hot story in hindi- prem ki pyasi प्यार की खुशबू - राजेन्द्र पाण्डेय
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वह ऐसे बोला, जैसे सब कुछ जानता हो। मैं परेशान और हताश थी। उस पुरुष को देखते हुए बोली, ‘हां, मैं अकेली हूं, लेकिन तुमने यह जाना कैसे?’

इधर कई दिनों से मैं ठीक से सो नहीं पाई थी। दरवाजा बंद कर पलंग पर निढाल पड़ गई, लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी। फिर सोचा, क्यों न कोई टी.वी. प्रोग्राम देख लूं। अभी मैंने टी.वी. ऑन ही किया था, कि बगल वाले कमरे से अजीब-सी आवाज सुनाई देने लगी। मैंने टी.वी. ऑफ कर दिया।

आवाज में बड़ा ही दर्द था। मैं दरवाजे से कान लगाकर सुनने लगी। अगले पल ही मैंने यह पता लगा लिया, कि यह आवाज बगल वाले कमरे से ही आ रही है। और यह किसी युवा स्त्री की आवाज है।

मैं बाहर निकलकर देखना चाहती थी, लेकिन रात का समय, अगल-बगल कोई नहीं। मैं कान लगाकर उस युवती की चीख-पुकार बड़ी देर तक सुनती रही। अंत में जब मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ तो दरवाजा खोलकर बाहर आ गई और दबे पांव सीढ़ियां उतर गई।

ग्राउंड फ्लोर पर मैनेजर का केबिन था। मैं उसके केबिन में गई तो वह आश्चर्य से मुझे देखने लगा। शायद वह इतनी रात को मुझे वहां देखकर घबरा गया था। मैंने उससे कहा, ‘मेरे बगल वाले कमरे में एक युवती चीख चिल्ला रही है।’ मैनेजर जोर से हंसा फिर वह बोला, ‘मैडम, आप जाकर सो जाइए। यह होटल है।’

‘क्या मतलब?’ मैंने जानना चाहा।

‘मतलब एकदम साफ है, मैडम। एक लड़की के साथ जब दो-तीन पुरुष यौनानंद का सुख लेंगे तो यवती चीखें नहीं मारेगी तो क्या गाना गाएगी?’ आप जाइए, सो जाइए। आप कोई पंगा न लीजिए। वे लोग इस शहर के विधायक के आदमी हैं।’ मैनेजर बड़ी ही सहजता से बोल गया।

लेकिन मुझे उसकी बात हजम नहीं हुई। मैं सीढ़ियां चढ़कर कमरे में आ गई अपना दरवाजा बंद कर लिया। मेरा पूरा शरीर थर-थर कांप रहा था। तभी बगल के कमरे का दरवाजा खुला। मैंने दरवाजे की झीरी से देखा, दाढ़ी वाले तीन युवा पुरुष थे, जो मंद-मंद मुस्कराते हुए सीढ़ियों की ओर बढ़ रहे थे। उस युवती की चीख-पुकार अब सुनाई नहीं दे रही थी। वह शायद बेहोश हो गई थी या मर गई थी!

इतने में वे युवक मैनेजर के साथ फिर ऊपर आ गए। मैनेजर मनाए हुए, स्वर में कह रहा था, ‘आप लोगों को कुछ कह भी तो नहीं सकता, मुझे होटल जो चलाना है। वह लड़की अगर मर-मरा गई तो कौन जिम्मेदार होगा?’ यह कहकर मैनेजर उनके साथ कमरे में आ गया।

मैंने सोचा, ‘अब कुछ भी हो जाए, मैं इतने बड़े और महंगे होटलों में नहीं ठहरूगी। ईश्वर करें, किसी तरह से यह रात कट जाए। स्त्री सुरक्षित कहीं भी तो नहीं है। पुरुष उसके साथ किस तरह से खेलते हैं। इस शहर के विधायक के लोग एक स्त्री के साथ सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं और किसी को खबर तक भी नहीं है। मैं उस स्त्री को क्या कहूं, मेरे साथ कितनी बुरी बीती है। पुरुषों ने मुझे कितना रौंदा है। मैं मानसिक रूप से बिल्कुल ही अपाहिज बन गई हूं।’ यही सोचते सोचते मेरी आंख लग गई।

सुबह सूरज की किरणें खिड़की से होकर अभी आई ही थीं, कि मैं बिस्तर पर उठ बैठी। बैठे-बैठे ही बुदबुदाई, ‘मुझे यहां अब और नहीं ठहरना चाहिए। होटल, क्लब, सार्वजनिक स्थल अकेली औरत के लिए सुरक्षित नहीं हैं। पुरुष उनके साथ बलात्कार भी करेंगे और उन्हें मौत के घाट भी उतार देंगे।

एक औरत मरे या बीस औरतें, किसी को भी इससे कोई मतलब नहीं है। ऐसी जगहों पर मरने वाली औरतों के बारे में मर्दो की यही प्रतिक्रियाएं होंगी, कि इन बदचलन औरतों का यही हश्र होना था। कोई भी यह नहीं सोचेगा कि ये औरतें यहां आयीं कैसे? इनको कौन यहां लेकर आया।

कोई भी यह कबूल नहीं करेगा कि स्त्री को पुरुष ही उठाकर, बहला-फुसलाकर या प्रलोभन देकर ऐसी जगहों पर ले आते हैं। बहुत कम ही ऐसी औरतें होती होंगी, जो स्वयं चलकर यहां आती होंगी। अब मेरी तरह सारी औरतें भाग्यहीन थोड़े ही हैं। मुझे तो मेरे मां-बाप ने ही बिगाड़ा है। सभी के मां-बाप ऐसे नहीं होते हैं।’

कोई आधे घंटे के भीतर ही मैं होटल का बिल अदा कर सड़क पर आ गई। सड़क का नजारा बड़ा ही विचित्र था। चुनाव प्रचार हो रहा था। बैनर लगी गाड़ियां सड़कों पर दौड़ रही थीं। मुझे अपनी किस्मत आजमाने का यह अच्छा मौका लगा, लेकिन समस्या यह थी कि मैं चुनाव प्रचार में शामिल कैसे होऊ।

तभी मेरी नजर एक पैंतालीस वर्षीय नेता टाइप के पुरुष पर पड़ी। मैंने देखा, वह मुझे ही एकटक देख रहा था। मैं समझ गई, उसको मेरा सौंदर्य भा गया है। मैं अचानक ही मुस्करा पड़ी। वह गाड़ी से उतर कर मेरे पास आकर खड़ा हो गया और मुझे देखते हुए बोला, ‘अकेली हो?’

वह ऐसे बोला जैसे सब कुछ जानता हो। मैं परेशान और हताश थी। उस पुरुष को देखते हुए बोली, ‘हां, मैं अकेली हूं, लेकिन तुमने यह जाना कैसे?’

‘हम नेता लोग आदमी को पहचानने का ही तो काम करते हैं। तुम हमारी पार्टी का चुनाव प्रचार करोगी?’ उस नेता के यह कहते ही मैं पूछ बैठी, लेकिन मुझे क्या मिलेगा?’

‘यह पूछो, तुम्हें क्या नहीं मिलेगा। तुम तो जवान और खूबसूरत हो।’ उसके मुंह से यह सुनते ही मैं सहसा ही बोल पडी, ‘मेरी जवानी और खबसूरती से इस चुनाव प्रचार का क्या संबंध है?’ ‘जनता को मुर्ख तुम्हारी जवानी और खबसूरती ही तो बना सकती है। आओ मेरे साथ गाड़ी में।’ यह कहकर वह अपनी गाड़ी की ओर बढ़ गया। मैं भी उधर ही बढ़ गई।

दिन भर चुनाव प्रचार करके मैं बिल्कुल ही थक चुकी थी। शाम को कहां ठहरूंगी यह सोचकर परेशान थी। तभी वह नेता मेरे पास आकर बोला, ‘चलो आज तुम्हें मैं अपना फार्म हाऊस दिखाऊं। वहां क्या प्राकृतिक-सौंदर्य है।’

मैं यह सुनकर अचकचा गई, ‘लेकिन मैं वहां अकेली…?’

“तुम्हें मुझसे डर लगता है? मैं कोई हिंसक जानवर नहीं कि तुम्हें खा जाउंगा।’ उसके इतना कहते ही मैं गाड़ी में आकर बैठ गई।

गाड़ी सड़क पर हवा से बातें कर रही थी। वह अचानक ही मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘ईश्वर ने तुम्हें बड़ी फुर्सत में बनाया होगा, तुम वैसे रहती कहां हो?’

‘होटलों में…मेरा कोई ठिकाना नहीं है।’

‘तब तो बड़ी ही अच्छी बात है।’

‘मैं बेघर हूं, और यह बात तुम्हें अच्छी लग रही है?’

‘तुम तो बुरा मान गई। मेरे कहने का मतलब यह नहीं था। तुम पर कोई बंदिश नहीं है। रोकटोक नहीं है। ऐसी ही महिलाएं तो राजनीति में आगे बढ़ती हैं। स्वच्छंद महिलाओं के लिए राजनीति में काफी अवसर है।’ वह कुछ और बोलता तभी ड्राइवर ने फार्म हाऊस के फाटक के सामने गाड़ी खड़ी कर दी।

हम गाड़ी से उतरकर फार्म हाऊस के एक कमरे में आ गए। अभी मैं ठीक से बैठी भी नहीं थी कि एक चालीस वर्षीया महिला व्हिस्की की दो बोतलें टेबल पर रख गई। मैंने देखा, यह बहुत ही महंगी व्हिस्की थी। इतने रुपयों से दस आदमी आराम से बढ़िया खाना खा सकते थे।

उस फार्म हाऊस की मिट्टी में न जाने क्या खूबी थी, कि यहां आकर मेरे व्यक्तित्व का एक नया हा रूप उभर कर मेरे सामने आ गया। मैं उन मजबूर, नंगे-भूखे लोगों की बेवजह ही चिन्ता करने लगी, जो वास्तव में ही रोटी के हकदार थे।

तभी मुर्गा पुलाव दो प्लेट में आ गया। उस नेता ने मुस्कराते हुए बोतल का ढक्कन तोड़ दिया और गिलास में व्हिस्की उड़ेलते हुए बोला, ‘जीवन का आनंद लो।’

‘यह भी कोई जीवन है? इस देश में आधी से भी ज्यादा जनता भूखी-नंगी सोती है, तुम उनका हक मारकर ऐश कर रहे हो। मुझे हराम की कमाई नहीं खानी।’ मैं मन-ही मन सोच रही थी, इतने में उसने मेरी ओर व्हिस्की से भरा गिलास बढ़ा दिया। मैंने मना कर दिया और वहां से उठकर बाहर आ गई।

वह नेता भी मेरे पीछे-पीछे दुम हिलाता हुआ आ गया और मुझे अपनी बाहों में भरने की कोशिश करने लगा। मैं उसे धक्का देकर उसकी गाड़ी की ओर बढ़ गई और फाटक खोलकर ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गई। अब वहां ठहरना मेरे लिए खतरे से खाली नहीं था। मैंने गाड़ी को स्टार्ट कर सड़क की ओर बड़ी ही तेजी से मोड़ दिया। वह कुछ दूर तक गाड़ी के पीछे-पीछे दौडा, फिर लौट गया।

गाड़ी उस नेता की थी। मैं उसे लेकर ज्यादा दूर तक नहीं जा सकती थी। कहीं पर भी पुलिस गाड़ी को रोक सकती थी। मेरे पास ड्राइविंग लाइसेंस भी तो नहीं था। मैं एक नुक्कड़ पर गाड़ी लेकर आई तो वहां कुछ पुलिस वाले दिखाई दिए। मेरी तो जान ही निकल गई। सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर मैं उस नुक्कड़ पर आकर खड़ी हो गई। मैं किसी भी तरह से यहां से निकल जाना चाहती थी।

तभी एक गाड़ी सामने से आती दिखाई दी। मैंने हाथ हिलाया तो ड्राइवर ने मेरे सामने गाड़ी लाकर खड़ी कर दी। मैंने गाड़ी में झांक कर देखा, उसमें एक पचास वर्षीय संन्यासी भगवे वस्त्र में बैठा हुआ था और मुझे ही एकटक निहार रहा था। इतने में उसने मुझे हाथ से इशारा करते हुए खिड़की से सिर बाहर निकाल कर बोला, ‘कहां जाना है? आओ, छोड़ देंगे।’

‘मुझे मालूम नहीं।’ मैं यह कहते-कहते मायूस पड़ गईं। शायद मैं अपने सारहीन जीवन से उकता गई थी। तभी अचानक ही वह महात्मा बोल पड़ा, ‘जिसे अपने ठिकाने का ज्ञान नहीं होता है, वह मुझ जैसे महात्मा की शरण में आ जाता है, बालिके आओ, गाड़ी में बैठो।’

महात्मा के इतना कहते ही मैं दरवाजा खोलकर अन्दर बैठ गई। गाड़ी में बैठते ही मुझे न जाने ऐसा क्यों लगा कि मेरे हाथों से कल ऐसा घटने वाला है, जो मेरे जीवन को सार्थक बना देगा। इसी बीच महात्मा ने मुस्कराते हुए कहा, ‘मेरा नाम श्री श्री 108 आत्मा राम है। तुमने मेरा नाम जरूर सुना होगा?’

‘हां, नाम तो जाना पहचाना-सा लगता है।’ मैं अटकती हुई आवाज में हो बोली।

‘तब तुम्हें यह भी मालूम होगा कि मेरे अधिकांश शिष्य नेता, मंत्री और उद्योगपति ही हैं। वैसे तुम बहुत ही खूबसूरत हो।’ महात्मा यह कहकर मुस्कराने लगा।

मैं यह सुनकर बुदबुदा पड़ी, ‘अजीब बात है, महात्मा हो, मंत्री हो या फिर आम आदमी हो सब मेरी खूबसूरती को देखकर ही मुझ पर रहम करते हैं। मुझे लिफ्ट देते हैं। क्या स्त्री की इससे अलग और कोई पहचान नहीं होती है?

वैसे वह महात्मा वास्तव में ही पहुंचा हुआ था। वह किस मामले में पहुंचा हुआ था, यह मुझे अभी मालूम नहीं था। वह मुझे वहां ले गया, जहां उसका प्रवचन था। गाड़ी से उतरकर मैं महात्मा के साथ कथा पण्डाल की ओर कुछ कदम ही बढ़ी थी, कि वह पीछे मुड़कर बोला, ‘तुम श्रोताओं की जमात में जाकर बैठ जाओ। प्रवचन समाप्त होने पर मैं तम्हें अपने साथ ले लूंगा।’

मैं कुछ समझ न सकी! महात्मा कथा पण्डाल में ज्यों ही आया श्रद्धालुओं और श्रोताओं ने फूल-मालाओं से उसका भव्य स्वागत किया। मैंने देखा, ‘वह मंद-मंद मुस्कराते हुए मंच की ओर बढ़ रहा है। उसके चेहरे पर एक अजीब-सी खुशी खिली हुई है।

तभी मुझे बड़ा ही आश्चर्य हुआ जब उसने अपने गले में पड़ी मालाओं की कीमत लगाते हुए सभी श्रद्धालुओं को बारी-बारी से मालाएं दे दी। मैं पण्डाल में बिछी दरी पर बैठ कर सोचने लगी. ‘लोग भी धर्म में कितने अंधे हो गए हैं। अपनी ही मालाओं को उन्होंने उस महात्मा से बेहिसाब रुपए देकर खरीद लिया। यह कितनी ताज्जुब की बात है।

महात्मा को लोग इतना आदर दे रहे हैं और यह उन्हें लूट रहा है। मुझे इस महात्मा के तह तक जाना है। मेरा क्या, मैं तो एक सडक ह लड़की बनकर रह गई हूं। जो चीज एक स्त्री के लिए मूल्यवान होती है, उसको तो मैं कब की लुटा चुकी हूं। महात्मा भ्रष्ट और संदिग्ध व्यक्ति हो सकता है। जो सिर्फ पैसे वालों को ही आना शिष्य बनाता हो, वह साफ-सुथरा कैसे हो सकता है।’

मैं अभी और सोचती, तभी मधुर धुनों पर नृत्य शुरू हो गया।

कुलीन और धनाढ्य घरानों की कुंआरी लड़कियां आंखें बंद कर बड़े ही मजे से थिरक रही थीं। नृत्य का कार्यक्रम कोई आधे घंटे चला। फिर उस महात्मा का प्रवचन शुरू हो गया। वह प्रवचन क्या कर रहा था, लोगों को भ्रमित कर रहा था। अब मैं काफी कुछ हद तक आश्वस्त हो गई थी कि यह महात्मा एक वर्ग विशेष का महात्मा है। पूरी मानव जाति का महात्मा नहीं है। इसकी आड़ में यह अपनी राजनीति कर रहा है।

मैं अब बोर होने लगी थी। उठकर बाहर जा भी नहीं सकती थी। प्रवचन में जब हिन्दू-मुस्लिम में अन्तर करने लगा तो मुझे पूरा यकीन हो गया कि इस महात्मा को जनता की नब्ज पर अच्छी पकड़ है। हिन्दू-मुस्लिम की बातें कर यह लोगों की भावनाओं को भुनाना चाहता है, हिन्दू धर्म सच्चा है, बाकी सब धर्म भ्रम मात्र हैं। उसके प्रवचन का सार बस यही था।

तभी मैंने देखा, कुछ युवा और खूबसूरत महिलाएं महात्मा के माथे को बारी-बारी से चूम रही हैं और वह महात्मा बड़ी ही फूहड़ता से मुस्करा रहा है। यह दृश्य इस बात का द्योतक था कि महात्मा स्त्रियों का रसिया है। भगवे वस्त्र में एक साधु नहीं, बल्कि कामी बैठा है। मैं यह सब देखने के बाद उस महात्मा का पीछा कहां छोड़ने वाली थी। मैं बड़ी देर से यह भी महसूस कर रही थी, वह रह-रहकर कनखियों से मुझे घर भी रहा था! वह शायद मुझ पर मुग्ध हो गया था। यह मेरे लिए बहुत ही अच्छी बात थी।

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