saiyan bhayo kotwal ab dar kaheka satirical story
saiyan bhayo kotwal ab dar kaheka satirical story

Hindi Vyangya: खिलंदड जी की समस्या बड़ी विकराल थी। लुकमान के पास जा कर इसके ईलाज की खोज के लिए समय चाहिए था।

अभी पौ फटी ही नहीं थी कि मित्र खिलंदड जी का मेरे घर बदहवाश हो आना हुआ। कुछ अनमने से ही सही, उनके स्वागत का नाटक करते मैंने पूछ ही लिया, ‘क्या हुआ भाई, बहुत घबराये हुए लग रहे हो, कुछ अनिष्ट हुआ क्या?’ खिलंदड जी छूटते ही बोले, ‘यार गजब हो गया। मेरे घर के पुराने स्वामी ने मूषकों को इतनी शह दे रखी थी कि उन्होंने धीरे-धीरे उनकी खा कर, उनके आशियाने को ही
खोखला करना शुरू कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि उन से मेरे द्वारा उनके घर को खरीद लिए जाने के बाद, मूषकों का तुष्टिकरण समाप्त हो गया। ऐसा करना मेरी नीति के विरुद्ध जाता था और वे मेरी चरण धूलि लेने वालों में से भी नहीं कहे जा सकते थे। इसलिए उनके क्रोध का शिकार मेरी झोपड़ को होना पड गया, वे मेरे साथ तो कोई खुरापात कर नहीं सकते थे न!’ मैं अपने भेजे को मथता रहा और समझ नहीं पा रहा था कि खिलंदड जी आखिर कौन सी
समस्या की बात कर रहे हैं?
मैंने पूछा, ‘मैं समझा नहीं भाई, यह मूषक और मूषक की बात कहां से आ गई और मूषकों को आपसे क्या शिकायत हो सकती है, जो आपके घर को कुतर खाने को आमाद हो गए?’ मेरी कौतूहलता और उनकी समस्या को न समझ पाने और न समझा पाने की खीज उनके मुख मंडल पर उभर आई,
बोले, ‘तुम बहुत नादान हो प्यारे लिक्खाड़। तुम्हारे पास इस विश्वास से आया था कि मेरीसमस्या का हल करोगे, लेकिन तुम केवल तुक्केबाज हो आज यही साबित हुआ। ओ भाई पूर्व में मूषकों को मिली आजादी और एकता की धौंस को मैंने उस घर पर अधिकार कर कुंद कर दिया था। परिणाम यह हुआ कि मेरे घर की नींव को ही आज कमजोर करने को पिल पड़े हैं। बहुत संभव है, वे अपने मकसद में कामयाब भी हो जाएं, कृपया मुझे कोई ऐसा धांसू उपाय बताओ कि सांप भी मर
जाए और लाठी भी न टूटे वाली कहावत चरितार्थ हो। मेरे घर के ‘मूषकों’ से, अपने घर की हिफाजत समय रहते कैसे की जाए। जब देखा कि यह तो मुझे ही तड़ीपार करने के लिए कमर कस चुके हैं तो सोचा तुम्हारे पास आऊं। मैंने उसके कान में कह दिया, ‘यह तो चुटकियों में हल हो जाएगा खिलंदड
भाई, बस…उन्हें ‘नर्क-वास’ की दवा खिला दो।’

यह सुन खिलंदड जी खुश होने की जगह बिफर गए, ‘क्या दिमाग का दही बनाते हो भाई। यह बोथरा उपाय तो मैं भी जानता हूं। यह करने से ‘एनिमल वेलफेयर कमिटी’ वालों का कानूनी चाबुक मुझ पर नहीं चलेगा, इसकी गारंटी कौन देगा? मैं अपने आशियाने के साथ भले ही दफन हो जाऊं,
उनकी बला से। किन्तु मूषकों की सलामती का मेरे घर का संसद भी समर्थक है, तभी तो सभी विरोध में कसीदे पढ़ते हैं कि ये अप संस्कृति के वाहक मूषक, उनके घर को दे, बाकि किसी और के आशियाने को ‘हरी- बोल’ कर पाताल के हवाले कर दे, कोई समस्या नहीं।’ उनका आक्रोश आगे भी
जारी था। ‘तुम्हें नहीं पता कि इन मूषकों के द्वारा किसी का घर ही नहीं बल्कि देश को कब्जा कर अपने नाम करने की समस्या के निदान को ले कर मेरे घर की संसद में माननीय कुछ सांसदों में ऐसा प्रतीत हो रहा है की खाद्य चक्र का निर्माण मेरे यानी, अध्यक्ष की स्वीकृति के बगैर ही कर ली है।

मैंने पहले को पाला। मेरे घर के सदस्यों के वोटों से और स्वान उपजे, फिर उनकी उदर पूजा और खिदमत के लिए ‘बिलाऊ मौसी को गाजे-बाजे के साथ आमंत्रित कर अपने पालने में पाल कर आश्रय दिया। लेकिन ‘बिलाऊ’, ने अपने उदर की शांति पाठ के लिए गुपचुप ‘मूषक’ को निमंत्रित किया, वह स्वयं फांका रह कर पहले उनको अपनी फसल लहलहाने को प्रेरित किया। किन्तु, घर
में अब इनकी संख्या इतनी हो गई है कि मूषकों ने बिलाऊ को ही अपनी संख्या के बल पर, खदेड़ना आरम्भ कर दिया। अब मेरे होश हवा महल से धरती पर उतर चुके थे। खिलंदड जी की समस्या बड़ी
विकराल थी। लुकमान के पास जा कर इसके ईलाज की खोज के लिए समय चाहिए था। मैंने, खिलंदड जी को चाय पिला कर विदा किया और न्यूज चैनल पर यह देख सुन चकित रह गया कि आज मूषकों ने जहां चाहा वहां खोदना शुरू कर दिया था। पता चला कि इनके हौसले को ऊंची मीनार के सहारे आसमान तक पहुंचाने में मेरे घर के ही कुछ अति महत्वाकांक्षी ‘स्वान’, बीड़ा उठाए हुए थे और इन्हीं के दम पर अब घर सम्हालने की मंशा पाले हुए हैं। ऐसे में, घर को धराशायी होने की आशंका से भला इंकार कैसे किया जा सकता है? अभी ही पता चला है कि खिलंदड जी के घर की संसद में घर में ‘मूषकों’ के रखने और न रखने को ले
कर समर्थन-विरोध की आंधी चल रही है और ‘मूषक’ कुछ अनिष्ट की आशंका से भयभीत न हो कर अपनी मूंछों में मलाई लगा कर ताव देते देखे जा रहे हैं। इसके पीछे यही विश्वास था कि ‘सैयां भयो कोतवाल- अब डर काहे का।’