जब बुधना और निम्मा के विवाह की बात सुनी तो फागुन गाँव में हलचल मच गई। किसी-किसी ने बुधना को समझाया, “अरे बुधना, ये मैम तेरे साथ नहीं रहने वाली। चार दिन रहेगी, फिर उड़कर वहीं चली जाएगी, जहाँ से आई है। तू हाथ मलता रह जाएगा।”
पर बुधना ने कहा, “मेरा जी नहीं मानता। मैंने जितनी इससे बातें की हैं, उससे लगता है, इसका मन हीरे जैसा उजला है। बाहर से जितनी सुंदर है, मन उससे कहीं ज्यादा सुंदर है।”
कइयों को इस शादी से जलन भी हो रही थी। कुछ लड़कियों ने निम्मा परी को समझाया। कहा, “निम्मा परी, अगर तुम्हें धरती के आदमी से ही शादी करनी थी तो फिर यहाँ तो इतने अच्छे-अच्छे लोग पड़े हैं। इससे तो जमींदार के बेटे मुंगेरीलाल से ही शादी कर लेतीं। जानती हो न, जमींदार के पास सतखंडी हवेली है। और वहाँ हर तरह का आराम है। नौकर-चाकर हैं, किसी चीज की कमी नहीं। हर रोज बढ़िया से बढ़िया पकवान और बग्घी पर सैर-सपाटा। बुधना के पास रहकर तो बस ईंटें ही ढोनी पड़ेंगी। या फिर मजदूरी…! तुम कैसे कर पाओगी?”
सुनकर निम्मा परी कुछ बोली नहीं, बस मुसकरा दी और कहने वाली लड़कियाँ खुद-ब-खुद लज्जित हो गईं।
अब तक बुधना को अच्छी तरह पता चल गया था कि निम्मा परीलोक से आई है और अब हमेशा के लिए धरती पर ही रहना चाहती है। खुद फागुन परी ने बुधना को राई-रत्ती तक सब कुछ बता दिया था।
बुधना ने अम्माँ को यह बात बताई तो वे सुनते ही हँस पड़ीं। बोलीं, “मैं तो पहले ही दिन समझ गई थी कि फूल जैसे हाथ-पैरों वाली यह लड़की धरती की नहीं हो सकती।…पर मेहनत करने और सीखने का जैसा जिगरा इसमें है, मैंने तो किसी और में देखा नहीं।”
कुछ दिन बाद शादी होनी थी। निम्मा ने सकुचाते हुए बुधना से कहा, “देखो बुधना, मुझे तो तुम्हारा घर जैसा है, वैसा ही पसंद है। मेरे लिए तो तुम्हारी झोंपड़ी भी स्वर्ग है। मेहनत कर लूँगी और खुशी-खुशी तुम्हारे साथ रहूँगी।…हाँ, पर तुम्हारी कोई इच्छा हो तो कहो। मैं परीलोक जाकर वहाँ से कुछ बेशकीमती रत्न और मणियाँ ले आती हूँ।”
सुनकर बुधना उदास हो गया। बोला, “तुम तो कह रही थीं कि बुधना, तुम मेहनत करते हो तो तुम्हारे शरीर पर जो पसीना झिलमिलाता है, मुझे वे मोती के कण लगते हैं।…बताओ निम्मा, क्या तुम परीलोक से जो रत्न और मणियाँ लाओगी, वो उससे भी ज्यादा कीमती होंगे?”
निम्मा शर्मिंदा हो गई। बोली, “मुझे माफ कर दो बुधना, मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है। यकीन करो, तुम्हारे पास जो कुछ है, उसी में हम गुजारा करेंगे और सुखी रहेंगे।”
कुछ दिन बाद बड़े सादे ढंग से बुधना और निम्मा परी की शादी हुई। आसपास न कोई फालतू की जगर-मगर थी, न शोर-शराबा। न ज्यादा ढोल-ढमक्का। बस, निम्मा परी ने लाल-सुनहरे गेंदे के फूलों की एक माला बुधना के गले में डाल दी। और बुधना ने भी निम्मा के गले में माला डाली। फिर अग्नि के चारों ओर सात परिक्रमाएँ कीं और लो, हो गई शादी।
गाँव वाले देख रहे थे और हैरान हो रहे थे। मन ही मन सब निम्मा की तारीफ भी कर रहे थे, जिसने कुछ ही दिनों में फागुन गाँव में सबका दिल मोह लिया था।
बुधना की माँ ने सब गाँव वालों से कहा, “अब जो रूखा-सूखा हमारे पास है, आप लोग खा लीजिए तो हमें अच्छा लगेगा।”
बुधना को लग रहा था कि कहीं खाना कम न पड़ जाए। क्योंकि आसपास के गाँवों से इतने लोग इस अनोखे विवाह को देखने आ गए थे कि चारों ओर मेला सा जुट गया था। ज्यादातर लोग ऐसे थे, जिन्हें विवाह का न्योता गया ही नहीं। तो क्या उन्हें बिना खिलाए लौटाया जाए?
बुधना के साथियों ने जो भी रूखा-सूखा भोजन था, सबको बाँटा। लोगों को वही अमृत जैसा स्वादिष्ट लग रहा था। सब ओर ऐसा खुशी और उत्साह वाला माहौल था, जैसे धरती पर कोई उत्सव मनाया जा रहा हो।
कुछ देर बाद परीलोक से निम्मा की माँ स्वप्नपरी, परीरानी देवयानी और निम्मा परी की बहुत सी सखियाँ आईं। बुधना ने पूरी-सब्जी और बूँदी के बढ़िया लड्डू बनवाए थे। उन्होंने वे खुश होकर खाए।
सभी परियाँ बुधना और निम्मा के लिए बड़े अनमोल उपहार लाई थीं। पर निम्मा ने समझाया, “बुधना को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं है। वह सीधा-सादा, पर बड़ा खुद्दार है। आपको अगर कुछ देना ही है तो अपना आशीर्वाद देकर जाइए, ताकि हमारा जीवन खुशियों से भरा रहे…!”
इस पर परीरानी, निम्मा की माँ स्वप्नपरी और निम्मा की सखी-सहेलियों ने अपने प्यार और मंगल कामनाओं की वर्षा सी कर दी। फिर बुधना और निम्मा परी की बलैयाँ लेकर सब परियाँ परीलोक लौटीं।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
