ऐ हुस्नपरी! तुमने तो देखा ही होगा, लोग मुझे कितना प्यार करते हैं? स्त्रियां मेरी उपासिका हैं। क्या मैं तुमसे भी ऐसी ही उम्मीद करूं?
मेरे चेहरे पर एक तीखी मुस्कान खेल गई, फिर मैं बोली, ‘क्यों नहीं!’
उसे यह कहां पता था, कि वह किससे बात कर रहा है और किसे अपने आश्रम में लेकर जा रहा है?
मैं मन ही मन सोचने लगी, ‘तुमने अपने साथ उस हुस्नपरी को ले लिया है बाबा! जो तुम्हें अपनी हुस्न की गर्मी से जला डालेगी! अगर तुम सचमुच ही भ्रष्ट निकले तो समझो, तुम गए।’
मैं यह सब सोच ही रही थी, तभी गाड़ी एक भव्य और शानदार महलनुमा कोठी के गेट के सामने आ खड़ी हुई। मैं बुदबुदाई, ‘शायद आश्रम आ गया!’
इतने में उस महात्मा ने ड्राइवर को आदेश दिया, ‘इस कन्या को गेस्टरूम में छोड़ आओ।’
मैं महात्मा को प्रणाम कर ड्राइवर के साथ आश्रम के अंदर आ गई। अंदर दीवारों पर बड़ी ही खूबसूरत और मोहक नक्काशी की गई थी। वह आश्रम कम और राजमहल ज्यादा नजर आ रहा था। ड्राइवर एक हॉलनुमा कमरे के दरवाजे की ओर इशारा करते हुए बोला, ‘आप उस कमरे में जाकर आराम कीजिए।’
जब मैं अंदर पहुंची तो सहसा ही व सहम गई, क्योंकि वहां दस-बारह खूबसूरत क युवतियां बड़ी ही विचित्र मुद्रा में बैठी हुई ल थीं। मुझे देखकर उन सबके चेहरों पर आश्चर्य के भाव पैदा हो गए थे। मेरे कुछ बोलने से पहले ही वे सब एक स्वर से या बोल पड़ी, ‘एक और हलाल होने के लिए आ गई।’
मैं कुछ समझ न सकी और उनकी से ओर देखते हुए बोली, ‘क्या मतलब?’
‘तुम बहुत ही भोली हो, बहन! इस महात्मा के चंगुल में कैसे फंस गई? हम सबको इसने वेश्या बनाकर छोड़ दिया है।’
‘मैं कुछ समझी नहीं?’ मेरे मुंह से अनायास ही निकल गया।
‘इस आश्रम में महात्मा के अमीर शिष्यों के बिगडैल लड़के और सुरा व सुंदरी के आशिक मंत्री तथा उद्योगपति आते हैं और हमारे साथ रंगरेलियां मनाकर चले जाते हैं। हम जाएं भी तो कहां जाएं? हम सब मजबूरियों की मारी हुई है।’
‘मैं सोचने लगी, ‘जैसे मैं बेघर हूं, मेरे मां-बाप जैसे अपने लिए जी रहे हैं, वैसे ही इन सब के माता-पिता भी होंगे, लेकिन मैं इन सबकी तरह अबला नहीं हूं। पुरुषों से खेलना तो मेरा शौक है।’
तभी किसी गाड़ी का हार्न सुनकर मैं अचानक ही चौंक पड़ी। यह हार्न मेन गेट की ओर से आ रहा था। इतने में महात्मा का एक शिष्य आकर बोला, ‘जो नई लड़की आई है, महात्मा जी उसे मिनिस्टर साहब से मिलवाना चाहते हैं।’
‘हां-हां, चलो! मैं आ रही हूं।’ मेरे यह कहते ही वह शिष्य चला गया।
अब मैं गंभीर होते हुए बोली, ‘तुममें से किसी के पास भी कोई ऐसा हथियार नहीं है, जो तुम सबको आजाद करवा सके? डरो मत, डरने से किसी भी समस्या का समाधान नहीं होता। देखो, मेरी जिंदगी कुछ अजीब सी है। मैं पुरुषों की बांहों में डोलते हुए ही जवान हुई हूं। मुझे अपनी आबरू से कोई रिश्ता नहीं रह गया है। अगर कोई स्त्री या पुरुष स्वेच्छा से एक या अधिक व्यक्तियों से यौन-व्यवहार करे तो मैं उसे बुरा नहीं मानती, क्योंकि इसके पीछे उनकी कोई न कोई मजबूरी होती है, लेकिन जहां यौन-व्यवहार मनमाने ढंग से, जोर-जबर्दस्ती किया जा रहा हो तो मैं उसे अच्छा नहीं मानती हूं। वह मेरी नजर में अपराध है। महात्मा और उसके शिष्यों ने तम सबके साथ बलात्कार किया है। यह जर्म है। मैं उन्हें छोडंगी नहीं।’ मेरे यह कहते ही सभी मेरे साथ हो गई और जिसे जो हाथ लगा लेकर हॉल से बाहर निकल गई। मेरे हाथ में भी एक लोहे का सरिया था।
वह महात्मा मेरे पीछे उन युवतियों को देखकर घबरा गया और वह मिनिस्टर अपने सूखे होंठों पर जीभ फेरने लगा। मिनिस्टर के साथ उसके सुरक्षा कर्मी भी नहीं थे, क्योंकि वह तो यहां रंगरेलियां मनाने आया था। मैंने गरजती आवाज में कहा, ‘अब देख क्या रही हो? ऐसा मौका बार-बार नहीं आता।’ यह कहते हुए मैंने महात्मा के सिर पर सरिया से वार कर दिया, फिर मैं मिनिस्टर को अंधा-धुंध पीटने लगी। मेरे हाथ उठाते ही वे सब भी उन पर टूट पड़ी। तभी मिनिस्टर के पेट में मेरा सरिया घुस गया। मैंने जोर लगाकर सरिया खींचा और महात्मा के पेट में घुसेड़ दिया। खून के बुलबुले से फूट पड़े।
उन्हें भागने या संभलने का मौका भी हमने नहीं दिया था। तब तक आश्रम के कर्मचारियों ने फोन कर पुलिस को बुला लिया। मेरे चेहरे पर जरा-भी अफसोस या भय के भाव नहीं थे। मैंने जो कुछ भी किया था, ठीक ही किया था। कानून उन्हें कभी भी सजा नहीं दे पता, क्योंकि उसे गवाह और सबूत चाहिए था। भला मिनिस्टरों या भ्रष्ट महात्माओं के खिलाफ सबूत या गवाह कभी मिला करते हैं, कि इनके खिलाफ मिलते?
मर्दानी बाहों के स्पर्श का भावार्थ मैं आज जान पाई थी। पुलिस ने मेरे साथ-साथ उन युवतियों को भी गिरफ्तार कर लिया, लेकिन हम सब कसूरवार कहां थीं?
जेल का जेलर बड़ा ही सनकी आदमी था। उसे हर रोज एक नई लड़की का चस्का लगा हुआ था। मैं महिला जेल में थी। यहां भी पुरुष कैदियों की तरह दादा टाइप महिला कैदी थीं, जो कमजोर महिला कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया करती थीं।
यदि मैं यहां नहीं आती, तो मुझे यह पता नहीं चलता कि खूबसूरत महिला कैदी बड़े-बड़े नेताओं के पास भेजी जाती हैं। मैं महिला कैदियों में सबसे अधिक खूबसूरत, कमसिन और स्मार्ट हुस्नपरी थी। शाम तक मेरी खूबसूरती की रिपोर्ट जेलर को दे दी गई। दादा और चमची टाइप महिला कैदियों ने ही यह काम किया था। जेलर को यह कहां पता था कि वह किस आग से खेलने जा रहा है।
रात के कोई बारह बजे मैंने चार-पांच युवा महिला कैदियों को सजते-संवरते देखा। मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि रात के बारह बजे इन्हें-कहां जाना है? कि इतना सज-संवर रही हैं? मैंने साहस कर उनसे पूछा, ‘तुम सब इतनी रात को क्यों बनठन रही हो? और फिर तुम बाहर जा भी तो नहीं सकती?’
‘क्या मतलब?’ मैं यह पूछते-पूछते चौंक गई।
‘तुम्हारा भी नंबर आएगा, चिंता क्यों करती हो।’ यह कहकर वे जेलर की गाड़ी में जाकर बैठ गई। मुझे आश्चर्य हुआ, ‘कमाल है! ये महिलाएं अपराधिन हैं। जेल की चारदीवारी से इनका बाहर जाना दंडनीय अपराध है और यह जेलर उन्हें अपनी गाड़ी में बिठाकर ले जा रहा है! यह कैसा जेल? कैसी सजा है और ये कैसे कानून के रखवाले हैं?’
मैं यह सोच ही रही थी, कि एक अट्ठारह-उन्नीस वर्ष की लड़की मेरे पास आ खड़ी हुई, ‘क्या सोच रही हो? जेल भी आजकल किसी होटल या बार से कहीं कम नहीं हैं। बड़े लोगों का चारागाह जेल ही तो है और खूबसूरत महिला कैदी उस चारागाह की हरी-भरी घास हैं। आज वे युवतियां किसी मंत्री को खुश करने गई हैं। वे दो-तीन बार जहां गई, उनकी सजा कम हो जाएंगी। जेल में उन्हें वीआईपी सुविधाएं प्राप्त हो जाएगी। उन्हें कैदी भला कौन कह सकता है?’ वह लड़की यह कहकर हंसने लगी।
मैं सोच रही थी, ‘जेल का दूसरा नाम सुधार-गृह भी है। क्या कैदियों में सुधार इसी तरह से लाया जाता है? जेल तो वेश्याओं को जन्म दे रहा है। महिलाएं यहां आकर वेश्यावृत्ति की ओर अग्रसर हो रही हैं।’ यही सोचते-सोचते मैं अचानक ही बोल पड़ी, ‘यह कैसे संभव है? मैंने दो खून किए हैं! क्या देह के बल पर मुझे सजा नहीं हो सकती है?’
‘यहां सब कुछ संभव है और तुम तो लाखों में एक हो। किसी मंत्री की नजर में उतर गई तो समझो तुम निर्दोष साबित कर दी जाओगी। क्या सभी हत्यारों को सजा ही होती है कि तुम ऐसा सोच रही हो? जेलर ने तुम्हें पसंद कर लिया है। तुम्हारी खूबसूरती की चर्चा पूरे जेल में है।’ यह कहकर वह लड़की दूसरी ओर चली गई और मेरे मन में एक उम्मीद की किरन जगा गई। मैं इस जीवन से किसी भी तरह मुक्ति चाहती थी। मेरे खिलाफ मुकदमा अदालत में था। मुझे अभी सजा नहीं हुई थी।
अगले दिन मैं एक किताब पढ़ रही थी। संयोग से वह किताब अपराध से ही संबंधित थी। उसमें एक जगह लिखा था, ‘जो व्यक्ति एक से अधिक लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहा हो, उसे जान से मार देने में कोई बुराई नहीं है।’
मैं यह पढ़ते ही आत्मविश्वास से भर गई। मेरे दिमाग से अपराध बोध छंट गया। मैंने दो ऐसे व्यक्तियों के कत्ल किए, जो जिस्म के सौदागर थे। मेरे भीतर यह मंथन चल रही थी कि एक सुरक्षा गार्ड ने आकर मुझसे कहा, ‘तुम्हारा फोन है! तुम बाहर आकर बात कर लो।
मेरा कोई भी तो फोन करने वाला नहीं था। सारे संबंधों से मैं परे थी। मैंने बाहर आकर रिसीवर उठाया तो उधर से जेलर की आवाज सुनाई दी।
‘मैं जेलर बोल रहा हूं। तुम्हारी सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है। मैं पागल-सा हो गया हूं। तुम मेरे ऑफिस में चली आओ।’
मैंने फोन काट दिया और अंदर आकर सोचने लगी, ‘मैंने अब तक सिर्फ मौज-मस्ती के नाम पर पुरुषों से शारीरिक संबंध बनाए हैं तो फिर आज तो जीवन रक्षा के लिए इसकी विशेष जरूरत है। मैंने दो मशहूर व्यक्तियों का कत्ल किया है। मुझे फांसी की सजा भी हो सकती है। ऐसे में मुझे जेलर की बात मान लेनी चाहिए। वह चाहे तो मुझे बचा भी सकता है।’ यही सोचते-सोचते मैं तैयार हो गई और वहां से दौड़ती हुई जेलर के ऑफिस में आ गई।
जेलर की नजर मुझपर जैसे ही पड़ी, उसका दीवानों-सा हाल हो गया। मेरे चेहरे पर निगाहें टिकाते हुए वह बोला, ‘तुम इतनी खूबसूरत हो! तुम्हें तो बार-बार देखने को जी करता है। विश्वास ही नहीं होता कि तुम कत्ल भी कर सकती हो। देखो, तुम मेरा खयाल रखोगी तो तुम जेल से छूट भी सकती हो। मैं तुम्हें ऐसे शीर्ष पर बैठे व्यक्तियों से मिलवा दूंगा कि वे तुम्हारे खिलाफ मुकदमा ही नहीं चलने देंगे।’
जेलर काम की बात कर रहा था। मैं अनायास ही मुस्करा पड़ी, ‘मुझे क्या करना होगा, जेलर साहब?’
‘अन्य महिला कैदियों की तरह मुझे खुश करना होगा। मैंने इसके लिए ऑफिस के बगल में ही एक छोटा-सा बेडरूम बनवा रखा है। आओ मेरे साथ।’ कहकर उस बेडरूम की ओर बढ़ गया। मैं भी उसके पीछे-पीछे उधर ही बढ़ गई। बेडरूम में घुसते ही उसने आलमारी से एक ब्रीफकेस निकाला और उसमें से ‘टुडे’ का एक कैप्सूल निकाल कर मुझे दे दिया फिर उसने मुझसे कहा, ‘तुम इसका इस्तेमाल करो, मैं तब तक उधर से आता हूं।’
कोई पन्द्रह मिनट बाद वह सिगरेट फूंकता हुआ कमरे में आ खड़ा हुआ। ‘अब तो तुम तैयार हो?’ यह कहकर जेलर ने मुझे एक सेब दे दिया, ‘इसे खाओ।’
मैं सेब खाने लगी। जब सेब खा लिया तो जेलर मेरे करीब आ गया और मुझे बाहों में भर लिया। आज पहली बार मैं मर्दानी बांहों का इस्तेमाल अपनी जीवन-रक्षा के लिए कर रही थी। यहां आनंद की कम और फायदे की बात ज्यादा थी।
कोई आधे घंटे बाद मैं अपने कपड़े ठीक करती हुई बेडरूम से बाहर आ गई। ‘जहां जान बचाने की बात आ जाती है, वहां सब कुछ जीरो हो जाता है। आज मैं एक ऐसी हुस्नपरी बन गई हूं, जिसकी देह जान बचाने के काम आ रही। यह कोई मामूली बात नहीं है। यही सब सोचती हुई मैं जेल की चारदीवारी में आकर पुनः कैद हो गई।