amooly upahaar
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भारत कथा माला

उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़  साधुओं  और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं

घर में खूब चहल-पहल थी। शादी जैसा माहौल था। हो भी क्यों न, भाभी का पहला करवा व्रत जो था। खूब खरीदारी की गई थी भाभी के मायके वालों के लिए। उपहारों की पैकिंग चल रही थी। सारा परिवार भाभी के मायके जाने की तैयारी में व्यस्त था। माँ ड्राइवर को बार-बार एक ही बात कहे जा रही थी, ‘सब सामान ध्यान से गाड़ी में रखना। कोई चीज छूट न जाए। फलों का टोकरा आया या नहीं?’

‘सब आ गया माँ जी। सब हो गया, चिंता न करो, आप निश्चिंत रहें।’

बड़ी भाभी सुबह से तैयारी में जुटी थी। चुपचाप इधर-से-उधर सम्मान रख रहीं थी, पर आज उनके सलोने से मुख पर चमक नहीं थी। बड़ी भाभी के मायके वालों को तो इतना सम्मान माँ ने कभी नहीं दिया। मन में विचार मन्थन चल ही रहा था कि भाभी चाय का कप देते हुए बोलीं, ‘दीदी चाय पी लीजिए अदरक वाली, हमने स्पेशल आपके लिए बनाई है। हम देख रहे हैं आप कल से बहुत उदास हैं। क्या ननदोई जी की याद आ रही है?’

‘अरे भाभी, हमारी छोड़िये, आप बताइए कि आज चाँद से मुखड़े पर चिंता की काली बदरी क्यों छाई हुई हैं? भैया ने कुछ कह दिया क्या?’

‘नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं?’

‘ऐसे कैसे कोई बात नहीं, हम जानते हैं आप हमेशा मुस्कराती रहती हैं, पर कल से देख रहें हैं आप चुप सी हैं। क्या मायके की याद आ रही है? हमें नहीं बताओगी अपने मन की बात?’

‘छोड़िये न दीदी, ‘माँ जी आवाज लगा रही हैं।’ कहकर भाभी कमरे से निकल गईं। पर हमने उनकी आँखों की नमी देख ली थी।

भाभी गरीब परिवार से थी पर भगवान ने धन के स्थान पर रूप और गुणों का खजाना दिल खोल कर लुटाया था उन पर। बड़े भैया ने किसी दोस्त की शादी समारोह में भाभी को देखते ही मन-ही-मन पसंद कर लिया था। माँ ने भी देर न लगाते हुए रिश्ता पक्का कर एक महीने में ही शुभ मुहूर्त निकलवा कर शादी कर दी थी। भाभी गुणों की खान थी। आते ही सारे घर की जिम्मेदारी उठा ली। माँ सबके सामने उनके गुण गाते नहीं थकती थीं। भाभी थी भी बहुत गुणकारी बिना किसी शिकायत के अपने काम में लगी रहतीं। लेकिन जब से छोटे भाई की शादी हुई है माँ का स्वभाव भाभी के प्रति कुछ बदल सा गया था। शायद छोटी भाभी अमीर घराने से है इसलिए, क्योंकि उनके मायके से आए सामान को बार-बार दिखाती और उन की प्रशंसा में कसीदे गढ़ती रहती हैं। एक दिन माँ को मौसी से फोन पर बात करते हुए बड़े भैया ने सुन लिया।

माँ कह रही थी, ‘अरे जीजी, क्या बताऊं, बड़े की ससुराल वाले तो त्योहार-बार पर कुछ देना ही नहीं जानते। ज्यादा से ज्यादा एक मिठाई का डिब्बा भिजवा देंगे। तीजों के त्योहार पे ऐसी धोती भेजी जिज्जी, क्या बताऊँ? जो न पहनी जाए न धरी जाए। हमारी तो काम वाली बाई भी न लें। हां जिज्जी, छोटे की ससुराल से खूब सामान आया, मिठाई के दस डब्बे, काजू मेवा के डिब्बे सो अलग। पूरे परिवार के कपड़े-लत्ते, तुम्हारे जीजा जी की गर्म चादर और हां जिज्जी ये बताना तो हम भूल ही गए, जन्मदिन पर सोने की चेन, फल-फ्रूट न जाने क्या-क्या। पता नहीं हमारा लल्ला अनुपमा बहू की खूबसूरती पर ऐसा दिवाना हो गया कि हमें सादी करनी पड़ी। दान-दहेज में कुछ भी नहीं आया।

यह सब सुनकर बड़े भैया को बहुत दुःख हुआ। भैया ने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनुपमा के विषय में ऐसी सोच होगी माँ की। भैया ने जब हमें बताया तो हमारा मन भी बहुत दुखी हुआ। हम सोच में पड़ गए कि इस समस्या का कैसे समाधान हो? भाभी को इस तरह उदास नहीं देख सकते थे। निस्वार्थ भाव से सभी की सेवा में लगी रहती थीं।

अब समझ आया भाभी की उदासी का कारण। माँ कैसे कर सकती हैं ऐसा? भाभी उनका कितना ध्यान रखती हैं। जब माँ को हार्ट अटैक आया था भाभी ने रात-रात भर जागकर उनकी सेवा की थी। अपने खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रहता था। क्या पैसा ही सब कुछ होता है? अब तो भाभी के पापा भी नहीं। रहे तो वे कैसे कह सकती हैं अपने छोटे भाई को कि त्योहारों पर उपहार देकर जाए। हमें ही कुछ करना पड़ेगा। माँ को समझाना होगा। त्योहार के अवसर पर घर की लक्ष्मी ही उदास रहे तो त्योहार की खुशी गायब हो जाती है। त्योहार तो खुशी के लिए ही मनाए जाते हैं।

त्योहार की पूजा चल ही रही थी कि श्याम (पति) भी आ गए क्योंकि अगले दिन की ही हमारी स्विट्जरलैंड जाने की फ्लाइट थी। शादी के बाद हम कहीं भी घूमने नहीं गए थे। पहले त्योहार का गिफ्ट था श्याम जी के मम्मी पापा यानी मेरे सास ससुर जी की ओर से। रात को सब खाना-वाना खा पीकर ड्राइंगरूम में बैठे हुए गप्पबाजी करने लगे। सबने हमारे हाथ से बनी कॉफी की फरमाइश कर दी क्योंकि हम अच्छी कॉफी के लिए परिवार में मशहूर थे। पर भाभी ने हमें रोक दिया और स्वयं रसोई में कॉफी बनाने चली गई तो श्याम जी ने एकाएक विषय बदल दिया। गंभीरता से अपनी मम्मी के लिए दीपावली पर उपहार में सोने के हार की मांग कर दी। कहने लगे, “मम्मी मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए ये शादी मैंने अपनी मर्जी से की थी, पर आप जानती हैं न, हर माँ उम्मीद करती है कि उसके बेटे की शादी में खूब दान दहेज आए। जिससे सबके सामने उनका दबदबा बना रहे। सोने के गहनों के साथ-साथ पूरे परिवार के कपड़े व गाड़ी भी आए। पर मेरी शादी में ऐसा कुछ नहीं हुआ। माँ, हर रोज कभी चाची, कभी मामी, कभी बुआ से यही कहती रहती हैं कि मेरे श्याम ने तो सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बुआ भी ताने मारने से नहीं। चूकती, क्योंकि उनके बेटे की शादी में भी गाड़ी आई है और चाची के बेटे की शादी की तो आप पूछिये ही मत उन्होंने पूरे परिवार के कपड़ों के साथ-साथ गहने भी दिए।

“कभी पड़ोस वाले गुप्ता जी का, कभी शर्मा जी का उदाहरण देती रहती हैं, ‘देखो पड़ोसन के लड़के की शादी में लंबी गाड़ी आई है, हमारे तो नसीब ही फूट गए। कुछ नहीं मिला। माँ जी, मेघना को मैंने कभी कोई कमी नहीं महसूस होने दी और न ही आज तक कुछ कहा। पर अब आप ही बताइए, माँ, बुआ व चाची के ताने कब तक…? अब नहीं सुने जा रहे। आप पिता जी के लिए अंगूठी और माँ के लिए सोने का या डायमंड का सैट बनवाकर दीपावली पर भिजवा दीजिएगा। जिससे उनका मुंह बंद हो जाए।” श्याम जी ने गुस्से से मेरी ओर देखते हुए कहा।

मैं हैरान थी, श्याम को क्या हो गया? दहेज के खिलाफ बात करने वाला आज स्वयं दहेज माँग रहा है? लगता है मैंने गलती कर दी शादी करके? क्या सब सास ऐसी होती हैं। अब कैसे सामना करूंगी मम्मी जी का? मैं तो उन्हें आदर्श सास समझती थी। आज उनका भी असली चेहरा सामने आ गया।

माँ के चेहरे पर चिंता साफ नजर आ रही थी। कहां से देंगी वे ये सब इतनी जल्दी? छः महीने ही तो हुए हैं माँ का ऑप्रेशन हुए। पिता जी भी रिटायर्ड हो चुके हैं। जमा की गई पूंजी घर खरीदने में लग गई। मन ही मन सोचा।

तभी भाभी मुस्कराती हुई हाथ में कॉफी की ट्रे लेकर आई और खिलखिलाती हुई बोली, “अरे चुपचाप क्यों हैं सब? क्या हुआ सबको? गर्मागर्म कॉफी का मजा लीजिए, और गपशप करिए दो घंटे बाद तो दीदी व जीजा जी को एयरपोर्ट के लिए निकलना ही है।”

मैंने मोबाइल उठाकर समय देखा तो एक बज गया था। बातें करते-करते समय का पता ही नहीं चला। माँ उठकर अपने कमरे में चली गई। मैं भी उनके पीछे-पीछे चल दी। उन्हें चिंता में देख मैंने तसल्ली देते हुए कहा, “माँ आप चिंता न करें, श्याम से तो मैं बात करूंगी कि ये क्या नाटक है अब? क्यों की थी शादी? किसी ने कोई जबरदस्ती तो नहीं की थी? माँ मैं तलाक ले लूंगी, ऐसे लालची लोगों से नहीं रखना मुझे रिश्ता?”

“नहीं बेटा, जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाते। ये मेरे ही कर्मों का फल है, इसके पीछे मैं भी दोषी हूं। मैंने भी दूसरे की बेटी के लिए ऐसा ही सोचा था, ईश्वर ने वही तो वापिस किया है जो मैंने बोया, वही तो मिलेगा। तुम चिंता न करो सब ठीक हो जाएगा। तुम खुशी-खुशी घूम कर आओ, तुम्हारे बड़े भैया सब संभाल लेंगे, मुझे अपने बेटे पर पूरा भरोसा है।” माँ ने सिर पर हाथ फेरते हुए कहा और मैं उदास मन से पैकिंग करने लगी।

टैक्सी में सामान रखते हुए भैया ने गाल पर प्यार से चपत लगाते हुए कहा, “लगता है हमारी छुटकी नाराज है हमसे?” तभी भाभी भी अंदर से आकर गले से लिपट गई प्यार से धीरे से कान में बोली, “दीदी चिंता मत करो, जीजा जी का नाटक था ये सब। उन पर गुस्सा मत होना।”

“क्या…?, मैंने हैरान होकर श्याम और भैया की ओर देखा तो दोनों मंद-मंद मुस्करा रहे थे। श्याम की आँखों में देखा तो लगा जैसे कह रहे हों, कैसी लगी हमारी अदा? मैंने राहत की साँस ली और गाड़ी में बैठ गई। खुशी के मारे मेरी आँखों से आँसू निकल आए। श्याम ने रुमाल देते हुए कहा, “जाने मन कैसी लगी हमारी डिमांड?” मेरे पास शब्द नहीं थे। मन-ही-मन मैं बहुत खुश थी। कितनी सहजता से इन्होंने समस्या का समाधान कर दिया था। दरअसल भैया का और श्याम जी का जीजा साले का रिश्ता कम और दोस्ती का ज्यादा था। भैया ने सारी स्थिति श्याम जी को बताई। इन्होंने भैया को आश्वस्त किया, ‘आप बिलकुल चिंता न करें। हम कुछ करते हैं।’

मैंने माँ से बात करने के लिए फोन उठाया तो इशारे से मना करते हुए बोले, “मेरे साले साहब हैं न, सब संभाल लेंगे और जो मिलेगा आधा-आधा बाँट लेंगे…क्यों…?” कहकर ठहाका मार कर हँसने लगे। सच में भाभी के लिए दीपावली पर इससे अच्छा उपहार कुछ हो सकता था…?।

भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’