Hindi Katha Kahani: एक बार जब बलदाऊ जी ने देखा कि श्री कृष्ण किसी चिंता में डूबे हुए है तो पूछा कि, “क्या हुआ कान्हा , आज कुछ चिंतित प्रतीत हो रहे हो ?”
तब श्रीकृष्ण ने अपनी चिंता बताते हुये कहा, ” हाँ दाऊ, कालयवन का आतंक दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। उसके अत्याचारों से मनुष्य और ऋषि मुनि बहुत दुख प्राप्त कर रहे हैं। मैं ऐसा कोई उपाय सोच रहा हूं जिससे कि उसके अत्याचारों से इस पृथ्वी को मुक्ति मिल सके।”
बलदाऊ जी ने श्रीकृष्ण की बात सुनी तो मुस्कुराते हुये बोले- “अच्छा तो फिर क्या उपाय सोचा तुमने?”
यह सुनकर श्रीकृष्ण ने उच्छ्वास लेते हुये कहा, “नहीं दाऊ, अभी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। उसे ब्रह्मा का वरदान प्राप्त है जिस कारण से उसे कोई राक्षस या दैव मार नहीं सकता। उसे मारने के लिए कोई ऐसा विकल्प ढूंढना पड़ेगा, जिससे उसका वरदान उसकी रक्षा न कर सके।”
श्रीकृष्ण की यह बात सुनकर बलदाऊ मुस्कुराते हुये बोले , “सत्य कहा, तो… क्या करने वाले हो तुम?
अभी श्रीकृष्ण को कोई उपाय सूझ ही नही रहा था तो उन्होंने कहा, ”अभी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है दाऊ, अगर आपकी दृष्टि में कोई उपाय हो तो कहो।”
यह सुनकर दाऊ मुस्कुराते हुये बोले, “उपाय तो है। “
उपाय का नाम सुनते ही श्रीकृष्ण उत्साहित हो गये और बोले कि, ” तो फिर बताइए ना दाऊ आप विलंब क्यों कर रहे हैं?
तब बलदाऊ ने उनसे पूछा कि, ” कान्हा… महर्षि मुचुकुन्द के बारे में ज्ञात है तुम्हें ?”
तब श्रीकृष्ण ने सहज भाव से कहा, “हाँ दाऊ… किंतु वो तो पिछले अठारह लाख सालों ने निद्रा मग्न हैं। वो हमारी सहायता किस प्रकार कर सकते हैं ?”
श्रीकृष्ण की बात सुनकर बलदाऊ हँसते हुये बोले, “एकमात्र ऋषि मुचुकुन्द ही ऐसे व्यक्ति है जो, अपनी दृष्टिपात मात्र से किसी को भी क्षण भर में भस्म कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण दाऊ की बात सुनकर बोले, ” आप ठीक कह रहे हैं दाऊ। किंतु कालयवन को महर्षि मुचुकुंद तक पहुंचाया कैसे जाए ?
यह सुनकर बलदाऊ रहस्यमयी तरीके से मुस्कुराते हुए बोले, ” एक अच्छे धावक को जीतने के लिए, दौड़ने से पहले अपने कदम पीछे भी लेना पड़ते हैं।”
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इतना कह कर बलदाऊ वहां से चले गये और श्रीकृष्ण ने बलदाऊ की बातों का आशय समझा और जाकर कालयवन को युद्ध के लिए ललकारा। और दोनों में युद्ध प्रारंभ हो गया। युद्वभूमि में श्रीकृष्ण ने कालयवन का उपहास उड़ाया और जब कालयवन ने क्रोधित होकर श्री कृष्ण के ऊपर प्रहार किया तो श्रीकृष्ण युद्वभूमि छोड़ कर वहाँ से भाग खड़े हुये।
और घमंड से भरा हुआ कालयवन श्रीकृष्ण को मारने के लिए, ललकारते हुये उनके पीछे दौड़ पड़ा।
कालयवन (ललकारते हुये) – “अरे रणछोड़… बीच मे ही युद्व छोड़कर कहाँ जा रहा है। ठहर जा अभी तुझे नरक में भेजने की व्यवस्था करता हूँ।”
तब श्रीकृष्ण सीधे उसे गुफा में पहुंचे जहां मुचुकुंद ऋषि अपनी तप की थकान मिटाने के लिए 18 लाख वर्षों से सो रहे थे।
और वहां पहुंचकर उन्होंने अपना पीतांबर सोये हुये मुचुकुंद ऋषि के ऊपर ओढ़ा दिया और स्वयं जाकर अंदर छुप गये ।
श्रीकृष्ण के पीछे- पीछे जैसे ही कालयवन ने गुफा में प्रवेश किया तो उसकी दृष्टि सोए हुए मुचुकुन्द ऋषि पर पड़ी।
कलयवन – ” हा हा हा… तो यह है मथुरा नरेश की असली औकात! रण छोड़कर इस गुफा में कायरों की भांति सो रहा है। लेकिन अब इस धरती पर तेरा समय पूर्ण हुआ।”
और ऐसा कहकर कालयवन ने ऋषि मुचुकुन्द पर लातों से प्रहार करना शुरू कर दिया। कालयवन के लातों के प्रहार से ऋषि मुचुकुन्द की निद्रा टूट गई। और उन्होंने क्रोध से भरकर कालयवन की तरफ देखा।
और उनकी दृष्टिमात्र पड़ते ही कालयवन जलकर भस्म हो गया। और इसी लीला के कारण यशोदा नंदन श्रीकृष्ण “रणछोड़” कहलाये।
