ghar chidoo
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

नन्ही खुशी दादी के पीछे-पीछे चल रही थी। दादी कुछ बुड़बुड़ा रही थी।

खुशी ने पूछा, “दादी क्या हुआ?”

दादी खीझकर बोली, “बेटा, चिड़ियों को दाना डालने आंगन में गई थी, पर देखो न! एक भी चिड़िया नहीं है। एक जमाना था सारा आंगन चिड़ियों से भरा रहता था और वे सारा दाना पल भर में चट कर जाती थीं।”

“दादी अब कहां हैं वे?” खुशी मासूमियता से बोली।

“क्या पता बिटिया! पहले तो हर घर में इनके घोंसले होते थे। हम इन्हें ‘घर चिडू’ कहते थे। ये डार के डार आते थे और सभी लोग इन्हें दाना डालते थे।”

“अच्छा तो दादी बताओ, ये घर चिडू कैसे दिखते थे?” खुशी ने उत्सुकता से पूछा।

“बिटिया यह जो गौरैया है न, यही घर चिडू हैं। छोटी-सी, प्यारी-सी, भूरे-भूरे रंग की। यह झुण्डों में उड़-उड़ कर आती थी और हमारे आंगन की शोभा बढ़ाती थी।”

“दादी, ये अब कहां चली गई?”

“क्या बताएं बिटिया, पहले यहां बंदर नहीं होते थे। अब यहां बंदर आ गए हैं। ये बंदर इनके घोंसलों को उजाड़ देते हैं। इसलिए अब घरों में उनके घोंसले भी सुरक्षित नहीं हैं। गौरेया को मनुष्य के बीच रहना अच्छा लगता है।”

“अब ये हमारे घरों में क्यों नहीं रहती?” खुशी ने पूछा।

“बेटा, अब पक्के मकान बन गए हैं जिसमें घोंसलों के लिए कोई स्थान ही नहीं है। मुए इन पक्के घरों में ये कहीं भी सुरक्षित नहीं है। कच्चे घरों में छन्नी-छप्पर और दीवारों के ऊपर भी बहुत से घोंसले बने होते थे।”

“ओह अच्छा दादी! तभी तो गौरेया नहीं दिखती है न?” खुशी बोली।

“हां बिटिया, तुम्हारा धीरज चाचू कह रहा था कि जगह-जगह जो मोबाइल और बिजली के बड़े-बड़े टावर लगे हैं। इनकी तरंगें इन जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों के लिए हानिकारक हैं। इनकी संख्या कम होने में इनका बहुत हाथ है।” कहते-कहते दादी पूजा घर की ओर चली गई।

अब खुशी सोच में पड़ गई कि ऐसा क्यों होता है? मैं धीरज चाचू से पूछूगी। चाचू पढ़े-लिखे हैं और जीव-जंतुओं को लेकर पढ़ाई भी कर रहे हैं। वही मुझे सब बता पाएंगे कि गौरेया कहां चली गई हैं? तितलियां क्यों कम दिखती हैं? कौवे भी मुंडेर पर क्यों नहीं आते? गिद्ध भी गायब हैं! बुलबुल भी गीत नहीं सुनाती? … जब धीरज चाचू आएंगे तो उनसे यह सब जरूर पूछूगी।

खुशी उछलती हुई रसोईघर की तरफ चली गई, जहां मां सबके लिए नाश्ता बना रही थी। उसने मां का पल्लू पकड़ा और कहने लगी, “मां धीरज चाचू कब आएंगे?”

मां हंसकर बोली, “क्यों? आज सुबह-सवेरे चाचू की याद कैसे आई? क्या चॉकलेट और खिलौनों की याद हो आई है?”

“अरे नहीं अम्मा। मुझे उनसे कुछ पूछना है।”

“ठीक है बिटिया। आज वीरवार है। तुम जानती हो कि चाचू शनिवार को घर आते हैं। तब तक खेलो, चित्र बनाओ, पढ़ाई करो। ठीक है न? लेकिन पहले तुम अच्छे से हाथ धोकर अपना नाश्ता ले लो।” यह कहकर मां अपने काम में लग गई। खुशी भी हाथ धोने लग गई।

खुशी को अब धीरज चाचू का इंतजार था। इसी बीच उसने कई चित्र बना दिए। जिसमें अपना और दादी का, गौरैया के झुंड का और हानिकारक तरंगे छोड़ते टावर आदि के शामिल थे। उसके बालमन में तरह-तरह के प्रश्न अंगड़ाई ले रहे थे।

शनिवार को जब चाचू आ गए तो वह सुबह उठते ही बरामदे में बैठे चाचू के पास पहुंच गई। एक ही सांस में पूछने लगी, “चाचू-चाचू, क्या आप मुझे बताएंगे कि हमारे आंगन से गौरेया कहां चली गई हैं? तितलियां कहां गुम हो रही हैं और बहुत से पक्षी अब हमें दिखाई क्यों नहीं देते हैं?”

उसके प्रश्नों की बौछार से चाचू मुस्कराने लगे, “अरे खुशी, धीरे-धीरे एक-एक प्रश्न पूछो बिटिया। मैं सभी के उत्तर दूंगा।”

“चाचू, दादी कह रही थी कि आप बता रहे थे कि यह जो हर जगह इतने सारे टावर लगे हैं, इनकी वजह से यह सब हो रहा है।”

“हां खुशी, यह बहुत हद तक सही है। गौरैया की संख्या कम होने का कारण वैज्ञानिक इन मोबाइल टावरों से निकलने वाले खतरनाक रेडिएशन को मानते हैं। यह इन पक्षियों, जीव-जंतुओं तथा हमारे लिए भी बहुत हानिकारक हैं। प्रदूषण का भी इसमें काफी योगदान है। यह हम सभी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।”

खुशी सब ध्यान से सुन रही थी। “अच्छा! तो यह सब वजह हैं।”

“हां बिटिया। और मिट्टी में जो पेस्टिसाइड्स डाले जाते हैं उनसे भी अनाज तो खूब हो जाता है लेकिन इनके गुण काफी प्रभावित होते हैं। यह भी एक वजह है। इन सभी कारणों से पक्षी, मधुमक्खियां, तितली और अन्य जीव-जंतुओं को बहुत हानि हो रही है। धीरे-धीरे सब धरती से गायब हो रहे हैं। यदि जल्दी हमने इस प्रभाव को कम करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए तो बहुत दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।”

“तो चाचू, हम इसके बारे में कुछ करते क्यों नहीं हैं?” खुशी का अगला प्रश्न।

“ऐसा नहीं है। वाइल्ड लाइफ पर पड़ने वाले असर का वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया था। जिसमें इन मोबाइल टावरों को सार्वजनिक स्थलों से दूर ऐसी जगह पर लगाने की सलाह दी है जहां पशु-पक्षियों के साथ मानव भी सुरक्षित रह सकें। पर कोई माने तब न! यहां तो लोग रुपयों के लिए अपने घरों की छत पर भी इन टावरों को लगवा रहे हैं। नियमों को ताक पर रखा जाता है। जिससे यह सब होता है।”

“यह आपने सही कहा चाचू। इसकी जिम्मेदारी हम सभी को बराबर लेनी होगी, तभी हम इस नुकसान से सबको बचा सकेंगे।”

“बिल्कुल सही कहा तुमने खुशी। यदि तुम्हारी तरह हम सभी सोच लें तो समस्या अपने आप समाप्त हो जाएगी।”

“जी चाचू।”

अबकी बार चाचू खुशी को चॉकलेट देते हुए बोले, “शाबाश खुशी, आज तुमने बहुत अच्छे प्रश्न पूछे हैं। तुम्हारी सोच एक बेहतर कल की उम्मीद जगाती है।”

खुशी मुस्कुराती हुई अपने बचे हुए चित्र बनाने कमरे की ओर दौड़ पड़ती है।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’