भूदान आंदोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे के पास एक मदिराप्रेमी आया और हाथ जोड़कर विनती करने लगा, “क्या करूँ महात्मन! यह मदिरा मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती। आप कोई उपाय बताएँ, जिससे मुझे इस लत से मुक्ति मिले।”
विनोबा भावे ने कुछ देर सोचा और फिर बोले, “अच्छा, तुम कल आना। लेकिन बाहर से ही आवाज देकर बुलाना, आ जाऊँगा।”
दूसरे दिन वह व्यक्ति विनोबा भावे के पास आया और बाहर से ही आवाज दी।
तभी भीतर से विनोबा भावे बोले, “यह खंभा मुझे पकड़े हुए है, मैं बाहर कैसे आऊँ?”
इतना सुन उस व्यक्ति ने आश्चर्यचकित हो भीतर झाँका तो देखा कि विनोबाजी स्वयं ही उस खंभे को पकड़े हुए थे। वह बोला, “महात्मन! खंभे को तो आप स्वयं पकड़े हुए हैं, जब आप छोड़ेंगे तभी तो खंभे से अलग होंगे!”
उसकी बात सुनकर विनोबाजी बोले, “यही तो मैं तुम्हें समझाना चाहता था कि मदिरा तो छूट सकती है, लेकिन तुम्हीं उसे छोड़ना नहीं चाहते। जब तुम मदिरा छोड़ दोगे तब मदिरा भी तुम्हें छोड़ देगी।”
उस दिन के बाद से उस व्यक्ति ने मदिरा को हाथ भी नहीं लगाया।
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