मैं सड़क पर चला जा रहा था।… एक जराजीर्ण भिखारी ने मुझे रोका। लाल आंसू-भरी आंखें, नीले ओंठ, धूलि धूसरित चिथड़े, रिसते घाव… ओह, गरीबी ने कितना वीभत्स बना डाला था उस अभागे जीव को! उसने अपना लाल, सूजा हुआ मैला हाथ मेरे सामने फैला दिया। उसने कराहा और अस्फुट शब्दों में सहायता की याचना की।
मैं एक-एक करके अपनी सब जेबें टटोल गया। न बटुआ, न घड़ी, और तो और रूमाल भी नहीं। कुछ भी तो न था मेरे पास! और भिखारी अभी भी प्रतीक्षा कर रहा था।… और उसका फैला हुआ कमजोर हाथ कांप रहा था।
परेशान और शर्मिंदा होकर मैंने उसका मैला, कांपता हुआ हाथ थाम लिया।… “भैया, नाराज न होना, मेरे पास कुछ भी नहीं है।”
भिखारी ने अपनी लाल-लाल आंखों से मुझे निहारा, उसके नीले ओंठ “मुस्वफ़ुरा उठे और उसने भी मेरी ठंडी उंगलियां पकड़ ली। “तो क्या हुआ भाई, इसके लिए भी धन्यवाद! यह भी तो दान है! मैं जानता था, मैंने भी अपने उस भाई से दान पाया है।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
