बेल बजते ही दामिनी क्लास से निकल कर तेजी से कदम बढ़ाती स्टाफरूम में जा पहुंची। दो-दिनों की छुट्टियों के बाद आज ही लौटी थी, इसलिए कापियों का ढेर लग गया था। वह कापियों का बंडल उठाए टेबल पर आ बैठी। सुबह इतनी देर हो गई थी कि कुछ भी खा नहीं पाई थी। दिल चाहा बैग से निकाल कर दो बिस्कुट ही खा ले, लेकिन कापियों पर नजर पड़ते ही जुट गई थी।तभी वहां पाण्डे जी आ बैठे। हमेशा नियमों और सिद्धांतों पर चलने का दावा करने वाले पाण्डे जी को मैनेजमेंट और शिक्षक दोनों ही अपने फायदे के लिए मिला कर रखते थे। पाण्डे जी के तीरे निशाने पर भी कम से कम तीन-चार शिक्षक-शिक्षिकाएं जरूर रहते थे और समय के साथ बदलने वाले सिद्धांतों में बांध उनकी योग्यता और कर्मठता पर प्रश्नचिह्न लगा देते थे। उन्हें देखते ही दामिनी अपने काम में लगी रहती, क्योंकि पाण्डे जी की हॉटलिस्ट में उसका नाम सबसे ऊपर था। फिर भी पाण्डे जी को उसे टोके बिना चैन कहां था।
‘तो आप छुट्टियां बिता कर आ गई। खूब घूमना फिरना और मौज मस्ती हुआ होगा।
‘घूमना-फिरना कहां सर। काम ही ऐसे थे कि दम मारने की भी फुर्सत नहीं मिली।

‘छोडिय़े ये बहानेबाजी, मैं खूब समझता हूं, क्या काम रहा होगा, सैर सपाटे का प्रोग्राम होगा। चाहे बुरी लगे पर अभी बच्चों के सर पर परीक्षा हैं, ऐसे समय छुट्टी नहीं लेनी चाहिए थी। वह नैतिकता पर दो-चार जुमले और उछालते और दामिनी उसका प्रतिकार करती, उसके पहले ही दनदनाती हुई उज्जवला वर्मा आ धमकी और हमेशा की तरह शुरू हो गई।
‘इस स्कूल में तो बस ले देकर मैं ही बलि का बकरा हूं। कोई कुछ भी करे, किसी को कुछ नहीं होता और मैं कुछ करूं तो भी न करूं तो भी मेरा नाम जरूर फंसता है। पकड़ में सबसे पहले मेरी ही गर्दन आती है। ‘अरे क्या हुआ, इतना खार खाए क्यों बैठी हैं।
‘लो अब इनकी सुनो, सब कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहना तो कोई इनसे सीखे। वर के मामा भी यही, वधू के मामा भी यही फिर भी अनजान बने बैठे हैं। जैसे मेरे और प्रिंसिपल मैम के वाद-विवाद का इन्हें कुछ पता ही न हो। एक थप्पड़ मैंने सातवीं के कदम को क्या लगा दिया, हंगामा हो गया। पेरेन्ट्स चले आए, सवाल-जवाब करने। तब ये कहां थे, जब कदम के माक्र्स जीरो आते थे। जितना सर चढ़ाना है चढ़ाएं, यही बेटा जब गिरेबान थामेगा, तब पता चलेगा कि अनुशासन क्यों जरूरी होता है। प्रिंसिपल मैम तो खुद ही अनुशासन पर जोर देती हैं, आज मुझे लास्ट वार्निंग दे रही थी।
‘मेरे मना करने पर भी आप किसी न किसी बच्चे की पिटाई कर ही देती हैं। आज लास्ट वार्निंग मिली है, आगे बच्चे पर हाथ उठाया, तो कार्यवाही की जाएगी। ‘लास्ट वार्निंग माई फुट… निकालना है निकाल दें, पर बदतमीजियां बर्दाश्त नहीं होती।
‘शांत रहिये। इस तरह अपना खून जलाने का कोई फायदा नहीं है। जुबान बंद रखने में ही फायदा है। एक कोने से म्यूजिक टीचर कावेरी की आवाज आई।
अब तक चुपचाप बैठी दामिनी अपने आपको रोक नहीं सकी, ‘कावेरी तू भी न हमेशा नानी-दादी की तरह पुराने और घिसे-पिटे जुमले उछालती रहती है। बहुत हो गया, सबकी सुनो पर अपनी जुबान बंद रखो। औरतें जैसे सुनने के लिए ही पैदा हुई हैं। औरत होना तो पहले से ही गुनाह लगता था अब तो शिक्षिका होना, वह भी प्राइवेट स्कूल में डबल गुनाह लगने लगा है। ईश्वर ने जाने किस कलम से मेरी किस्मत लिखी है कि कुछ भी समतल नहीं है। पहली झड़प तो घर से शुरू हो जाती है। मुंह अंधेरे उठती हूं, बच्चों को स्कूल भेज, बिना खाये-पिये दौड़ते हांफते स्कूल पहुंचती हूं। घर स्कूल से वाकिंग डिस्टेंस पर है इसलिए स्कूल बस भी मुझे लेने के लिए नहीं रुकती है।
स्कूल पहुंचते ही ऑफिस से फरमान जारी होता है और तत्काल लाल पेन से लेट रच देते हैं। पैसा देते हैं तो आदमी को भी ये लोग मशीन ही समझते हैं। घर में ही कौन मान-सम्मान मिलता है। बच्चे, सासू मां और पतिदेव सबके अपने अपने राग हैं। पतिदेव पेपर में डूबे रहते हैं, जिम्मेदारी महसूस करते तो मेरी मदद नहीं करते? बच्चों के होमवर्क ही पूरे करवा देते।
मेरी किस्मत ही है न कावेरी कि सब कुछ करने के बाद भी पतिदेव सीधे मुंह बात नहीं करते। पड़ोस में सुनंदा है। शक्ल न सूरत, पर किस्मत ऐसी कि चार अंगुल सिन्दूर मांग में भरे पति पर ऐसे हुक्म चलाती है जैसे गुलाम हो। पति भी आगे-पीछे म्याऊं-म्याऊं करता चाकरी बजाता है। साडिय़ों से वार्डरोब भरा रहता है। एक मैं हूं कि खुद कमाती हूं फिर भी एक अच्छी साड़ी खरीदने के लिए तरस जाती हूं। ये भी कोई जिंदगी है? हम जिंदगी जीते नहीं ढ़ोते हैं।
तभी कावेरी अपनी सीट से उठते हुए बोली, ‘दामिनी, कितनी कड़वाहट तुमने भर रखी है। क्या फायदा है मन जलाने से।
‘तभी उज्जवला वर्मा बोल पड़ी, अगर ये दिल में जमा होते रहे तो खुद को ही ऐसे जलाएगी कि कोयला भयो न राख वाली स्थिति हो जाएगी। शादी होगी तब समझेगी। जा के पाव न फटी बिवाई सो क्या जाने पीर पराई।
बेल बजते ही उज्जवला वर्मा तेजी से क्लास रूम की तरफ बढ़ गई। दामिनी फिर से अपनी कापी में मगन हो गई। तभी अंग्रेजी की शिक्षिका सुजाता विश्वास आ गई। आते ही दामिनी पर निशाना लगाया। ‘ठाठ तो बस तुम्हारे ही हैं दामिनी दो-दो पीरिएड लगातार लीजर।
‘ठाठ क्या खाक हैं मेरे, देख ही रही है, पानी पीने तक की फुर्सत नहीं है।
‘सो तो तुम ठीक ही कह रही हो, दिनों दिन शिक्षकों के काम बढ़ते जा रहे हैं। पता है आज स्कूल आवर के बाद शिक्षकों और प्रिंसिपल की एक मीटिंग है।मिसेज विश्वास की बात सुन अपनी क्लास समाप्त कर आई तीन-चार शिक्षिकाएं परेशान हो उठीं। नगमा कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठी। ‘हर हफ्ते, दो हफ्ते पर कभी मीटिंग, कभी ट्रेनिंग, तो कभी गरीबों की सहायता के नाम पर स्कूल के बाद रुकना पड़ता है। ये सब काम अगर स्कूल के समय में से ही हो जाता तो हमें परेशानी नहीं होती। स्कूल बस निकल जाएगी तो फिर दो बसें बदल कर घर जाना पड़ेगा। बच्चे स्कूल से आएंगे तो ताला देख सीढिय़ों पर बैठे रहेंगे। पहले मालूम होता तो कोई न कोई इंतजाम करके आती।
‘ऐसा करो न… मीटिंग से पहले ही प्रिंसिपल मैम को काम का हवाला देकर चली जाना।
‘पिछली बार एक घंटा पहले मैम से बोलकर गई थी, पूरे दिन की लीव लग गई थी। दिन भर काम करने के बाद भी मात्र एक घंटे के लिए लीव लग जाए, ऐसा कौन चाहेगा। प्राइवेट स्कूल की तो यही विडंबना है, शिक्षक के बलबूते करोड़ों कमाने वाले संस्थापक, छोटी-छोटी गलतियों के लिए शिक्षकों को दंड देते हैं। ये भी नहीं सोचते, क्षमता से अधिक कार्य कर शिक्षक वैसे ही टूटे रहते हैं। उस पर बात-बे-बात सैलरी काटना कितना मानसिक आघात देता होगा। यह कर्मठता को प्रभावित करता है।
मंजीत लंबी सांस खींचते हुए बोली, ‘हालात के मारे बेचारे शिक्षक भी क्या करें? घर भी चलाना है, नौकरी भी करनी है। मेरे पति का व्यापार ढंग से चलता तो मैं नौकरी छोड़ कर घर बैठ जाती। आधी जिंदगी दोहरी जिम्मेदारियों का बोझ संभालते निकल गई। किसी को भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर पाई। खुद को भी नहीं। अपेक्षाएं और जरूरतें समाप्त ही नहीं होती।
मेरी अपेक्षाएं कोई नहीं सोचता। ‘मत सोचिए इतना, आपके बेटे पढऩे में अच्छे हैं, जल्दी ही नौकरी पकड़ आपको पूरा सुख और आराम देंगे।
‘आराम क्या देंगे? गृहस्थी बसते ही माता-पिता को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे क्योंकि नए रिश्ते उनके लिए अहम हो जाते हैं और पुराने एक्सपायर। लंच की घंटी लगते ही पूरा स्टाफ रूम शिक्षक-शिक्षिकाओं से भर गया।
मीटिंग का नोटिस आ गया था जिसे लेकर सबके मन में आक्रोश आवेग था। तभी वहां बहुत देर से चुप्पी साधे बैठे कप्यूटर शिक्षक समीर बोल पड़े, ‘पूरी जिंदगी स्कूल में दोहरी मार झेलते और भाषण सुनते निकल गई। मैनेजमेंट को बस काम चाहिए, शिक्षकों की माली हालत से उन्हें लेना-देना नहीं। शिक्षकों को जरूरतें पूरी करने के लिए ट्यूशन पढ़ानी पड़ती हैं। सुबह से शाम काम-काम और काम ही रहता है। जीवन उबाऊ बन गया है।
‘चाहे जितना काम करो, प्रमोशन या इनक्रीमेंट की बात आती है तो हमेशा बाजी खुशामदी और बॉस के करीबी ले जाते हैं। बहुत दुख होता है अपनी स्थिति देख कर। कहने को शिक्षक हैं, एक गरिमामय पदवी है, पर स्थिति धोबी के कुत्ते सी है। थोड़ी देर के लिए पूरे स्टाफरूम में सन्नाटा पसर गया। सभी का मन कुपित था। इधर स्टाफरूम में सारे लोग अपनी व्यथा बयान कर रहे थे, स्टाफरूम के दूसरे कोने में नर्सरी शिक्षिका हेमा और स्पोट्र्स शिक्षक रवि बेखबर अपनी दुनिया और प्रेमालाप में मशगूल थे। थोड़ी देर मिसेज विश्वास उन्हें देखती रही फिर शोख अंदाज में बोली, ‘दुनिया जाए भाड़ में, हम तो प्यार में डूबे रहेंगे सनम। मिसेज विश्वास के इस जुमले के साथ ही गमगीन हो गया स्टाफरूम अचानक खिलखिलाहटों से गूंज उठा, जिसमें हेमा और रवि की खिसियानी हंसी भी शामिल हो गई थी। तभी मिसेज विश्वास की आवाज ने सभी को चौंका दिया था।
‘आप सब इतने गमगीन क्यों हैं। मेरी मानिए तो अपने को सबसे सुखी प्राणी मान उदास रहना छोड़ दीजिए। अपनी सोच को इतना नकारात्मक मत बनाइए कि दुख ही नियति बन जाए और इसी में खो जाएं महत्वाकांक्षाएं। लोग हैं दुनिया में जो हम से ज्यादा दुखी हैं। तो क्या वे जीना छोड़ देते हैं। कठिनाइयों का सामना करने का हौसला रखना होगा। हर व्यक्ति को अपनी लड़ाई खुद लडऩी पड़ती है।
पड़ोसन के सुखों से हमें क्या लेना देना। हम क्यों कुंठित हों। हमें तो उसी पति के साथ निभाना है, दूसरों के पति हमारे किस काम के।
अगर हमारी सोच सकारात्मक होगी तो एक दिन अपनी इच्छा अनुसार जरूर जीएंगे। उसकी बातों के समर्थन में पूरा स्टाफरूम सारी चिंता और मायूसी को झटक फिर से चहकने लगा। जब स्कूल की छुट्टी के बाद शिक्षकों को मीटिंग के लिए बुलवाया गया सभी उत्साह के साथ-साथ मीटिंग हाल की तरफ बढ़ चले।
यह कोई नहीं जानता, मिसेज विश्वास द्वारा जगाए सबके सपने पूरे होंगे या नहीं, लेकिन उनकी बातों से सबकी चिंता जरूर कम हुई थी और मन एक नए आत्मविश्वास और उत्साह से भर गया था। और सच है कि चिंतामुक्त हो सोच समझ कर आत्मविश्वास से लिया गया फैसला ही जीवन को आसान और सुखी बनाता है।
थोड़ी देर के लिए पूरे स्टाफरूम में सन्नाटा पसर गया। सभी का मन कुपित था। इधर स्टाफरूम में सारे लोग अपनी व्यथा बयान कर रहे थे, स्टाफरूम के दूसरे कोने में नर्सरी शिक्षिका हेमा और स्पोर्ट्स शिक्षक रवि बेखबर अपनी दुनिया और प्रेमालाप में मशगूल थे। मिसेज विश्वास उन्हें देखती रही फिर बोली, ‘दुनिया जाए भाड़ में, हम तो प्यार में डूबे रहेंगे सनम। इसके साथ ही गमगीन हो गया स्टाफरूम अचानक खिलखिलाहटों से गूंज उठा।
