कसम खाएगी। हरेन पशोपेश में पड़ गया कि वह अपना फैसला कैसे पलट पाएगा। मन को पलट ही रहा था कि मल्लिका झटके में चेम्बर से बाहर निकल गयी। प्रेम-याचना तो दूर कल के लिए क्षमा याचना भी नहीं की। हरेन तिलमिला उठा।
‘अगर गलती मान बैठी तो उसके आगे भी तो कुछ बोलना चाहिए था। आगे का वाक्य खा क्यों गयी? आज की लड़कियों का यही दोष है कि कोई भी बात पूरी नहीं करती है। जैसे व्हाट्सप के आधे-अधूरे मैसेज से मतलब निकालने का जिम्मा सामने वाले पर होता है, वैसे ही लड़कियां अपनी भाव-भंगिमा का अर्थ समझने का जिम्मा अपने चाहने वालों को सौंप देती हैं।’
उस दिन मल्लिका जो अचानक गायब हुई, फिर पता ही नहीं चला कि कहां गयी। हरेन उस ‘दिन’ को मुंह में रखकर रोज चबाता रहा। कभी मीठे तो कभी कड़वे का स्वाद लेता रहा। उसमें ख्वाहिशें भी देखता और नकार भी। आकार भी, निराकार भी। कुल मिलाकर जीवन स्वर्ग और नरक के बीच में अटक गया। न इस पार, न उस पार। न कोई फोन आया और न मैसेज। कालीदास तो था नहीं कि बादल के हाथों संवाद भेज देता। हरेन उसे भूल तो नहीं पाया लेकिन पुरानी किताब समझकर सेल्फ में सामने की तरफ डाल दिया। जब मन चाहेगा, देख लेगा।
तब के बाद आज लौटी है मल्लिका। यह कहना तो झूठ बोलने जैसा होगा कि उसके आने की हरेन को खुशी नहीं है। लेकिन उस खुशी को हरेन जाहिर नहीं करना चाहता क्योंकि मल्लिका को लगेगा कि वह उसका इंतजार कर रहा था। हरेन का मानना है कि लड़कियों के रूप का घमंड तोड़ना हो तो उसकी तरफ देखना बंद कर दो। उसकी चहचहाहट फीकी पड़ जाएगी। नजर फेर लेना एक बड़ी सजा है। हरेन ने मन ही मन तय कर लिया कि वह आज अपना बौड़म रूप दिखाएगा। लेकिन एक टीस हरेन को लगातार खाती रही। वह टीस थी उपेक्षा की। मल्लिका ने जिस तरह गलती मानी और बिना कुछ कहे चली गयी, वह उसके लिए पागल करने जैसा था। उस समय हरेन के भीतर क्या-क्या ख्याल आए थे, यह मल्लिका को कहां पता होगा? हरेन तो न जाने कितनी बार मरा और जिंदा हुआ। उस अपमान से तंग आकर हरेन ने सोच लिया, ‘उसे पीएचडी में खूब टहलाऊंगा। वाइवा तक उसे अपनी औकात बता दूंगा कि गाईड का मतलब क्या होता है। उसे न केवल अपनी शर्तों पर झुका कर मानूंगा बल्कि उसका इस्तेमाल भी करूंगा।’
लेकिन असलियत यह थी कि हरेन उसे अपनी हद से भी ज्यादा प्यार करता था। उस प्यार में जिस्म ज्यादा हावी है या दिल, इसका फैसला चाहकर भी वह कभी नहीं कर पाया। वैसे हरेन का भी यही मानना है प्यार का क्लाइमेक्स जिस्म होता है।
मल्लिका कुर्सी पर धंसी हुई थी। बिलकुलखामोश। उसने एक बार नजर उठाकर हरेन को देखा और फिर खिड़की के बाहर खो गयी। हरेन को लगा कि वह नाटक कर रही है। लेकिन उसके चेहरे पर बेचैनी साफ नजर आ रही है। साथ में पीड़ा भी। उसे देखते ही हरेन के मन में पैदा हुआ प्रतिशोध का भाव कमजोर हो गया। महसूस होने लगा कि इतने महीनों तक एकाएक गायब हो जाना जरुर किसी बड़े संकट का लक्षण है। हरेन के मन में बुरे-बुरे खयाल आने लगे, ‘कहीं मल्लिका का अपहरण तो नहीं हो गया था। अपहरण के बाद रेप हुआ होगा। रेप का सबूत मिटाने के लिए इसके मर्डर की भी कोशिश हुई होगी। अगर मर्डर हो जाता तो क्या होता…? हरेन को इस बात से राहत हुई कि मल्लिका के साथ चाहे जो भी कुछ हुआ हो, लेकिन वह जिंदा है और अपने अनमनेपन के बावजूद सामने मौजूद है। उसका हालचाल लेने के लिए हरेन परेशान था। लेकिन पूछ नहीं पा रहा था कि इतने दिन कहां गायब रही? सवाल यह था कि उससे पूछे तो कैसे?
‘अपहरण या रेप का मामला होगा तो मेरा पूछना उसे फिर से उसी दुनिया में भेज देगा। तब उसे याद आ जाएगी वही पुरानी यातना। तड़पने लगेगा उसका मन-प्राण। शरीर होने लगेगा क्षत-विक्षत। जिंदगी और मौत के बीच झूलती हुई सहायता के लिए पुकारने लगेगी हर किसी को। अगर जंगल हुआ तो उसकी आवाज लौट आएगी उसी के पास। कोई पुराना खंडहर होगा तो और भी डरावना माहौल में फंस जाएगी। अगर किसी कार या खाली बस में होगी तो मुंह में कपड़ा लूंस देने की अकबकाहट होने लगेगी।’
कुर्सी पर बैठे-बैठे हरेन की आंखें बंद होने लगी। सांसें थकी-थकी चलने लगी। माथे पर पसीना बलबला गया। उसने खुद को संभाला। मल्लिका उसकी स्थिति को कुछ हैरानी से देखती रही। लगा कोई प्रतिक्रिया देगी मगर चुप रही। तब हरेन का विश्वास और भी गहरा गया कि मल्लिका अभी भी सदमे में है। उसका मन ऊपर से नीचे तक दया-भाव से भर गया। हरेन ने अपने रुंआसेपन को किसी तरह ब्रेक मारकर रोके रखा। पता नहीं क्या सोचेगी? दिल ने कहा कि उसके नजदीक जाकर उसके सिर पर हाथ रखकर सांत्वना जताना चाहिए। लेकिन बुद्धि ने समझाया कि अभी नहीं। वह समझेगी कि फिर से प्रेम-जाल बुना जा रहा है।
दोनों ओर से भयावह तो नहीं लेकिन रहस्यमय चुप्पी थी। हरेन ने उस चुप्पी को तोड़ने की गरज से उसकी ओर पानी का ग्लास बढ़ा दिया। उसने चुपचाप गटागट पी भी लिया। लेकिन क्या मजाल कि उसकी जुबान से थैक्स का ‘थ’ भी निकले। यह हरेन को अच्छा नहीं लगा। उसके अंदर झल्लाहट आ गयी कि कैसी बदमिजाज लड़की है! तब वह एक पत्रिका में छपी एक प्रेम कहानी को उसकी आंखों के सामने से दिखाता हुआ पढ़ने का नाटक करने लगा। मल्लिका ने पहले उस पन्ने को और फिर हरेन को देखा और चिढ़ने जैसा मुंह बनाकर कहा, ‘प्रेम को जानने के लिए पढ़ना जरुरी होता है क्या? जो उस रास्ते से गुजरा है या गुजर रहा है, उसे देखने-समझने में दिलचस्पी क्यों नहीं होती? आप सब किताबी कीड़े बन गए हैं…।।’
हरेन विस्मय-भाव से उसे देख रहा था और मल्लिका उसे चुनौती दे रही थी। उसने एकाएक अधिकार भाव से बिना किसी भूमिका के पूछा, ‘क्या अंकुश के पीएचडी का सब्जेक्ट बदल सकता है?’ हरेन तो जैसे लगा कि पहाड़ से फिसल गया। ‘मैं इसके बारे में सोच रहा हूं और यह अंकुश को बीच में लेकर आ गयी? आखिर क्या हैसियत है उसकी। पिद्दी जैसा लड़का, जिसके मुंह से बोली नहीं निकलती है, वह कहां से इसकी जिंदगी में घुस गया? कॉलेज में कभी दोनों को एक-दूसरे से मिलते-जुलते हुए भी तो नहीं देखा था। ऐसा तो नहीं कि दोनों चोरी-चुपके गुल खिला रहे थे?’
हरेन के अंदर आग लग गयी। वह अपने जलते हुए शरीर को समेटते हुए सोचने लगा कि मल्लिका अपने सब्जेक्ट पर तो कोई बात ही नहीं कर रही है कि कितना काम आगे बढ़ा। बैठ गयी अंकश को लेकर। लेकिन हरेन के पास कुछ कहने के लिए था नहीं, सिवाय यह पूछने के कि उसका सब्जेक्ट क्या है और क्यों बदलना चाहता है? वैसे उसे अंकुश के गाईड के पास जाना चाहिए था। लेकिन मुश्किल यह है कि हरेन ही नहीं चाहता कि मल्लिका उनके पास जाए। डॉ. अनुराग हमेशा दूसरों की पसंद को हड़पने की फिराक में लगा रहता है। उसपर अगर मल्लिका जैसी हसीन लड़की हो तो डर कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए हरेन ने अपनी दिलचस्पी अंकुश में बनाए रखी ताकि मल्लिका की नजर में अपना जैसा बना रहे। हरेन जानता है कि मोह का धागा अगर टूट गया तो वह न तो इस पार रहेगा, न उस पार जा पाएगा। बीच मंझधार में उब-डूब करता रह जाएगा। यह धागा इस तरह जकड़ लेता है कि सुख को आने नहीं देता है और दुख को जाने से रोक देता है।
मल्लिका ने बताया कि अंकुश का सब्जेक्ट है- ‘प्रेम कहानियों में ऑनर किलिंग’। हरेन को यह विषय सुनकर ही पहले तो हंसी आयी और फिर हैरानी से कहा, ‘अंकुश जैसे अहिंसावादी ने ऐसा विषय क्यों चुना? वैसे भी वह जैनी है, जो मच्छर तक को मारना पाप समझता है, भले वह डेंगू और मलेरिया का ही क्यों न हो। यह अहिंसा नहीं, पाप जैसे काल्पनिक भाव का डर है। डरपोक कहीं का…!”
मल्लिका ने कोई जवाब नहीं दिया। बस घुटी-घुटी-सी हरेन को देखती रही। अगले ही पल हरेन के मन में एक शक कौंधा कि जैनी देखकर ही यह लड़की उससे तो नहीं सटी है ताकि उसके पैसे पर राज कर सके। वह अपनी ही कल्पना के घेरे में फंस गया और घृणा से भी भर गया। हरेन न जाने क्या-क्या सोचता जा रहा था जबकि मल्लिका की आंखों में बैठा निर्जन वन हरा-भरा होने का नाम नहीं ले रहा था। हरेन देर तक मल्लिका के विचलित चेहरे को देखता रहा। वह अंदर से हिल भी गया। उसके सिर पर हाथ रखकर अपनापन जताना चाहा लेकिन डर गया कि वह कहीं फिर बिदक न जाए। हालांकि मन में दबी हुई कुंठा जोर मार रही थी कि इसी बहाने उसके गाल-होंठ के स्पर्श कर ले। तभी उसे ख्याल आया कि उसकी पत्नी राधिका जब तनाव या गुस्से में होती है तो मधुर स्पर्श भी उसे बर्दाश्त नहीं होता। बिफर जाती है।
हरेन को यह बात तो समझ में आ गयी थी कि मल्लिका ने जिस दिन अपनी आंखों से उसे शादी शुदा रूप में देखा, उसी दिन वह अचानक बदलती नजर आयी थी। मल्लिका बिना बताए उसके घर चली गयी थी कछ किताबें लेने। चहक-चहक कर बातें कर रही थी। उसकी हंसी पूरे घर में गूंज रही थी। हर कोना उसके रूप की रोशनी से जगमगाने लगा था। हरेन भूल गया कि उस घर के किसी हिस्से में कोई और भी मौजूद है। दोनों एक-दूसरे का हाथ थामे सेल्फ में रखी किताबों को कम, एक-दूसरे को ज्यादा देख रहे थे। तभी ड्राइंग रूम में राधिका की इंट्री हो गयी। हरेन ने हडबडाकर अपना हाथ छडाया और दोनों का परिचय कराया। दोनों ठगे से रह गए। उसके बाद तो मल्लिका पर मानो पाला मार गया और राधिका बेचैन होकर टहलने लगी। ऐसा परिचय पहली बार देखने को मिला जब किसी के भी चेहरे पर कहने भर की भी मुस्कान नहीं थी। सबसे ज्यादा असहाय तो हरेन खुद हो गया था। दो सुंदरियों के बीच एक अकेला शिकार या शिकारी।
लेकिन इस वक्त, चार महीने बाद लौटी मल्लिका हरेन के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण थी। क्योंकि उसे पीएचडी कराना अनिवार्य था। उसे समझाने लगा कि समय दीवार पर लटकी हुई घड़ी नहीं है कि अपनी मर्जी से सुइयां घुमाकर आगे-पीछे कर दिया जाए। कर भी दें तो समय को रोक नहीं सकते, डिग्री का भी अपना समय, महत्त्व और रोमांच होता है।
बहुत टटोलने के बाद मल्लिका के मुंह से निरीह बोल फूटे, ‘अंकुश मुझसे दूर छूटा जा रहा है।’
हरेन धड़ाम से अपनी ही नजर में गिर पड़ा। उसके तन-बदन में हाहाकार मच गया कि अंकुश उससे बहुत आगे है। हरेन की हालत एक बौने जैसी हो गयी जिसकी दुनिया सर्कस भर होती है। मल्लिका का अंकुश में डूबना हरेन को बर्दाश्त नहीं हुआ। वह चोट खाए सांप की तरह फुफकार उठा, ‘वही अंकुश न! जो लड़कियों से दूर भागता था? वही जो दिन भर किताबों में डूबा रहता था? वही जो किसी से बात करना भी गवारा नहीं करता था? यह वही लड़का है न! जो शेखरः एक जीवनी पढाते समय मेरे अंदाज से नफरत करता था?’ हरेन ने चिढ़कर एक साथ कई सवाल दाग दिए। मल्लिका असहज होने के साथ-साथ संवाद-शून्य भी हो गयी। उसने अपनी कातर आंखों को हरेन की आंखों में डाल दिया। हरेन भी नि:शब्द स्थिति में आ गया। उसकी इस हरकत को समझ तो नहीं पाया लेकिन उसने इसे एक मौका के रूप में देखा कि वह अंकुश के सच का बयान मल्लिका के सामने कर दे।
हरेन को अच्छी तरह याद है कि एक बार अंकुश उसे कहने आया था, ‘सर, लड़कियां अपना काम निकालने के लिए आपका भरपूर इस्तेमाल करेंगी। उन्हें अपना काम कराना अच्छे से आता है। इस मामले में मैं बहुत सावधान रहता हूं। बहुत सारी लड़कियां नोट्स के लिए मेरे आगे-पीछे चक्कर लगाती हैं लेकिन मैं किसी के हाथ नहीं आता। यहां तक कि मल्लिका को भी धता बता दिया, जिसके एक इशारे पर आप सब कुर्बान होने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।’
हरेन समझने की कोशिश करने लगा कि मल्लिका के जीवन में अंकुश की जगह क्या है? उसके चारों तरफ अंधेरे का घेरा कसता जा रहा था। चेम्बर के बाहर हलचल मची हुई थी लेकिन हरेन उससे बेखबर-सा रहा। चपरासी दो बार झांककर गया। शायद क्लास के बारे में कहने आया होगा। हरेन फकीर-सा स्थिर और अनासक्त बैठा रहा जबकि अंदर तूफान मचा हुआ था।
‘यह जो अंकुश है, किस रास्ते से चलता हुआ तुम्हारे करीब आ गया?’ हरेन ने धीमी जुबान से जानने की कोशिश की तो मल्लिका आंखों के कोरों को भिंगाती हुई कहीं विलीन हो गयी। उसने हरेन को अपने पूरे दर्द के साथ देखा। एकबारगी हरेन सिहर गया। उसे राधिका के प्रेम का समय याद आ गया कि जब आप किसी के प्रेम में पड़ते हैं तो आपका अपना सेंस खत्म हो जाता है। फिर भी हरेन ने मौके की नजाकत का फायदा उठाते हुए फिल्मी अंदाज में उसके आंसू अपनी हथेली पर समेटता हुआ इमोशनल अंदाज में कहा, ‘इसे संभालकर अपने पास रख रहा हूं, जब जरुरत पड़े मांग लेना।’ हालांकि यह इस मौके का एक घटिया संवाद था लेकिन करता क्या? कहने के लिए कुछ मिल नहीं रहा था।
मल्लिका की आंखों में आश्वस्ति की हल्की-सी लकीर उभर आयी। हरेन को भी अच्छा लगा। अच्छा तो लगना ही था। एक युग से उसे नहीं देख पाना उसके लिए एक सजा जैसा था। यह सजा हरेन को दोहरे स्तर पर मिल रही थी। जब से राधिका ने मल्लिका को देखा, तब से उसके व्यवहार में बदलाव आ गया। मल्लिका के बारे में उड़ती हुई भी बात करता तो राधिका को धुंआ में आग नजर आने लगती। राधिका पुराने दिनों को लेकर बैठ जाती, जब दोनों कॉलेज में साथ पढ़ते थे। वह क्लास की सबसे खूबसूरत और तेज तर्रार लड़की थी और साहित्य को घोंटने में लगी रहती थी। उसके साथ दोस्ती के लिए हरेन ने क्या-क्या जतन नहीं किए। उसके घर तक पहुंचने के लिए कई मजेदार बहाने ढूंढे। आज सोचकर हंसी आने लगती है। दोनों की वह दोस्ती दबे पांव प्यार में स्थानांतरित हो गयी। राधि का को हरेन के प्यार में जुनून और और हरेन को राधिका की मोहब्बत में पवित्रता दिखाई दे गयी। राधिका अपने तन-मन के साथ हरेन तक आकर रुक गयी। उसने तब कहा था, ‘शादी के बाद मेरी लेखिका को तुम जिंदा रखना। अगर वह मर गयी तो समझो मैं मर गयी।’
हरेन ने राधिका को देर तक अपनी बाहों में समेटे रखा था। उस दिन हरेन ने कसम खायी थी कि ‘हम दोनों जिंदगी में साथ-साथ ही चलेंगे। न कोई एक कदम आगे होगा और न पीछे। हमारे सुख और दुख, दोनों साझा होंगे।’ राधिका ने भी उस दिन हरेन पर न केवल भरोसा किया बल्कि खुद को सौंप भी दिया। दरअसल राधिका भी जीवन में बहुत करना चाहती थी लेकिन शादी और पहला बच्चा तुरंत होने के कारण उसमें उलझ गयी। उसने अपने करीयर और सपने को दांव पर लगा दिया। उसकी दुनिया प्यार से शुरु हुई घर के चौखट पर जाकर ठहर गयी।
बहरहाल, मल्लिका की आंखों ने हरेन के अंदर उम्मीद का एक तिनका फेंका था। हरेन ने राधिका को मन के किसी तहखाने में रखकर मनुहारी फिल्मी लाईन मारी, ‘मल्लिका! तुम्हारी खूबसूरती पर उदासी अच्छी नहीं लगती है। इसे उतार फेंको न!’ हरेन को पक्का विश्वास था कि मल्लिका उसके बोल-वचन में बह जाएगी। वैसे भी औरतें अपनी तारीफ को बहुत हड़बड़ी में लेती हैं और अकेले में बिस्तर पर पांव फैलाते ही उसे याद कर निहाल होती रहती हैं। हरेन उसे देखने लगा तब मल्लिका ने कहा, ‘जिस दिन मैं आपकी पत्नी से मिली, मुझे देखने के साथ ही उसके चेहरे पर अचानक उदासी आ गयी थी। उसे हटाने के लिए आपने क्या किया, बता दीजिए। वही उपाय मैं भी कर लेती हूं।’ हरेन जैसे ही खामोशी में डूबा, मल्लिका ने फिर गामा पहलवान जैसा दांव आजमा दिया।
‘आप हिंदी के बड़े आलोचक हैं। आलोचक कहानी का शीर्षक देखकर उसकी आत्मा तक पहुंच जाते हैं। उसकी तरह-तरह से व्याख्या करने लगते हैं। नए-नए अजूबे अर्थ ले आते हैं, जो लेखक को भी लिखते हुए पता नहीं होता है। लेकिन ऐसी क्या बात है कि आप मेरी उदासी का अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं?…या आप शायद जान-बूझकर समझना नहीं चाहते हैं?’
मल्लिका ने हरेन की समझ को ललकारा था। हरेन के लिए यह चारों खाने चित्त होने जैसा था। लेकिन वह इतनी जल्दी हार कैसे मान लेता। शरीर की धूल झाड़ते हुए उसने भी अपना दांव खेला, ‘जिस अंकुश को ओढ़ी हुई हो, उसे उतार फेंको। वह आत्मलीन, कंठित और व्यक्तिवादी है। उसे अपने सिवा कभी कोई और दिखाई नहीं देता। मुझे नहीं पता कि तुम्हें उससे प्रेम है या उससे फ्लर्ट कर रही हो? अगर प्रेम करती हो तो यह तुम्हारे जीवन की बड़ी भूल है। तुम्हारी ही भाषा में कहूं तो वह किताबी कीड़ा है। वह प्रेम भी करेगा तो किताब पढ़कर ही जबकि प्रेम हृदय के स्तर पर पनपता है।’
मल्लिका फफक पडी। उसने हरेन का हाथ कसकर पकड़ लिया। वह देर तक भींगती रही और हरेन धैर्य के साथ उसके बालों में ऊंगलियां फिराता रहा। लेकिन उसकी सांसों से यह महसूस हो रहा था कि वह खुद पर नियंत्रण पाना चाह रही है जबकि हरेन चाहता था कि यह स्थिति बनी रहे। हरेन ने उस सीन को लंबा करने की गरज से पूछ लिया, ‘अंकुश ने कुछ गलत तो नहीं किया? उसने तुम्हारा अपहरण तो नहीं कर लिया था? आजकल अपने ही दोस्त ऐसा कुकांड करते हैं।’
हरेन के सवालों पर उसने झटके में उसका हाथ छोड़ दिया और उसके बालों में उलझी हरेन की ऊंगलियों को भी हटा दिया। हरेन अपनी पराजय को महसूस कर अंदर ही अंदर गुस्से से भर गया। सोचने लगा कि किसी का भला सोचने और करने का जमाना नहीं रहा। अगर यह खूबसूरत नहीं होती तो इसका गाईड बनना तो दूर, कभी इसे देखता तक नहीं।
हरेन के बदले हाव-भाव के बाद मल्लिका थोडी संभली थी।
उसने स्त्री-सुलभ कोमलता और अपनी पनियायी आंखों से हरेन की ओर देखा, ‘सर! इतना समझ लीजिए कि मैं आपकी खुशामद नहीं कर रही हूं। आप ही हैं, जिनकी आंखों में मुझे अपने लिए भरोसा नजर आता है। आपको कभी-कभी लगता होगा कि मैं आपसे नफरत से पेश आती हूं। वैसी बात नहीं है। नफरत को रखने के लिए मेरे पास जगह ही नहीं है। अगर थोड़ी देर के लिए नफरत के होने को मान भी लूं तो सर! नफरत भी किससे होती है? अपनों से ही तो…!’
कहकर मल्लिका ने अपना सिर पीछे कुर्सी पर टिका दिया। हरेन फिर से मल्लिका को समझने की कोशिश में उलझ गया कि यह अपने स्वार्थ के लिए तो कोई नयी चाल नहीं चल रही है। बहरहाल, हरेन ने उसके अंदर उतरने की सायास कोशिश की। फिर उसी के पत्ते से उसे काटने की चाल चलते हुए कहा, ‘तुम्हारे अंदर किसी के बारे में नफरत का भाव होगा, यह मेरे विश्वास के बहुत बाहर की बात है। लेकिन आज तुमसे एक आग्रह कर रहा हूं कि तुम अपनी जिंदगी के बारे में चाहो तो खुलकर मुझे बता सकती हो। शायद किसी काम आ जाऊं।’
हरेन के इस वाक्य ने मल्लिका को कुछ सुकून दिया। उसने भरोसे के साथ हरेन को देखा और बहुत सतर्क होकर कहा, ‘सर, मेरी जिंदगी अब मेरी नहीं है, अंकुश की है। लेकिन उसकी जिंदगी मुझसे दूर होती जा रही है। अंकुश मेरे नजदीक नहीं आ रहा है। उसके चेहरे पर खौफ है। वह लड़कियों को देखकर ही भागने लगता है। अपने कमरे में बंद हो जाता है। उसे डॉक्टरों से दिखाया गया। डॉक्टरों ने कहा कि यह केस साइकिक है। डिप्रेसन का मामला है। उसके भीतर कोई डर बैठ गया है। उसे निकालने के साथ-साथ प्यार देने की भी जरुरत है।’
मल्लिका की बात सुनकर हरेन अकबका गया। अंकुश पहले हरेन के ही अंडर में पीएचडी करने वाला था मगर डॉ. अनुराग को उसने गाईड बना लिया। याद आया हरेन को कि डॉ. अनुराग ने एक दिन अंकुश के बारे में कुछ उल्टी-सीधी बात बताई थी। हरेन ने ध्यान ही नहीं दिया था। तब दो महीने हो गए थे मल्लिका को देखे। उसी का पता-ठिकाना ढूंढने के लिए इधर-उधर भटक रहा था। बेशर्म होकर उसकी सहेलियों से भी पूछा था। मानुषी ने मजाक में इतना ही कहा, ‘चिड़िया उड़ गई सर, आप ताकते रह गए। यहां और भी बहुत सारी चिड़िया हैं, जिसपर ऊंगली रख दीजिए, वह आपकी।’ उसका यह मजाक हरेन को बहुत भद्दा और सस्ता लगा था। लेकिन अंदर से खुश भी हुआ कि मल्लिका के साथ जोड़कर उसे देखा तो जा रहा है।
लेकिन आज मल्लिका और अंकुश का नया चेहरा सामने आ गया। हरेन हैरान था कि दोनों एक-दूसरे की जरुरत कैसे बन गए? हरेन ने एक बार मल्लिका के बदले हुए रूप को जब देखना चाहा तो मल्लिका ने अपने सारे दर्द को हरेन की आंखों में डाल दिया। हरेन सकपका गया। वह समझ नहीं पाया कि मल्लिका के मन में क्या चल रहा है।
‘अंकुश ऑनर किलिंग की घटनाएं सुनते-पढ़ते इतना घबड़ा गया है कि हर किसी से डरने लगा है। उसे हर कोई हत्यारा नजर आने लगा है। लड़का-लड़की साथ-साथ हों तो उसे भागकर कहीं चले जाने के लिए कहने लगता है। मुझे सामने देखकर मुझसे लिपट कर रोने लगता है। खुद को और मुझे किसी भी कहानी के क्लाइमेक्स में ले आता है। चीख-चीख कर सबसे याचना करने लगता है कि मेरी जान ले लो लेकिन इसे मत मारो, यह मेरा प्यार है।’ मल्लिका बताती हुई रुआंसी हो गयी और हरेन फिर एक बार भटक गया।
‘कितना फर्क है अंकश और मेरे प्यार में? अंकश उस हाल में भी जीवन को प्रेममय करना चाह रहा है और मल्लिका के जीवन के लिए याचना कर रहा है। लेकिन मैं इसके जिस्म से बाहर नहीं निकल पा रहा हूं। अंकुश जैसा ही प्यार तो राधिका मुझसे करती है। जान छिड़कती है। मेरे भविष्य के लिए वह घर-परिवार का हर संकट आज भी अपने पर झेल लेती है। …लेकिन मै…?’
तभी टेबल पर रखे मल्लिका के मोबाइल पर घंटी बजी। हरेन फोन के स्क्रीन को देखकर हैरान हो गया और धडकन बंद होने जैसी नौबत आ गयी। फोन राधिका का था। मल्लिका ने हैलो कहने के साथ ही फोन की आवाज तेज कर दी। उधर से राधिका थैक्स कहते हुए रो पड़ी।
उसे चुप कराने के बाद मल्लिका ने कहा था, ‘यह सच है राधि का, मैं भी तुम्हारे कृष्ण की दीवानी हो गयी थी। तब मुझे पता नहीं था कि इनके घर में पहले से ही एक राधिका है, जिसमें राधा के अलावा रुकमिणी, कुब्जा, सत्यभामा, कालिंदी, सभी एक साथ मौजूद हैं। इनमें किसी को भी अपने कृष्ण से किसी तरह की शिकायत नहीं है। ऐसा प्रेम आज कौन करता है राधिका?’
उधर से कोई आवाज नहीं आ रही थी। लेकिन एहसास हो रहा था कि गहन चुप्पी में शोर का सैलाब बांध को तोड़कर बह जाने के लिए आकुल-व्याकुल है। हरेन मल्लिका से आंखें चुराकर इधर-उधर देखने लगा था। हरेन कुछ बोले, उससे पहले ही वह मौका दिए बिना राधिका को बताने लगी, ….हां, सुबह तुम्हें बताना भूल ही गयी कि मैं तुम्हारे घर पहली बार कोई किताब लेने नहीं, सर से अपने प्रेम का इजहार करने गयी थी। खुद को सौंपने गयी थी। परिवार से सहमति लेकर जीवन का फैसला सुनाने गयी थी। लेकिन तुम मिल गयी। मन ग्लानि से भर गया। विचलित हो गयी थी मैं। उस दिन तुम्हारे घर से लौटने के बाद से ही मैंने इनसे दूर रहने का निर्णय कर लिया था। लेकिन मेरी नियति देखो, जिस अंकुश से मेरा दूर-दूर का भी कोई रिश्ता नहीं बन पाया था, वह जीवन में एकाएक प्रवेश कर गया।’
बोलते-बोलते मल्लिका का गला रुंध गया। उसने एक हल्की चुप्पी के बाद कहा, ‘हां राधिका! जानती हो, मैं तुमसे पहली बार मिलकर और तुम्हारी उदासी को देखकर कहां गयी थी? मैं अपने पार्श्वनाथ मंदिर में भगवान से अपने लिए क्षमा मांगने और धन्यवाद करने चली गयी कि आज आपने एक साथ कई जीवन को बर्बाद होने से बचा लिया। देखो, गजब का संयोग कि वहीं अर्धविक्षिप्त हाल में अंकुश से मुलाकात हो गयी। पूरा परिवार उसके साथ सदमे में था। मां, बाबूजी, बहन, भाई… सबकी आंखों में आंसू थे। उसे मंत्रों और चंवर से नहलाने की कोशिश हो रही थी जबकि वह गाय की तरह खूटा तोड़कर भागने को बेताब था। चीख-चिल्ला रहा था। तभी उसने मुझे देखा। हैरान हुआ। उसके चेहरे पर हल्की-सी मुस्कान आ गयी। उसका परिवार आश्चर्य में पड़ गया…। उसके बाद की कथा लंबी है… लेकिन आज हालत यह है कि वह मझे एक भी पल छोडने को राजी नहीं है। आज इसलिए आयी थी ताकि तुम्हें तुम्हारे प्यार को लौटा सकू जो आज भी मेरे पीछे पागल है।’
मल्लिका ने फोन काटकर हरेन को उम्मीद के साथ देखा… और वह बाहर निकल गयी। हरेन अवसन्न हालत में पहुंच गया। मल्लिका को रोक भी नहीं पाया। कुछ देर बाद राधिका का फोन आ गया। हरेन ने पाप और अपराध-बोध के साथ फोन रिसीव किया। सोच लिया कि घर जाते ही राधि का से वह अपने किए के लिए क्षमा मांगेगा।… राधिका बहुत शांत और निर्विकार आवाज में मनुहार कर रही थी, ‘घर आ जाओ न! लंच हम साथ ही करेंगे… गुड़िया भी स्कूल से आ ही रही होगी… उसे तुम्हारे हाथ से खाना अच्छा लगता है… देर मत करना, हम इंतजार कर रहे हैं…।’ हरेन को लगा कि प्रार्थना पहले ही स्वीकार हो गयी, राधिका ने उसे क्षमा कर दिया. ..। बाहर सूखी कड़ी धूप थी और हरेन की आंखें बरसने के लिए उत्पात मचा रही थी…।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
