Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय की बात है-महर्षि कश्यप एक विशाल यज्ञ का आयोजन कर रहे थे । इस यज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए वे वरुण देव के पास गए और उनसे एक दिव्य गाय प्रदान करने की प्रार्थना की । मुनि का यज्ञ पूर्ण कराने के उद्देश्य से वरुणदेव ने कश्यप ऋषि को एक दिव्य गाय दे दी । इस यज्ञ में वसिष्ठ, पुलत्त्व, अत्रि आदि शीर्ष ऋषिगण और समस्त देवगण शामिल हुए । अनेक दिनों तक विधिपूर्वक यज्ञ चलता रहा । जब यज्ञ पूर्ण हो गया तब महर्षि कश्यप के हृदय में लोभ उत्पन्न हो गया और उन्होंने वरुणदेव को वह दिव्य गाय नहीं लौटाई ।
एक दिन वरुणदेव महर्षि कश्यप के सामने प्रकट हुए और उनसे हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोले – “हे ऋषिवर ! आप अपने यज्ञ के लिए स्वर्ग की एक दिव्य गाय लाए थे । उस यज्ञ को पूर्ण हुए अनेक दिन व्यतीत हो चुके हैं । इसलिए अब कृपया वह दिव्य गाय लौटाने का कष्ट करें ।”
कश्यप बोले – “वरुणदेव ! ब्राह्मण को दान में दी गई वस्तु कभी वापस नहीं माँगनी चाहिए । आपके लिए उस दिव्य गाय का कोई मूल्य नहीं है । उसे इस आश्रम में ही रहने दें । मैं उसकी उचित देखभाल करूँगा ।”
वरुणदेव ने महर्षि कश्यप को बहुत समझाने का प्रयास किया, किंतु वे गाय लौटाने को तैयार नहीं हुए । अंत में वरुणदेव ब्रह्माजी की शरण में गए और करुण स्वर में बोले – “ब्रह्मदेव ! कश्यप ऋषि अपने यज्ञ के लिए कुछ दिनों के लिए एक दिव्य गाय ले गए थे । अब जबकि उनका यज्ञ पूर्ण हो चुका है, तब भी वे गाय नहीं लौटाना चाहते । उसकी याद में बछड़े दु:खी होकर विलाप कर रहे हैं । इससे अन्य गाय-बछड़े भी दु:खी हैं ।”
वरुणदेव की बात सुनकर ब्रह्माजी कश्यप के आश्रम में गए और बोले – “कश्यप ! तुम अत्यंत बुद्धिमान हो । न्याय जानते हुए भी ऐसे कार्य में तुम्हारी प्रवृत्ति कैसे हो गई? लोभ बड़ा बलवान होता है । उसके बाहुपाश में फँसने वाला व्यक्ति नरकगामी होता है । इसलिए तुम लोभ का त्याग करके वरुण को उनकी दिव्य गाय लौटा दो ।”
जब बार-बार कहने पर भी जब महर्षि कश्यप गाय लौटाने को तैयार नहीं हुए, तब ब्रह्माजी क्रोधित होकर बोले -“लोभी कश्यप ! लोभ से स्नेह रखने के कारण तुम्हारे विचार भ्रष्ट हो गए हैं । मुनि होने के बाद भी तुमने लोभ का त्याग नहीं किया । एक गाय में तुम्हारे प्राण अटके हैं, इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम अपने अंश से पृथ्वी पर यदुकुल में जन्म लोगे । वहाँ तुम गोपाल (गऊ पालक) बनकर गाय-बछड़ों के बीच रहोगे ।”
शाप देकर ब्रह्माजी वहाँ से अन्तर्धान हो गए । उन्हीं के शाप के फलस्वरूप कश्यप मुनि पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के रूप में अवतरित हुए ।
ये कथा ‘पुराणों की कथाएं’ किताब से ली गई है, इसकी और कथाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Purano Ki Kathayen(पुराणों की कथाएं)
