Bhagwan Vishnu Katha: प्राचीन समय में पृथ्वी पर विदूरथ नामक एक प्रसिद्ध राजा हुए । एक दिन विदूरथ शिकार खेलने वन में गए । माग में उन्हें एक विशाल छिद्र दिखाई दिया, जो पृथ्वी के मुख के समान लग रहा था । उसे देखकर वे सोचने लगे – ‘यह विशाल छिद्र कैसा है? यह किसी गुफा का मुख लगता है । देखने में यह अधिक पुराना प्रतीत नहीं होता । अवश्य यह कार्य किसी बलि मनुष्य का है ।’ वे सोच-विचार कर रहे थे, तभी ब्रह्मर्षि सुव्रत उस ओर आते दिखे । विदूरथ ने उन्हें प्रणाम कर उस विशाल छिद्र के विषय में पूछा ।
सुव्रत मुनि बोले – “राजन! पाताल में एक भयानक और शक्तिशाली दैत्य रहता है, जो पृथ्वी को जुम्भित (छिद्रयुक्त) कर देता है, इसलिए उसे कुजृम्भ कहते हैं । वह दैत्य बड़ा दुष्ट और पापी है । राजन! एक बार विश्वकर्मा ने सुनन्द नामक दिव्य-शक्तियों से युक्त एक मूसल का निर्माण किया था, उस मूसल को भी कुजृम्भ ने चुरा लिया है । उस मूसल की सहायता से वह पाताल के अंदर रहकर ही पृथ्वी में छिद्र कर देता है और असुरों के आने-जाने के लिए द्वार बना देता है । अब जब आप उस दुष्ट दैत्य का संहार कर देंगे, तभी सम्पूर्ण पृथ्वी के स्वामी कहलाएँगे ।”
राजा विदूरथ ने उनसे दैत्य कुजृम्भ के वध का उपाय पूछा । ब्रह्मर्षि सुव्रत बोले- “राजन ! वह मूसल महाबलशाली होने के बाद भी शक्तिहीन हो सकता है । यदि कोई कन्या उस मूसल का स्पर्श कर ले, तो उसकी शक्ति एक दिन के लिए क्षीण हो जाती है, किंतु दूसरे दिन वह मूसल पुन: शक्तिसम्पन्न हो जाता है । इस विषय में वह दुष्ट दैत्य भी कुछ नहीं जानता । यदि किसी प्रकार से उस मूसल को शक्तिहीन कर दिया जाए तो कुजृम्भ का वध सम्भव है ।” यह कहकर सुव्रत वहाँ से चले गए ।
नगर लौटकर विदूरथ ने अपने विद्वान मंत्रियों को कुजृम्भ और उसके मूसल के बारे में बताया । जिस समय विदूरथ मंत्रियों के साथ परामर्श कर रहे थे, उस समय उनकी पुत्री मुदावती भी पास ही बैठी थी । उसने भी सारी बातें सुनीं । कुछ दिनों के बाद मुदावती सखियों के साथ एक उपवन में गई । तभी वहाँ कुजृम्भ आ गया । उसने जैसे ही मुदावती को देखा, वह उस पर मोहित हो गया । तब उसने मुदावती से विवाह करने का निश्चय कर उसका हरण कर लिया और उसे पाताल में ले गया ।
राजा विदूरथ को जब मुदावती के हरण का पता चला तो उन्होंने सुनीति और सुमति नामक अपने पुत्रों को कुजृम्भ का वध करने के लिए भेजा । दोनों राजकुमार पाताल में पहुँचकर दैत्य कुजृम्भ से युद्ध करने लगे । किंतु कुजृम्भ ने उन्हें पराजित कर बंदी बना लिया । यह समाचार सुनकर विदूरथ शोकग्रस्त हो गए । उन्होंने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो वीर उनके पुत्रों और पुत्री मुदावती को छुड़ा लाएगा, उसका विवाह मुदावती के साथ कर दिया जाएगा । तब राजा भनंदन के पुत्र वत्सप्री ने विदूरथ के सामने मुदावती को छुड़ाकर लाने की प्रतिज्ञा की । विदूरथ ने वत्सप्री को कुजृम्भ के विषय में विस्तार से बताया । शीघ्र ही वत्सप्री पाताल पहुँच गया और कुजृम्भ को युद्ध के लिए ललकारा । तब दैत्य कुजृम्भ स्वयं युद्ध में जाने के लिए तैयार होने लगा । उसका दिव्य मूसल अंत:पुर में ही रखा था । कुजृम्भ के युद्ध में जाने की बात सुनकर मुदावती ने मूसल का अनेक बार स्पर्श किया । कुजृम्भ इससे अनभिज्ञ था । उसने मूसल उठाया और अपने रथ पर सवार होकर नगर से बाहर निकला । उसने वत्सप्री पर मूसल का प्रहार किया, किंतु मुदावती का स्पर्श होने के कारण उसका प्रहार व्यर्थ सिद्ध होने लगा । तब वत्सप्रीं ने कृजुम्भ पर अग्नि शस्त्र से वार किया । बाण लगते ही कुजृम्भ के प्राणों का अंत हो गया । कुजृम्भ वध के बाद नागराज अनंत ने वह दिव्य मूसल अपने अधिकार में ले लिया । मुदावती ने सुनन्दन नामक उस मूसल का बार-बार स्पर्श किया था, इस कारण नागराज ने उसका नाम सुनन्दा रख दिया ।
तत्पश्चात् वत्सप्री-मुदावती और दोनों राजकुमारों को लेकर राजा विदूरथ के पास पहुँचा । उन्हें देखकर विदूरथ अत्यंत प्रसन्न हुए । उन्होंने मुदावती का विवाह वत्सप्री के साथ कर दिया । विवाह के बाद दोनों सुखपूर्वक जीवन बिताने लगे ।
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