atma hi prakash hai
atma hi prakash hai

एक युवा संन्यासी किसी आश्रम में मेहमान था। उस आश्रम के वृद्ध फकीर से उसने आत्मा के सम्बन्ध में कुछ बातें पूछी। लेकिन वह वृद्ध फकीर दिन भर हँसता रहा और कोई जवाब न दिया!

जो भी जानते हैं, उन्हें जवाब देना बहुत मुश्किल है। जो नहीं जानते हैं, उन्हें जवाब देना बहुत ही आसान है।

साँझ हो गयी, अँधेरा डूबने लगा, वह युवक खोजी वापस लौटने को हुआ। द्वार पर आया, अमावस की रात है। सूरज ढल गया, अँधेरा घिर गया, जंगल का रास्ता है। सीढ़ियाँ उतरते समय वृद्ध फकीर से कहने लगा, बहुत अँधेरा है, कैसे जाऊँ?

उस बूढ़े फकीर ने कहा, “जो अँधेरे में नहीं जा सकता, वह जा भी नहीं सकता है। सारे जीवन में ही अँधेरा है, अँधेरे में ही जाना पड़ेगा।”

फिर भी वह युवक डरा हुआ मालूम पड़ा, अनजान रास्ता है, जंगल है, भटक जाने का डर है। उसने कहा, कोई दिया न दे सकेंगे? वह वृद्ध फकीर फिर हँसने लगा। एक दिया जला कर लाया, उस जवान के हाथ में दिया और वह जवान दिये को लेकर उतरता था सीढ़ियाँ, तब उस बूढे फकीर ने फिर फूँक मार दी और दिया बुझा दिया और फकीर ने युवक को कहा- “बाहर के रास्तों पर तो मैं तुम्हें दिया दे दूँगा, लेकिन भीतर के रास्तों पर कौन तुम्हें दिया देगा? और बाहर के रास्तों पर कृत्रिम प्रकाश की व्यवस्था हो सकती है, भीतर के रास्ते पर बाहर से प्रकाश का कोई आयोजन सम्भव नहीं है और अगर भीतर जाना हो, तो

अँधेरे से जाना ही पड़ेगा। जिस आत्मा की तुम बात पूछते थे, अँधेरे से गुजरे बिना कोई उस आत्मा को नहीं पा सका। आत्मा तो प्रकाश है, लेकिन

अँधेरे से गुजर जाना जरूरी शर्त है!”

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)