jaisi karni vaisi bharni
jaisi karni vaisi bharni

भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

एक गाँव में दो भाई रहते थे। बड़ा भाई बहुत चतुर था और छोटा भाई बहुत भोला था। एक दिन दोनों भाई अपनी संपत्ति का बँटवारा करने के लिए राजी हो जाते हैं। बड़ा भाई अपने लिए अच्छा घर, अच्छा हल, अच्छी बैलगाड़ी तथा अच्छे-अच्छे सामान रख लेता है। छोटे भाई को टूटा हुआ हल, कमजोर घोड़ा, पुरानी बैलगाड़ी तथा टूटे हुए बरतन देकर भेज देता है। छोटा भाई जो कुछ भी मिला उसे ही अपना भाग्य समझकर पास में ही एक झोपड़ी बनाकर रहने लगता है।

एक दिन छोटे भाई की पत्नी बड़े भाई के घर उधार दाल माँगने के लिए जाती है। बड़े भाई की पत्नी गालियाँ देकर उसे खाली हाथ लौटाती है। छोटा भाई और उसकी पत्नी नाराज होकर झोपड़ी का सारा सामान बाहर निकालकर घोड़े को एक पेड़ के नीचे बाँधकर झोपड़ी को आग लगा देते हैं। झोपड़ी पूरी तरह से जल कर खाक हो जाती है। यह देखकर बड़ा भाई और उसकी पत्नी खुश होते हैं। छोटा भाई और उसकी पत्नी जली हुई झोपड़ी की राख को एक थैले में भर कर अपने घोड़े के पीठ पर लादकर चलते हैं। रास्ते में उन्हें एक व्यापारियों का समूह मिलता है। वे इन्हें देखकर पूछते हैं कि, “किस व्यापार के लिए जा रहे हो?” वह कहता है, “रत्नों का व्यापार करने जा रहा हूँ। वे भी अपने-आपको रत्नों के व्यापारी कहते हैं। इस तरह बात-चीत होने के बाद वे कहते हैं कि बहुत धूप है, यहीं खाना बनाकर खाकर धूप ढलने के बाद आगे चलते हैं। इस प्रकार सारे लोग खाने का सामान खरीदने के लिए जाते हैं और छोटा भाई घोड़ों की देखभाल करने के लिए वहीं रुक जाता है। सारे व्यापारी दूर चले जाते हैं और छोटा भाई अपना घोड़ा छोड़कर एक दूसरा घोड़ा लेकर अपने घर की ओर चला जाता है।

घर में आने के बाद अपनी पत्नी को बड़े भाई के घर से सेर लाने के लिए कहता है। छोटे भाई की पत्नी सेर माँगती है तो बड़े भाई की पत्नी को थोड़ा संकोच होता है और वह सेर के नीचे थोड़ा-सा मोम लगाकर देती है। छोटा भाई और उसकी पत्नी रत्नों को माप कर ढेर लगाते हैं। जब बड़े भाई को सेर वापिस लौटाते हैं तो सेर के नीचे लगे मोम पर कुछ रत्न चिपक जाते हैं। उन रत्नों को देखकर बड़ा भाई और उसकी पत्नी सोच में पड़ जाते हैं। छोटा भाई उन रत्नों को बेचकर बड़ा मकान बनवाता है, नौकर-चाकर रखता है और सुख-चैन का जीवन यापन करने लगता है। यह देखकर बडा भाई और उसकी पत्नी छोटे भाई के घर जाकर पूछते हैं कि तुम्हें वे रत्न कहाँ से मिले थे, कैसे उनको कमाया आदि प्रश्न करते हैं।

छोटा भाई अपने बड़े भाई और भाभी को सबक सिखाने की बात सोच कर कहता है, “मैंने मेरा घर जलाया। उसकी राख एक थैले में भरकर घोड़े पर लादकर एक बाजार में जाकर बैठकर उसको बेचने लगा तब लोगों ने बढ़चढ़कर उस राख को खरीद लिया। उसके एवज में रत्न देकर एक और थैला राख लाने के लिए कहा।” बडा भाई और उसकी पत्नी खुश हुए और अपने घर को जलाने का फैसला किया। अपने घर को बहुत ही खुशी से जलाते हैं, सारा घर जलकर खाक होने के बाद उसकी राख थैलों में भरकर घोड़े पर लादकर बाजार में बैठ जाते हैं और चीलला-चीललाकर कहते हैं, “राख ले लो भाई राख।” यह देखकर वहाँ के लोग कहते हैं, “तुम्हारी राख लेकर हम क्या करेंगे, क्या हमारे घरों में राख नहीं है?” कहकर उसे लात मारकर भगा देते हैं। यहाँ से जाने में ही भलाई है, समझकर वे दोनों भागकर अपने गाँव आकर एक झोपड़ी बनाकर रहने लगते हैं।

(मूल आधार : यह लोककथा ‘किलाड़ी अन्ना’ नाम से कन्नड़ में डी. के. राजेंद्र की पुस्तक ‘बेदरू गोम्बे मत्तू इतर जनपद कथेगलु’ में संकलित है। डॉ. साहेब हुसैन जहागीरदार ने इसका हिंदी में अनुवाद किया है)

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’