किसी गाँव में एक व्यापारी के पास एक घोड़ा था। वह अपने बेटे से भी ज्यादा उसका ख्याल रखता था। उसका बेटा भी उस घोड़े को बहुत चाहता था। वे घोड़े पर सामान लादकर बाजार ले जाते और उसे बेचकर उधर से गाँववालों के उपयोग का सामान लेकर गाँव वापस आ जाते। समय के साथ-साथ व्यापारी बूढ़ा हो गया तो उसके बेटे ने उसके कारोबार की कमान अपने हाथ में ले ली।
वह काफी पढ़ा-लिखा था तो उसवफ़े तरीकों से कारोबार काफी फलने-फूलने लगा। उसकी व्यस्तता बढ़ती गई तो उसने घोड़े की देखभाल के लिए एक साइस नियुक्त कर लिया। घोड़े की मेहनत भी काफी बढ़ती जा रही थी। पहले उसका युवा मालिक साईस से नियमित रूप से घोड़े की खैरखबर लेता रहता था। फिर उसे इतनी भी फुरसत नहीं रही। कोई जवाबदेही न महसूस करके साईस भी अपने काम के प्रति लापरवाह हो गया और घोड़ा बीमार पड़ गया।
पर वह अपना काम करता रहा। एक दिन लड़का जब उस पर सामान लादकर चलने लगा तो घोड़ा लड़खड़ाकर नीचे गिर गया। तब लड़के का ध्यान उसकी सेहत पर गया। उसे बहुत अफसोस हुआ कि उसकी समृद्धि में जिस घोड़े का इतना बड़ा योगदान रहा, उसी को वह भुला बैठा। वह उसे तुरंत चिकित्सक के पास ले गया। उसके उपचार से घोड़ा कुछ ही दिनों में भला-चंगा हो गया। फिर लड़के ने काम की बढ़त को देखते हुए दो और घोड़े रख लिए ताकि पुराने घोड़े को आराम मिल सके।
सारः तरक्की की दौड़ में उन्हें नहीं भूलना चाहिए, जिनका उस तरक्की में योगदान रहा होता है।
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