अब तो सारे गाँव में पता चल गया कि एक बड़ी सुंदर अनोखी मैम आई है, जिसने बुधना के साथ मिलकर सारे दिन ईंटें ढोई हैं। यहाँ तक कि आसपास के गाँवो तक भी खबर चली गई।
लोग हैरान होकर जानना चाहते थे कि कौन है यह निम्मा परी? क्या सचमुच परी ही है, या कि…! लेकिन पूछने की किसी की हिम्मत न हो।
रात हुई तो खूब बड़ी-बड़ी तलवार कट मूँछों वाले जमींदार जोगासिंह ने वहाँ आकर बातों-बातों में कहा, “ये मैम चाहें तो हमारे घर आकर रुक जाएँ। वही खाना खाएँ। आराम करने के लिए बढ़िया बिस्तर लगवा दूँगा। कोई परेशानी न होगी।…और कोई खास जरूरत हो तो बताई जाए।” कहकर उन्होंने चुपके से निम्मा परी की ओर नजर दौड़ाई।
लेकिन निम्मा चुप। एकदम चुप्प…!
उसकी चुप्पी इतनी भारी थी कि जोगासिंह की सारी रईसी पर भारी पड़ती थी। बेचारा जोगासिंह! वह कुछ सिटपिटा सा गया।
निम्मा को चुप देख, गाँव के और लोग भी हैरान थे। पर कहीं न कहीं उनको अच्छा लग रहा था। जोगासिंह का बात-बात पर पैसे की ऐंठ दिखाना किसी को पसंद न था। लगता था, जैसे वह हर किसी को नीचा दिखाना चाहता हो। या फिर मूँछें तान, धौंसपट्टी के साथ जता रहा हो, कि पैसे के जोर पर मैं जिसे चाहे, खरीद सकता हूँ।
जोगासिंह को लगा, यह तो उसकी बेइज्जती सी हो गई। निम्मा परी ने उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। सो रोब जमाने के लिए एक बार फिर अपनी बड़ी-बड़ी मूँछें उमेठता हुआ बोला—
“देखो जी, जोगासिंह के गाँव में कोई आए और परेशान हो, यह हम नहीं चाहते। सो सारे इंतजाम का जिम्मा हमारा। रहने, खाने, ठहरने का खूब बढ़िया इंतजाम हम करेंगे। अपनी सतखंडा हवेली में।…और भी जिस सुख-आराम की चाहत हो, सो बता देना। सब इंतजाम हो जाएगा। समझ लो, यहाँ दूर-दूर तक जमींदार जोगासिंह का राज चलता है। एक पत्ता नहीं खड़कता उससे पूछ
े बिना। सो जो मैं चाहूँगा, जो कहूँगा, पलक झपकते हो जाएगा।…”
निम्मा परी ने उसकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। सो रोब जमाने के लिए एक बार फिर अपनी बड़ी-बड़ी मूँछें उमेठता हुआ बोला—
“देखो जी, जोगासिंह के गाँव में कोई आए और परेशान हो, यह हम नहीं चाहते। सो सारे इंतजाम का जिम्मा हमारा। रहने, खाने, ठहरने का खूब बढ़िया इंतजाम हम करेंगे। अपनी सतखंडा हवेली में।…और भी जिस सुख-आराम की चाहत हो, सो बता देना। सब इंतजाम हो जाएगा। समझ लो, यहाँ दूर-दूर तक जमींदार जोगासिंह का राज चलता है। एक पत्ता नहीं खड़कता उससे पूछ
लेकिन आश्चर्य, निम्मा परी फिर भी चुप। बिल्कुल चुप। जैसे बोलना ही भूल गई हो।
पता नहीं, वह किन खयालों में गुम थी।
फिर आखिर अपना संकोच छोड़कर उसने धीरे से बुधना से पूछा, “मैं रात तुम्हारे घर रुकूँ तो तुम्हें कोई मुश्किल तो नहीं आएगी?”
बुधना बोला, “मुश्किल तो क्या आएगी? जैसे हम झोंपड़ी में रहते हैं, तुम भी रह लेना। पर…-!”
“पर क्या…?”
“यही कि निम्मा परी, हमारी टूटी-फूटी झोंपड़ी में भला जमींदार साहब की ऊँची हवेली जैसा आराम कहाँ? और फिर पता नहीं, मेरी बुढ़िया माँ की मोटी-मोटी रोटियाँ तुम्हें अच्छी लगेगीं भी कि नहीं? हम तो मिर्च और प्याज के साथ खा लेते हैं, या फिर ज्यादा से ज्यादा चटनी। बस, इतनी ही हैसियत है हमारी। पर तुम…तुम तो…!”
निम्मा बोली, “क्यों, तुम खा सकते हो तो मैं क्यों नहीं?”
बुधना बोला, “पर…पर…मैं तो मजदूर हूँ निम्मा। फिर मैं इनसान हूँ, और तुम…! तुम तो किसी और ही दुनिया से आई हो निम्मा परी।”
“बुधना, तुम मेहनत-मजूरी करते हो, सच्चे इनसान हो, यही चीज तो मुझे पसंद है। जो लोग दिन-रात काम करके पसीना बहाते हैं, वही असल में धरती के सच्चे बेटे हैं। मैं…मैं चाहती हूँ बुधना, धरती पर रहूँ तो बिल्कुल तुम्हारे जैसी ही बनकर रहूँ…!”
कहते हुए निम्मा परी के चेहरे पर बड़ा अनोखा भाव था।
किसी को समझ में नहीं आया कि निम्मा परी चाहती क्या है। वह कहना क्या चाहती है?…हालाँकि यह हर कोई समझ गया कि निम्मा परी को जोगासिंह के घर रहना पसंद नहीं है। वह बुधना के घर ही रहेगी। उसकी टूटी-फूटी झोंपड़ी में। और जैसे वह खाता-पहनता है, वैसे ही…!
‘है न हैरानी की बात…?’
एक ने दूसरे से कहा। दूसरे ने तीसरे से…और होते-होते पूरे गाँव में फैल गई बात, कि अपने फागुन गाँव में परीलोक से परी आई है। एकदम शहरी मैम जैसी।…मगर वो वैसी वाली परी नहीं, कुछ अलग ही है। सो उसे बड़ी-बड़ी तलवार कट मूँछों वाले जमींदार जोगासिंह के घर रहना पसंद नहीं। बुधना के घर रहेगी, उसकी टूटी-फूटी झोंपड़ी में। और जो बुधना खाता है, वही मोटा-सोटा खाएगी, मोटा पहनेगी।
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
