एक दड़बे में एक मुर्गा रहता था। हर रोज सूर्याेदय से पूर्व वह पुरजोर आवाज में बांग देता और सूर्य के उदय होने पर गर्व से सिर उठाकर सभी मुर्गियों को देखता, जैसे कह रहा हो कि देखो, मेरे बुलाते ही सूरज को सारे काम छोड़कर आसमान में आना पड़ता है।
इस पर तुर्रा ये कि दड़बे की सारी मुर्गियां यह मानने लगी थीं कि सूरज इसी की वजह से निकलता है। यदि यह उसे आवाज देकर न बुलाए तो वह सोता ही रहेगा और कभी सुबह नहीं होगी। एक रात मुर्गा बुरी तरह बीमार हो गया। वह आंखें भी नहीं खोल पा रहा था।
दड़बे की सारी मुर्गियां बेहद चिंतित हो गईं कि अब सुबह कैसे निकलेगी। मुर्गा बीमारी की वजह से इतना कमजोर हो गया था कि उसमें बांग देने लायक ताकत ही नहीं बची थी। सारी मुर्गियां पूरी रात मुर्गे को घेरकर खड़ी रहीं। और इस चिंता में डूबी रहीं कि यदि मुर्गे ने उठकर बांग नहीं दी तो सूरज नहीं निकलेगा और कयामत आ जाएगी।। लेकिन, जैसे ही भोर हुई, सूरज अपने समय पर उदय हो गया। इसी के साथ ही मुर्गियों के मन का अंधकार भी हमेशा के लिए छंट गया।
सारः संसार का कोई काम किसी के बिना नहीं रुकता है।
ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं– Indradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)
