Godavari
Godavari

Hindi Katha: देवाधिदेव महादेव की जटा में समाहित परम पुण्यमय गंगा के दो भेद हैं, क्योंकि उन्हें पृथ्वी पर उतारने वाले दो व्यक्ति थे। गंगा का एक भाग क्षत्रिय राजा भगीरथ ने पृथ्वी पर उतारा। दूसरा भाग तप और समाधि में लीन रहने वाले गौतम ऋषि ने पृथ्वी तक पहुँचाया। इसकी कथा इस प्रकार है :

एक समय की बात है, महर्षि गौतम कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान् महादेव की स्तुति करते हुए बोले ‘भगवन् ! आप समस्त प्राणियों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। विद्वान और ज्ञानी मनुष्य प्रतिदिन आपका ही ध्यान करते हैं। आपने जगत् की सृष्टि, पालन और संहार करने के लिए जल का स्वरूप धारण किया है। जो भक्तजन निष्काम भाव से आपका स्मरण करते हैं, वे जीवन-मृत्यु के चक्र से सदा के लिए मुक्त हो जाते हैं। आप ही जगत् के कल्याण के लिए मायामय स्वरूप धारण करते हैं। मैं आपको बारम्बार प्रणाम करता हूँ। ‘

महर्षि गौतम की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान् शिव ने उनसे इच्छित वर माँगने के लिए कहा।

गौतम ऋषि बोले-भगवन् ! यदि आप प्रसन्न हैं तो अपनी जटाओं में समाहित तीनों लोकों को पवित्र करने वाली परम पवित्र गंगा को ब्रह्मगिरि पर छोड़ दीजिए। समुद्र में मिलने तक यह सभी प्राणियों के लिए तीर्थ रूप में पूजित हो। इसमें स्नान करने से मन, वाणी और शरीर द्वारा किए हुए घोर पाप नष्ट हो जाएँ । चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, संक्रांति आदि में पुण्य – तीर्थों पर स्नान करने से प्राणी को जो फल मिलता है, वह इसके स्मरण मात्र से ही प्राप्त हो जाए और आप सदा इसके तट पर निवास कर भक्तजन का कल्याण करें। यह वर दीजिए । ”

भगवान् शिव बोले-‘महर्षि ! इससे बढ़कर दूसरा कोई तीर्थ न है और न ही होगा। संसार में इसे गौतमी गंगा (गोदावरी) कहा जाएगा। जो भी मनुष्य इसके परम पवित्र जल में स्नान कर पीड़ित मनुष्यों को अन्न आदि देकर उनकी सेवा करेगा, उसे ऐश्वर्य और वैभव प्राप्त होगा। इसके तट पर भगवान् विष्णु और देवी गंगा के प्रकट होने की दिव्य – कथा सुनने वाले मनुष्य श्रेष्ठ फल के भागी होंगे। “

इसके बाद भगवान् शिव ने महर्षि गौतम को जटासहित देवी गंगा प्रदान की।

महर्षि गौतम ने भगवान् शिव की जटाओं को ब्रह्मगिरि के शिखर पर रख दिया और देवी गंगा की स्तुति करते हुए बोले – “माते ! आप समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी हैं। आप यहाँ से प्रवाहित होकर जगत् का कल्याण करें । हे देवी ! भगवान् महादेव ने भी इसी उद्देश्य से आपको प्रदान किया है। आप हमारा मनोरथ पूर्ण करें।”

उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर गंगा स्वयं को तीन स्वरूपों में विभक्त कर स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में प्रवाहित होने लगीं।