सफाई अभियान की बयार जोरों से बह रही थी। जागरूक जनता घरों और ऑफिसों से निकलकर सड़क, मैदान, स्कूल, अस्पताल और नदी-नालों की सफाई करने लगी। हरसुख लाल जागरूक जनता में से एक थे …
हरसुख लाल ऑफिस जाने की हड़बड़ी में थे अत: पत्नी लाजो को पुकारते हुए बोले, ‘अरे भाग्यवान, आज तुम मेरी नई चेकदार शर्ट निकालना, फोटो अच्छी आएगी।
लाजो आ खड़ी हो गई हरसुख लाल के सामने… फिर आंखें तरेर कर बोली, ‘फोटो अच्छी आएगी… क्या मतलब? तुम ऑफिस जा रहे हो, या कहीं और?
‘अरे भाई, ऑफिस के समय ऑफिस नहीं जाऊंगा तो और कहां जाऊंगा? हरसुख लाल को अपनी सफाई में दलीलें देनी पड़ीं।
‘रोज तो तुम इत्मीनान से तैयार होते हो, आराम से निकलते हो फिर आज कौन-सी मुसीबत आ गई, जो इतनी जल्दी, जाना भी है तो बन संवर नई पैंट-शर्ट पहन कर। चहकी लाजो। ‘आज ऑफिस में सफाई अभियान का पहला दिन है। आज हम ऑफिस और आसपास झाडू लगाएंगे, कूड़ा-कचरा बीनेंगे। हरसुख लाल एक सांस में बोल गए क्योंकि एक नेक काम को अंजाम तक पहुंचाने का जुनून सवार था। ‘वाह! ऑफिस में सफाई अभियान की इतनी चिंता, पर मैं जो तुमसे बाहर लॉन की सफाई के लिए कहते-कहते बौरा गई, तुम्हारे कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
लाजो का रौद्र रूप देख हरसुख बोले, ‘अरे भाग्यवान ये बहस का समय नहीं है। रोड़ा मत अटकाओ, जल्दी पहुंचना है। ‘नहीं जी, नहीं। घर में एक दिन भी झाडू को हाथ न लगाया हो, वह आज ऑफिस में झाडू उठाएगा। मैं तुम्हें ऑफिस जाने नहीं दूंगी। देखूं तुम कैसे झाडू को हाथ लगाते हो। शर्म नहीं आती तो न सही, पर मुझे तो आती है। सोसाइटी में लोग क्या कहेंगे? चुल्लू भर पानी में डूबने वाली बात होगी। नहीं जी, आज आप ऑफिस नहीं जाएंगे।
हरसुख लाल को लेने के देने पड़ गए। पत्नी को मनाना भी जरूरी था, वरना अखबार में छपने की तमन्ना धूल-धूसरित हो जाएगी। वे अपने इरादे का बखान करने लगे।
‘अरे भाग्यवान, अच्छे कामों में शर्मिंदगी कैसी? तुम्हारा सर गर्व से ऊंचा होगा कि तुम्हारा पति जागरूक है जो सरकार के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहा है। ऐसे पति की फोटो जब अखबार में आएगी, तब तुम सबको बताती फिरोगी, फिर न कहना कि पैर जमीन पर पड़ ही नहीं रहा। ‘देखो जी, कुछ भी कहो पर आज मैं तुम्हें जाने नहीं दूंगी। हरसुख लाल के सामने लाजो बैठ गई।
लाजो की हठ देखकर हरसुख लाल बौरा गए, बोले- ‘अरी भाग्यवान, कुछ तो लाज करो और बात की बारीकी समझो। घर में झाडू लगाना और ऑफिस में झाडू लगाने में जमीन आसमान का अंतर है। आज झाडू लगाने से नाम होगा। वाहवाही मिलेगी कि हम सफाई अभियान में भागीदारी निभा रहे हैं। यहां तो सिर्फ एक दिन झाडू लगाना है।
‘अरे वाह मेरे शेर, हां तो अकड़कर, रौब झाड़ कर रोज ऑफिस निकल जाते हो। कोई सहयोग नहीं करते हो। मैं दिन रात चूल्हे-चौके में सिर खपाती हूं, फिर घर की सफाई में जूझी रहती हूं। देखो जी, यदि आज तुमने झाडू उठाया और तुम्हारी फोटो अखबार में आई तो तुम्हारी खैर नहीं। ये सरकार क्या हमसे अधिक बलवान है जो मेरे पति पर शासन करे और मैं काठ का उल्लू बनी फिरती रहूं जो अब तक पति के हाथ में झाडू की एक सींक भी नहीं पकड़वा पाई। हरसुख लाल बोले, ‘अरी भाग्यवान, क्यों सरकारी अभियान पर झाडू फेरने को तैयार हो। बुद्धि का उपयोग करो।
हरसुख लाल की झल्लाहट देखकर लाजो भी चिढ़ गई और फिर अपनी खिसियाहट दूर करने के लिए बोली, ‘अरे वाह, तुमने मुझे समझ क्या रखा है? इतनी अक्ल तो है ही कि सरकार के नेक इरादे को समझ सकूं। सरकार ने सफाई अभियान चला कर सफाई के प्रति जनता को जागरूक करने का जो बीड़ा उठाया है वह काबिलेतारीफ है, इसे पूरी निष्ठा से करना भी सबका कर्तव्य बनता है पर इसको पूरा करने का जो दिखावा तुम लोग आज करने जा रहे हो उसे कितने दिन करोगे? पहले मुझे यह समझाओ।
पत्नी को मूर्ख समझने वाले हरसुख लाल की बोलती बंद हो गई। वे लाजो के सामने टिक नहीं पाए तो हड़बड़ा कर बोले, ‘तुम क्या चाहती हो कि हम लोग प्रतिदिन कलम और माउस छोड़कर झाडू लिए फिरते रहें।
लाजो बोली- ‘अरे नहीं, सफाई किसे अच्छी नहीं लगती और वह भी जहां देश साफ करने की बात हो। पर सफाई के सही अर्थ को तो समझो। एक दिन झाडू लेकर फोटो खिंचवाने से सफाई नहीं होगी। सफाई करो तो रोज करो। हरसुख लाल उसकी जुबान पर लगाम लगाते हुए बोले- ‘अरी भाग्यवान, अब चुप भी हो जाओ। आज सरकार की सुनने दो। कहीं पत्नी फिर कोई बेसुरा राग न छेड़ दे इसलिए पेट की ज्वाला को भूल कर हरसुख लाल जल्दी से तैयार हो कर झटपट घर से निकल गए।
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