Hindi Kahani: कई दिनों से मनीष बाबू के इकलौते चिराग मेघ कमरे से लगातार खटर-पटर की आवाजें आ रही थी।
कभी जोर जोर से बहसबाजी की आवाज आती तो कभी फुसफुसाने की।
फिर कभी हो जाता नील बटा सन्नाटा!
मनीष बाबू को किसी खतरे का अंदेशा था।
कई दिनों से वह महसूस कर रहे थे कि उनका जोरु का गुलाम बेटा यानी उनका इकलौता चिराग मेघ और उसकी नई-नवेली दुल्हन बिजली के बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है।
दबे स्वर में उन्होंने की बार कहा भी था कि कहीं बाहर से घूम आओ।
मगर न वे दोनों सुनने वाले थे और ना ही खुद की उनकी पत्नी नैना।
“आपने कितना मुझे घुमाया फिराया और मेरे गुस्से का ख्याल रखा।
ऐसा क्या है इस कल की छोकरी में जो आप उसका इतना पक्ष ले रहे हैं?”नैना ने अपने नैनों की भृकुटी टेढ़ी करते हुए पूछा तो मनीष बाबू की घिग्घी बंध गई।
उन्होंने हकलाते हुए बोला
“वो,,, अब जमाना बदल गया है ना! और फिर घर के झगड़ों से पड़ोसियों के चैन क्यों बढ़ाना?
और हम तो घूमते फिरते ही थे…!”
“हां हां घूमते थे फिरते थे! कहां जाते थे हम? बहुत तो सालभर में एक बार मायके भेज देते थे वो भी मुश्किल से एकाध हफ्ते के लिए! घूमते थे हुंह!”नैना के तेवर देखते ही मनीष बाबू ने हथियार डाल दिए और चुप्पी साध ली थी।
लेकिन मामला संगीन होता जा रहा था।
मेघ के कमरे से आए दिन आवाज आती रहती थी, कभी सुबह और कभी देर रात तक।
फिर दूसरे दिन मेघ का मुंह फूला हुआ होता। वह उसी तरह से आफिस चला जाता और बिजली लाल सूजी आंखें लेकर अपने कमरे में पड़ी रहती।
मनीष बाबू कानों में तकिया लगाए करवटें बदलते रहते और बुदबुदाते रहते।
“तीन महीने भी नहीं हुए हैं शादी को न जाने क्या आफत आन पड़ा है।अभी तक तो मुहब्बत सिर उठाये हुई थी!
उनका शहजादा सलीम तो अपनी अनारकली के लिए दिल बिछाए बैठा था।
बहुत ही शान से अपने इश्क की तलवार लहराकर अपने मुहब्बत का इजहार किया था मेघ ने ऐसे, जैसे कोई बम विस्फोट कर दिया हो
“मैंने अपने लिए लड़की ढूंढ लिया है। आप लोगों को परेशान होने की जरूरत नहीं है।”
‘हैंऽऽ! यह क्या कह रहा है तू मेघ? तूने लड़की पसंद कर लिया है?” नैना ने गुस्से में पूछा।
“हां।”मेघ के सपाट जवाब सुनकर मनीष बाबू सहम गए।
नैना के नैनों का सामना करने की उनकी हिम्मत नहीं थी,उसपर उनका बेटा न सिर्फ नैना के नैनों का सामना भी कर रहा था बल्कि निडरता से प्रतिवाद भी कर रहा था।
नैना की भृकुटी देखकर मेघ ने बचाव के लिए मनीष बाबू का सहारा लिया
“पापा! मां को समझाइए ना!”
“मगर समझाना क्या है यह तो पता चले? तुमने अपने लिए लड़की पसंद कर लिया है?”
“हां पापा!”
“कौन है वो खुशनसीब?”मनीष बाबू ने अपने चश्मे के पीछे से झांकते हुए पूछा।
मेरी दोस्त है बिजली, स्कूल टाइम से मेरी दोस्त है।”
“क्या बात है स्कूल टाइम से!!!तब से तुम दोनों का चक्कर चल रहा है?
तुम दोनों ने तब ही डिसाइड कर लिया था कि..!”मनीष बाबू ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
“नहीं पापा,तब से नहीं। अब जाकर हम दोनों को लगा कि वी आर परफेक्ट सोलमेट!”
“ओह परफेक्ट सोलमेट! मनीष बाबू अंग्रेजी के इस कठिन शब्द की गहराई को समझने की कोशिश करते हुए बोले।
अगर तुम दोनों परफेक्ट सोलमेट हो तो फिर हमको कुछ भी न कहना।”
“यह आप क्या कह रहे हैं जी?यह कोई बात हुई। रिश्ते, नाते, समाज, बिरादरी सब जगह हमारी ही जगहंसाई होगी। लोग क्या कहेंगे?”नैना गुर्राई।
“कह देना बोथ आर परफेक्ट सोलमेट!”
“हुंह आपको तो समझाना ही बेकार है।”नैना बड़बड़ाती रही।
अपने कानों में रुई डाल मनीष बाबू गुनगुना उठे
“इधर मेघ गरजा और उधर बिजली गिरी! बिजली की तलवार चली तो मेघ गरजा फूं फूं!”
नैना के कहने पर उन्होंने उसे कई बार समझाने की नाकाम कोशिश की
“बेटा, मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। एक बार सोच लो फिर से।”
लेकिन मेघ था कि अड़ गया था कि शादी करेगा तो बिजली से ही।
और फिर जीत हुई शहजादे सलीम की। अनारकली ने आमीन कह इस शादी को कबूल कर लिया था।
“ मगर वह तो नाॅन वेजिटेरियन है!नैना ने एक और रोड़ा अटकाया, इस घर में नानवेज नहीं चलेगा।”
“अरे कभी नहीं मां। इस घर में क्या। उसने कहा है कि वह नानवेज को हाथ तक नहीं लगाएगी।”
“हम्म!” बहुत ही शर्तों के साथ नैना ने शादी की रजामंदी दे दी थी।
जिसका परिणाम यह हुआ कि बिजली मनीष बाबू के घर की बहू बनकर आ गई थी।
रसोई की रस्म निभाते ही नैना ने अपनी बहू को अच्छी तरह से समझा दिया था
“बहू, इस घर में कभी भी निरामिष भोजन नहीं बनेगा और न ही कोई खाएगा।”
“हां में सिर हिलाते हुए बिजली ने एक योग्य बहू की तरह अपनी सासु मां को वचन दिया था।
लेकिन कुछ ही हफ्ते गुजरे थे कि एक सड़ी हुई सी बास मनीष बाबू के नथुनों में टकराई।
“यह तो मच्छी की गंध है! हे राम अब पहले तो जात गई और अब धर्म भी!ये क्या देखना पड़ रहा है?”
लेकिन स्वभाव से मैत्री भाव रखने वाले मनीष बाबू ने नैना से कोई शिकायत नहीं की बल्कि अपने नाक पर रूमाल लगाए वह मेघ के कमरे से लेकर बाहर दरवाजे तक चक्कर काटते रहे कि कहीं सत्संग में गई हुई नैना को भुनी मच्छी का गंध न मिल जाए।
उसपर मेघ की धीमी आवाज! वह धीरे-धीरे फुसफुसाते हुए कहा रहा था
“मां सत्संग में गई है। तुम्हारा फैवरेट रोस्टेड फिश कटलेट लाया हूं।जल्दी जल्दी खा लो !”
“मच्छी!!राम राम! क्या हो गया है आज के बच्चों को।न घर की इज्जत न नियम धर्म!”
मन ही मन मछली के गंध से बेचैन हो रहे मनीष बाबू ने अपने आप से चिढ़ कर कहा जोरू का गुलाम हो गया है मेघ।”
यह अब अक्सर ही होने लगा था। मेघ कभी चिकन, कभी मछली, कभी अंडा लेकर घर आने लगा था।
मनीष बाबू बिजली और मेघ दोनों को नैना के नैनों की आग से बचाने की कोशिश में लगे रहते।
शुरू से शुद्ध शाकाहारी मनीष बाबू को बिजली का रसोई में जाना भी खल जाता।
रात में रोटियां सेंकने के लिए बिजली को खुद ही मना कर देते
“नैना, मुझे तो तुम्हारे हाथ की रोटियां अच्छी लगती है। करारी करारी,गर्म गर्म!”
नैना भुनभुनाकर रह जाती।
“ऐसा क्या है! बुढ़ापा में आराम तक करने नहीं देते आप ?”
“अरे आराम ही आराम है। बस खाना तुम ही बनाया करो। तुम्हारे खाने में जो जान है ना वह कुछ और चीज में नहीं।”मनीष बाबू मक्खन लगाते तो नैना भी खुश हो जाती।
लेकिन कब तक? आखिर वह सास थी।बहू आराम करे और सास काम यह नहीं हो सकता था।
उन्होंने सीधे से मेघ को समझा दिया था कि दिन का भोजन बिजली बनाएगी और रात का वो।
नैना जी ने बड़ी चालाकी से बहू और अपने काम बांट लिया था।
अब वह दिन में मूवी देखने के बहाने काम का बहाना नहीं बना सकती थी।
क्योंकि दिन के समय मेघ आफिस में ही रहता था।
और उसपर भोली-भाली नैना जी शाम की सब्जी भी अधिक बनवा लिया करतीं ताकि रात में काम सिर्फ रोटियां सेंकनी रहे।
कुछ दिन तक तो सब ठीक चला लेकिन अब बिजली को काम धाम, खाना सब अखरने लगा था।
उसपर सासु मां व्यंग बाण छोड़कर उसका मन आहत कर दिया करतीं थीं।
“आज सब्जी ठीक नहीं बनी! चाय में पत्ती सही से नहीं डाली! तुम्हारी मां ने यह नहीं सिखाया, वह नहीं सिखाया!”
नैना जी सास थीं तो सास होने के बेसिक गुणों को फॉलो कर रही थीं।
और बिजली अपने आप को बहू साबित करने के लिए हाथ पैर मार रही थी।
वह लगातार मेघ को दूसरे शहर में नौकरी ट्रांसफर करने के लिए बोल रही थी लेकिन मेघ था कि सुन नहीं रहा था।
वह टालता जा रहा था।
“ट्रांसफर इतना आसान नहीं होता बिजली!”
“तुम बदलते जा रहे हो मेघ! शादी से पहले जो तुमने वादा किया था , वह तो तुम पूरा नहीं कर पा रहे हो ?”
“क्या पूरा नहीं कर रहा हूं?ट्रांसफर मेरे हाथ में थोड़े ही है।
तुम इतनी तल्खी से मुझसे कैसे बात कर सकते हो?”
“ कहां तल्खी से बात कर रहा हूं मैं ?”
“और क्या कर रहे हो? पहले कितना प्यार से मुझसे बात करते थे और अब देखो शादी करते ही बदल गए !”
“क्या बदल गया मैं,तुम बदल गई हो! पता नहीं तुम्हारे अंदर क्या है? पहले बड़ी-बड़ी बातें किया करती थी, प्यार के दावे किया करती थी।
अब देखो कैसे जिद कर रही हो बच्चों जैसी?”
“मैं बच्ची नजर आ रही हूं तुम्हें? अभी बताती हूं!”
बिजली ने अपना आपा खो दिया।बिजली की फुर्ती दिखाते हुए नीचे झुकी और अपनी नई सैंडिल उठा कर मेघ के मुंह पर दे मारी।
“आssssह! मेरी नाक!” पल भर में मेघ
अपनी नाक लिए जमीन पर बैठ गया।
बिजली का निशाना सही लगा था।मेघ के पसीने छूट गए थे।
आवाज सुनकर मनीष बाबू कमरे की तरफ दौड़ पड़े।
“क्या हुआ मेघ?”
उन्होंने देखा मेघ नाक पकड़कर बैठा है।
“क्या हुआ बेटा?”
“पापा, ये बिजली स्टूपिड ने हाsssय !”
मेघ से बोला भी नहीं जा रहा था।
“मैं इस लड़की के साथ नहीं रह सकता । मुझे डायवोर्स चाहिए।
आज ही मैं वकील से बात कर लेता हूं।”गुस्से में पैर पटकते हुए मेघ ने अपनी नाक संभालते हुए कहा
हाय मेरी नाक!”
मनीष बाबू धीरे से मुस्कुरा उठे
“शहजादे सलीम, अनारकली माडर्न है। तुम भी वो असली शहजादे नहीं!
अभी शादी को जुम्मा जुम्मा दिन बीते हैं और परफेक्ट सोलमेट की आत्मा जुदा हो गईं।
ये इश्क नहीं आसान इस जहां में ग़ालिब!”
