इस रात की सुबह नहीं-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Iss Raat ki Subha Nahi

Hindi Story: “मम्मी ताऊजी नई कार लाये है”बेटे की खुशी से निकली चीख पर बड़ी रूखी प्रतिक्रिया दी नीला ने…
उसके पति और जेठ दोनों ही सफलता पूर्वक अपनी-अपनी दुकानों में ज्वैलर्स का काम करते थे, कारोबार भी ठीक चलता…
मगर बड़ा भाई अधिक सफ़ल था उसका कारोबार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा था।
ईर्ष्यालु नीला इस जुगाड़ में रहती की किस तरह उसके पति की आय सबसे ज्यादा रहे।
बराबरी में प्रवीण नीला उतने ही नौकर रखती जितने जेठ के यहाँ थे।
सब पुश्तैनी घर में रहते थे ,तो एक दूसरे के नफ़ा नुकसान की बात भी न छुप पाती थी।
नीला ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए परिवार के नियम के विरुद्ध जाते हुए दुकान पर भी बैठना शुरू कर दिया पति के साथ।
छोटे कस्बे में चर्चा भी तेज़ी से होने लगी उसके इस व्यवहार की और वह बेवजह पति के लिये जाने वाले निर्णयों में भी दखलंदाजी करने लगी।
एक दिन उसकी बहस से अपमानित महसूस कर क्रोधित पति ने उसे दुकान पर न बैठने को कह दिया।
नीला क्रोध में रोते हुए घर लौट आई,उसे उदास देखकर उसकी मुँह लगी नौकरानी से उससे बात पूछी और वजह जानकर एक परिचित तान्त्रिक से मिलने की सलाह दी।
नीला ने ऐसा ही किया,वह मिली जाकर और उसके बताये काम भी किये ,अब इसे संयोग कहें या किस्मत उसे परिणाम अच्छे मिले।
उसने नौकरानी को भी बड़े फ़ायदे पर ईनाम दिया,अब तांत्रिक पर उसका भरोसा सा बन गया था।
धीरे-धीरे घर मे नीला का शासन बढ़ने लगा और पति बच्चे बिल्कुल बेज़ुबान गाय की तरह उसका कहा मानने लगे।
जिस घर मे अजनबियों की मनाही थी,वहाँ अब उस तान्त्रिक का भी आवागमन बढ़ गया।
उसके पति अवनीश की भूमिका नगण्य रह गयी।

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अन्य घरवालों ने विरोध किया नीला की ऐसी मनमानियों का ,तो उन्हें भी उसका रूखा बर्ताव सहना पड़ा।
यह बातें इतनी बढ़ने लगीं कि घरवालों से भी लोग प्रश्न करने लग गये।उसके जेठ ने उसे समझाते हुए कहा…
“बेटा हमारी इज़्ज़त है समाज है,चार लोग घर की बहू को ऊटपटांग कहें अच्छा नहीँ लगता”।
“मैं अपने पोर्शन में बुलाती हूँ,जिसको बुरा लगे वह मुझसे मतलब न रखे, वरना …”नीला ने चेतावनी देते हुए कहा
उसकी हेकड़ी देख उसका जेठ अनिरुद्ध ,”विनाश काले विपरीत बुद्धि ” कहकर अपने कमरे में चला गया।
इधर नीला अब और स्वच्छंद हो गयी,धीरे धीरे वह उस तांत्रिक के अलावा अन्य लोगों के भी सम्पर्क में आने लगी।
अब वह उसका मानो दाहिना हाथ बन चुकी थी ,जो वह चाहता ,अवनीश के घर मे वही किया जाता ।
इसमें भय का हाथ कम नीला की मर्ज़ी अधिक होती थी।
उसे जितनी बराबरी की सनक सी चढ़ती जा रही थी ,उतनी तेजी से ही जेठ का कारोबार बढ़ता जा रहा था।
अब वह अपने घर से बाहर दूर दूर के लोगों के सम्पर्क में भी रहने लगी।पति और बेटे अपने हाथों से बनाते खाते।
घर पहले ही उसके आलस्य ,और पूजा अनुष्ठानों के चलते नौकरों के भरोसे रहता था,अब वह भी बर्बादी की ओर बढ़ने लगा।
पहले वह कई दिनों बाहर रहती थी,अब वह समय हफ़्ते में होने लगा।अवनीश ने समझाने का बहुत प्रयास किया पर उसने एक न सुनी…
उसने छोटे बेटों की भी बढ़ती उम्र और पढ़ाई का हवाला दिया ,यहाँ तक कि अपना सिर उसके पैरों पर रख दिया ….रोते हुए बोला ,
“बच्चे और घर बर्बाद हो रहे हैं,मैं और बच्चे होटल से खाना ले कर खाते हैं।अब तो कोई नौकरानी भी नहीं राजी होती इधर काम के लिये”
ये ढ़ोंगी किसी के भी सगे नहीं होते,मान जाओ वरना किसी दिन बड़ा पछताओगी…
नीला उसे परे हटाकर अपना पर्स उठाये बाहर चली गयी।यूँ भी उसे घर गृहस्थी से मतलब कम ही रहता था
धीरे- धीरे उस तान्त्रिक को कई सूत्रों से यह भी पता चल गया कि नीला उसके साथ साथ अन्य तान्त्रिकों के भी सम्पर्क में है।
उसे ख़ुद के महत्वहीन समझे जाने पर बड़ा क्रोध आया..यूँ भी उसकी नज़र पहले ही उसके धन के साथ तन मन पर भी थी
“उसने नीला से बड़े कोमल स्वर में कहा,मैं तुम्हें अपनी भैरवी बनाना चाहता हूँ…”
नीला के पैरों तले ज़मीन खिसक गई, ये सुनते ही..
उसने शीघ्रता से इनकार कर दिया..और तेज़ी से पर्स उठाकर अपने घर की ओर चल दी
हुँह शक्ल देखी है आईने में ,कहाँ मेरा सुदर्शन पति और कहाँ यह विद्रूप व्यक्ति ..
उसे पति की बात याद आई कि ये मायाजाल है,हम समाज मे रहने वाले लोग हैं,ये लोग अपनी औक़ात दिखा ही देते है…
सोचते सोचते उसके सिर में भयंकर दर्द उठा और वह सड़क पर ही गिर गयी,स्थानीय लोगों ने उसे सहायता देते हुए उठाया।
पहचानते भी थे सो उसे घर जाने के लिये रिक्शे में बिठा दिया।
घर पहुँची तो तान्त्रिक को घर में बैठा हुआ पाया,उसने क्रोधित होकर उसे भाग जाने को कहा,
परिणाम भोगने की चेतावनी देते हुए ।
वह बिस्तर पर गिर पड़ी सुबह जब उसकी आँख खुली तो अपने होश में न थी।
जाने से पहले वो न जाने क्या कर गया था ,कि उसके लगाये निशान अथक प्रयास के बाद भी उभर ही आते थे।
कुछ दिनों बाद मानसिक रूप से अर्धविक्षिप्त ख़ुद नीला घर छोड़कर चली गयी,महीनों बाद वह किसी एकाकी अधेड़ व्यक्ति के घर में लिव इन मे रहती हुई पाई गई।
अब तक उसकी काफ़ी बदनामी भी फैल चुकी थी,अवनीश और उसका परिवार , उसे अब घर मे रखने को तैयार न था।
कभी उस परिवार को सम्मान से देखने वाले मुँह पर हँसते कि उससे पत्नी न सँभाली गयी।
किशोरावस्था से गुज़रता बड़ा बेटा यह सामाजिक और मानसिक दबाव न झेल सका और एक दिन घर छोड़कर न जाने कहाँ चला गया। टूट चुका अवनीश भी शराब का शिकार बन गया।
उसकी दुकान अब आये दिन बन्द रहती ,वह और दो नॉन छोटे बेटे घरवालों की दया पर ही आश्रित थे।
अच्छे विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे न जाने कब सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे।नीला का घर अब पूरी तरह उजड़ चुका था।
महीनों बाद जब नीला को होश आया तो मायाजाल के साथ उसका संसार ख़त्म हो चुका था।
कभी सम्पन्न और सम्मानित घर की बहू अब स्टेशन पर भीख माँगती देखी जाने लगी।