Jataka Story in Hindi : एक बार जंगल मंे एक गीदड़ रहता था। उसे कई दिन तक खाने को कुछ नहीं मिला। वह भूख से बेचैन होकर यहाँ-वहाँ भटकने लगा पर कुछ नहीं पा सका। आखिर में निराश होकर वह एक पेड़ के नीचे जा बैठा।
तभी उसने देखा, बहुत सारे चूहे नाचते-गाते, एक पंक्ति बनाकर बिलों में जा रहे थे। उनका राजा सबसे आगे था। उन्हें एक साथ देख कर वह खुशी से उछल पड़ा। उसने सोचा-‘‘अब तो मैं जी भर के खा सकता हूँ। इनसे मेरे कई दिन के भोजन का इंतजाम हो जाएगा।’’
गीदड़ बड़ा चालाक था। उसने सोचा कि चूहों पर हमला करने से तो मुश्किल से एक ही चूहा पकड़ में आएगा। बाकी डर के मारे भाग जाएँगे इसलिए उसने एक योजना बनाई।
अगले दिन, वह सुबह-सुबह उनके बिलों के बाहर जा कर एक टाँग पर खड़ा हो गया। वह सूर्य की ओर मुँह करके तपस्या करने का दिखावा करने लगा।
चूहे बिलों से बाहर निकले तो उन्होंने गीदड़ को एक टाँग पर खड़ा देखा। चूहों के नेता ने पूछा- ‘‘श्रीमान गीदड़! आप एक टाँग पर क्यों खडे़ हैं?’’
गीदड़ ने शांति से कहा, ‘‘मैंने दुनिया की मोह-माया छोड़ दी और एक टाँग पर खड़े हो कर पापों का प्रायश्चित कर रहा हूँ।’’

चूहों के राजा ने फिर पूछा! आपने अपना मुँह क्यों खोल रखा है? ‘‘ओह! प्यारे चूहे, मैं केवल हवा खाकर जीता हूँ। इसके सिवा कुछ नहीं खाता।’’
सारे चूहे उसकी बातों में आ गए। उन्हें लगा कि इतने महान संत की पूजा करने से उनके पाप भी धुल जाएँगे।
हर सुबह, गीदड़ वहाँ एक टाँग पर खड़ा दिखता। चूहे बिलों से बाहर निकले पर सीधा आगे जाने की बजाए, एक-एक करके गीेदड़ के पाँव छूते। ज्यों ही आखिरी चूहा पाँव छूता, गीदड़ झट से उसे निगल लेता। बाकी चूहे कुछ भी नहीं जान पाते।

यही सिलसिला कुछ समय तक लगातार चलता रहा। गीदड़ को बिना किसी परेशानी के भोजन मिल रहा था।
एक दिन चूहों के राजा ने सोचा कि गीदड़ बिना कुछ खाए-पीए, इतना स्वस्थ कैसे दिखता था? उसने यह भी ध्यान दिया कि धीरे-धीरे चूहों की संख्या भी घट रही थी। उसने चूहों की सभा बुलाई व अपना डर प्रकट करते हुए कहा-‘‘मुझे तो यह गीदड़ धोखेबाज लगता है। कोई भी, सिर्फ हवा खा कर नहीं जी सकता। हमें इस दुष्ट गीदड़ के हाथों जान बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करना चाहिए।’’
सभा में तय हुआ कि अगली सुबह गीदड़ के पाँव छूते समय, चूहों का राजा आखिर में रहेगा। फिर सारे चूहे झाड़ी के पीछे छिप कर गीदड़ पर नजर रखेंगे।

अगली सुबह गीदड़, फिर से एक टाँग पर खड़ा था। चूहे उसके पाँव छू-छू कर झाड़ी के पीछे छिपने लगे। केवल राजा रह गया था।
ज्यों ही वह पाँव छूने झुका। गीदड़ ने उस पर झपट्टा मारा। इस बार राजा चौकस था। वह जोर से उछला व गीदड़ की गर्दन पर जा बैठा। उसने अपने तीखे दाँतों से उसे बुरी तरह काट खाया। गीदड़ बहुत जोर से चीखा।
दूर से तमाशा देख रहे चूहों ने भी उस पर धावा बोल दिया।

बुरी तरह से घायल गीदड़ जमीन पर गिर पड़ा। तभी वहाँ शिकार की तलाश में भटकता भूखा भेड़िया जा पहुँचा। गीदड़ को सामने देख, उसे मार कर खा गया।
चूहे भाग कर बिलों में जा छिपे थे। उन्होंने यह सब देख कर अपने राजा को धन्यवाद दिया। गीदड़ को अपनी दुष्टता का फल मिल गया था।
शिक्षा:- अपनी करनी का फल अवश्य भुगतना पड़ता है।

