Hindi Katha: इक्ष्वाकु वंश में महाभिष नाम के उनके एक पूर्वज हुए। महाभिष सत्यवादी और धर्मात्मा नरेश थे। मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्गलोक में स्थान मिला। एक समय की बात है, महाभिष को ब्रह्माजी की एक सभा में जाने का अवसर मिला। इस सभा में इन्द्र, विष्णु, शिव आदि सभी प्रमुख देवताओं के साथ महानदी गंगा भी आमंत्रित थीं।
सभा के मध्य एकाएक बड़े वेग से हवा चली, जिससे गंगाजी के वस्त्र इधर- उधर खिसक गए। उपस्थित सभी देवताओं ने अपने सिर झुका लिए, किंतु महाभिष गंगा की ओर देखते रहे। गंगा भी उनकी ओर मधुर दृष्टि से देख रही थीं। यह देख ब्रह्माजी को क्रोध आ गया। उन्होंने दोनों को शाप दिया कि वे मृत्युलोक (पृथ्वी) में जाकर जन्म लें। दोनों उदास मन से धरती की ओर चल पड़े।
इसी समय पृथु और द्यौ आदि आठ वसुओं ने महर्षि वसिष्ठ की अनुपस्थिति में उनके स्वर्ग में स्थित आश्रम में प्रवेश किया। द्यौ ने अपनी पत्नी के बहकावे में आकर महर्षि वसिष्ठ की नन्दिनी गाय का हरण कर लिया। मुनि वसिष्ठ आश्रम पर लौटे तो तपोबल से उन्हें सबकुछ ज्ञात हो गया। तब उन्होंने वसुओं को शाप दिया “वसुगण ! तुम मेरा अपमान कर नन्दिनी को चुरा ले गए। इस अपराध के लिए तुम्हें मनुष्य – योनि में जन्म लेना होगा । “
दण्ड की बात सुनकर वसुगण सिर के बल दौड़े आए । गाय वापस की और ऋषि से क्षमा माँगने लगे। तब महर्षि बोले – “तुम सब तो जन्म लेते ही मेरे शाप से छूट जाओगे, किंतु मेरी नन्दिनी का हरण करने वाले द्यौ नामक वसु तक मानव-योनि में रहना पड़ेगा । “
इसी समय शाप से पीड़ित गंगा जी वहाँ से गुजरीं। वसुओं ने उनसे अपनी जननी बनने की प्रार्थना की। गंगा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
ब्रह्माजी के शाप के परिणामस्वरूप राजा महाभिष हस्तिनापुर के राजा प्रतीपके यहाँ पुत्र के में उत्पन्न हुए। उनका नाम शांतनु रखा गया। बाद में शांतनु ने गंगा से विवाह किया। विवाह के लिए गंगा ने शर्त रखी कि उसके अच्छे-बुरे किसी भी कार्य के लिए राजा शांतनु कोई बाधा उत्पन्न न करें, अन्यथा वे उन्हें छोड़कर चली जाएँगी। फिर एक-एक करके शांतनु के सात पुत्र हुए, जिन्हें (जो कि वसु थे ) गंगा ने जल में प्रवाहित कर दिया। शांतनु शांत भाव से देखते रहे।
आठवें ने जन्म लिया तो उनसे चुप नहीं रहा गया, , उन्होंने उस पुत्र को जीवित रखने की प्रार्थना की और गंगा को अनेक प्रकार से प्रसन्न करने का प्रयास किया। लेकिन शर्त के अनुसार उनका प्रण टूट चुका था, अतः आठवाँ पुत्र जब युवा हुआ तो उसे उनको सौंपकर गंगा वापस देवलोक चली गईं।
वह आठवाँ पुत्र द्यौ नामक वसु था, जिसे वसिष्ठ के शाप से लम्बे समय तक मनुष्य-योनि में रहना पड़ा। उसका नाम भीष्म रखा गया। जो आगे चलकर महाभारत काल का एक प्रसिद्ध योद्धा हुआ।
