भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
रिंकू बहुत उदास था। उदास क्यों ना हो? सब कुछ रुक जो गया था लेकिन बालमन कहाँ रुकने वाला था? वह कभी स्कूल में खेलने के लिए मचलता तो कभी आसपास के साथियों के साथ तो कभी बारिश होने पर कश्तियों के लिए तरसता। बात उस समय की है जब कोरोना वायरस के कारण सारी दुनिया की रफ्तार एक चारदीवारी के अंदर कैद हो गई थी। दरअसल, बाल विचारों की श्रृंखला लगातार बनती रहती, वह टूटने का नाम ही नहीं लेती थी।
सब कुछ शांत था, स्तब्ध था लेकिन रिंकू का मन हमेशा इधर-उधर भटकता रहता था। माँ की बहुत सारी हिदायतें सुनकर वह मजबूरी में बालकनी से आसमान की ओर चिड़ियों को उड़ते देखता रहता। सब कहते- बाहर मत जाओ, साथियों से दूरी रखो वगैरह…वगैरह…। ये सभी बातें बाल मनोविनोद के खिलाफ थीं। यहाँ तक कि सबके कहने पर मोमबत्तियाँ जलाई मोबाइल की फ्लैश लाइट को जलाया. घंटी बजाई, थाली को बेलन से लेकर पीटा मगर यह काफी नहीं था। इससे उसे कुछ देर के लिए अच्छा लगा, पर अंत में माँ से बोलता- माँ, अब क्या करूँ?
आसमान में एक हवाई जहाज देखने के लिए वह सारा दिन निकाल देता पर वहाँ भी कोई हवाई जहाज उड़ते नहीं दिखाई देता। टी.वी. में भी वही पुराने कार्टून, आखिर करे तो क्या करे? लाचारी में मोबाइल में खेलते-खेलते एक सुन्दर ड्रोन को देखकर उसे ड्रोन मँगवाने का विचार आया। मगर डर था कि ऐसे समय में घर वाले ड्रोन मँगवाएँगे या नहीं। इस समय तो घर में उसकी पसंद की चीजें भी बननी बंद हो गई हैं। किसी तरह दो वक्त का खाना बन रहा है। रिंकू ने आशा नहीं छोड़ी। उसने लिंक को सेव कर लिया और चुपचाप कई दिनों तक छुप-छुप कर देखता।
एक दिन खाने के बाद उसने चुपके से माँ से ड्रोन खरीदने की बात कही। रिंकू की माँग सुनकर माँ झुंझलाई और समझाया- बेटा, ड्रोन बहुत महँगा है। इस समय जो बहुत जरुरी है, उसे खरीदना है। “पर माँ, ड्रोन भी मेरे लिए जरूरी है। मैं दिनभर घर में कितना चुपचाप बैठू?” रिंक ने जिद करते हुए कहा। मां ने अपना पीछा छुड़ाने के लिए बात पिताजी पर डाल दी। पिताजी से कहने की हिम्मत रिंकू की नहीं हुई। वह सिर झुकाए वहाँ से चला गया।
उस दिन से रिंकू बहुत उदास हो गया। अकसर बालकनी में चुपचाप आसमान की ओर देखता रहता। उसकी उदासी देखकर अंत में माँ ने अनुमति दे दी। कछ दिन के इंतजार के बाद एक ड्रोन का पैकेट ऑनलाइन ऑर्डर किया मगर कई हिस्सों में बिखरा पार्सल मिला। किसी तरह जोड़-तोड़ कर ड्रोन उड़ने को तैयार हुआ और उसे उड़ाया गया। रिंकू ने आसमान की तरफ देखा, ड्रोन पहली उड़ान में लंबे पाइन के पेड़ में जाकर पक्षी की तरह बैठ गया। उसने रिमोट के ऊपर-नीचे, दाएँ-बाएँ सभी बटन दबाए, पर सब कोशिश बेकार हो गई। अब ड्रोन कैसे वापस आए? या तो तेज हवा चले या फिर कोई पेड़ पर चढ़े, जो की आसान नहीं था। रिंकू दुखी होकर दूर से ड्रोन को देखता रहता।
उस पल का इंतजार करने लगा कि कब तेज हवा चले और ड्रोन नीचे आ जाए। अचानक गाँव से समाचार मिला कि दादी माँ की तबीयत खराब है, जल्दी घर आओ। सारा परिवार रातों-रात गाँव के लिए रवाना हो गया लेकिन रिंकू का उदास मन पाइनवुड के उस वृक्ष पर ही टिका हुआ था। गाँव पहुँचकर भी ड्रोन के बारे में सोचता। करीब एक महीने बाद वापसी के बाद वह सबसे पहले बालकनी में पहुँचा और उसने देखा कि ड्रोन टूटे-फूटे हालत में जमीन पर पाइन की पत्तियों के बीच में पड़ा है। उसने ड्रोन के हर हिस्से को डिब्बे में डाल लिया और रिमोट से उड़ाने की कोशिश करने लगा मगर सब व्यर्थ था। सिर्फ उसका ढांचा बचा था, उसमें जान नहीं थी कि वह पुनः पहले की तरह आसमान में उड़ कर आनंद दे सके।
निराश रिंकू गुमसुम-सा उसी बालकनी में बैठकर सोच रहा था कि क्या करे? बड़ी बहन राशि से अपने प्यारे भाई का दुःख देखा नहीं गया। रिंकू को खुश करने के लिए उसने कुछ करने का विचार किया ताकि रिंकू पुनः अपने खेलों में खो जाए। उसने घर में पड़े रद्दी कागजों से एक हवाई जहाज तैयार किया। उसे घर में रखे रंगों से रंग दिया। जन्मदिन के समय बचे गुब्बारों के साथ बाँधकर खुले आसमान में छोड़ दी। देखते ही देखते हवाई जहाज हवा में लहराने लगा। रिंकू खुशी से तालियाँ बजाने लगा। राशि ने जहाज की डोर अपने भाई रिंकू को पकड़ा दिया। यह सब देख रिंकू की कल्पनाओं को पुनः नए पंख लग गए। जब भी उसका मन करता जी भर कर अपने बनाए गए ड्रोन को हवा में लहराने लगता। अब उसके पास एक नहीं रंग-बिरंगे अपने बनाए कई ड्रोन थे।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
